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Updated: 27 दिसम्बर, 2019 08:38 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से आने वाली बर्फीली हवाओं ने दिल्ली की फिजा को अपनी आगोश में ले लिया है. हड्डी गला देने वाली ठण्ड है. सर्दी का आलम कुछ ऐसा है कि जैसे तैसे करके आदमी बाहर तो निकल रहा है मगर जैसे ही शाम होती है लोग अपने अपने घरों में लौट जाते हैं. शीत लहर के कारण दिल्ली की सड़कें शाम होते ही  सुनसान हो जाती हैं. बात तापमान की हो तो इन दिनों दिल्ली का तापमान शाम होते ही 5 से 6 डिग्री तक चला जा रहा है. सवाल होगा कि जाड़े के अलावा ठिठुरन और गलन की मार सहती दिल्ली की बातें क्यों? जवाब है CAA protest. दिल्ली के शाहीन बाग (CAA protest in Shaheen bagh) इलाके में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के विरोध में महिलाएं 13 दिनों से लगातर धरने पर हैं. ध्यान रहे कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ (Protest Against CAA) देश की एक बड़ी आबादी सड़कों पर है. तमाम ऐसे मामले हमारे आ चुके हैं जिसमें कानून के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने 'कानून' अपने हाथ में लिया. आगजनी हुई, पत्थरबाजी को अंजाम दिया गया. उपद्रव हुआ और शांति को प्रभावित किया गया. टीवी अख़बारों और इंटरनेट पर हम तस्वीरें वो भी देख चुके हैं जब बेकाबू हालात को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करते हुए बल का सहारा लेना पड़ा.

शाहीनबाग, नागरिकता संशोधन कानून, महिलाएं, प्रदर्शन, Shaheen bagh  शाहीनबाग की महिलाएं CAA के विरोध में आए हुए तमाम प्रदर्शनकारियों के लिए प्रेरणा हैं

दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाके में ठंड ठिठुरन और गलन की परवाह किये बगैर  सैकड़ों महिलाएं बीच सड़क पर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ धरने पर बैठी हैं. बता दें कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में 15 दिसंबर को जामिया नगर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद से शाहीन बाग इलाके में विरोध-प्रदर्शन चल रहा है. पिछले 13 दिनों से जारी इस 'शाहीन बाग रिजिस्ट में रोज सैकड़ों महिलाएं  ठंड की परवाह किये बगैर परिवार और घरेलू कामकाज के बीच सामंजस्य बैठाते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही हैं.

CAA के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग जैसी एक गुमनाम जगह पर चल रहा ये प्रोटेस्ट कई मायनों में दिलचस्प है. यहां आ रही महिलाओं का तरीका शांत है. वो उग्र नहीं हैं. महिलाएं किसी पर पत्थर नहीं मार रहीं हैं. वो बसों को तो बिलकुल भी आग के हवाले नहीं कर रही हैं. इनके हाथ में लाठी डंडे और तमंचे भी नहीं हैं. जमीन पर बैठकर प्रदर्शन करने वाली इन महिलाओं और लड़कियों के हाथों में प्लेकार्ड है. ये पोस्टर और पैम्पलेट लेकर प्रदर्शन कर रही हैं.

शाहीन बाग़ में प्रदर्शन कर रही ये महिलाएं एक दूसरे से बोल रही हैं. बातें कर रही हैं. साथ खा पी रही हैं. मगर अपनी मांगों को लेकर बहुत सख्त हैं. इन महिलाओं की मांग हैं कि ये तब तक अपना धरना नहीं ख़त्म करेंगी जब तक सरकार नागरिकता कानून को वापस नहीं लेती. शाहीनबाग की ये प्रदर्शकारी महिलाएं अपने इस धरने को अधिकारों की लड़ाई बता रही हैं और इस लड़ाई में वो सरकार और मौसम दोनों से एकसाथ मोर्चा ले रही हैं.

अगर इस धरने पर गौर किया जाए तो मिलता है कि अन्ना आंदोलन के बाद ये पहला मौका है जब हम इस तरफ का कोई ऐसा प्रोटेस्ट देख रहे हैं. ये एक ऐसा प्रोटेस्ट है जो शांतिपूर्ण हैं और जिसमें प्रदर्शनकारी किसी और को नहीं बल्कि अपनी मांगों के लिए खुद को तकलीफ पहुंचा रहे हैं.  शाहीन बाग में चल रहे इस प्रोटेस्ट पर गौर करने पर जो एक बात और निकल कर सामने आ रही है वो ये कि शाहीनबाग का गुमनाम प्रोटेस्ट ही असली है बाकी जो भी हो रहा है या फिर जो हम देख रहे हैं वो दंगा है.

बात थोड़ी अटपटी लग सकती है. मगर सत्य यही है कि किसी भी प्रोटेस्ट का असली चेहरा ऐसे ही प्रोटेस्ट हैं. यही वो प्रोटेस्ट है जिसे आंदोलन में शामिल तमाम लोगों को न सिर्फ प्रमोट करना चाहिए बल्कि इसे आगे भी ले जाना चाहिए. चूंकि शाहीन बाग़ के इस प्रोटेस्ट में हाड़ कंपा देने वाली ठंड में सैकड़ों महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ धरने पर बैठी हैं. साथ ही ये महिलाएं हिंसा न करते हुए सत्याग्रह कर रही हैं तो अगर पुलिस इन पर लाठी भी चलाना चाहे तो मूकदर्शक बने इनके प्रोटेस्ट को देखना कहीं न कहीं उसकी मज़बूरी है.

CAA protest में पुलिस की तरफ से गोली चलाने की भी खबरें आई हैं. तो इस आंदोलन में गोली चलाने का सवाल इसलिए भी पैदा नहीं होता क्योंकि अधिकारों की लड़ाई के नाम पर इनके द्वारा किये जा रहे विरोध का तरीका एकदम शांत है. ये व्यवस्था को तो प्रभावित कर रही हैं मगर इन्होंने अपने को उपद्रव से दूर रखा हुआ है.

इस प्रोटेस्ट को देखकर ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि शाहीन बाग के इस प्रदर्शन को देखकर उन 'दंगाइयों' को शर्म से चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए जिन्होंने विरोध के नाम पर अपने उपद्रव से देश की अखंडता और एकता को प्रभावित किया. देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. पुलिस पर पत्थर चलाए उन्हें गोलियां मारीं.

बात एकदम सीधी है प्रोटेस्ट ऐसे ही होता है. ऐसे ही होना चाहिए. यदि प्रोटेस्ट ऐसे होगा तो शासन प्रशासन भी सुध लेंगे, सरकारी खेमे में बेचैनी बढ़ेगी. नतीजा ये होगा कि शायद फिर कोई प्रदर्शकारियों से बात करने या फिर उनकी मांग सुनने सामने आए और इन सब के बाद उन्हें उनके वो अधिकार मिल जाएं जिनकी लड़ाई में ये लोग रूह कंपा देने वाली ठण्ड के बीच सड़क पर बैठे प्रदर्शन कर रहे हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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