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Hindu-Muslim hatred: इंसान को ज़िंदा रहने के लिए धर्म नहीं, इंसान की ज़रूरत है

    • पल्लवी विनोद
    • Updated: 25 अप्रिल, 2022 08:00 PM
  • 25 अप्रिल, 2022 08:00 PM
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धर्म की लड़ाई लड़वाने में जिसका फ़ायदा हो उसे करने दीजिए आप उन बातों और इंसान के बीच ऐसी मज़बूत दीवार बन जाइए जिससे टकराकर हर पत्थर टूट जाए क्योंकि इंसान की जान से क़ीमती कुछ भी नहीं है और इंसान को ज़िंदा रहने के लिए धर्म नहीं इंसान की ज़रूरत है.

आजकल हर तरफ़ एक शोर है. आप सुनना ना भी चाहें तो उसकी आवाज़ आपके कानों में गूंजती रहती है. हम नींद खुलते ही मोबाइल हाथ में लेते हैं. अचानक से पता चलता है फ़ैमिली ग्रुप में मौसा जी के छोटे भाई ने आपको ललकारा है. किस काम के सनातनी हो तुम जो अपने धर्म की रक्षा के लिए आवाज़ भी नहीं उठा रहे. दोस्तों के ग्रुप में मैसेज चल रहा है एक वो हैं जो अपने धर्म को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए और हम बस मोबाइल-मोबाइल खेल रहे हैं. कुछ दिनों पहले एक ऐसा ही मैसेज वायरल हुआ था जिसमें खान साहब हिन्दुओं को अपना धर्म ठीक से ना निभाने के लिए ताने दे रहे थे. मुझे पूरा विश्वास है कि यही मैसेज दूसरी तरफ़ भी चल रहे होंगे बस पैरहन का रंग अलग होगा. कभी सोचा है यह सब कहां से संचालित हो रहा है. अचानक से बाज़ार में ज़हर से भरे इंजेक्शंस कहां से आ गये? क्या आप जानते हैं थोपे हुए धर्म की इन सुइयों का ज़हर आपको किस कदर बीमार बना देगा?

सोशल मीडिया के जरिये आज जैसा माहौल तैयार हुआ है हिंदू को मुस्लिम से मुस्लिम को हिंदू से डर है

कुछ दिन पहले हमने धरती दिवस मनाया. वही धरती जिसने हम सबको अपनाया. इस प्रकृति ने इंसान को जन्म दिया. इंसान का उद्भव परिवार, कबीले, समाज की ओर अग्रसर होता रहा. इसी प्रक्रिया में आगे धर्म का नाम जुड़ा. धर्म ने हमें समाज में रहना सिखाया, जीवन जीने का तरीक़ा सिखाया. जिन बुद्धिजीवियों ने इस धरती पर समाज में संवेदना और सत्य का विकास करने के लिए धर्म नामक विषय की परिकल्पना की होगी उन्हें यह पता ही नहीं था कि आगे चल कर यही धर्म मानव के विनाश का कारण बनेगा.

इसके नाम पर तलवारें और पत्थर चलेंगे और इसके नाम पर इतनी नफ़रत फैलेगी. पता होता तो शायद धर्म को धर्म की तरह बनाया ही नहीं गया होता. धर्म जो जीवन जीने का एक ज़रिया था. जिसमें इस...

आजकल हर तरफ़ एक शोर है. आप सुनना ना भी चाहें तो उसकी आवाज़ आपके कानों में गूंजती रहती है. हम नींद खुलते ही मोबाइल हाथ में लेते हैं. अचानक से पता चलता है फ़ैमिली ग्रुप में मौसा जी के छोटे भाई ने आपको ललकारा है. किस काम के सनातनी हो तुम जो अपने धर्म की रक्षा के लिए आवाज़ भी नहीं उठा रहे. दोस्तों के ग्रुप में मैसेज चल रहा है एक वो हैं जो अपने धर्म को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए और हम बस मोबाइल-मोबाइल खेल रहे हैं. कुछ दिनों पहले एक ऐसा ही मैसेज वायरल हुआ था जिसमें खान साहब हिन्दुओं को अपना धर्म ठीक से ना निभाने के लिए ताने दे रहे थे. मुझे पूरा विश्वास है कि यही मैसेज दूसरी तरफ़ भी चल रहे होंगे बस पैरहन का रंग अलग होगा. कभी सोचा है यह सब कहां से संचालित हो रहा है. अचानक से बाज़ार में ज़हर से भरे इंजेक्शंस कहां से आ गये? क्या आप जानते हैं थोपे हुए धर्म की इन सुइयों का ज़हर आपको किस कदर बीमार बना देगा?

सोशल मीडिया के जरिये आज जैसा माहौल तैयार हुआ है हिंदू को मुस्लिम से मुस्लिम को हिंदू से डर है

कुछ दिन पहले हमने धरती दिवस मनाया. वही धरती जिसने हम सबको अपनाया. इस प्रकृति ने इंसान को जन्म दिया. इंसान का उद्भव परिवार, कबीले, समाज की ओर अग्रसर होता रहा. इसी प्रक्रिया में आगे धर्म का नाम जुड़ा. धर्म ने हमें समाज में रहना सिखाया, जीवन जीने का तरीक़ा सिखाया. जिन बुद्धिजीवियों ने इस धरती पर समाज में संवेदना और सत्य का विकास करने के लिए धर्म नामक विषय की परिकल्पना की होगी उन्हें यह पता ही नहीं था कि आगे चल कर यही धर्म मानव के विनाश का कारण बनेगा.

इसके नाम पर तलवारें और पत्थर चलेंगे और इसके नाम पर इतनी नफ़रत फैलेगी. पता होता तो शायद धर्म को धर्म की तरह बनाया ही नहीं गया होता. धर्म जो जीवन जीने का एक ज़रिया था. जिसमें इस सृष्टि के रचयिता को धन्यवाद ज्ञापित करने की राह दिखाई गयी थी उस धर्म को हमने कितना विकृत कर दिया.

किसी हॉस्पिटल के आई सी यू के बाहर बैठे मरीज़ों के परिजनों से मिलिएगा. सब अपने-अपने भगवान को जप रहे होते हैं. राम को जपने वाला, अल्लाह को याद करती आँखों में आँसू देख तड़प उठता है.तो कभी मज़ार की राख को राम की माँ के लिए देता रहीम उनकी उमर के लिए दुआ माँगता है. एक दूसरे को ढाँढस बांधते लोगों के बीच सिर्फ़ दर्द का रिश्ता होता है.

वो जानते हैं आई सी यू में गम्भीर हालत में पड़े मरीज़ को सिर्फ़ एक ही शक्ति ठीक कर सकती है और उस शक्ति का कोई नाम नहीं है. आप अपने-अपने ख़ुदा के नाम को लाउड स्पीकर का सहारा लेकर पुकार नहीं रहे बल्कि उनका अपमान कर रहे हैं. बच्चों के कॉउंसलर से मिलिए तो उनकी सबसे पहली सलाह यही मिलेगी कि आप अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चे से कर, उनका अपमान कर रहे हैं.

हम इंसान बच्चों, घर, संपत्ति, पति, पत्नी, मां-पिता की तुलना करते-करते ईश्वर और धर्म की भी तुलना करने लगे. हम सभी को काउन्सलिंग की ज़रूरत है. इस देश को दंगाई नहीं कबीर जैसा दरवेश चाहिए. हमारे हाथों को पत्थर और तलवार नहीं उस एकतारे की ज़रूरत है जो प्रेम के संदेश को इस दुनिया में फैलाए. जिस देश की संस्कृति में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी जितनी विविधता है उस देश के लोगों को सिर्फ़ एकता की मिसाल को क़ायम करता पुल बन जाना चाहिए जिससे देश का हर कोना जुड़ जाए.

धर्म की लड़ाई लड़वाने में जिसका फ़ायदा हो उसे करने दीजिए ये बातें आप उन बातों और इंसान के बीच ऐसी मज़बूत दीवार बन जाइए जिससे टकराकर हर पत्थर टूट जाए क्योंकि इंसान की जान से क़ीमती कुछ भी नहीं है और इंसान को ज़िंदा रहने के लिए धर्म नहीं इंसान की ज़रूरत है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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