
अंकिता जैन
ankita.jain.522
लेखिका समसामयिक मुद्दों पर लिखना पसंद करती हैं.
समाज | 3-मिनट में पढ़ें

श्रद्धा-आफ़ताब का मामला लव-जिहाद का नहीं है...
आफ़ताब ने न धर्म छुपाया, न पहचान, और न ही फ़ौरन धर्म परिवर्तन कराकर विवाह कर बच्चे पैदा करने का टारगेट पूरा किया. यह मामला है 'दंभ' का. जोकि उन सभी मर्दों में होता है जो एसिड फेंकते हैं, गोली मारकर हत्या कर देते हैं, या कुल्हाड़ी-चाकू से टुकड़े कर देते हैं. मेरी नज़र में यह हिन्दू बनाम मुस्लिम भी नहीं है क्योंकि पत्नी या प्रेमिका की हत्या का यह इकलौता मामला नहीं है.समाज | 6-मिनट में पढ़ें

Vir Das तुम्हें वायरल होने की बधाई, 'टू इंडिया' के सच्चे प्रतीक हो तुम
बीते कुछ वर्षों में एक फ़ैशन सा बन गया है. आप भारत को वैश्विक पटल पर ग़रीब दिखाइए, भारतीय धर्मों का मज़ाक उड़ाइए, भारतीय वर्ण व्यवस्था को नीचा दिखाइए तो आपको ज़्यादा फॉलोवर्स मिलेंगे. वैश्विक स्तर पर भी बहुतायत में स्वीकृति मिलेगी. हंसी तब आती है जब ऐसा करने वालों का दोहरापन उनके अपने ही घरों में बेनकाब होता है.समाज | 3-मिनट में पढ़ें

बच्चों को एक ही डंडे से हांकने की जगह स्कूलों में उनके इंटरेस्ट का ध्यान रखें शिक्षक
हमें यह पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारा बच्चा किस तरह जल्दी सीखता है. क्या वह सुनकर जल्दी सीखता, या वह पढ़कर या दोहराकर जल्दी सीखता है या फिर वह देखकर जल्दी सीखता है. यही कारण है कि क्लास में तो टीचर सबको एक जैसा पढ़ाते हैं लेकिन सब अलग-अलग क्षमता से उसे ग्रहण कर पाते हैं.सिनेमा | 4-मिनट में पढ़ें

'रावण लीला' फिल्म में जिस तरह डायलॉग लिखे गए हैं, वो कुंठा ही दर्शाते हैं
फिल्म रावण लीला का ट्रेलर (Ravan Leela movie trailer) आ गया है. जिसने भी फिल्म के डायलॉग लिखे हैं साफ़ है कि या तो उसने हिंदू धर्म का मजाक किया है या फिर उसे समझ ही नहीं थी. फिल्म में ऐसी तमाम बातें हैं जिन्हें शायद ही कोई पचा पाए.स्पोर्ट्स | 3-मिनट में पढ़ें

जब 'स्पोर्ट्स' हमारे स्कूलों में 'एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी' है तो फिर कैसा मेडल ?
एक ऐसे समय में जब हम ओलंपिक खेलों में मेडल की कामना कर रहे हों हमारे लिए ये जान लेना बहुत जरूरी है कि भारत में 'स्पोर्ट्स' अभी भी 'एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी' है. हमारे यहां के अविभावक अभी भी 'दसवीं/बारहवीं में 95% ले आए' की उम्मीद में जी रहे हैं. स्थिति जब ऐसी हो मेडल की कामना ही ही बेकार है.समाज | 3-मिनट में पढ़ें

Sulli Deals: पौरुष और अहंकार दिखाने के लिए हमेशा ही शिकार बनी है स्त्री!
सुल्ली-डील्स को लेकर आज भले ही समाज दो वर्गों में बंट गया हो लेकिन हमें आश्चर्य में इसलिए भी नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि अपनी दंभी मानसिकता से ग्रसित पुरुष सदियों से ऐसा करता चला आया है. कुल मिलाकर उसे अपना खोखला पौरुष दिखाने और अहंकार दिखाने का बहाना चाहिए.समाज | 5-मिनट में पढ़ें

Allopathy vs Ayurveda: आयुर्वेद को रामदेव से न जोड़िए, उसमें आस्था की वजह और है...
योगगुरु बाबा रामदेव की बदौलत आयुर्वेद और एलोपैथी की बहस ने समाज को दो वर्गों में बांट दिया है. एक वर्ग जहां एलोपैथी के साथ है और इस बात को लेकर एकमत है कि बिना एलोपैथी के समाज की कल्पना नहीं की जा सकती तो वहीं जो आयुर्वेद के पक्षधर हैं उनका कहना है कि उन्हें आयुर्वेद में पूरा विश्वास है जिसका बाबा रामदेव से कोई लेना देना नहीं है.समाज | 3-मिनट में पढ़ें

Corona crisis: क्यों हमें 'ब्रेस्टफीडिंग मिल्क बैंक' की तरफ ध्यान देने की जरूरत है?
कोरोना की इस दूसरी लहर के बीच देश के कुछ ऐसे मंजर भी देखे हैं जिसमें प्रेग्नेंट महिला ने डिलीवरी के फ़ौरन बाद ही आखिरी सांस ली और नवजात को स्तनपान मिल सके इसके लिए स्तनपान करा सकने वाली मांओं को खोजने की आवश्यकता पड़ी. खुद सोचिये स्थिति जब ऐसी हो तो नवजात के लिए मां का दूध ढूंढने में कितनी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा होगा.सिनेमा | 4-मिनट में पढ़ें

बोरिंग टॉपिक होने के बावजूद भरपूर एंटरटेनमेंट देती है आशुतोष-सान्या की 'पगलैट'
OTT प्लेटफॉर्म Netflix पर आशुतोष राणा और सान्या मल्होत्रा स्टारर 'पगलैट' रिलीज हो गयी. पगलैट में मुद्दे से भटके बिना बड़ी ही शालीनता और ख़ामोशी से 'विधवाओं' के अधिकार की बात की गयी है. फिल्म का टॉपिक भले ही बोरिंग हो लेकिन ये एक जरूरी फिल्म है इसलिए मनोरंजन के नजरिये से फिल्म बोर नहीं करेगी.समाज | 3-मिनट में पढ़ें

कपड़े हमारे शरीर की जरूरत हैं, हमारे चरित्र का सर्टिफिकेट नहीं बस इतनी सी ही बात समझनी है!
कपड़े हमारे शरीर, जगह, मौसम, माहौल, पसंद की ज़रूरत होते हैं. हमारे चरित्र का सर्टिफिकेट नहीं, हमारी आधुनिकता की पहचान नहीं, हमारे पिछड़े होने का तमगा नहीं, ना ही इस बात की गारंटी देते हैं कि साड़ी पहनने वाली स्त्री ही सही संस्कार दे सकती है, और जीन्स पहनने वाली नहीं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को बस इतनी सी ही बात समझनी है.समाज | 3-मिनट में पढ़ें

खेती को उत्तम कहने वाला किसान अब नौकरी की लाइन में क्यों लगा है?
देश में किसानों के साथ मार्केटिंग की बड़ी समस्या है. जितना नुकसान उन्हें मौसम की मार पहुंचाती है उससे कहीं ज्यादा बिचौलिए पहुंचाते हैं, जो किसानों की फ़सल को अनाप-शनाप, औने-पौने दाम में खरीदते हैं. हालांकि अब पहले से कुछ ठीक हुआ है. ई-हाट की जो स्कीम शुरू हुई उसमें काफी मंडी जुड़ी हुई हैं, जिससे किसानों की पहुंच बढ़ी है और बिचौलियों का रोल थोड़ा कम हुआ है.समाज | 3-मिनट में पढ़ें
