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चर्चा-ए-पकौड़ा निकली है तो कम से कम 2019 तक तो जाएगी

    • संध्या द्विवेदी
    • Updated: 08 फरवरी, 2018 07:03 PM
  • 08 फरवरी, 2018 07:03 PM
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पकौड़ों पर पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो फिर अमित शाह कहा जा सकता है कि फिलहाल पकौड़ों पर जारी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा. जो हालात हैं उनको देखकर ये कहना भी गलत नहीं है पकौड़े मुद्दा बन, 2019 तक खींचे जाएंगे.

2014 में अकेले निकली थी चाय, अब पकौड़ा भी जुड़ गया. चाय-पकौड़े का यह संग देखते हैं 2019 में क्या गुल खिलाएगा? भाजपा का राजनीतिक रंग जमाएगा या फिर कांग्रेस के साथ मिलकर रंग फीका कर जाएगा! सुरसुरी सर्दी हो और चाय मिल जाए. और कहीं चाय के साथ पकौड़ा मिल जाए तो क्या कहने. चाय पकौड़ों के साथ कहीं चुनावी चर्चा जुड़ जाए तो फिर मजा दोगुना होना तय है. 2014 में चाय पर चुनावी चर्चा की परंपरा शुरू हुई थी. 2018 आते-आते इसमें 'पकौड़ा' भी जुड़ गया. तो 2019 के आम चुनावों में 'चाय-पकौड़ा' के साथ चुनावी चर्चा होगी. यानी अबकी चुनाव गरमा गरम होने के साथ चटपटे भी होने वाले हैं.

मोदी ने सियासत में पकौड़ों को लांच क्या किया, घमासान ही मच गया है

तब चाय का जिक्र कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने किया था, जनवरी 2014 में मणिशंकर अय्यर ने कहा था, '21 वीं शताब्दी में वह यानी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन पाएं, ऐसा कतई मुमकिन नहीं...लेकिन यदि वह यहां (कांग्रेस अधिवेशन में) आकर चाय बेचना चाहें तो हम उनके लिए जगह बना सकते हैं' लेकिन नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए और 'चायवाला' को अपना स्टेटस सिंबल ही बना डाला.

अब जनवरी 2018 में 'पकौड़े' का जिक्र कर नरेंद्र मोदी ने एक सुर्रा छोड़ दिया है. चायवाला कहकर नरेंद्र मोदी की खिल्ली उड़ाने का बयान कांग्रेस को बेहद भारी पड़ा. और न केवल मोदी प्रधानमंत्री बने बल्कि भाजपा बड़े बहुमत के साथ केंद्र में आई. अबकी चाय के साथ इस बार पकौड़ा भी जुड़ गया है. चाय पकौड़े का यह कॉम्बिनेशन क्या गुल खिलाएगा. ये तो आने वाले चुनाव ही बताएंगे. लेकिन जिस तरह से विकास का बेसन लगाकर मोदी सरकार ने बजट को स्वादिष्ट बना दिया उससे एक बात तो तय है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा को सीधी सपाट बातों का 'भजिया' बनाना आता है.

हर सब्जी में विकास का लेप...

2014 में अकेले निकली थी चाय, अब पकौड़ा भी जुड़ गया. चाय-पकौड़े का यह संग देखते हैं 2019 में क्या गुल खिलाएगा? भाजपा का राजनीतिक रंग जमाएगा या फिर कांग्रेस के साथ मिलकर रंग फीका कर जाएगा! सुरसुरी सर्दी हो और चाय मिल जाए. और कहीं चाय के साथ पकौड़ा मिल जाए तो क्या कहने. चाय पकौड़ों के साथ कहीं चुनावी चर्चा जुड़ जाए तो फिर मजा दोगुना होना तय है. 2014 में चाय पर चुनावी चर्चा की परंपरा शुरू हुई थी. 2018 आते-आते इसमें 'पकौड़ा' भी जुड़ गया. तो 2019 के आम चुनावों में 'चाय-पकौड़ा' के साथ चुनावी चर्चा होगी. यानी अबकी चुनाव गरमा गरम होने के साथ चटपटे भी होने वाले हैं.

मोदी ने सियासत में पकौड़ों को लांच क्या किया, घमासान ही मच गया है

तब चाय का जिक्र कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने किया था, जनवरी 2014 में मणिशंकर अय्यर ने कहा था, '21 वीं शताब्दी में वह यानी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन पाएं, ऐसा कतई मुमकिन नहीं...लेकिन यदि वह यहां (कांग्रेस अधिवेशन में) आकर चाय बेचना चाहें तो हम उनके लिए जगह बना सकते हैं' लेकिन नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए और 'चायवाला' को अपना स्टेटस सिंबल ही बना डाला.

अब जनवरी 2018 में 'पकौड़े' का जिक्र कर नरेंद्र मोदी ने एक सुर्रा छोड़ दिया है. चायवाला कहकर नरेंद्र मोदी की खिल्ली उड़ाने का बयान कांग्रेस को बेहद भारी पड़ा. और न केवल मोदी प्रधानमंत्री बने बल्कि भाजपा बड़े बहुमत के साथ केंद्र में आई. अबकी चाय के साथ इस बार पकौड़ा भी जुड़ गया है. चाय पकौड़े का यह कॉम्बिनेशन क्या गुल खिलाएगा. ये तो आने वाले चुनाव ही बताएंगे. लेकिन जिस तरह से विकास का बेसन लगाकर मोदी सरकार ने बजट को स्वादिष्ट बना दिया उससे एक बात तो तय है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा को सीधी सपाट बातों का 'भजिया' बनाना आता है.

हर सब्जी में विकास का लेप चढ़ाकर उसमें 'पकौड़ा' राजनीति पर भाजपा कुछ गुल तो जरूर खिलाएगी. विकास के वादों में लपेटकर पेश हुआ इस बार का खुशबूदार बजट इस बात की बानगी है. बजट की विस्तृत चर्चा फिर कभी! लेकिन पकौड़े पर जिस तरह से बात चल निकली है उसे देखकर तो यही लगता है कि दुनिया भर में विभिन्न नामों से मशहूर पकौड़ा भाजपा की अगुवाई करेगा. वैसे ही जैसे पिछली बार चाय ने की थी.

पकौड़ों पर कांग्रेस का तर्क है कि इससे सरकार अपनी नाकमियाबी छुपा रही है

सोचिए अभी तो सिर्फ पकौड़े पर बात की गई अगर यह पकौड़ा अपने परिवार के साथ भाजपा के पक्ष या विपक्ष में खड़ा हो गया तो क्या होगा? हालांकि 2014 में जिस तरह से चाय पर केसरिया स्वाद चढ़ाकर भाजपा ने अपना ब्रांड बनाया उससे एक बात तो साफ है कि जनता ही नहीं बल्कि खाद्य और पेय पदार्थों को भी भाजपा अपने पाले में करने में सक्षम है.

फिर पकौड़ा तो देश ही नहीं दुनियाभर में मशहूर है. इस पकौड़े का एक फलता फूलता परिवार भी है. जैसे दक्षिण में बड़े चाव से खाया जाने वाला आलू बोंडा या फिर महाराष्ट्र का बटाटा बड़ा भी इसी परिवार का सदस्य है. महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भज्जी नाम की स्वादिष्ट डिश भी इसी परिवार की सदस्य है. एक और नाम जो कई राज्यों में मशहूर है भजिया भी इसी परिवार का दुलारा सदस्य है. इसलिए पकौड़ा कोई नाचीज चीज नहीं है.

यह तो रही देश की बात मगर दुनिया के कई देशों में विशुद्ध रूप से भारतीय डिश पकौड़े को लोग चटखारे लगा-लगाकर खाते हैं. जैसे जापान को ही ले लीजिए. जापान में बेसन की जगह आटे में सब्जियों को लपेटकर पकौड़ा बनाया जाता है. इसे 'तेम्पूरा' कहते हैं. हालांकि सब्जियों की जगह प्रान फिश को आटे में लपेटकर तलकर 'प्रान पकौड़ा' प्रान तेम्पूरा बनाता है. स्काटलैंड में दही और पकौड़ा मिलाकर 'पकौड़ा कढ़ी' चाव से खाई जाती है. बंगाल के पूर्वी हिस्से में इसे 'फक्कुरा' कहा जाता है. चीन में 'पकोडा'और नेपाल में 'पकउडा' कहा जाता है. सोमालिया में 'भजिये' कहा जाता है.

पकौड़ों को रोज़गार का माध्यम बताने के बाद पीएम आलोचना का शिकार हुए थे

अब अगर परिवार समेत पकौड़े ने राजनीतिक गलियारों में कदम रख दिया तो फिर क्या होगा? और 'चाय' का इतिहास तो यही कहता है कि भाजपा इस काम में महारथी है. नरेंद्र मोदी के पकौड़ा बयान पर अमित शाह ने राज्यसभा भाषण मे जिस अंदाज में पी चिदंबरम के ट्विट का जवाब दिया उससे साफ है कि यह पकौड़ा चर्चा यहीं नहीं थमने वाली दूर तलक जाएगी.

फिर चाय और पकौड़े का साथ तो जगजाहिर है. अमित शाह ने कहा, 'अभी मैं चिदंबरम साहेब का ट्विट पढ़ रहा था कि मुद्रा बैंक के साथ किसी ने पकौड़े का ठेला लगा लिया, इसको रोजगार कहते हैं? हां मैं मानता हूं कि भीख मांगने से अच्छा है कि कोई मजदूरी कर रहा है, उसकी दूसरी पीढ़ी आगे आएगी तो उद्योगपति बनेगी.'

इसके साथ उन्होंने जो जोड़ा वह बेमायने नहीं. उन्होंने कहा, चाय वाले का बेटा आज प्रधानमंत्री बनकर इस सदन में बैठा है. वैसे दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है इसलिए चाय से जली कांग्रेस पकौड़े को फूंक-फूंककर खाएगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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