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समाज ने पुरुषों को भी घुटन दी है

    • आईचौक
    • Updated: 07 अगस्त, 2017 03:13 PM
  • 07 अगस्त, 2017 03:13 PM
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बचपन से ही लड़कों को बता दिया जाता है कि पिंक लड़कियों का रंग है और ब्लू लड़कों का. अगर लड़के रोते हैं तो कहा जाता है कि- लड़के रोते नहीं हैं. समाज लड़कों को उस तरह से रहने का तरीका सीखाता है जैसा वो चाहता है.

पितृसत्ता की बुराई किसी से भी छिपी नहीं है. आज की 21 वीं सदी में भी हमारे यहां औरतों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों किया जाता है इसका जवाब इसी पितृसत्ता में छिपा है. लेकिन अगर कोई सोचता है कि इस पितृसत्ता की भुक्तभोगी सिर्फ महिलाएं ही होती हैं तो फिर से सोच लें. या फिर 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' की अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह से पूछ लें, वो आपको बताएंगी कि पितृसत्ता ने हमारे यहां के पुरुषों को भी उसी तरह दबाया है जैसे महिलाओं को.

वे बताती हैं कि पितृसत्ता पुरुषों और महिलाओं दोनों की जिंदगी को बर्बाद करती है. यही नहीं पितृसत्ता सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है बल्कि विश्व में हर जगह ये फैला हुआ है.

पितृसत्ता ने सबको डसा है

उन्होंने पूछा 'कितने पुरुषों के पास अपने मन का काम करना का ऑप्शन होता है? कितने पुरुष ऐसी नौकरी कर रहे हैं जो वो करना चाहते हैं, या फिर वैसे रहते हैं जैसे वो रहना चाहते हैं? पितृसत्ता पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए मुश्किल पैदा करती है. यही कारण है कि हमें इस समस्या को जड़ से उखाड़ने की जरुरत है.'

हमारी मानें तो रत्ना पाठक शाह सही बोल रही हैं. एक बार अपने आस-पास नजर घुमाइए और देखिए कि हमारे समाज में पुरुष कैसे बर्ताव करते हैं. उन्हें सिखाया जाता है कि वे अपनी भावनाओं को व्यक्त न करें, बॉडी बनाएं, और सिर्फ अपनी ही नहीं बल्कि दूसरों की भी भावनात्मक जरुरतों के प्रति उदासीन रहें.

और पुरुषों के साथ इस ज्यादती की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है. बचपन से ही लड़कों को बता दिया जाता है कि पिंक लड़कियों का रंग है और ब्लू लड़कों का. अगर लड़के रोते हैं तो कहा जाता है कि- लड़के रोते नहीं हैं. समाज लड़कों को उस तरह से रहने का तरीका सीखाता है जैसा वो चाहता है. और इसलिए ही चाहे महिला हो या फिर पुरुष, हर किसी को...

पितृसत्ता की बुराई किसी से भी छिपी नहीं है. आज की 21 वीं सदी में भी हमारे यहां औरतों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों किया जाता है इसका जवाब इसी पितृसत्ता में छिपा है. लेकिन अगर कोई सोचता है कि इस पितृसत्ता की भुक्तभोगी सिर्फ महिलाएं ही होती हैं तो फिर से सोच लें. या फिर 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' की अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह से पूछ लें, वो आपको बताएंगी कि पितृसत्ता ने हमारे यहां के पुरुषों को भी उसी तरह दबाया है जैसे महिलाओं को.

वे बताती हैं कि पितृसत्ता पुरुषों और महिलाओं दोनों की जिंदगी को बर्बाद करती है. यही नहीं पितृसत्ता सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है बल्कि विश्व में हर जगह ये फैला हुआ है.

पितृसत्ता ने सबको डसा है

उन्होंने पूछा 'कितने पुरुषों के पास अपने मन का काम करना का ऑप्शन होता है? कितने पुरुष ऐसी नौकरी कर रहे हैं जो वो करना चाहते हैं, या फिर वैसे रहते हैं जैसे वो रहना चाहते हैं? पितृसत्ता पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए मुश्किल पैदा करती है. यही कारण है कि हमें इस समस्या को जड़ से उखाड़ने की जरुरत है.'

हमारी मानें तो रत्ना पाठक शाह सही बोल रही हैं. एक बार अपने आस-पास नजर घुमाइए और देखिए कि हमारे समाज में पुरुष कैसे बर्ताव करते हैं. उन्हें सिखाया जाता है कि वे अपनी भावनाओं को व्यक्त न करें, बॉडी बनाएं, और सिर्फ अपनी ही नहीं बल्कि दूसरों की भी भावनात्मक जरुरतों के प्रति उदासीन रहें.

और पुरुषों के साथ इस ज्यादती की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है. बचपन से ही लड़कों को बता दिया जाता है कि पिंक लड़कियों का रंग है और ब्लू लड़कों का. अगर लड़के रोते हैं तो कहा जाता है कि- लड़के रोते नहीं हैं. समाज लड़कों को उस तरह से रहने का तरीका सीखाता है जैसा वो चाहता है. और इसलिए ही चाहे महिला हो या फिर पुरुष, हर किसी को ये समझने की जरुरत है कि पितृसत्ता कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करती है. सभी को अपने हिसाब से अपने अनुसार से जीवन जीने का हक है. और इससे दोनों को साथ मिलकर लड़ना होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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