• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

Coronavirus Lockdown: ग्यारहवां दिन और मानवता पर गहराते प्रदूषण के बादल

    • अंकिता जैन
    • Updated: 04 अप्रिल, 2020 09:52 PM
  • 04 अप्रिल, 2020 09:52 PM
offline
कोरोना वायरस के तहत लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) को 11 दिन पूरे हो गए हैं. आसमान और हवा दोनों साफ़ हैं मगर मानवता (Humanity ) का हाल बहुत बुरा है. लोग लगातार हिंदू मुस्लिम की राजनीति कर रहे हैं और इंसानियत को नुकसान पहुंचा रहे हैं यानी मानवता पर प्रदूषण के बादल गहरा चुके हैं.

मेरे प्रिय,

दस दिन बीत चुके, दस और बाकी हैं. शुरू में जिन बातों को लेकर असमंजस था अब उनमें से कुछ बहुत ही विकृत रूप में सामने आ रही हैं. कहां तो मैं कह रही थी कि इन चंद दिनों में प्रेम से भरे जोड़े जिन्हें कभी साथ में लम्बा वक़्त बिताने का मौका नहीं मिला वे अब इस वक़्त को भरपूर जिएंगे. और कहां अब इस साथ से उपजा एक घिनौना और भयावह रूप देखने मिल रहा है. ना जाने इस दुनिया में प्रेम की इतनी कमी क्यों है? ना जाने लोगों की अपेक्षाएं इतनी अधिक क्यों हैं? ना जाने वे साथ रहकर भी एक दूजे के साथ क्यों नहीं होते? ना जाने वे कैसे अपराध कर बैठते हैं? कहां तो मैं बात कर रही थी कि ये वक़्त पति अपनी पत्नी का सहायक बन, उसे दुलारकर, दिनभर घर में रहते हुए घर और परिवार के प्रति उसका समर्पण देख पिघलेंगे.

लॉक डाउन के कारण प्रकृति तो साफ़ हुई मगर लोगों के मन का मेल बढ़ गया और नफरत की राजनीति को नए पंख मिल गए

उसकी हथेली पर अपनी गर्म हथेली रखकर, सुबह का सूरज साथ देखकर और रात एक दूजे की गर्माहट पाकर बिताएंगे. और कहां मेरे सामने लॉकडाउन के दिनों में बढ़े घरेलू प्रताड़ना के मामलों की एक लम्बी-दुखद फेहरिश्त है. उन स्त्रियों का दुःख जो इस समय अपने प्रेमी के साथ नहीं बल्कि अपने अपराधी के साथ घर में कैद हो गई हैं, क्या कोई समझ पाएगा?

मेरे प्रिय,

दस दिन बीत चुके, दस और बाकी हैं. शुरू में जिन बातों को लेकर असमंजस था अब उनमें से कुछ बहुत ही विकृत रूप में सामने आ रही हैं. कहां तो मैं कह रही थी कि इन चंद दिनों में प्रेम से भरे जोड़े जिन्हें कभी साथ में लम्बा वक़्त बिताने का मौका नहीं मिला वे अब इस वक़्त को भरपूर जिएंगे. और कहां अब इस साथ से उपजा एक घिनौना और भयावह रूप देखने मिल रहा है. ना जाने इस दुनिया में प्रेम की इतनी कमी क्यों है? ना जाने लोगों की अपेक्षाएं इतनी अधिक क्यों हैं? ना जाने वे साथ रहकर भी एक दूजे के साथ क्यों नहीं होते? ना जाने वे कैसे अपराध कर बैठते हैं? कहां तो मैं बात कर रही थी कि ये वक़्त पति अपनी पत्नी का सहायक बन, उसे दुलारकर, दिनभर घर में रहते हुए घर और परिवार के प्रति उसका समर्पण देख पिघलेंगे.

लॉक डाउन के कारण प्रकृति तो साफ़ हुई मगर लोगों के मन का मेल बढ़ गया और नफरत की राजनीति को नए पंख मिल गए

उसकी हथेली पर अपनी गर्म हथेली रखकर, सुबह का सूरज साथ देखकर और रात एक दूजे की गर्माहट पाकर बिताएंगे. और कहां मेरे सामने लॉकडाउन के दिनों में बढ़े घरेलू प्रताड़ना के मामलों की एक लम्बी-दुखद फेहरिश्त है. उन स्त्रियों का दुःख जो इस समय अपने प्रेमी के साथ नहीं बल्कि अपने अपराधी के साथ घर में कैद हो गई हैं, क्या कोई समझ पाएगा?

क्या यह वैसा ही नहीं है जैसे हिरण को शेर के पिंजरे में डाल दिया जाए. फिर वह हिरण जितना भी जिए इस भय में जिए कि अगले ही पल उसका शिकार हो जाएगा. यह दुनिया डोमिनेट करने वालों की. अब देखो ना प्रेम में भी तो डोमिनेशन होता है. जो अधिक प्रेम करता है, जो अधिक जुड़ा महसूस करता है, जो अधिक समर्पित होता है वह अपने साथी द्वारा डोमिनेट ही तो किया जाता है.

जैसे तुम मुझे डोमिनेट करते हो, क्योंकि तुम यह जानते हो कि मैं तुम्हारे बगैर एक पल की कल्पना भी नहीं कर सकती. जब सामने वाले को यह पता हो कि कोई उस पर भावनात्मक या आर्थिक रूप से, या सामाजिक दवाब की वजह से आश्रित है तो वह कई बार अनजाने में और कई बार जानकर डोमिनेटर बन जाता है.

वह अपनी महत्ता को साबित करने के लिए, अपने अधिकारों का दुरूपयोग करने लगता है. वह भूल जाता है कि सामने वाला भी मनुष्य है या उसके भी अधिकार हैं, भावनाएं हैं, आत्मसम्मान है. संभवतः यही इस वक़्त में हो रहा है. यही स्पेन/फ़्रांस/इटली/भारत जैसे कई देशों की उस स्त्री के साथ हुआ होगा जिसे उसी के बच्चों के सामने मार दिया गया.

यही उसके साथ हुआ होगा जिसे राशन या दवाई के बहाने घर से निकलकर दुकानदार के सामने ‘मास्क19’ कोडवर्ड बोलकर अपनी सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ी होगी. यही उस स्त्री के साथ हुआ होगा जिसने बाथरूम में ख़ुद को बंदकर डरते हुए सहायता के हेल्पलाइन में कॉल किया होगा. और यही उन स्त्रियों के साथ हो रहा होगा जिन्हें अपने घरों की जगह होटल रूम्स में रात बितानी पड़ रही होगी.

कितना आसान है ना पुरुष के लिए अपने दंभ की आंच से औरत का आत्मसम्मान, उसकी आबरू, उसकी जान को ही जलाकर ख़ाक कर देना. इस दौरान जब ये पुरुष अपनी स्त्रियों के साथ घरों में कैद हैं. काश ऐसे में अनेकों प्रेम कहानियां जन्म लेतीं. काश साथ बैठ चाय की चुस्कियों का लुत्फ़ उठाया जाता. काश गरीब के घरों में भी पुरुष शराब के लिए बेचैन होने और उससे उपजे कलेश की वजह से अपनी पत्नी को मारने की जगह उसके साथ अपने बच्चों को खिला रहा होता.

काश वे साथ जंगल में लकड़ी काटने जाते, और साथ चूल्हे की धौंकनी से आग सुलगाते. फिर जब पत्नी का चेहरा उस आग की रौशनी में लाल हो दमकता तो पति उसे बाहों में चूम लेता, न कि अपने नशे की लत से तड़पकर उसी आगे से पत्नी को जला दे. बुढ़ापे का बहाना करके सोफे में धंसा वह बुजुर्ग जिसका चेहरा भले झुर्रियों से ढंक गया हो लेकिन उसके चेहरे पर पौरुष का दंभ अब भी है, काश कि वह यह समझ पाता कि उसके लिए रोटियां बेल रही उसकी पत्नी भी बुढ़ापे की वही मार झेल रही है.

वह भी थककर कुछ देर ठहर जाना चाहती है. वह भी चाहती है कि वह रोटियाँ बेले तो पति उन्हें सके ताकि वे दोनों साथ बैठकर खाना खाएं, न कि पति तबे से उतरी गरम रोटी और पत्नी रसोई समेटने के बाद ठंडी रोटी. काश कि इन चंद दिनों में पति यह जान पाते कि पत्नियों के लिए भी उनकी पसंद की एक सब्जी बनाने की ज़रुरत आज से नहीं बल्कि उस दिन से है जबसे उसने ससुराल की रसोई संभाली.

काश कि लॉकडाउन के इन दिनों में दुनियाभर से स्त्रियों और बच्चों के साथ घरेलु हिंसा का जो आंकडा आ रहा है वह झूठा होता, और काश कि ये चंद दिन दुनिया में इतना प्रेम भर जाते कि मानवता पर धुंधलाए प्रदूषण के बादल भी छंट पाते. किन्तु यह सिर्फ काश है और सच्चाई इससे बहुत अलग, बहुत दर्दनाक है. फिर भी मैं इस उम्मीद में अगले दिन का इंतजार करती हूँ कि शायद कोई दिल को सुकून देने वाली ख़बर पढ़ने मिले, जैसे कि तुमसे मिलने की ख़बर.

तुम्हारी

प्रेमिका

पिछले तीन लव-लेटर्स पढ़ें-

Coronavirus Lockdown: बंदी के 10 दिन और इंसान की काली करतूतें

Coronavirus Lockdown: बंदी का नौवां दिन और प्रेमियों की पसंदीदा देश इटली

Coronavirus Lockdown: बंदी में क्या बदल पाया है स्त्री का जीवन?

 


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲