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दिशा को न्याय मिला हो या नहीं, पर हमारी न्याय व्यवस्था के साथ जरूर अन्याय हुआ है!

    • हिमांशु सिंह
    • Updated: 07 दिसम्बर, 2019 06:42 PM
  • 07 दिसम्बर, 2019 06:42 PM
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Disha मामले में Hyderabad Police के encounter के बाद तमाम लोग ऐसे सामने आए हैं जिनका कहना है कि पुलिस के इस व्यवहार के बाद लोगों का जश्न मनाना और फिर न्याय या कानून की बात करना खुद को ठगने जैसा है.

सुबह उठते ही पता चला कि दिशा के तथाकथित गुनहगारों को उनके किये की सज़ा मिल गयी. सभी खुश हैं. हैदराबाद की दिशा के बलात्कार और हत्या (Hyderabad Disha Gangrape And Murder) के आरोपियों को आज सवेरे तेलंगाना पुलिस ने मुठभेड़ (Hyderabad Encounter) में मार गिराया. जनता की यही मांग थी. लोगों में बड़ा आक्रोश था. सभी कह रहे हैं कि शांत करने के लिए ऐसा किया जाना जरूरी था. हालांकि पुलिस का कहना है कि पहले आरोपियों ने पुलिस पर हमला किया और भागने की कोशिश की. सही भी है. बलात्कार और हत्या(Rape And Murder) हुई है, तो 'इंसाफ' तो करना ही पड़ेगा. इंसाफ चाहे कोर्ट करे या पुलिस. सज़ा चाहे आरोपी को दी जाए या अपराधी को. मुल्ज़िम को दी जाय या मुज़रिम को. सज़ा तो देनी ही पड़ेगी. अब चूंकि सवाल जनाक्रोश का था, तो फैसला पुलिस ने 'ऑन द स्पॉट' ही कर दिया. एनकाउंटर सुबह-सुबह तीन बजे के बाद ठीक उसी जगह पर हुआ, जहां दिशा को जलाया गया था. तमाम फेसबुक पोस्ट्स के मुताबिक़ जनभावनाओं का 100% सम्मान इसी को कहते हैं.

कई लोग हैं जिनका कहना है कि जो सुलूक पुलिस ने दिशा के गुनाहगारों के साथ किया उसके बाद न्याय की बात ही नहीं की जा सकती

भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक नाटक है - अंधेर नगरी. उस नाटक का एक भाव ये भी है कि अगर हत्या हुई है, तो किसी न किसी को फांसी दी ही जाएगी. फांसी का फंदा अगर अपराधी के साइज़ का न हुआ, तो फंदे के नाप की गर्दन वाला कोई और सही, लेकिन फांसी तो दी जाएगी. इस बात में कोई शक नहीं है कि हैदराबाद के इस पूरे प्रकरण में कहीं न कहीं 'अंधेर नगरी' का मंचन जरूर हुआ है, और ये कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि दिशा के साथ इंसाफ़ हुआ हो या न हुआ हो, हमारी न्याय-व्यवस्था के साथ भरपूर नाइंसाफी हुई है.

याद कीजिये 8 सितंबर 2017 को गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल...

सुबह उठते ही पता चला कि दिशा के तथाकथित गुनहगारों को उनके किये की सज़ा मिल गयी. सभी खुश हैं. हैदराबाद की दिशा के बलात्कार और हत्या (Hyderabad Disha Gangrape And Murder) के आरोपियों को आज सवेरे तेलंगाना पुलिस ने मुठभेड़ (Hyderabad Encounter) में मार गिराया. जनता की यही मांग थी. लोगों में बड़ा आक्रोश था. सभी कह रहे हैं कि शांत करने के लिए ऐसा किया जाना जरूरी था. हालांकि पुलिस का कहना है कि पहले आरोपियों ने पुलिस पर हमला किया और भागने की कोशिश की. सही भी है. बलात्कार और हत्या(Rape And Murder) हुई है, तो 'इंसाफ' तो करना ही पड़ेगा. इंसाफ चाहे कोर्ट करे या पुलिस. सज़ा चाहे आरोपी को दी जाए या अपराधी को. मुल्ज़िम को दी जाय या मुज़रिम को. सज़ा तो देनी ही पड़ेगी. अब चूंकि सवाल जनाक्रोश का था, तो फैसला पुलिस ने 'ऑन द स्पॉट' ही कर दिया. एनकाउंटर सुबह-सुबह तीन बजे के बाद ठीक उसी जगह पर हुआ, जहां दिशा को जलाया गया था. तमाम फेसबुक पोस्ट्स के मुताबिक़ जनभावनाओं का 100% सम्मान इसी को कहते हैं.

कई लोग हैं जिनका कहना है कि जो सुलूक पुलिस ने दिशा के गुनाहगारों के साथ किया उसके बाद न्याय की बात ही नहीं की जा सकती

भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक नाटक है - अंधेर नगरी. उस नाटक का एक भाव ये भी है कि अगर हत्या हुई है, तो किसी न किसी को फांसी दी ही जाएगी. फांसी का फंदा अगर अपराधी के साइज़ का न हुआ, तो फंदे के नाप की गर्दन वाला कोई और सही, लेकिन फांसी तो दी जाएगी. इस बात में कोई शक नहीं है कि हैदराबाद के इस पूरे प्रकरण में कहीं न कहीं 'अंधेर नगरी' का मंचन जरूर हुआ है, और ये कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि दिशा के साथ इंसाफ़ हुआ हो या न हुआ हो, हमारी न्याय-व्यवस्था के साथ भरपूर नाइंसाफी हुई है.

याद कीजिये 8 सितंबर 2017 को गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में हुए प्रद्युम्न हत्याकांड को. प्रद्युम्न की हत्या का आरोप सबसे पहले उसी स्कूल के ही बस कंडक्टर अशोक पर लगा था. अशोक ने अपना गुनाह कुबूल भी कर लिया था, लेकिन आगे की जांच में सामने आया कि हत्या अशोक ने नहीं बल्कि उसी स्कूल के ही ग्यारहवीं के एक अन्य छात्र ने की थी, जिससे स्कूल में परीक्षाएं टल जाएं. पूरा स्कूल प्रबंधन इस छात्र को बचाने में लगा हुआ था. अदालत में अशोक ने बताया कि पुलिस द्वारा की गई प्रताड़ना के बाद उसने आरोप स्वीकार किया था.

आपको सोचना होगा कि अगर 'जनाक्रोश' को देखते हुए उस वक़्त भी पुलिस ने जल्दबाज़ी में 'इंसाफ' कर दिया होता, तो क्या प्रद्युम्न के साथ न्याय हो पाता?

दिशा मामले में पुलिस ने भरपूर जल्दबाज़ी दिखाई है, जिसका परिणाम ये है कि अब कोई कभी नहीं जान पायेगा कि एनकाउंटर में मारे गए लोग सच में दोषी थे या इन्हें जल्दबाज़ी में सिर्फ शक़ के आधार पर गिरफ्तार किया गया था. क्या ये संभव नहीं है कि असल आरोपी कोई और हो? आखिर कैसे संभव है कि इतना बड़ा अपराध करने वाले, अपराध के घंटों बाद भी घटनास्थल से कुछ ही दूरी पर मौजूद हों और गिरफ्तार कर लिए जाएं?

मेरा सवाल है कि अगर 'न्याय' जनता की 'मांग' और 'आक्रोश' के हिसाब से पुलिस द्वारा ही किया जाना है, तो न्यायालयों की जरूरत ही क्या है? न्याय के सिद्धांत और विधि संहिताएं आखिर क्यों बनायी गयीं? क्या हमारा ये रवैया अर्धन्यायिक मॉब लिंचिंग जैसा नहीं है?

सरकार के पास दिशा मामला एक ऐसा मौका था जब वो आरोपियों का फास्ट ट्रैक अदालतों में ट्रायल करवा सकती थी, महीने भर में सुनवाई और जांच प्रक्रिया पूरी कर सकती थी, और अपराधी पाए जाने पर विधि-सम्मत तरीके से आरोपियों को सज़ा देकर नज़ीर कायम कर सकती थी. लेकिन सरकार ने ये मौका गंवा दिया.

खैर, चिंता की कोई बात नहीं है. देश के अलग-अलग इलाकों से सरकार को ऐसे मौके मिलते ही रहते हैं. इस बार सरकार को ऐसा ही एक मौका बिहार के बक्सर से मिला है, जहां एक अन्य युवती को उसी के बलात्कार के आरोपी ने जला कर मार दिया है. आइये हम लोग एक बार फिर से आरोपियों को सज़ा दिलाएं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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