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केजरीवाल का फोकस लोगों की जान बचाने से ज्यादा ऑक्सीजन संकट की राजनीति पर क्यों है?

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 26 अप्रिल, 2021 05:36 PM
  • 26 अप्रिल, 2021 05:36 PM
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केजरीवाल ऑक्सीजन संकट में बड़े राजनीतिक अवसर की गंध महसूस कर रहे हैं. दिल्ली का कोटा 480 मीट्रिक टन बढ़ा दिया गया है. ऑक्सीजन पर शिकायतों के लिए EG 2 बेहतर विकल्प है ट्विटर और मीडिया बाइट नहीं.

कोरोना इलाज में जरूरी ऑक्सीजन के मुद्दे पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली के संकट का सारा दारोमदार केंद्र सरकार के माथे पर डाल रहे हैं. भाजपा शासित राज्यों में दिल्ली के कोटे का ऑक्सीजन टैंकर रोकने का आरोप लगा रहे हैं. कोरोना सुनामी के बाद लगभग हर दिन ऑक्सीजन के मसले पर केजरीवाल ने केंद्र की सरकार को घेरने नए-नए बहाने तलाश किए हैं. मानो दिल्ली में लोगों की जान बचाने से ज्यादा जरूरी आरोपों के जरिए बीजेपी पर बढ़त लेना हो.

महामारी में केजरीवाल के "गुड गवर्नेंस" का दावा कसौटी पर है. दिल्ली के अस्पतालों की हालत अब छिपी नहीं है. गुजरात, महाराष्ट्र के बाद केंद्र शासित राज्य में भी संक्रमण के मामले बेतहाशा बढ़ते जा रहे हैं. सरकारी हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक शनिवार को 24,103 नए मामले सामने आए हैं. 357 लोगों की जान चली गई. अकेले दिल्ली में कोरोना से कुल मौतों का आंकड़ा दो दिन पहले ही 13 हजार पार कर चुका है. संक्रमण और मौतों के मामले रुकने की जगह रोजाना बढ़ ही रहे हैं. अस्पतालों में लोगों को बेड तक नहीं मिल पा रहा. विदेशी मीडिया ने भी राजधानी क्षेत्र में हेल्थ केयर सुविधाओं की जमकर क्लास ली है.

दिल्ली के लगभग सभी अस्पताल ऑक्सीजन संकट का सामना कर रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह भविष्य के खतरे को नजरअंदाज करते हुए सरकारों की सुस्ती है. अभी भी बड़ा उदाहरण पेश करने की बजाय ओछी राजनीति की जा रही है. जब केंद्र ने दिल्ली को उसकी जरूरत के हिसाब से पीएम केयर्स फंड के तहत 6 महीने पहले ही प्रेशर स्विंग एडसॉरप्‍शन तकनीक आधारित आठ ऑक्सीजन प्लांट्स लगाने को दिए थे तो उसे अबतक क्यों नहीं लगाया गया? बीजेपी नेता हिमंत बिस्वा शर्मा ने दावा किया कि असम ने महामारी के बाद दिसंबर 2020 में मिले आठ प्लांट लगा दिए. इससे रोजाना 5.25 मीट्रिक टन ऑक्सीजन बनेगा. पांच और प्लांट प्रोसेस में हैं.

कोरोना इलाज में जरूरी ऑक्सीजन के मुद्दे पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली के संकट का सारा दारोमदार केंद्र सरकार के माथे पर डाल रहे हैं. भाजपा शासित राज्यों में दिल्ली के कोटे का ऑक्सीजन टैंकर रोकने का आरोप लगा रहे हैं. कोरोना सुनामी के बाद लगभग हर दिन ऑक्सीजन के मसले पर केजरीवाल ने केंद्र की सरकार को घेरने नए-नए बहाने तलाश किए हैं. मानो दिल्ली में लोगों की जान बचाने से ज्यादा जरूरी आरोपों के जरिए बीजेपी पर बढ़त लेना हो.

महामारी में केजरीवाल के "गुड गवर्नेंस" का दावा कसौटी पर है. दिल्ली के अस्पतालों की हालत अब छिपी नहीं है. गुजरात, महाराष्ट्र के बाद केंद्र शासित राज्य में भी संक्रमण के मामले बेतहाशा बढ़ते जा रहे हैं. सरकारी हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक शनिवार को 24,103 नए मामले सामने आए हैं. 357 लोगों की जान चली गई. अकेले दिल्ली में कोरोना से कुल मौतों का आंकड़ा दो दिन पहले ही 13 हजार पार कर चुका है. संक्रमण और मौतों के मामले रुकने की जगह रोजाना बढ़ ही रहे हैं. अस्पतालों में लोगों को बेड तक नहीं मिल पा रहा. विदेशी मीडिया ने भी राजधानी क्षेत्र में हेल्थ केयर सुविधाओं की जमकर क्लास ली है.

दिल्ली के लगभग सभी अस्पताल ऑक्सीजन संकट का सामना कर रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह भविष्य के खतरे को नजरअंदाज करते हुए सरकारों की सुस्ती है. अभी भी बड़ा उदाहरण पेश करने की बजाय ओछी राजनीति की जा रही है. जब केंद्र ने दिल्ली को उसकी जरूरत के हिसाब से पीएम केयर्स फंड के तहत 6 महीने पहले ही प्रेशर स्विंग एडसॉरप्‍शन तकनीक आधारित आठ ऑक्सीजन प्लांट्स लगाने को दिए थे तो उसे अबतक क्यों नहीं लगाया गया? बीजेपी नेता हिमंत बिस्वा शर्मा ने दावा किया कि असम ने महामारी के बाद दिसंबर 2020 में मिले आठ प्लांट लगा दिए. इससे रोजाना 5.25 मीट्रिक टन ऑक्सीजन बनेगा. पांच और प्लांट प्रोसेस में हैं.

अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)

दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा देकर बताया कि केजरीवाल सरकार ने सिर्फ कोटे से एक ऑक्सीजन प्लांट लगाया गया. जबकि आठों लगते तो उनकी क्षमता रोजाना 14.4 मीट्रिक टन बनाने की हो जाती. केंद्र ने यह भी बताया कि अप्रैल के अंत तक 4 और प्लांट दिल्ली में लग जाएंगे. ऑक्सीजन संकट में ये अपर्याप्त है मगर सरकार की अक्षमता बताने का सटीक उदाहरण है. बीजेपी की दिल्ली इकाई ने तो प्लांट लगाने के पीछे सुस्ती को लेकर केजरीवाल सरकार पर आपराधिक मुक़दमा दर्ज करने तक की मांग कर दी है.

जरूर पढ़ें: भारत में ऑक्सीजन का संकट नहीं है, असल संकट क्या है यहां क्लिक करें

केंद्र सरकार ने प्रेशर स्विंग एडसॉरप्‍शन तकनीक आधारित कुल 162 प्लांट्स मंजूर किए थे. इन्हें संभावित जरूरत के हिसाब से देश के सभी अलग-अलग राज्यों में लगाया जा रहा है. करीब 202 करोड़ के ये प्लांट्स उसी पीएम केयर्स फंड के तहत लगाए जा रहे हैं जिसकी विपक्ष ने खूब आलोचना की है.

केंद्र सरकार ऑक्सीजन की किल्लत के मद्देनजर दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों की संभावित जरूरत को देखते हुए हाल ही में कोटे को फिर से निर्धारित किया है. दिल्ली के हिस्से 480 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आया है. मौजूदा संकट में दिल्ली की रोजाना जरूरत करीब 350 मीट्रिक टन से ज्यादा है. हालांकि केजरीवाल इसके लिए भी आरोप लगा रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि उनके ऑक्सीजन टैंकर को दूसरे राज्य रोक रहे हैं.

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने तो टैंकर रोकने का रोप लगाते हुए पैरा मिलिट्री लगाने तक की मांग कर दी. शनिवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने तो केजरीवाल सरकार से पूछ भी लिया - "आप बाताइए कौन टैंकर रोक रहा है? हम उसे लटका देंगे." ट्विटर के अलावा बहुत व्यवस्थाएं हैं जहां केजरीवाल सरकार शिकायत कर सकती है. मगर...

ये केजरीवाल की राजनीति नहीं तो और क्या है? महामारी से अब तक नुकसान से सबक लेते हुए नजीर पेश करने की बजाय आरोप लगाए जा रहे हैं. जबकि मौजूदा संकट में निर्धारित कोटे को राज्य पा चुके हैं. उनकी सुचारू सप्लाई की भी व्यवस्था की गई है. प्रधानमंत्री कार्यालय की निगरानी में ऑक्सीजन की मांग और उसकी सप्लाई के लिए इम्पावर्ड ग्रुप 2 बनाया गया है. इसमें सभी राज्यों के प्रतिनिधि हैं. दिल्ली के भी. इसमें ऑक्सीजन बनाने वाले बड़े फर्म भी हैं. रेल मंत्रालय ने राज्यों की मांग पर ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाई है. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 24 घंटों के अंदर ऑक्सीजन के टैंकर सरप्लस राज्यों से मंगाए भी गए. ये सुविधा इसी महीने 21 अप्रैल से शुरू है. अगर टैंकर रोके जा रहे हैं तो केजरीवाल सरकार लोगों की जान बचाने के लिए "ऑक्सीजन एक्सप्रेस" का सहारा क्यों नहीं लेती?

रेल सूत्रों के आधार पर कई रिपोर्ट्स का हवाला है कि अन्य राज्य सरकारों की तरह ऑक्सीजन एक्सप्रेस के लिए केजरीवाल सरकार की तरफ से अबतक कोई रिक्वेस्ट ही नहीं मिली. दूसरी ओर मुख्यमंत्री समेत आम आदमी पार्टी के सभी नेता ट्विटर पर लगातार ऑक्सीजन सप्लाई रोकने के आरोप लगा रहे हैं.

शायद केजरीवाल ऑक्सीजन संकट में बड़े राजनीतिक अवसर की गंध महसूस कर रहे हैं. जब केंद्र ने मौजूदा संकट में संभावित जरूरत के हिसाब से दिल्ली का कोटा 480 मीट्रिक टन बढ़ा दिया तो उसे लाने की एक जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की भी है. खुद केजरीवाल ने कोटा बढ़ाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को धन्यवाद भी दिया. इम्पावर्ड ग्रुप 2 ऑक्सीजन की मांग और सप्लाई के लिए केंद्रीय व्यवस्था के रूप में काम कर रहा है तो केजरीवाल को ऑक्सीजन के लिए सरप्लस राज्यों से गुजारिश करने की क्या जरूरत पड़ गई? जैसा कि उन्होंने राज्य सरकारों को चिट्ठी लिखकर किया. 

मौजूदा संकट में केजरीवाल सरकार को ये बात कब समझ में आएगी कि फिलहाल राजनीतिक बहसबाजी से अलग ऑक्सीजन को देश के किसी भी हिस्से में पहुंचाने के बहुत सारे विकल्प हैं. संकट से अब तक जो नुकसान पहुंचा है उसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती. मगर एक-दूसरे पर जिम्मेदारी थोपकर उससे बचने और मौजूदा संकट में राजनीतिक अवसरवाद का उदाहरण बहुत शर्मनाक है. लोगों की जानें राजनीति का विषय नहीं हो सकती.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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