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सैनिटरी पैड और फिल्म स्टार्स का प्रोमोशन

    • प्रियंका ओम
    • Updated: 06 फरवरी, 2018 09:54 PM
  • 06 फरवरी, 2018 09:54 PM
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पीरियड्स अन्य नैचुरल कॉल की तरह ही है! बाक़ी चीज़ें रोज़ होती हैं पीरियड महीने में एक बार, फिर इसमें इतनी छुपा छुपी क्यूं? सैनिटेरी पैड खरीदने में इतनी शर्म क्यूं? मेंस्ट्रूअल साइकल और पैड ख़रीदना कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि गर्व की बात है.

पैडमैन फिल्म का प्रमोशन शुरू होते ही सारे फिल्मस्टार्स की चेतना जागृत हो गई. अचानक ही उन्हें पैड की क़ीमत ज़्यादा लगने लगी और उसे टैक्स फ़्री कराना याद आ गया! ख़ैर फ़िल्मस्टार तो मतलबी होते हैं, लेकिन फ़िल्म स्टार्स की देखा-देखी आम महिलायें और पुरुष भी अनजाने में ही फ़िल्म हिट कराने के कैम्पेन का हिस्सा बनते जा रहे हैं!

कुछ लड़कियां साफ़ पैड लेकर सोशल मीडिया में फ़ोटो अपलोड कर रही हैं, तो कुछ ख़ून के धब्बे के साथ बिना इस बात की परवाह किए कि इसके बदले फ़िल्म की कमाई से अक्षय कुमार उन्हें एक पाई नही देगा! सोशल मीडिया हमेशा से अंधी दौड़ का साक्षी रहा है, ऐसा लगता है कुछ स्त्रीवादी स्त्रियां/पुरुष हमेशा ही ऐसे मौक़ों की तलाश में रहते हैं. बस एक छोटा सा मौका मिला नहीं कि अपनी

पैडमैन फिल्म का प्रमोशन शुरू होते ही सारे फिल्मस्टार्स की चेतना जागृत हो गई. अचानक ही उन्हें पैड की क़ीमत ज़्यादा लगने लगी और उसे टैक्स फ़्री कराना याद आ गया! ख़ैर फ़िल्मस्टार तो मतलबी होते हैं, लेकिन फ़िल्म स्टार्स की देखा-देखी आम महिलायें और पुरुष भी अनजाने में ही फ़िल्म हिट कराने के कैम्पेन का हिस्सा बनते जा रहे हैं!

कुछ लड़कियां साफ़ पैड लेकर सोशल मीडिया में फ़ोटो अपलोड कर रही हैं, तो कुछ ख़ून के धब्बे के साथ बिना इस बात की परवाह किए कि इसके बदले फ़िल्म की कमाई से अक्षय कुमार उन्हें एक पाई नही देगा! सोशल मीडिया हमेशा से अंधी दौड़ का साक्षी रहा है, ऐसा लगता है कुछ स्त्रीवादी स्त्रियां/पुरुष हमेशा ही ऐसे मौक़ों की तलाश में रहते हैं. बस एक छोटा सा मौका मिला नहीं कि अपनी प्रगतिशीलता का प्रमाण अपलोड कर देते हैं!

फिल्म स्टार्स को अपनी फिल्म से मतलब होता है, समाज से नहीं

नहीं, मैं आपकी प्रगतिशील सोच के खिलाफ नही हूं. मैं तो बस आपके अतिभावुकता से हैरान हूं. इससे पहले कि आप मुझे और हैरान करें, मैं आप सबसे कहना चाहती हूं कि इस देश में सैनिटेरी पैड और उस पर टैक्स के अतिरिक्त और भी कई समस्याएं हैं जिनपर रोज बात करने की ज़रूरत है. और इनका लगातार, पुरज़ोर विरोध करने की ज़रूरत है! लेकिन आम जनता तभी जागृत होती है जब किसी भी मुद्दे को फ़िल्म में उठाया जाता है या कोई सेलिब्रिटी बात को तूल देता है. बाकी दिन हम सोये रहते हैं और अगर कोई पहल करता भी है तो लोग उसे तवज्जो नहीं देते हैं.

हम ये बात क्यूं नहीं समझते हैं कि फ़िल्म स्टार को आम जनता की आम समस्या से कोई मतलब नहीं है. वो तो बस अपनी फ़िल्म को हिट कराने के लिये नए नए कैम्पेन चलाते हैं! इमोशनल जनता को बेवकूफ बनाते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सैनिटेरी पैड की क़ीमत और उस पर टैक्स मुद्दा नहीं है! है जी, बिल्कुल है! और हमें इसका विरोध रोज़ करना चाहिये. सरकार से मांग करनी चाहिये कि वो सैनिटेरी पैड और कॉन्डोम फ़्री कर दे! एक तो जनसंख्या कम होगी, दूसरे सेक्स संबंधी बीमारियों में भी कमी होगी. साथ ही गांव/क़स्बे की महिलाएं भी जागरूक होंगी!

पीरियड्स अन्य नैचुरल कॉल की तरह ही है! बाक़ी चीज़ें रोज़ होती हैं पीरियड महीने में एक बार, फिर इसमें इतनी छुपा छुपी क्यूं? सैनिटेरी पैड खरीदने में इतनी शर्म क्यूं? मेंस्ट्रूअल साइकल और पैड ख़रीदना कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि गर्व की बात है. क्यूंकि एक स्त्री तभी सम्पूर्ण होती है जब उसको पीरियड्स होते हैं! पीरियड्स होने पर ही एक स्त्री मां बन सकती है. फिर तो मां बनना भी शर्मिंदगी की बात है!

फिल्म सितारों को फॉलो मत करिए

सेक्स सार्वजनिक रूप से नहीं किया जाता, लेकिन उसके परिणाम (गर्भवती स्त्री के बढ़े हुए पेट के साथ) को लेकर डॉक्टर के पास जाने में शर्म नहीं आती है. न स्त्री को न पुरुष को. लेकिन पीरियड्स की बात करने में भी शर्म आती है. पैड खरीदने में शर्म आती है. जबकि मां बनने की ख़बर ख़ुशख़बरी होती है! यह इस सामाजिक चेतना की विडम्बना नहीं तो और क्या है कि मां बनना ख़ुशख़बरी है, लेकिन पीरियड्स होना शर्म की बात!

यहां तक कि टीवी पर आने वाले सैनिटरी पैड के ऐड में ब्लू इंक से डेमो दिया जाता है. भई ख़ून का रंग लाल होता है और ये बच्चा भी जानता है. तो ब्लू इंक का इस्तेमाल करके आप क्या कहना चाहते हैं? क्या हमारे ख़ून का रंग लाल होना भी शर्मिंदगी की बात है? दुकानवाले का पैड को काली प्लास्टिक में पैक करके देने के पीछे कहीं ना कहीं हम ख़ुद ज़िम्मेदार हैं! हमने कितनी बार इस बात का विरोध किया है? शायद कभी नहीं! कभी उसके घूरने के डर से तो कभी जाने दो, हमें क्या करना, हम फ़ेमिनिस्ट थोड़ी हैं!

क्या समस्याएं सिर्फ़ फ़ेमिनिस्ट औरतों की व्यक्तिगत समस्या है? आपकी नहीं? क्या आपके सम्मान को ठेस नही पहुंचती, जब कोई सैनिटेरी पैड काले प्लास्टिक बैग में देता है? अगर नहीं पहुंचती तो वाक़ई ये आपकी समस्या नहीं है!

बॉटम लाइन यह है कि फ़िल्म या फ़िल्म स्टार से प्रभावित होने के बजाय हमें ख़ुद उदाहरण बनना चाहिये! हमें हर उस बात का विरोध करना चाहिये जो ग़लत है और हर उस बात का सम्मान करना चाहिये जो सही है! पीरियड्स होना सही है, पैड ख़रीदना सही है. इसका सम्मान कीजिए. लेकिन उसकी क़ीमत ज़्यादा होना ग़लत है, उसपर टैक्स होना ग़लत है विरोध कीजिए!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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