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खून का रंग लाल ही होता है...समझ तो आया!

    • संध्या द्विवेदी
    • Updated: 25 अक्टूबर, 2017 02:00 PM
  • 25 अक्टूबर, 2017 02:00 PM
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थैंक गॉड ये देर से ही सही, मगर समझ तो आया कि पीरियड का खून भी लाल ही होता है. उम्मीद जगी है कि दूसरी कंपनियां भी ऐसा साहस करेंगी और अपनी हिचकिचाहट तोड़ेंगी.

माहवारी न हुई बीमारी हो गई. वह भी छूत की बीमारी. बचपन में सुना था टीबी छूत की बीमारी है. बड़े होते-होते यकीन हो गया कि नहीं ये छूने से नहीं होती और न ही टी.बी. के रोगी के साथ रहने से होती है. फिर एक और बीमारी आई एड्स, हाहाकार मच गया. लेकिन तब तक दिमाग खुद भी चौकन्ना रहने का आदी हो चुका था. सो जानकारी जुटाई, जानकारों से खूब सवाल पूछे और यकीन हो गया कि ये बीमारी हाथ मिलाने से नहीं होती.

खून का रंग लाल ही होता है... ब्लू नहीं

इन सबके बारे में जागरुकता फैलाने में अहम भूमिका निभाई विज्ञान ने और कई विज्ञापनों ने. लेकिन ‘उन दिनों के बारे में’ तो बस खुसर-फुसर ही होती रही. और तो और बेहद आधुनिक माध्यम टेलीविजन पर भी प्रतीकात्मक विज्ञापन ही बने. जैसे एक विज्ञापन जिसमें अंगूठी एक स्विमिंग पूल में गिर जाती है. अब अंगूठी जिसकी थी वो लड़की पीरियड्स की वजह से स्वीमिंग पूल में कैसे जाए. लेकिन उसने परेशान होने के बजाए बड़े ही स्टाइल और कॉन्फिडेंस से 'डोंट वरी' लिखा हुआ एक पैकेट निकाला! तब मैंने सोचा कि आखिर सैनिटरी पैड के विज्ञापन में स्विमिंग पूल का क्या काम ?

 

लेकिन फिर खुद ही मेरे मन ने कहा, बेशर्म लड़की पीरियड का खून कैसे दिखाया जा सकता है !

खैर एक और विज्ञापन आया जिसमें पैड की गुणवत्ता और क्षमता के प्रदर्शन के लिए नीले रंग के लिक्विड का इस्तेमाल किया गया. कई प्रश्नचिह्न दिमाग में तैरने लगे कि खून दिखाने के लिए नीला रंग क्यों?

 

यू.के. की बॉडीफार्म नाम की कंपनी ने इस धारणा को तोड़ने का काम किया है. यकीन मानिए इस विज्ञापन को कई बार देखा. न जाने क्यों दिल को अजीब सा सुकून मिला. मन ही मन व्यंग्य भी किया, चलो कम से कम किसी को तो समझ आया कि पीरियड के खून का रंग लाल होता है. पहली बार किसी...

माहवारी न हुई बीमारी हो गई. वह भी छूत की बीमारी. बचपन में सुना था टीबी छूत की बीमारी है. बड़े होते-होते यकीन हो गया कि नहीं ये छूने से नहीं होती और न ही टी.बी. के रोगी के साथ रहने से होती है. फिर एक और बीमारी आई एड्स, हाहाकार मच गया. लेकिन तब तक दिमाग खुद भी चौकन्ना रहने का आदी हो चुका था. सो जानकारी जुटाई, जानकारों से खूब सवाल पूछे और यकीन हो गया कि ये बीमारी हाथ मिलाने से नहीं होती.

खून का रंग लाल ही होता है... ब्लू नहीं

इन सबके बारे में जागरुकता फैलाने में अहम भूमिका निभाई विज्ञान ने और कई विज्ञापनों ने. लेकिन ‘उन दिनों के बारे में’ तो बस खुसर-फुसर ही होती रही. और तो और बेहद आधुनिक माध्यम टेलीविजन पर भी प्रतीकात्मक विज्ञापन ही बने. जैसे एक विज्ञापन जिसमें अंगूठी एक स्विमिंग पूल में गिर जाती है. अब अंगूठी जिसकी थी वो लड़की पीरियड्स की वजह से स्वीमिंग पूल में कैसे जाए. लेकिन उसने परेशान होने के बजाए बड़े ही स्टाइल और कॉन्फिडेंस से 'डोंट वरी' लिखा हुआ एक पैकेट निकाला! तब मैंने सोचा कि आखिर सैनिटरी पैड के विज्ञापन में स्विमिंग पूल का क्या काम ?

 

लेकिन फिर खुद ही मेरे मन ने कहा, बेशर्म लड़की पीरियड का खून कैसे दिखाया जा सकता है !

खैर एक और विज्ञापन आया जिसमें पैड की गुणवत्ता और क्षमता के प्रदर्शन के लिए नीले रंग के लिक्विड का इस्तेमाल किया गया. कई प्रश्नचिह्न दिमाग में तैरने लगे कि खून दिखाने के लिए नीला रंग क्यों?

 

यू.के. की बॉडीफार्म नाम की कंपनी ने इस धारणा को तोड़ने का काम किया है. यकीन मानिए इस विज्ञापन को कई बार देखा. न जाने क्यों दिल को अजीब सा सुकून मिला. मन ही मन व्यंग्य भी किया, चलो कम से कम किसी को तो समझ आया कि पीरियड के खून का रंग लाल होता है. पहली बार किसी सैनिटरी पैड के विज्ञापन में खून का रंग लाल ही दिखा. बिना किसी हिचकिचाहट के इस कंपनी ने पैड पर लेटी एक महिला के टांगों के बीच से निकलते लाल रंग के खून को दिखाया.

हालांकि सोशल मीडिया पर पीरियड्स को लेकर खुलकर बात हुई है. हैप्पी टू ब्लीड जैसा आंदोलन चला. टोरंटो की एक ब्लॉगर रूपी कौर ने तो सीरीज में फोटो ही पोस्ट कर दिए. इस पर खूब हंगामा मचा. यहां तक कि इंस्टाग्राम ने ट्राउजर पर आए खून के धब्बे वाली फोटो को भी हटा लिया. बाद में ये कहते हुए माफी मांगी कि ये फोटो गलती से हट गई थी.

सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए एक वीडियो में दौड़ती हुई लड़कियां, तैरती हुई लड़कियां, मुक्केबाजी करती लड़कियां दिखाई गईं. हाथ से, पैर से, माथे से खून निकलता दिखाया गया. और लास्ट में एक संदेश दिया गया, no blood should hold us back. 

थैंक गॉड ये देर से ही सही, मगर समझ तो आया कि पीरियड का खून भी लाल ही होता है. उम्मीद जगी है कि दूसरी कंपनियां भी ऐसा साहस करेंगी और अपनी हिचकिचाहट तोड़ेंगी. इस कंपनी ने 10,017 महिला और पुरुषों पर सर्वे भी किया. जिसमें पाया कि इनमें से 74 फीसदी लोग विज्ञापन में पीरियड्स को उसके मौलिक रूप में ही देखना चाहते हैं... यानी जैसे दूसरे विज्ञापन सीधे मुद्दे पर आते हैं, वैसे ही यहां पर भी बात पीरियड्स की ही हो. कम से कम खून का रंग तो लाल ही दिखे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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