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क्या बीजेपी सच कहने से डरती है ?

    • आलोक रंजन
    • Updated: 27 सितम्बर, 2017 12:51 PM
  • 27 सितम्बर, 2017 12:51 PM
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जब अर्थव्यवस्था में नरमी नहीं है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आर्थिक सलाहकार परिषद (प्राइम मिनिस्टर इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल) गठन करने की जरुरत क्यों पड़ गई.

2014 में चुनावी रैलियों के दौरान बीजेपी ने देश से कई वादे किये थे. पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अन्य दिग्गज नेता उस समय ये कहने से भी नहीं चुके थे कि मोदी सरकार में देश की अर्थव्यवस्था कभी भी पटरी से नहीं उतरेगी. उन्होंने जो देश को सपना दिखाया था वो अब धूमिल सा प्रतीत होता है. चाहे हम रोजगार सृजन, किसानों की दशा, जीडीपी, इकनोमिक ग्रोथ, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, महंगाई, पेट्रोलियम दरों में वृद्धि, डूबता कर्ज या गैर-निष्पादित परिसंपतियों (एनपीए) की बात करे तो सभी क्षेत्रो में संकट नजर आ रहा है. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को देश में शासन करते हुए 3 साल से ऊपर हो गए है, परन्तु अभी भी वो सच को स्वीकारने से डरती है. अगर बीजेपी की माने तो देश में कोई संकट है ही नहीं, देश की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार, दिशा और दशा सब ठीक है.

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्रीआर्थिक सलाहकार परिषद (प्राइम मिनिस्टर इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल) की जरुरत 3 साल बाद क्यों आ पड़ी?

जब अर्थव्यवस्था में नरमी नहीं है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आर्थिक सलाहकार परिषद गठन करने की जरुरत क्यों पड़ गई. देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बताया. उन्होंने कहा कि पिछली तिमाही में आई मामूली गिरावट को छोड़ दें तो पिछले 40 महीने के वृहद आर्थिक आंकड़े अर्थव्यवस्था के पहले से बेहतर होने का संकेत देते हैं. अगर आर्थिक तौर पर सब कुछ ठीक ही है तो प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाहकार परिषद की जरूरत क्यों आ पड़ी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन किया है. मोदी की इस 5 सदस्यीय आर्थिक सलाहकार परिषद में देश के अग्रणी और श्रेष्ठ अर्थशास्त्रियों को शामिल किया गया है. नीति...

2014 में चुनावी रैलियों के दौरान बीजेपी ने देश से कई वादे किये थे. पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अन्य दिग्गज नेता उस समय ये कहने से भी नहीं चुके थे कि मोदी सरकार में देश की अर्थव्यवस्था कभी भी पटरी से नहीं उतरेगी. उन्होंने जो देश को सपना दिखाया था वो अब धूमिल सा प्रतीत होता है. चाहे हम रोजगार सृजन, किसानों की दशा, जीडीपी, इकनोमिक ग्रोथ, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, महंगाई, पेट्रोलियम दरों में वृद्धि, डूबता कर्ज या गैर-निष्पादित परिसंपतियों (एनपीए) की बात करे तो सभी क्षेत्रो में संकट नजर आ रहा है. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को देश में शासन करते हुए 3 साल से ऊपर हो गए है, परन्तु अभी भी वो सच को स्वीकारने से डरती है. अगर बीजेपी की माने तो देश में कोई संकट है ही नहीं, देश की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार, दिशा और दशा सब ठीक है.

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्रीआर्थिक सलाहकार परिषद (प्राइम मिनिस्टर इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल) की जरुरत 3 साल बाद क्यों आ पड़ी?

जब अर्थव्यवस्था में नरमी नहीं है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आर्थिक सलाहकार परिषद गठन करने की जरुरत क्यों पड़ गई. देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बताया. उन्होंने कहा कि पिछली तिमाही में आई मामूली गिरावट को छोड़ दें तो पिछले 40 महीने के वृहद आर्थिक आंकड़े अर्थव्यवस्था के पहले से बेहतर होने का संकेत देते हैं. अगर आर्थिक तौर पर सब कुछ ठीक ही है तो प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाहकार परिषद की जरूरत क्यों आ पड़ी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन किया है. मोदी की इस 5 सदस्यीय आर्थिक सलाहकार परिषद में देश के अग्रणी और श्रेष्ठ अर्थशास्त्रियों को शामिल किया गया है. नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय को इसका अध्यक्ष बनाया गया है. इस परिषद् का मुख्य उद्देश्य प्रधानमंत्री द्वारा सुझाये गए आर्थिक या उससे जुड़े मुद्दों पर विश्लेषण करना और परामर्श देना होगा. भारत के लोगों से कुछ भी छिपा नहीं है. लेकिन बीजेपी सच का सामना करने से डरती है. भारतीय अर्थव्यवस्था में जो संकट के बदल छाये हुए है, उससे निपटने की तैयारी प्रधनमंत्री कर रहे हैं. लेकिन सीधे तौर पर उनकी पार्टी में ये हिम्मत नहीं है कि खुल कर कहे की देश की अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं है. यहां पर एक चीज बताना बहुत जरूरी है कि आर्थिक परिषद का गठन ऐसे समय किया गया है, जब चालू वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर घटकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई है, जो तीन साल का न्यूनतम स्तर है.

बेरोजगारी दूर करने के लिए टास्कफोर्स की जरूरत क्यों?

2014 चुनाव के समय प्रधानमंत्री ने देश के युवको के लिए 1 करोड़ रोजगार का सृजन करने का वादा देश से किया था. अगर जॉब क्रिएशन की बात करें तो इस क्षेत्र में सरकार की नाकामी देश के सामने खुले रूप में नजर आती है. देश में बेरोजगार की दर बढ़ी है. एक आकड़े के अनुसार करीब 15 लाख लोगों को 2017 के प्रथम चार महीने में नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. नोटबंदी और जीएसटी का भी प्रभाव देखने को मिला है. हालांकि सरकार ने खुले तौर पर कभी ये स्वीकार नहीं किया कि रोजगार बढ़ाने के क्षेत्र में सरकार फेल हुई है. अगर सरकार को लगता है सब कुछ ठीक है, तो उसे टास्कफोर्स बनाने की जरुरत क्यों पड़ गयी. हाल ही में देश में व्याप्त बेरोजगार की समस्या को दूर करने और नौकरियां बढ़ाने के लिए सरकार ने एक शीर्ष स्तरीय विशेषज्ञ टास्क फोर्स का गठन किया है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता वाली इस टास्कफोर्स को नौकरियां सृजित करने के लिए सुझाव देने को कहा गया है. इससे पहले मई में भी मोदी सरकार ने रोजगार से जुड़े सटीक आंकड़े जुटाने के लिए एक टास्कफोर्स के गठन का ऐलान किया था.

केवल बीजेपी की केंद्र सरकार ही सच से नहीं कतराती है. बल्कि कुछ राज्यों में बीजेपी की सरकारों में भी ये साहस नहीं है कि वो सच का सामना कर सके. मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का मामला ही देख लीजिए.

गोरखपुर में बच्चो की मौत का मामला

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में हाल ही में कई मासूमों की मौत हुई थी. मौत तो हुई थी ऑक्‍सीजन की कमी के कारण. लेकिन प्रदेश की बीजेपी सरकार ने ये कभी स्वीकार नहीं किया कि मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई है. राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने बच्चों की मौत के लिए गंदगी को जिम्मेदार ठहरा दिया. अगर गंदगी ही जिम्मेदार थी तो पूर्व प्राचार्य सहित कई डाक्‍टरों और कर्मचारियों को जेल की हवा क्यों खानी पड़ी. ऑक्सीजन की कमी और कमीशन के खेल में हिस्‍सेदारी बांटने और लापरवाही करने वाले सभी आरोपियों को जेल पहुंचाया गया. प्रश्न तो उठना लाजमी है कि सरकार को सच से गुरेज़ क्यों है ?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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