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ऑक्सीजन पर दुनियाभर में किरकिरी के बाद क्या सरकार के ये काम नुकसान की भरपाई कर पाएंगे?

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 24 अप्रिल, 2021 05:10 PM
  • 24 अप्रिल, 2021 05:10 PM
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केंद्र और राज्यों का जो सरकारी अमला अब सक्रिय हुआ है वो महामारी की शुरुआत के वक्त क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. बड़ा सवाल है कि जिन लोगों को जानमाल का नुकसान हुआ क्या मौजूदा सक्रियता से कभी उसकी भरपाई हो सकती है?

मेडिकल ऑक्सीजन किल्लत की वजह से देश में अबतक अलग-अलग जगहों पर बेतहाशा मौतें हुई हैं. कोविड 19 की दूसरी महामारी में देश का हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह से खस्ताहाल दिखा और पाकिस्तान जैसे देश की मीडिया ने भी खबरें बनाई. एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को तलब कर लिया. इन सबके बीच दूसरी महामारी को लेकर बहुत देर से सक्रिय हुई सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है. ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर खुद प्रधानमंत्री कार्यालय ने कमान संभाल ली है. यानी एक तरह से चीजें सीधे पीएम मोदी की आंख के नीचे निगरानी में हैं. ऑक्सीजन पर मैदान में सीधे पीएमओ के आ जाने से भविष्य में समस्या का समाधान होने की बहुत गुंजाइश है. केंद्र और राज्यों का जो सरकारी अमला अब सक्रिय हुआ है वो महामारी की शुरुआत के वक्त क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. बड़ा सवाल ये भी है कि जिन लोगों को जानमाल का नुकसान हुआ क्या मौजूदा सक्रियता से कभी उसकी भरपाई हो सकती है?

जवाब है बिल्कुल नहीं. महामारी में रिश्तेदारों को गंवाने वाला व्यक्ति जिंदगीभर इस बात को नहीं भुला पाएगा. अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक देश में रोजाना की खपत से बहुत ज्यादा लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन होता था. मगर नेताओं की अकर्मण्यता, पक्ष विपक्ष की ओछी राजनीति और लचर सरकारी सिस्टम में लोगों को उनके हिस्से का ऑक्सीजन तय समय पर मिला ही नहीं. जबकि वो इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार थे. लचर व्यवस्था में ऑक्सीजन की कमी से लोग मरने को मजबूर हुए और विदेशी मीडिया ने इसे "अस्पताल की हत्या" करार दिया. ये हत्या ही है वो भी सिस्टम के हाथों. महामारी से जंग में ऑक्सीजन के मोर्चे पर हारे लोगों को जो नुकसान हुआ है उसकी कभी भरपाई नहीं की जा सकती.

जरूर पढ़ें : क्या सच में ऑक्सीजन की कमी थी, खपत के मुकाबले भारत कितना ज्यादा उत्पादन करता है, किल्लत के पीछे जिम्मेदार...

मेडिकल ऑक्सीजन किल्लत की वजह से देश में अबतक अलग-अलग जगहों पर बेतहाशा मौतें हुई हैं. कोविड 19 की दूसरी महामारी में देश का हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह से खस्ताहाल दिखा और पाकिस्तान जैसे देश की मीडिया ने भी खबरें बनाई. एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को तलब कर लिया. इन सबके बीच दूसरी महामारी को लेकर बहुत देर से सक्रिय हुई सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है. ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर खुद प्रधानमंत्री कार्यालय ने कमान संभाल ली है. यानी एक तरह से चीजें सीधे पीएम मोदी की आंख के नीचे निगरानी में हैं. ऑक्सीजन पर मैदान में सीधे पीएमओ के आ जाने से भविष्य में समस्या का समाधान होने की बहुत गुंजाइश है. केंद्र और राज्यों का जो सरकारी अमला अब सक्रिय हुआ है वो महामारी की शुरुआत के वक्त क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. बड़ा सवाल ये भी है कि जिन लोगों को जानमाल का नुकसान हुआ क्या मौजूदा सक्रियता से कभी उसकी भरपाई हो सकती है?

जवाब है बिल्कुल नहीं. महामारी में रिश्तेदारों को गंवाने वाला व्यक्ति जिंदगीभर इस बात को नहीं भुला पाएगा. अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक देश में रोजाना की खपत से बहुत ज्यादा लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन होता था. मगर नेताओं की अकर्मण्यता, पक्ष विपक्ष की ओछी राजनीति और लचर सरकारी सिस्टम में लोगों को उनके हिस्से का ऑक्सीजन तय समय पर मिला ही नहीं. जबकि वो इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार थे. लचर व्यवस्था में ऑक्सीजन की कमी से लोग मरने को मजबूर हुए और विदेशी मीडिया ने इसे "अस्पताल की हत्या" करार दिया. ये हत्या ही है वो भी सिस्टम के हाथों. महामारी से जंग में ऑक्सीजन के मोर्चे पर हारे लोगों को जो नुकसान हुआ है उसकी कभी भरपाई नहीं की जा सकती.

जरूर पढ़ें : क्या सच में ऑक्सीजन की कमी थी, खपत के मुकाबले भारत कितना ज्यादा उत्पादन करता है, किल्लत के पीछे जिम्मेदार कौन?

महाराष्ट्र और दिल्ली दो ऐसे राज्य हैं जहां कोविड 19 के लगातार बढ़ते मामलों के मद्देनजर ऑक्सीजन सप्लाई अभी भी नाजुक स्तर पर है. दोनों राज्यों से लगातार शिकायतें आई हैं कि उनके अस्पतालों तक ऑक्सीजन पहुंच ही नहीं पा रहा है. गैरबीजेपी राज्य सरकारों ने इसका ठीकरा केंद्र पर फोड़ा था.

पीएम नरेंद्र मोदी. (फाइल फोटो)

अच्छी बात ये है कि अब भविष्य में मेडिकल ऑक्सीजन पर बुरी स्थितियों के दोहराव से बचने के लिए मोदी सरकार फुल एक्शन मोड में है. आइए जानते हैं केंद्र सरकार किल्लत से निपटने के लिए आखिर क्या-क्या कर रही है.

-राज्यों की शिकायतों को दूर करते हुए उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने एक पैनल बनाया है. पैनल का नाम इम्पावर्ड ग्रुप 2 (EG 2) है. इसमें सभी राज्य, ऑक्सीजन बनाने वाले बड़े फर्म और अन्य विभाग साथ ही ट्रांसपोर्ट को शामिल किया गया है. इम्पावर्ड ग्रुप 2 सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन है. पैनल का काम ऑक्सीजन सप्लाई की निगरानी करना है.

-कुछ राज्यों में ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए कई प्लांट्स हैं, जबकि अन्य पड़ोसी राज्यों पर निर्भर हैं. महाराष्ट्र और गुजरात सबसे बड़े ऑक्सीजन उत्पादक हैं, लेकिन खुद की मेडिकल ऑक्सीजन सप्लाई नहीं पूरा कर पा रहे हैं. (जरूर पढ़ें : महाराष्ट्र अपनी जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन बनाता था फिर क्यों बिगड़ी हालत, मध्य प्रदेश की वजह कैसे अन्य राज्यों से अलग)

-जबकि झारखंड, आंध्र प्रदेश और ओडिशा ऐसे राज्य हैं जो जरूरत के हिसाब से काफी ज्यादा ऑक्सीजन उत्पादन करते हैं. रेल मंत्रालय ने इन राज्यों में जरूरत से ज्यादा उत्पादित ऑक्सीजन, कमी का सामना करने वाले राज्यों में पहुंचाने के लिए रोल-ऑन रोल-ऑफ मॉडल शुरू किया है. इसके तहत स्पेशल ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई जा रही हैं.

- ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनें आंध्रप्रदेश में वाइजैग से मुंबई और महाराष्ट्र की दूसरी जगहों के लिए चल रही हैं. इसी तरह झारखंड में बोकारो से ऑक्सीजन के कंटेनर्स को उत्तर प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर भेजा जा रहा है. मालगाड़ियो पर सीधे ट्रक और टैंकर लादकर कुछ घंटों में सप्लाई दी जा रही है.

- केंद्र सरकार ने जर्मनी जैसे देशों से 'मोबाइल ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों' को देश में एयरलिफ्ट करने का फैसला लिया है. जर्मनी से ऐसे ही 23 प्लांट्स एयरलिफ्ट करने के लिए वायुसेना को मोर्चे पर लगा दिया गया है.

- दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने भी ओडिशा से ऑक्सीजन टैंक्स को एयरलिफ्ट करने का फैसला लिया है. ताकि शहर के अस्पतालों को मांग के बदले आपूर्ति मिल सके.

- महामारी से बचाव में जंग के लिए सशस्त्र बल आगे आया है. कोविड 19 संकट के मद्देनजर सिविल एडमिनिस्ट्रेशन में इसके इस्तेमाल को लेकर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने तीनों डिफेन्स चीफ और तीनों सेनाओं के दूसरे टॉप अफसरों के साथ मीटिंग की.

- रक्षा मंत्रालय अधिकारियों ने बताया है कि ऑक्सीजन प्रोडक्शन के लिए लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस की प्रेशर स्विंग एडसॉरप्‍शन (PSA) तकनीक को उत्पादन में लगे उद्योगों के साथ साझा किया गया है. तकनीकी की मदद से एक मिनट में 1,000 लीटर ऑक्सीजन बनाया जा सकता है.

- केंद्र सरकार ने 162 की संख्या में PSA (प्रेशर स्विंग एडसॉरप्‍शन) ऑक्सीजन प्लांट्स को अलग-अलग राज्यों में लगाने की योजना पर काम कर रही है. 33 लग चुके हैं. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 33 में से पांच प्लांट मध्य प्रदेश में, चार हिमाचल, तीन-तीन चंडीगढ़, गुजरात और उत्तराखंड, दो दो बिहार कर्नाटक और तेलंगाना, और एक एक आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, पुद्दुचेरी, पंजाब और उत्तर प्रदेश में लगाया जा चुका है.

- केंद्र सरकार ने 50,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन विदेशों से आयात करने का फैसला लिया है. प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है. कुछ दिनों में खेप आने की उम्मीद है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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