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Updated: 16 दिसम्बर, 2018 07:32 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की, लेकिन मुख्यमंत्री पद का दावेदार कौन होगा, इसकी खोज कई दिनों तक चली. आखिरकार अब कांग्रेस ने तय कर लिया है कि भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ की सत्ता का सारथी बनाया जाएगा. इस रेस में बघेल के अलावा टीएस सिंह देव, ताम्रध्वज साहू और चरणदास महंत भी शामिल थे, लेकिन आखिरी फैसला पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को ही लेना था. राहुल गांधी ने अब भूपेश बघेल के नाम पर मुहर लगा दी है, जिसकी एक-दो नहीं, बल्कि 5 खास वजहें हैं.

भूपेश बघेल, छत्तीसगढ़, राहुल गांधी, मुख्यमंत्रीअब कांग्रेस ने तय कर लिया है कि भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ की सत्ता का सारथी बनाया जाएगा.

1- ओबीसी नेता होने का फायदा मिला

भूपेश बघेल कुर्मी जाति से आते हैं और ओबीसी जाति के लोगों के एक ताकतवर नेता भी हैं. यहां आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ में करीब 52 फीसदी आबादी ओबीसी है और 36 फीसदी सिर्फ कुर्मी समाज के लोग हैं. 1993 से बघेल छत्तीसगढ़ मानव कुर्मी क्षत्रिय समाज के संरक्षक हैं. जातिगत समीकरण को देखा जाए तो इस मामले में बघेल अन्य दावेदारों से आगे निकल गए. 2.55 करोड़ की आबादी में जहां 52 फीसदी सिर्फ ओबीसी जाति के लोग हों, तो ऐसी जगह पर जातिगत समीकरण चुनाव की दिशा बदलने के लिए काफी होते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है.

2- धराशाई हो चुकी कांग्रेस में जान फूंकी

25 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेसियों की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर के 32 कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया था. इस हमले में राज्य के कांग्रेस के बड़े नेता मारे गए थे, जिनमें विद्याचरण शुक्ला, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और महेंद्र कर्मा भी शामिल थे. उस दौरान एक तो पार्टी अपने नेताओं को खोने से दुखी थी, वहीं दूसरी ओर लगातार दो बार विधानसभा चुनाव (2003 और 2008) हारने की वजह से भी कांग्रेस हताश थी. उस समय में भूपेश बघेल ने टूट चुकी कांग्रेस में नई जान फूंकी. लाख कोशिशों के बाद भी 2013 का चुनाव कांग्रेस नहीं जीत सकी, जिसकी एक बड़ी वजह बड़े नेताओं का हमले में मारा जाना भी था. बावजूद हारने के भूपेश बघेल लगातार काम करते रहे और पार्टी की हर मोर्चे पर कमान संभाली. अनेकों मौकों पर भूपेश बघेल ने रमन सिंह सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की और आखिरकार, मेहनत रंग लाई और अब 2018 का चुनाव कांग्रेस जीत गई.

3- आलाकमान से अच्छे संबंध

अजीत जोगी छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार नहीं करते थे. इसकी वजह से उन्हें भाजपा की बी-टीम भी कहा जाने लगा था. ये भूपेश बघेल ही थे, जिन्होंने अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया. भूपेश बघेल के गांधी परिवार से अच्छे संबंध हैं और इसकी वजह से उन्हें अजीत जोगी को पार्टी से बाहर निकालने में मदद मिली. अजीत जोगी को बाहर निकाल कर वह छत्तीसगढ़ के कई मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरे, जिनमें नसबंदी कांड, अंखफोड़वा कांड, भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दे थे. जिस शख्स ने पार्टी को मुसीबत की घड़ी में भी मजबूत करने का काम किया, उसे मुख्यमंत्री पद का तोहफा तो मिलना ही चाहिए था और मिला भी.

4- किसान होना उनकी ताकत

भूपेश बघेल एक किसान परिवार से आते हैं. यह भी उनके मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने में बहुत मददगार रहा. कांग्रेस ने इस बार छत्तीसगढ़ चुनाव में अपने घोषणा-पत्र में भी किसानों और गरीबों के लिए काफी घोषणाएं की हैं. बल्कि यूं कहें कि किसान और गरीबों के कल्याण के दम पर ही कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में वापसी की है. छत्तीसगढ़ में करीब 76 फीसदी आबादी किसानों की है, ऐसे में एक किसान ही मुख्यमंत्री बने तो जनता का भरोसा जीतना आसान हो जाता है. रमन सिंह ने भी इतने दिनों तक सत्ता में सिर्फ सस्ते चावल के दम पर निकाल दिए, जिसकी वजह से उन्हें चाउर वाले बाबा भी कहा जाता है. 2019 के लोकसभा चुनाव भी सिर पर हैं और ऐसे में किसान कार्ड भी कांग्रेस की झोली में वोटों की बारिश कर सकता है.

5- सामाजिक सुधारों की वकालत करने वाले

भूपेश बघेल वह शख्स हैं, जो सामाजिक सुधारों की बात करते हैं. भव्य विवाह कार्यों से बचने और कम से कम खर्च में शादी करने को बढ़ावा देने के लिए वह सामूहिक विवाह का भी आयोजन करते रहे हैं. बघेल सबसे पहले 1993 में विधानसभा चुनाव जीते थे. इसके बाद उन्होंने कई सामूहिक विवाह कराए थे, जिनसे गरीब जनता काफी खुश रहती है, क्योंकि उनका खर्च बचता है.

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