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Sulli Deals: पौरुष और अहंकार दिखाने के लिए हमेशा ही शिकार बनी है स्त्री!

    • अंकिता जैन
    • Updated: 19 जुलाई, 2021 04:30 PM
  • 19 जुलाई, 2021 04:30 PM
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सुल्ली-डील्स को लेकर आज भले ही समाज दो वर्गों में बंट गया हो लेकिन हमें आश्चर्य में इसलिए भी नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि अपनी दंभी मानसिकता से ग्रसित पुरुष सदियों से ऐसा करता चला आया है. कुल मिलाकर उसे अपना खोखला पौरुष दिखाने और अहंकार दिखाने का बहाना चाहिए.

सुल्ली-डील्स पर हैरान क्यों हैं? यह तो दंभी मानसिकता का पुरुष हर बार करता आया है. बदला लेने की भावना हो, युद्ध हो या बंटवारे, लड़ाई जाति की हो या धर्म की, पुरुष ने अपना पौरुष दिखाने, अपने अहंकार को पोषने और अपना पलड़ा भारी करने के लिए सदैव ही विपक्षी की स्त्री को शिकार बनाया है. यकीन ना हो तो युद्धों की, बंटवारों की कही-अनकही कहानियों में छिपा दिए आंकड़े और इतिहास उठाकर देख लें. विपक्षी दल से पकड़े गए पुरुष को सिर्फ मारा जाता है, लेकिन स्त्री का पहले बलात्कार किया जाता है फिर उसे जीत मानकर विपक्षी को दिखाया जाता है कि देखो 'हमने तुम्हारा गुरूर, तुम्हारी इज़्ज़त लूट ली, अब तुम यूँ ही हार गए हो'.

बंटवारे की कहानियां पढ़ेंगे तो सीमा-रेखा नेताओं ने खींची थी लेकिन उस रेखा के दोनों और कितनी स्त्रियों को अपना शिकार बनाया गया यह पता कीजिए. जाति हो या राजनीति, स्त्रियों को कैसे अपना मोहरा बनाया जाता है इसके उदाहरण भतेरे मिल जाएंगे. युद्ध-बंटवारे छोड़िए दंभी पुरुष तो मोहल्ले की लड़ाई में भी विपक्षी की बहन को छोड़ना शुरू कर देता है.

लोगों में नफरत किस हद तक हावी हो गयी है इसका सबसे परफेक्ट उदाहरण सुल्ली डील्स है

'हमने तुम्हारी स्त्रियों की डिजिटली ही सही बोली लगा दी, देखो हम जीत गए' ऐसा ही सोचकर ख़ुद को महान मान रहे होंगे वे लोग जो धर्म की आड़ में यह पाप कर रहे हैं लेकिन उसे पुण्य मान रहे हैं. अरे वे तो असल में अब मनुष्य कहलाने के लायक भी नहीं जिन्हें ख़ुद के धार्मिक होने पर गर्व हो रहा होगा. असल में तो धर्म स्वतः ही ऐसे मनुष्यों को बहुत पहले त्याग चुका है. धर्म इन पापियों की वजह से सिर्फ बदनाम ही होता है.

ऐसे अधर्मियों के लिए महज़ न्यायिक ही नहीं सामाजिक तिरस्कार और सज़ा दोनों का प्रावधान होना चाहिए लेकिन असल में ऐसा होता नहीं बल्कि...

सुल्ली-डील्स पर हैरान क्यों हैं? यह तो दंभी मानसिकता का पुरुष हर बार करता आया है. बदला लेने की भावना हो, युद्ध हो या बंटवारे, लड़ाई जाति की हो या धर्म की, पुरुष ने अपना पौरुष दिखाने, अपने अहंकार को पोषने और अपना पलड़ा भारी करने के लिए सदैव ही विपक्षी की स्त्री को शिकार बनाया है. यकीन ना हो तो युद्धों की, बंटवारों की कही-अनकही कहानियों में छिपा दिए आंकड़े और इतिहास उठाकर देख लें. विपक्षी दल से पकड़े गए पुरुष को सिर्फ मारा जाता है, लेकिन स्त्री का पहले बलात्कार किया जाता है फिर उसे जीत मानकर विपक्षी को दिखाया जाता है कि देखो 'हमने तुम्हारा गुरूर, तुम्हारी इज़्ज़त लूट ली, अब तुम यूँ ही हार गए हो'.

बंटवारे की कहानियां पढ़ेंगे तो सीमा-रेखा नेताओं ने खींची थी लेकिन उस रेखा के दोनों और कितनी स्त्रियों को अपना शिकार बनाया गया यह पता कीजिए. जाति हो या राजनीति, स्त्रियों को कैसे अपना मोहरा बनाया जाता है इसके उदाहरण भतेरे मिल जाएंगे. युद्ध-बंटवारे छोड़िए दंभी पुरुष तो मोहल्ले की लड़ाई में भी विपक्षी की बहन को छोड़ना शुरू कर देता है.

लोगों में नफरत किस हद तक हावी हो गयी है इसका सबसे परफेक्ट उदाहरण सुल्ली डील्स है

'हमने तुम्हारी स्त्रियों की डिजिटली ही सही बोली लगा दी, देखो हम जीत गए' ऐसा ही सोचकर ख़ुद को महान मान रहे होंगे वे लोग जो धर्म की आड़ में यह पाप कर रहे हैं लेकिन उसे पुण्य मान रहे हैं. अरे वे तो असल में अब मनुष्य कहलाने के लायक भी नहीं जिन्हें ख़ुद के धार्मिक होने पर गर्व हो रहा होगा. असल में तो धर्म स्वतः ही ऐसे मनुष्यों को बहुत पहले त्याग चुका है. धर्म इन पापियों की वजह से सिर्फ बदनाम ही होता है.

ऐसे अधर्मियों के लिए महज़ न्यायिक ही नहीं सामाजिक तिरस्कार और सज़ा दोनों का प्रावधान होना चाहिए लेकिन असल में ऐसा होता नहीं बल्कि इन्हें सर चढ़ाया जाता है, माफ़ कर दिया जाता और भुला दिया जाता है. बस इसलिए, ये अपनी कुत्सित मानसिकता अन्य-अन्य पीढ़ियों को देते जाते हैं और फिर-फिर अहंकार को पोषने पुरुष स्त्रियों को लूटता जाता है, बोलियां लगाता जाता है.

और हां ज्ञान ना दें यह कहकर कि अच्छे पुरुष भी होते हैं. मैं जानती हूं होते हैं, मेरे आसपास भी हैं लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है. इसे बढ़ाइए ताकि फिर कोई स्त्री ख़ुद को कैद करने के बारे में ना सोचे बल्कि वह सुरक्षित और स्वतंत्र जी सके.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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