• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

कोरोना का कमाई-काल, और फिर लखनऊ के अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में बीयर की बोतलें मिलना!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 जुलाई, 2021 09:14 PM
  • 21 जुलाई, 2021 09:14 PM
offline
इस कोरोनाकाल में जब अस्पतालों ने बल भर पैसा कमाया है तो स्वाभाविक था कि उनके फ्रिज से बियर की बोतलें और मुर्गे जैसी चीजें निकलेंगी. अब जब लखनऊ में जिला प्रशासन के छापे के बाद ऐसा हुआ है तो फिर हैरत कैसी? लोग बेवजह इसे मुद्दा बना रहे हैं. साफ़ है कि ऐसी बातें तो होनी ही नहीं चाहिए.

देश के सबसे बड़े सूबे में शुमार उत्तर प्रदेश को 'उत्तम प्रदेश' बताने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कितने भी जतन क्यों न कर लें मगर इसे आदत कहें या फितरत सूबे में तमाम चीजें ऐसी हैं जो इस विशाल राज्य को गर्त के अंधेरों में ले जा रही हैं. स्वास्थय एक ऐसा ही पक्ष है. यूपी में चिकित्सा व्यवस्था को परफेक्ट कहने को लेकर राज्य सरकार ने कितने भी दावे क्यों न किये हों, मगर एक ऐसे समय में जब कोरोना की इस दूसरी लहर के चलते हम अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को मरते तड़पते देख चुके हों ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि यूपी में चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे है. इसका लेवल खतरे के निशान पर कहां है? गर जो सवाल ये हो तो यूपी की राजधानी लखनऊ का रुख कीजिये. जहां अलग अलग इलाकों में जिला प्रशासन की 6 टीमों द्वारा छापा मारा गया है. छापे के दौरान तमाम बातें निकल कर सामने आई हैं जिन्होंने इस बात की तस्दीख कर दी है कि कोरोना की इस दूसरी वेव में बल भर पैसा कमाने वाले अस्पताल इससे गाफिल हैं कि उस पैसे का सार्थक इस्तेमाल कैसे और कहां किया जाए.

जिला प्रशासन के छापे के बाद लखनऊ के अस्पतालों की जो तस्वीर निकल कर सामने आई है वो विचलित कर देने वाली है

बता दें कि लखनऊ के जिन 45 अस्पताल के खिलाफ जिला प्रशासन ने एक्शन लिया है उनमें ज्यादातर अस्पतालों के पास लाइसेंस ही नहीं मिला. या फिर जिनके पास था वो एक्सपायर था. वहीं ज्यादातर जगह तो डॉक्टर ही नहीं मिले. छापे के दौरान एक अस्पताल तो ऐसा भी मिला जिसमें बीएससी पास संचालक बीमार मरीजों का इलाज कर रहा था.नर्सिंग और ओटी टेक्नीशियन का जरूरी काम जहां छात्रों के भरोसे छोड़ दिया गया था.

जिस बात को लेकर जिला प्रशासन की टीम भी हैरत में थी वो ये कि ओटी के फ्रिज में दवाओं की जगह बीयर की बोतलें थीं. छापे के बाद...

देश के सबसे बड़े सूबे में शुमार उत्तर प्रदेश को 'उत्तम प्रदेश' बताने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कितने भी जतन क्यों न कर लें मगर इसे आदत कहें या फितरत सूबे में तमाम चीजें ऐसी हैं जो इस विशाल राज्य को गर्त के अंधेरों में ले जा रही हैं. स्वास्थय एक ऐसा ही पक्ष है. यूपी में चिकित्सा व्यवस्था को परफेक्ट कहने को लेकर राज्य सरकार ने कितने भी दावे क्यों न किये हों, मगर एक ऐसे समय में जब कोरोना की इस दूसरी लहर के चलते हम अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को मरते तड़पते देख चुके हों ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि यूपी में चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे है. इसका लेवल खतरे के निशान पर कहां है? गर जो सवाल ये हो तो यूपी की राजधानी लखनऊ का रुख कीजिये. जहां अलग अलग इलाकों में जिला प्रशासन की 6 टीमों द्वारा छापा मारा गया है. छापे के दौरान तमाम बातें निकल कर सामने आई हैं जिन्होंने इस बात की तस्दीख कर दी है कि कोरोना की इस दूसरी वेव में बल भर पैसा कमाने वाले अस्पताल इससे गाफिल हैं कि उस पैसे का सार्थक इस्तेमाल कैसे और कहां किया जाए.

जिला प्रशासन के छापे के बाद लखनऊ के अस्पतालों की जो तस्वीर निकल कर सामने आई है वो विचलित कर देने वाली है

बता दें कि लखनऊ के जिन 45 अस्पताल के खिलाफ जिला प्रशासन ने एक्शन लिया है उनमें ज्यादातर अस्पतालों के पास लाइसेंस ही नहीं मिला. या फिर जिनके पास था वो एक्सपायर था. वहीं ज्यादातर जगह तो डॉक्टर ही नहीं मिले. छापे के दौरान एक अस्पताल तो ऐसा भी मिला जिसमें बीएससी पास संचालक बीमार मरीजों का इलाज कर रहा था.नर्सिंग और ओटी टेक्नीशियन का जरूरी काम जहां छात्रों के भरोसे छोड़ दिया गया था.

जिस बात को लेकर जिला प्रशासन की टीम भी हैरत में थी वो ये कि ओटी के फ्रिज में दवाओं की जगह बीयर की बोतलें थीं. छापे के बाद जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश से मिले निर्देशों के बाद सीएमओ डॉ. मनोज अग्रवाल ने 29 अस्पतालों के खिलाफ नोटिस जारी किया है. मामले में दिलचस्प ये कि सीएमओ ने कहा है कि यदि हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं देते हैं तो अस्पतालों को सील किया जाएगा.

ऐसे में जो सवाल एक जागरूक नागरिक के रूप में हमारे सामने होना चाहिए वो ये कि आखिर जिला प्रशासन को अनियमितता के और क्या सबूत चाहिए? अस्पतालों को कठोरतम दंड देने के लिए इतना तो काफी ही है. साफ है कि अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर जिला प्रशासन का ये रवैया इस बात की पुष्टि कर देता है कि सूबे में भ्रष्टाचार का स्तर कहां पहुंच गया है. गौरतलब है कि छापे के दौरान ऐसे भी अस्पताल बहुतायत में पाए गए हैं जो आईसीयू बेड के नाम पर मन माफिक पैसे तो ऐंठ रहे थे लेकिन जब बात सुविधा देने की आई तो मामला निल बट्टे सन्नाटा निकला.

मामले में मुद्दा डॉक्टर, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ, ऑक्सीजन, आईसीयू, वीगो, आईसीयू बेड तो है ही मगर जिस चीज को लेकर बात होनी चाहिए वो है ओटी में रखी फ्रिज में जरूरी दवाओं के बजाए बियर और शराब की बोतलों का पाया जाना.

हो सकता है इस बात को पढ़कर आदमी इग्नोर कर दे और आगे बढ़ जाए लेकिन ठहरिए. क्या वाक़ई ये इतना ही हल्का है? पूछिये. सवाल करिये अपने आप से. बहुत ईमानदारी के साथ लखनऊ स्थित अस्पतालों के एक बड़े वर्ग द्वारा की गई इस हरकत का अवलोकन कीजिये. मिलेगा कि ये अस्पतालों की बेशर्मी से ज्यादा स्वयं जनता के मुंह पर तमाचा जड़ने जैसा है.

ध्यान रहे हाल फ़िलहाल में ऐसे मामलों की भरमार है जिनमें प्राइवेट अस्पतालों पर ये आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने निर्धारित मानकों के विपरीत जाकर इलाज किया. कई मामले ऐसे भी आए जिनमें लोगों को अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ा और कारण वही था मूल भूत सुविधाओं का आभाव.

आप ऐसे किसी भी व्यक्ति से बात कर लीजिये जिसे इस कोरोना की दूसरी लहर में अपने परिजनों को लेकर अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े हों, उनकी बातें आपका दिल दहला देंगी और आप खुद ब खुद इस बात को स्वीकार करेंगे कि वो डॉक्टर्स जिन्हें हम भगवान का दूसरा रूप कह रहे थे वो डॉक्टर नहीं बल्कि डॉक्टर की खाल में छिपे भेड़िये हैं.

बात एकदम सीधी और साफ़ है. हमारी डॉक्टर्स से कोई निजी दुश्मनी नहीं है. सोशल मीडिया पर लगातार ऐसे बिल भी साझा किये जा रहे हैं जो ये बता रहे हैं कि इस कोरोना काल में डॉक्टर्स ने गरीब मरीजों को बेवकूफ बनाते हुए मनमाना पैसा कमाया है. कई डॉक्टर्स ऐसे थे जिन्हें रोगी की जान से कोई मतलब नहीं था. ऐसे डॉक्टर्स का एकसूत्रीय फंडा अपनी अय्याशी के लिए कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना था.

छापे के दौरान लखनऊ के एक प्राइवेट अस्पताल के ओटी से जो तस्वीर आई है वो न केवल व्यवस्था को शर्मसार कररही है बल्कि ये भी बता रही है कि आजकल के जैसे हालात हैं कोई किसी का सगा नहीं है और डॉक्टर्स तो बिलकुल नहीं हैं. खैर बात ओटी के फ्रिज से बियर और शराब की बोतलें निकलने से शुरू हुई है. तो कल की तारिख में हमें बिलकुल भी हैरत नहीं होनी चाहिए जब हम किसी अस्पताल से दवाओं की जगह मुर्गा, बिरयानी, कढ़ाई पनीर निकलते हुए देखें। जब गरीब के पैसों से अस्पताल में पार्टी चल ही रही है तो फिर आधी अधूरी क्यों?

ये भी पढ़ें -

Sulli Deals: पौरुष और अहंकार दिखाने के लिए हमेशा ही शिकार बनी है स्त्री!

भारत में कोरोना की तीसरी लहर आना तय! जानिए ये 3 बड़ी वजह

Covid 19 के इस दौर में कहीं जी का जंजाल न बन जाए ‘ज़ीका’

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲