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योगी की सत्ता में वापसी संभव है - बशर्ते, ये 5 चीजें सही रास्ते पर रहें!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 14 अगस्त, 2021 09:15 AM
  • 14 अगस्त, 2021 09:15 AM
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भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए यूपी चुनाव (UP Election 2022) कई हिसाब से काफी अहम है - और योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditynath) के नेतृत्व में सत्ता में वापसी के लिए संघ और बीजेपी जी जान से जुटे हैं - ये संभव भी है, लेकिन शर्तें भी लागू हैं.

योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditynath) आत्मविश्वास से लबालब तो हमेशा नजर आते हैं, चुनाव की तारीख (P Election 2022) नजदीक आने के बावजूद चेहरे पर चिंता के भाव नहीं हावी होने दे रहे हैं - ये बात अलग है कि ऐसा ही भाव 2018 के उपचुनावों से पहले भी देखने को मिलता रहा.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के ठीक साल भर बाद उनकी ही खाली की हुई गोरखपुर संसदीय सीट पर उपचुनाव हुए थे और बीजेपी उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा था. ठीक वैसे ही नतीजे फूलपुर और कैराना उपचुनावों के भी रहे. हालांकि, माना ये भी जाता है कि योगी आदित्यनाथ ने राजनीतिक वजहों से ही उन चुनावों में तब पूरी दिलचस्पी नहीं दिखायी थी - लेकिन करीब साल भर बाद ही जब 2019 के आम चुनाव हुए तो हार का बदला भी ले लिया था.

हाल के पंचायत चुनावों में शुरुआती दौर में पिछड़ने के बाद जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों के चुनाव में योगी आदित्यनाथ नतीजे बीजेपी की झोली में डाल कर अपना चमत्कार भी दिखा चुके हैं, लेकिन वही चुनाव संकेत ये भी देता है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में विपक्ष के बिखरे होने के बावजूद वॉक ओवर जैसा खुला मैदान तो नहीं ही मिलने वाला है.

योगी आदित्यनाथ अब तक के कार्यकाल में तीन बातों पर खास तौर पर जोर देखने को मिला है. एक, जब भी कोई सवाल उठे, कोई आरोप लगे पूरे जोर से उसे खारिज करने की कोशिश रही - गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत के मामले से लेकर कोविड 19 की दूसरी लहर के दौरान बदइंतजामियों के बावजूद.

दो, जब भी कहीं ऊंच-नीच दिखायी पड़े या मामला बेकाबू होते नजर आये अफसरों को NSA में बुक करने का फरमान आ जाता रहा है. कोरोना काल में तबलीगी जमात से लेकर कोरोना वायरस के दौरान ऑक्सीजन की कमी को लेकर भी योगी आदित्यनाथ की तरफ यही सुविधाजनक फरमान सुनायी दिया.

और तीन, योगी आदित्यनाथ की फेवरेट स्टाइल है - ठोक दो. अब तक तो यही समझ में आया है कि पुलिस एनकाउंटर योगी आदित्यनाथ का पसंदीदा शगल रहा है - और हाल ही में इंडिया टुडे के एक...

योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditynath) आत्मविश्वास से लबालब तो हमेशा नजर आते हैं, चुनाव की तारीख (P Election 2022) नजदीक आने के बावजूद चेहरे पर चिंता के भाव नहीं हावी होने दे रहे हैं - ये बात अलग है कि ऐसा ही भाव 2018 के उपचुनावों से पहले भी देखने को मिलता रहा.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के ठीक साल भर बाद उनकी ही खाली की हुई गोरखपुर संसदीय सीट पर उपचुनाव हुए थे और बीजेपी उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा था. ठीक वैसे ही नतीजे फूलपुर और कैराना उपचुनावों के भी रहे. हालांकि, माना ये भी जाता है कि योगी आदित्यनाथ ने राजनीतिक वजहों से ही उन चुनावों में तब पूरी दिलचस्पी नहीं दिखायी थी - लेकिन करीब साल भर बाद ही जब 2019 के आम चुनाव हुए तो हार का बदला भी ले लिया था.

हाल के पंचायत चुनावों में शुरुआती दौर में पिछड़ने के बाद जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों के चुनाव में योगी आदित्यनाथ नतीजे बीजेपी की झोली में डाल कर अपना चमत्कार भी दिखा चुके हैं, लेकिन वही चुनाव संकेत ये भी देता है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में विपक्ष के बिखरे होने के बावजूद वॉक ओवर जैसा खुला मैदान तो नहीं ही मिलने वाला है.

योगी आदित्यनाथ अब तक के कार्यकाल में तीन बातों पर खास तौर पर जोर देखने को मिला है. एक, जब भी कोई सवाल उठे, कोई आरोप लगे पूरे जोर से उसे खारिज करने की कोशिश रही - गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत के मामले से लेकर कोविड 19 की दूसरी लहर के दौरान बदइंतजामियों के बावजूद.

दो, जब भी कहीं ऊंच-नीच दिखायी पड़े या मामला बेकाबू होते नजर आये अफसरों को NSA में बुक करने का फरमान आ जाता रहा है. कोरोना काल में तबलीगी जमात से लेकर कोरोना वायरस के दौरान ऑक्सीजन की कमी को लेकर भी योगी आदित्यनाथ की तरफ यही सुविधाजनक फरमान सुनायी दिया.

और तीन, योगी आदित्यनाथ की फेवरेट स्टाइल है - ठोक दो. अब तक तो यही समझ में आया है कि पुलिस एनकाउंटर योगी आदित्यनाथ का पसंदीदा शगल रहा है - और हाल ही में इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में अपना मैसेज देने में भी पीछे नहीं रहे - एक्सीडेंट का क्या, कहीं भी हो सकता है. गाड़ी कभी भी कहीं भी पलट सकती है. कानपुर के बिकरू गांव की घटना के बाद विकास दुबे के एनकाउंटर के लिए गोली की जगह गाड़ी का पलट जाना जुमला बन चुका है.

वैसे लगता है, योगी आदित्यनाथ को अब अपनी छवि की चिंता थोड़ी बहुत होने लगी है - और 'ऑपरेशन लंगड़ा' भी योगी आदित्यनाथ की छवि सुधार का हिस्सा ही लगता है.

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए उत्तर प्रदेश में सत्ता बरकरार रखना बेहद जरूरी हो गया है, खास तौर पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के हाथों शिकस्त के बाद. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी नेतृत्व के साथ साथ परदे के पीछे पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग भी जी जान से जुटे हैं. जो हालात हैं उसमें योगी आदित्यनाथ की सत्ता में वापसी नामुमकिन तो नहीं लगती, लेकिन मुश्किल भी नहीं है ऐसा भी नहीं लगता - हां, कुछ अहम फैक्टर ऐसे जरूर हैं जो काम कर गये तो बस बल्ले बल्ले समझिये.

1. मोदी-शाह के सर्टिफिकेट हैं बड़े काम के

दिल्ली तलब किये जाने पर योगी आदित्यनाथ की अमित शाह के दरबार में पेशी हुई और उसके बाद उन्होंने ट्विटर पर लिखा था - मार्गदर्शन मिला. यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद भी लिखा था.

जब लखनऊ लौटकर भी योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री मोदी के भरोसेमंद अफसर रहे अरविंद शर्मा को कैबिनेट में नहीं शामिल किया और उनको संगठन में एडजस्ट करना पड़ा तो तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी थी - ये योगी आदित्यनाथ के जिद की जीत थी.

मोदी-शाह हैं तो योगी आदित्यनाथ के लिए अभी सब कुछ मुमकिन है!

बाद में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस पहु्ंच कर योगी आदित्यनाथ को कोरोना संकट में काम की तारीफ कर दिये - और उसके बाद अमित शाह लखनऊ पहुंच कर योगी आदित्यनाथ के कामकाज की प्रशंसा करते थकते नहीं दिखे तो पूरा माजरा समझ में आ गया.

कहने को तो ये मोदी और शाह की तरफ से क्लीनचिट वाले सर्टिफिकेट जारी किये गये थे, लेकिन एक तरीके से राजनीतिक हलफनामा जैसा भी लगा - जैसे बीजेपी नेतृत्व मन में पत्थर रख कर हर हाल में योगी आदित्यनाथ को चुनाव जिताने का फैसला कर चुका हो.

मोदी-शाह की तरफ से योगी आदित्यनाथ को जो ये सर्टिफिकेट मिले हैं, अगर व्यावहारिक तौर पर अच्छी तरह अमल में आ गये तो समझो हो ही गया.

2. ऑपरेशन लंगड़ा तो छवि सुधारने की कोशिश ही है

ऑपरेशन लंगड़ा कोई एंटी रोमियो स्क्वाड की तरह औपचारिक तौर पर घोषित यूपी पुलिस का अभियान नहीं है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि पुलिसवाले इसे इसी नाम से जानते और समझते हैं - और जाहिर है अपराधियों में भी खौफ का माहौल तो होगा ही.

योगी सरकार में यूपी पुलिस के एनकाउंटर पर उठते सवालों के बीच, लगता है रणनीतिक तौर पर बदलाव किया गया है. ऑपरेशन लंगड़ा के नाम से ही साफ है कि अपराधियों को एनकाउंटर में गोली मार कर ढेर कर दिये जाने की जगह सिर्फ पैरों में गोली मार कर जख्मी करने का काम चल रहा है. वैसे भी बदमाशों से एनकाउंटर की स्थिति में आत्मरक्षा के मकसद कमर से नीचे ही गोली मारने की हिदायत होती है, ताकि उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर मुकदमा चलाया जा सके.

पुलिस का दावा तो हमेशा यही होता है कि आत्मरक्षा में ही गोली चलायी गयी, लेकिन लगता है पुलिस तब इतना डर जाती है कि गोली कमर से ऊपर लग रही है कि नीचे परवाह ही नहीं होती - और खुद को तब तक सुरक्षित महसूस नहीं करती जब तक कथित अपराधी दम न तोड़ दे.

रिपोर्ट से मालूम हुआ है कि मार्च, 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यूपी पुलिस ने 8,472 एनकाउंटर किये हैं. ऐसे एनकाउंटर में 3,302 कथित अपराधी पुलिस की गोली से घायल हुए जबकि मरने वालों की तादाज 146 बतायी गयी है.

बताते हैं कि ऐसे एनकाउंटर में कितने अपराधी पैर में गोली लगने से विकलांग हुए इसका कोई आंकड़ा नहीं तैयार किया गया है. हां, इन एनकाउंटर में 13 पुलिसवाले भी मारे गये और 1,157 जख्मी हो गये - और 18,225 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में यूपी पुलिस के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार कहते हैं, एनकाउंटर में घायलों की बड़ी संख्या बताती है कि अपराधियों को मार गिराना पुलिस का पहला मकसद नहीं है... उद्देश्य गिरफ्तार करना है.'

3. राम मंदिर निर्माण तो चुनावी वादे पूरे होने जैसा है

जैसे राष्ट्रीय स्तर पर धारा 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी बीजेपी के चुनावी वादों के पूरे होने की फेहरिस्त है, लव जिहाद, जनसंख्या नियंत्रण कानून के बीच अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन भी योगी आदित्यनाथ के खाते से पेश किये जाने वाला एक नायाब प्रोजेक्ट है.

तभी तो अखिलेश यादव के बीजेपी को झूठा बताने पर योगी आदित्यनाथ कहते हैं, 'देखिये... हमने कहा था रामलला हम आएंगे, मंदिर वही बनाएंगे... ये हमी ने कहा था और हमने कितना सच किया है... आज जब अयोध्या में राम जन्मभूमि की भव्य मंदिर निर्माण का कार्य शुभारंभ हो चुका है,' और फिर तंज भी कसते हैं, 'उनके अब्बाजान तो कहते थे कि परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा.'

अब्बाजान सुन कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि श्मशान-कब्रिस्तान 2.0 की भूमिका भी तैयार हो चुकी है.

4. ओबीसी आरक्षण तो धीरे से जोर का झटका ही है

ममता बनर्जी और राहुल गांधी विपक्ष को एकजुट करने में दिन रात एक किये हुए हैं - और ऐसा लगता है जैसे बीजेपी ने विपक्षी एकजुटता के नुकसान से पहले फायदा ही उठा लिया है - भारी शोर शराबा और हंगामा भी चलता रहा और संसद के दोनों सदनों में 127वां संविधान संशोधन बिल, 2021 सर्वसम्मति से पास हो गया - जी हां, ओबीसी बिल आम राय से पास हो गया.

ये बीजेपी की तरफ से विपक्ष के चला गया बहुत बड़ा दांव रहा, जिसमें फंसे विपक्षी दलों में से किसी ने चूं तक नहीं की. करते भी तो कैसे, लेकिन अब करेंगे भी तो क्या?

ओबीसी बिल के आने का पहला फायदा तो वही उठा पाएगा जो दल सत्ता में है - क्योंकि इसके जरिये राज्यों को अपने हिसाब से ओबीसी की सूची तैयार करने का अधिकार दे दिया गया है.

कोई रास्ता न बचा देख कर ओबीसी के नाम पर अपनी अपनी जातियों की राजनीतिक करने वाले नेता जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं - और आरक्षण की सुप्रीम कोर्ट से निर्धारित 50 फीसदी की सीमा बढ़ाने की डिमांड भी.

देखें तो उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोट 45 फीसदी हैं और यादव वोट बैंक करीब 10 फीसदी है. थोड़ा गौर करें तो अखिलेश यादव के लिए ओबीसी के 10 फीसदी छोड़ कर बीजेपी की नजर बाकी के 35 फीसदी पर टिकी हुई है - सोचिये कितनी जोरदार रणनीति और दूरगामी सोच है.

5. बिखरा विपक्ष तो जैसे किस्मत की ही बात हो

चुनावों में खुला मैदान भी किस्मतवालों को ही मिलता है. उत्तर प्रदेश में जो हाल हो रखा है करीब करीब माहौल ऐसा ही लगता है. पंचायत चुनावों के नतीजों से मालूम पड़ता है कि वर्क फ्रॉम हो पॉलिटिक्स के बावजूद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है, लेकिन मायावती ब्राह्मण सम्मेलन के भरोसे बैठी हैं - और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा अब गठबंधन की वकालत करने लगी हैं.

इस बीच दिल्ली में डेरा डाले आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव भी खासे एक्टिव हैं और चाहते हैं कि विपक्ष मिल कर योगी आदित्यनाथ को चैलेंज करे - लेकिन ये तो नौ मन तेल होने की बात है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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