• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

Nida Fazli आधुनिक कबीर हैं, बच्चों के प्यार को खुदा की बंदगी से बड़ा मानने वाले शायर

    • नाज़िश अंसारी
    • Updated: 12 अक्टूबर, 2020 02:07 PM
  • 12 अक्टूबर, 2020 02:07 PM
offline
Nida Fazli Birthday : निदा फ़ाज़ली (Nida Fazli) शुमार हिंदुस्तान (Hindustan) के उन चुनिंदा शायरों में है जिन्होंने भाषा (Language) के साथ प्रयोग किये. ये प्रयोग कुछ ऐसे थे कि उन्हें आज के समय का कबीर (Kabir) कहना कहीं से भी गलत नहीं है.

दोहा जो किसी समय सूरदास, तुलसीदास, मीरा के होंठों से गुनगुना कर लोक जीवन का हिस्सा बना, हमें हिन्दी पाठ्यक्रम की किताबों में मिला. थोड़ा ऊबाऊ. थोड़ा बोझिल. लेकिन खनकती आवाज़, भली सी सूरत वाला एक शख्स, जो आधा शायर है आधा कवि, दोहों से प्यार करता है. अमीर खुसरो के 'जिहाल ए मिसकीन' से लेकर कबीर के 'हमन है इश्क़ मस्ताना' में नये फ्लेवर, तेवर के साथ रिफ्रेश वाले इस शायर का नाम है निदा फ़ाज़ली (Nida Fazli). निदा यानी आवाज़. फाज़ली बना फाज़ला से. कश्मीर का एक इलाक़ा जो निदा के पुरखों का है. यह पेन नेम है उनका. असल नाम है मुक्तदा हसन. रियल नेम से पेन नेम तक के सफ़र में मां 'साहिबा' की ममता, बाप 'दुआ डिबाइवी' की शायराना मिजाज़ी शफ़क़त के साथ खुले आंगन, बड़े दालानों, ऊंचे पेड़ों, कच्चे-पक्के छप्परों, गहरे कुंओं-तालाबों, ख्वाजा की दरगाहों, कोने वाले मंदिर, मुल्क़ में कमज़ोर पड़ती अंग्रेज़ी हुकुमत, नये जन्में पाकिस्तान और साथ पढ़ने वाली एक खुशशक्ल हसीं का भी योगदान था. निदा जिसकी मुहब्बत में एकतरफ़ा गिरफ्तार थे.

निदा फाजली का शुमार उन चुनिंदा शायरों में है जिन्होंने उर्दू शायरी आयाम दिए

एक दिन कालेज नोटिस बोर्ड पर उसकी मौत की खबर ने निदा को हिला कर रख दिया. स्थानीय स्तर पर एक स्थापित शायर होने के बावजूद इस रंज के लिये वे एक शे'र तक ना कह सके. हत्ता कि पूरे उर्दू साहित्य में अपने दुख के मुक़ाबिल उन्हें कुछ ना मिला. मिला तो एक सुबह किसी मंदिर के पुजारी की आवाज़ में सूरदास का भजन-

मधुबन तुम क्यौ रहत हरे

बिरह बियोग स्याम सुन्दर के

ठाढ़े क्यौं ना जरे?

वे ठहर गये. हिन्दुस्तानी साहित्य को तरजीह देते हुए अमीर खुसरो से लेकर नज़ीर अकबराबादी तक को घोल के पी डाला. निष्कर्ष...

दोहा जो किसी समय सूरदास, तुलसीदास, मीरा के होंठों से गुनगुना कर लोक जीवन का हिस्सा बना, हमें हिन्दी पाठ्यक्रम की किताबों में मिला. थोड़ा ऊबाऊ. थोड़ा बोझिल. लेकिन खनकती आवाज़, भली सी सूरत वाला एक शख्स, जो आधा शायर है आधा कवि, दोहों से प्यार करता है. अमीर खुसरो के 'जिहाल ए मिसकीन' से लेकर कबीर के 'हमन है इश्क़ मस्ताना' में नये फ्लेवर, तेवर के साथ रिफ्रेश वाले इस शायर का नाम है निदा फ़ाज़ली (Nida Fazli). निदा यानी आवाज़. फाज़ली बना फाज़ला से. कश्मीर का एक इलाक़ा जो निदा के पुरखों का है. यह पेन नेम है उनका. असल नाम है मुक्तदा हसन. रियल नेम से पेन नेम तक के सफ़र में मां 'साहिबा' की ममता, बाप 'दुआ डिबाइवी' की शायराना मिजाज़ी शफ़क़त के साथ खुले आंगन, बड़े दालानों, ऊंचे पेड़ों, कच्चे-पक्के छप्परों, गहरे कुंओं-तालाबों, ख्वाजा की दरगाहों, कोने वाले मंदिर, मुल्क़ में कमज़ोर पड़ती अंग्रेज़ी हुकुमत, नये जन्में पाकिस्तान और साथ पढ़ने वाली एक खुशशक्ल हसीं का भी योगदान था. निदा जिसकी मुहब्बत में एकतरफ़ा गिरफ्तार थे.

निदा फाजली का शुमार उन चुनिंदा शायरों में है जिन्होंने उर्दू शायरी आयाम दिए

एक दिन कालेज नोटिस बोर्ड पर उसकी मौत की खबर ने निदा को हिला कर रख दिया. स्थानीय स्तर पर एक स्थापित शायर होने के बावजूद इस रंज के लिये वे एक शे'र तक ना कह सके. हत्ता कि पूरे उर्दू साहित्य में अपने दुख के मुक़ाबिल उन्हें कुछ ना मिला. मिला तो एक सुबह किसी मंदिर के पुजारी की आवाज़ में सूरदास का भजन-

मधुबन तुम क्यौ रहत हरे

बिरह बियोग स्याम सुन्दर के

ठाढ़े क्यौं ना जरे?

वे ठहर गये. हिन्दुस्तानी साहित्य को तरजीह देते हुए अमीर खुसरो से लेकर नज़ीर अकबराबादी तक को घोल के पी डाला. निष्कर्ष निकाला. गहरी बात सादे शब्दों में प्रभावी हो सकती है. तब महबूबा को सीधे, सरल और शायद सबसे खूबसूरत लहजे में निदा ने याद किया-

बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता

जो बीत गया है वह गुजर क्यों नहीं जाता

वह इक चेहरा तो नहीं सारे जहां में

जो दूर है वह दिल से उतर क्यों नहीं जाता

निदा अल्फाज़ की दाढ़ी नहीं तराशते. ना चोटी-जनेऊ पहनाते हैं. वे नास्तिक नहीं हैं. खास आस्तिक भी नहीं. सेकुलर हिन्दुस्तानी नजरिया लिये दोनों धर्म की खामियों पर चोट करते हैं

अंदर मूरत पर चढ़े , घी, पूरी ,मिष्ठान

मंदिर के बाहर खड़ा, ईश्वर मांगे दान

घर से मस्जिद बहुत दूर है चलो कुछ यूं करें

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए

इस पर बवाल ही हो जाता है. स्टेज से उतरते ही टोपियां और कुर्ते घेर कर सवालों की बौछार करते हुए पूछते हैं, क्या वे किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा अपनी भारी और ठहरी हुई आवाज़ में जवाब देते हैं, मैं समझता हूं मस्जिद को इन्सान के हाथ बनाते हैं. बच्चे को खुद अल्लाह बनाता है. धर्म को केन्द्रित कर लिखी गज़लों में निदा अक्सर ट्रोल किये गये. बेलौसियत और एलाहदियत की आदत से वे ट्रोलर्स को ट्रीट कर लेते हैं. वे सजदा नहीं करते. हम्द कहते हैं. हम्द याने ईश्वर की शान/तारीफ में पढ़ी जाने वाली नज़्म को निदा के अंदाज़ में देखिये-

नील गगन पर बैठे कब तक

चांद सितारों से झांकोगे

पर्वत की ऊंची चोटी से कब तक

दुनिया को देखोगे

आदर्शों के बंद ग्रंथों में कब तक

आराम करोगे

मेरा छप्पर टपक रहा है

बनकर सूरज इसे सुखाओ

खाली है आटे का कनस्तर

बनकर गेंहू इसमें आओ

मां का चश्मा टूट गया है

बनकर शीशा इसे बनाओ

चुप-चुप हैं आंगन में बच्चे

बनकर गेंद इन्हें बहलाओ

शाम हुई है चांद उगाओ

पेड़ हिलाओ

हवा चलाओ

काम बहुत है हाथ बटाओ

अल्लाह मियां

मेरे घर भी आ ही जाओ

अल्लाह मियां...

60 के दशक में निदा के वालिदैन का पाकिस्तान चले जाने पर एक दोस्त कहता है, तूम ही क्यों यहां अकेले हो. साथ चले जाओ सबके. देशभक्ती का सर्टिफ़िकेट बांटने वाले खोखले देशभक्तों पर निदा का जवाब सुनना लाज़िम होना चाहिये. 'यार इंसान के पास कुछ चीजें बहोत सी हो सकती हैं. लेकिन मुल्क़ तो एक ही होना चाहिये. वह दो कैसे हो सकता है.' मां- बाप पर मुल्क़ को तरजीह देने वाले निदा से बड़ा वतनपरस्त कौन हो सकता है भला? उनके लिये दिल के एक कोने में ता उम्र मुहब्बत, इज़्ज़त का दिया रोशन रखने वाले निदा गज़ल की नाज़ुक नायिका से मां को रिप्लेस करते हुए लिखते है-

बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां 

याद आता है चौका-बासन, चिमटा, फुकनी जैसी मां 

या

मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार

दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार

पिता की मौत पर लाहौर ना पहुंच पाने की कसक में मास्टरपीस नज़्म 'फातेहा' शायद ही किसी स्टेज पर सुने बगैर उन्हें जाने दिया गया. गज़ल में गालिब- मीर, नज़्म में फैज़ के समकक्ष होने के बाद भी उनकी शख्सियत की शिनाख्त दोहों से की जाएगी. जहां ज़िंदगी के फलसफ़े और समीकरणों के घटजोड़ में वे पूरी मज़बूती से कबीर के बगल जा खड़े होते हैं-

सीधा-सादा डाकिया जादू करे महान

एक ही थैले में भरे आंसू और मुस्कान

सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर

जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़क़ीर

वो सूफी का कौल हो, या पंडित का ज्ञान

जितनी बीते आप पर, उतना ही सच जान

गीता बांचिये, या पढिये कुरान

मेरा-तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

सीता रावण राम का, करें विभाजन लोग

एक ही तन में देखिये, तीनो का संजोग

रुकिये अभी. निदा का एक रूप. फिल्म 'रज़िया सुल्तान' का गाना 'तेरा हिज्र मेरा नसीब है' याद है ना. 'सरफरोश' की गज़ल 'होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है' या 'तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है' जैसे ज़हन में गहरे बैठ गये फिल्मी गीत भी उन्हीं की क़लम से निकले. यूं मालूम होता है चेहरे के जंगल बंबई में भी निदा ग्वालियर का वह चेहरा नहीं भूले जिससे अबोले इश्क़ का रिश्ता था.

यही निदा का कमाल है. वे एक ही वक़्त में अम्मा अब्बा के प्यारे बेटे होते हैं. मालती जोशी के शौहर भी. बिटिया के लिये शॉपिंग करते 'शॉपिंग' लिखते बाबा भी. पहली प्रेमिका के नक़्श को आहिस्ता से कुरेद कर ताज़ा कर लेते प्रेमी भी. पान से होंठ लाल किये, ताली मार स्टेज पर पढ़ते हुए शायर भी. समाज, धर्म, राजनीती के लूपहोल्स पर लिखते-पढ़ते, टिप्पणी करते सतर्क और जागरूक नागरिक भी. सबसे बढ़कर साहित्य अकादमी और पद्मश्री से सजे सेक्युलर हिन्दुस्तान का प्रतिनिध्तिव करते खालिस हिंदुस्तानी भी. लफ्ज़ों से दिलों के बीच मुहब्बत का पुल बनाने वाले निदा. गूंजेेंगें सदा.

ये भी पढ़ें -

Begum Akhtar: वो गायिका जिसकी आवाज़ इधर उधर नहीं बल्कि सीधे रूह में उतरती है!

Majrooh Sultanpuri, वो लेखक-गीतकार जिसके एहसानों का कर्ज कभी न उतारेगा

मुंशी प्रेमचंद आज होते तो 'Best Seller' बनने के लिए क्या क्या करना पड़ता?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲