• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

भारत के लिए खतरे की घंटी है बढ़ती बेरोजगारी

    • आशीष वशिष्ठ
    • Updated: 10 मार्च, 2018 11:57 AM
  • 10 मार्च, 2018 11:57 AM
offline
जिन युवाओं के दम पर हम भविष्य की मजबूत इमारत की आस लगाए बैठे हैं उसकी नींव की हालत निराशाजनक है और हमारी नीतियों के खोखलेपन को राष्ट्रीय पटल पर प्रदर्शित कर रही है.

जिस युवा शक्ति के दम पर हम विश्व भर में इतराते फिरते हैं. देश की वही युवा शक्ति एक अदद नौकरी के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है. लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी के कारण सबसे अधिक आत्महत्याओं का कलंक भी हमारे देश के माथे पर लगा हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन 26 युवा खुद को काल के गाल में झोंक रहे हैं और इस संताप की स्थिति का जन्म छात्र बेरोजगारी की गंभीर समस्या के कारण हुआ है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, भारत सरकार और विभिन्न एजेंसियों के ताजा सर्वेक्षण और रपट इस ओर इशारा करते हैं कि देश में बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ा है. जिन युवाओं के दम पर हम भविष्य की मजबूत इमारत की आस लगाए बैठे हैं उसकी नींव की हालत निराशाजनक है और हमारी नीतियों के खोखलेपन को राष्ट्रीय पटल पर प्रदर्शित कर रही है.

NCRB के मुताबिक हर रोज 26 युवा बेरोजगारी के कारण आत्महत्या कर रहे हैं

मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी

आईएलओ ने जो अनुमान लगाया है, वह मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी है. इसमें कहा गया है कि वर्ष 2018 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.86 करोड़ रहने का अनुमान है. साथ ही इस संख्या के अगले साल, यानी 2019 में 1.89 करोड़ तक बढ़ जाने का अनुमान लगाया गया है. आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों का देश बन गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय देश की 11 फीसदी आबादी बेरोजगार है. यह वे लोग हैं जो काम करने लायक हैं, लेकिन उनके पास रोजगार नहीं हैं. इस प्रतिशत को अगर संख्या में देखें, तो पता चलता है कि देश के लगभग 12 करोड़ लोग बेराजगार हैं. इसके अलावा बीते साढ़े तीन साल में बेरोजगारी की दर में जबरदस्त इजाफा हुआ है. यह तो कहना है, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ की रिपोर्ट का. वहीं मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो के सर्वे से भी सामने आया है कि बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है.

जिस युवा शक्ति के दम पर हम विश्व भर में इतराते फिरते हैं. देश की वही युवा शक्ति एक अदद नौकरी के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है. लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी के कारण सबसे अधिक आत्महत्याओं का कलंक भी हमारे देश के माथे पर लगा हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन 26 युवा खुद को काल के गाल में झोंक रहे हैं और इस संताप की स्थिति का जन्म छात्र बेरोजगारी की गंभीर समस्या के कारण हुआ है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, भारत सरकार और विभिन्न एजेंसियों के ताजा सर्वेक्षण और रपट इस ओर इशारा करते हैं कि देश में बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ा है. जिन युवाओं के दम पर हम भविष्य की मजबूत इमारत की आस लगाए बैठे हैं उसकी नींव की हालत निराशाजनक है और हमारी नीतियों के खोखलेपन को राष्ट्रीय पटल पर प्रदर्शित कर रही है.

NCRB के मुताबिक हर रोज 26 युवा बेरोजगारी के कारण आत्महत्या कर रहे हैं

मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी

आईएलओ ने जो अनुमान लगाया है, वह मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी है. इसमें कहा गया है कि वर्ष 2018 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.86 करोड़ रहने का अनुमान है. साथ ही इस संख्या के अगले साल, यानी 2019 में 1.89 करोड़ तक बढ़ जाने का अनुमान लगाया गया है. आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों का देश बन गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय देश की 11 फीसदी आबादी बेरोजगार है. यह वे लोग हैं जो काम करने लायक हैं, लेकिन उनके पास रोजगार नहीं हैं. इस प्रतिशत को अगर संख्या में देखें, तो पता चलता है कि देश के लगभग 12 करोड़ लोग बेराजगार हैं. इसके अलावा बीते साढ़े तीन साल में बेरोजगारी की दर में जबरदस्त इजाफा हुआ है. यह तो कहना है, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ की रिपोर्ट का. वहीं मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो के सर्वे से भी सामने आया है कि बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है.

हैरान करते हैं आंकड़े-

केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार हर रोज 550 नौकरियां कम हुई हैं और स्वरोजगार के मौके घटे हैं. इन सारी कवायदों के बीच जो आंकड़े आमने आए हैं, उनसे पता चलता है कि रोजगार के मुद्दे पर देश के हालात बहुत खराब हैं. हाल ही में आई अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि साल 2019 आते-आते देश के तीन चैथाई कर्मचारियों और प्रोफेशनल्स पर नौकरी का खतरा मंडराने लगेगा या फिर उन्हें उनकी काबिलियत के मुताबिक काम नहीं मिलेगा.

रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में भारत में जो करीब 53.4 करोड़ काम करने वाले लोग हैं उनमें से करीब 39.8 करोड़ लोगों को उनकी योग्यता के हिसाब से न तो काम मिलेगा, न नौकरी. इसके अलावा इन पर नौकरी जाने का खतरा भी मंडरा रहा है. वैसे तो 2017-19 के बीच बेरोजगारी की दर 3.5 फीसदी के आसपास रहने का अनुमान है, लेकिन 15 से 24 साल के आयुवर्ग में यह प्रतिशत बहुत ज्यादा है. आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 15 से 24 आयु वर्ग वाले युवाओं का बेरोजगारी प्रतिशत 10.5 फीसदी था, जो 2019 आते-आते 10.7 फीसदी पर पहुंच सकता है. महिलाओं के मोर्चे पर तो हालत और खराब है. रिपोर्ट कहती है कि बीते चार साल में महिलाओं की बेरोजगारी दर 8.7 तक पहुंच गई है.

केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार हर रोज 550 नौकरियां कम हुई हैंयह देश का एक ऐसा सच है जिससे राजनीतिकों, नीति-नियंताओं तथा खुद को मुल्क का रहनुमा समझने वाले लोगों ने आंखें मूंद ली हैं. इक्कीसवीं सदी की बात करें तो 1,54,751 बेरोजगार अब तक खुदकुशी कर चुके हैं. इस तरह युवाओं का बेदम होना किसी राष्ट्र के बेदम होने का संकेत ही है. बेरोजगारी की समस्या वर्ष दर वर्ष और गंभीर होती जा रही है तो क्या मान लिया जाए की भारत बढ़ती खुदकुशियों के एक नए कीर्तिमान की ओर अग्रसर हो रहा है?

सरकारी क्षेत्र में रोजगार हासिल करने के लिए बेरोजगार युवाओं को आज कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है, यह बात किसी से छिपी नहीं है. लाखों बेरोजगार युवाओं को आवेदन करने के एवज में आवश्यकता से अधिक आवेदन राशि देनी पड़ रही है. आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं के लिए इस बेरोजगार युग में रुपए जुटाना कोई आसान काम नहीं है. सरकार द्वारा की जाने वाली भर्तियों में पदों की संख्या बेरोजगारों की भीड़ को देखते हुए ऊंट के मुंह में जीरे के समान होती है. इसके बावजूद लाखों युवाओं द्वारा दिया गया आवेदन शुल्क सरकार के खजाने में जमा हो जाता है.

देश में बेरोजगारी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. पढ़े-लिखे लोगों मे बेरोजगारी के हालात ये हैं कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद के लिए प्रबंधन की पढ़ाई करने वाले और इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी भी आवेदन करते हैं. रोजगार के मोर्चे पर हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं. सरकार को चाहिए कि इस मसले पर वह गंभीरता से विचार करे. घोषित तौर पर सरकारी योजनाएं बहुत हैं, मगर क्या उन पर ईमानदारी से अमल हो पाता है? इसकी जांच करने वाला कोई नहीं. करोड़ों-अरबों रुपए खर्च करने से कुछ नहीं होगा, जब तक जमीनी स्तर पर कोई ठोस नतीजा नहीं सामने आता.

देश में बेरोजगारी की दर कम किए बिना विकास का दावा करना कभी भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता. देश का शिक्षित बेरोजगार युवा आज स्थायी रोजगार की तलाश में है. ऐसे में बमुश्किल किसी निजी संस्थान में अस्थायी नौकरी मिलना भविष्य में नौकरी की सुरक्षा के लिए लिहाज से एक बड़ा खतरा है. सरकार द्वारा सरकारी महकमों को पीपीपी स्वरूप में तब्दील कर देने और खुद अपनी जिम्मेदारी निभाने से पीछे हटने को लेकर शक बढ़ता है कि सरकार क्या करने वाली है. यह सब मिल कर सेवा क्षेत्र में बढ़ती जीडीपी पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना को दर्शाता है.

सरकार को देश के सेवा क्षेत्र में नए प्रयोग करने के साथ-साथ उसमें विस्तार करने की जरूरत है, ताकि नए पद सृजित किए जा सकें. नए सरकारी पद सृजित होंगे तो युवाओं को रोजगार मिलेगा. इससे देश की विकास दर रफ्तार पकड़ेगी. आज कृषि, प्रशासन, बैंक, बीमा, चिकित्सा, शिक्षा, रक्षा, साइबर सुरक्षा, तकनीकी और अनुसंधान क्षेत्रों में नए पदों पर भर्तियों की आवश्यकता है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों को यह समझ बखूबी है और इसी का फायदा उठाते हुए वे कर्मचारियों का शोषण कर रही हैं. कम तनख्वाह में व्यक्ति काम करने के लिए तभी तैयार होता है, जब उसको कहीं और काम मिलने में दिक्कत हो. इसी का फायदा आज निजी कंपनियां उठा रही हैं और लोगों की तनख्वाह लगातार कम होती जा रही है.

इन हालातों में आखिर देश के युवा कहां जाएं

बेरोजगार युवाओं के तेजी से बढ़ती तादाद देश के लिए खतरे की घंटी है. और नरेंद्र मोदी की सरकार को तुरंत इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए. विशेषज्ञों के अनुसार, केंद्र व राज्य सरकारें भारी तादाद में रोजगार देने वाले उद्योग नयी नौकरियां पैदा करने में नाकाम रही हैं. इस समस्या के समाधान के लिए कौशल विकास और लघु उद्योग को बढ़ावा देना जरूरी है. वहीं युवाओं को नौकरी के लायक बनाने के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग के जरिये कौशल विकास बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. इसके साथ ही उद्योग व तकनीक संस्थान में बेहतर तालमेल जरूरी है.

सवाल यह भी है कि इन हालातों में आखिर देश के युवा कहां जाएं, क्या करें, जब उनके पास रोजगार के लिए मौके नहीं हैं, समुचित संसाधन नहीं हैं, योजनाए सिर्फ कागजों में सीमित हैं. पहले ही नौकरियों में खाली पदों पर भर्ती पर लगभग रोक लगी हुई है, उस पर बढ़ती बेरोजगारी आग में घी का काम कर रही है. पढ़े-लिखे लोगों की डिग्रियां आज रद््दी हो गई हैं, क्योंकि उन्हें रोजगार नहीं मिलता. सरकार को इस मसले को गंभीरता से लेना चाहिए. नए रोजगारों का सृजन करना जरूरी है. युवा देश का भविष्य है तो वह भविष्य क्यों अधर में लटका रहे?

मोदी सरकार ने कौशल विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे जरूर किये थे, लेकिन अब तक उसका कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आ सका है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में प्रतिदिन 400 नए रोजगारों का सृजन किया जाता है. यह हमारी बेलगाम रफ्तार से बढ़ती आबादी के लिहाज से ऊंट के मुंह में जीरा ही कहा जा सकता है. इसके मद्देनजर हमारी योजनाओं की प्राथमिकताओं में बेरोजगारी उन्मूलन को शामिल कर ठोस कदम उठाए जाएं ताकि भविष्य की इमारत को मजबूत नींव प्रदान की जा सके.

ये भी पढ़ें-

चर्चा-ए-पकौड़ा निकली है तो कम से कम 2019 तक तो जाएगी

क्या बीजेपी सच कहने से डरती है ?

नौकरियों के मामले में हिंदुस्तान एक टाइम बम पर बैठा है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲