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यूपी की राजनीति में 'अब्बाजान' का असर दूर तक देखने को मिलेगा!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 09 अगस्त, 2021 08:54 PM
  • 09 अगस्त, 2021 08:54 PM
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उत्तर प्रदेश में फिलहाल जिस तरह की सियासी हवा चल रही है. उसे देखकर अखिलेश यादव का एमवाई समीकरण सबसे मजबूत नजर आता है. यूपी में नई मुस्लिम लीडरशिप खड़ी करने की बात करने वाले असदुद्दीन ओवैसी से भी सपा के इस वोट बैंक पर असर पड़ता नहीं दिख रहा है. लेकिन, सीएम योगी ने अब्बाजान के सहारे सपा पर लगने वाले मुस्लिमपरस्त होने के आरोपों को और हवा दे दी है.

यूपी विधानसभा चुनाव (P Assembly elections 2022) को लेकर सियासी दलों के दावे सामने आने लगे हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने 400 विधानसभा सीट जीतकर उत्तर प्रदेश (ttar Pradesh) में सरकार बनाने का दावा किया है. दलित राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) इस बार 2007 का सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला लगाकर सत्ता में वापसी की हुंकार भर रही हैं. सूबे में फिर से संगठन में जान फूंकने की कोशिश कर रही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) गठबंधन से लेकर अकेले चुनाव लड़ने तक की संभावनाओं पर विचार कर रही हैं. लेकिन, इन सबसे अलग भाजपा अपने चिर-परिचित अंदाज में हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रही है. 'पंचायत आजतक उत्तर प्रदेश' के कार्यक्रम में भी भाजपा ने अपनी इसी रणनीति को आगे रखा.

इस कार्यक्रम में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अखिलेश यादव के खुद को 'बड़ा हिंदू' बताने पर तंज कसते हुए मुलायम सिंह यादव के लिेए 'अब्बाजान' का संबोधन इस्तेमाल किया. योगी आदित्यनाथ ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उनके (अखिलेश यादव) के अब्बाजान कहते थे कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा. अब्बाजान शब्द के इस्तेमाल को लेकर भाजपा और सपा के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है. जिसके बाद अखिलेश यादव ने इस मामले पर सीएम योगी को भाषा पर नियंत्रण रखने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि अगर अगर वो मेरे पिता के बारे में कुछ कहते हैं, तो उनको भी अपने पिता के बारे में सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि यूपी की राजनीति में अब्बाजान शब्द का असर दूर तक देखने को मिलेगा.

कहा जाता है कि राजनीति में संकेत बहुत मायने रखते हैं. राजनीति में कोई भी बात यूं ही नहीं बोली जाती...

यूपी विधानसभा चुनाव (P Assembly elections 2022) को लेकर सियासी दलों के दावे सामने आने लगे हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने 400 विधानसभा सीट जीतकर उत्तर प्रदेश (ttar Pradesh) में सरकार बनाने का दावा किया है. दलित राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) इस बार 2007 का सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला लगाकर सत्ता में वापसी की हुंकार भर रही हैं. सूबे में फिर से संगठन में जान फूंकने की कोशिश कर रही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) गठबंधन से लेकर अकेले चुनाव लड़ने तक की संभावनाओं पर विचार कर रही हैं. लेकिन, इन सबसे अलग भाजपा अपने चिर-परिचित अंदाज में हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रही है. 'पंचायत आजतक उत्तर प्रदेश' के कार्यक्रम में भी भाजपा ने अपनी इसी रणनीति को आगे रखा.

इस कार्यक्रम में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अखिलेश यादव के खुद को 'बड़ा हिंदू' बताने पर तंज कसते हुए मुलायम सिंह यादव के लिेए 'अब्बाजान' का संबोधन इस्तेमाल किया. योगी आदित्यनाथ ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उनके (अखिलेश यादव) के अब्बाजान कहते थे कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा. अब्बाजान शब्द के इस्तेमाल को लेकर भाजपा और सपा के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है. जिसके बाद अखिलेश यादव ने इस मामले पर सीएम योगी को भाषा पर नियंत्रण रखने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि अगर अगर वो मेरे पिता के बारे में कुछ कहते हैं, तो उनको भी अपने पिता के बारे में सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि यूपी की राजनीति में अब्बाजान शब्द का असर दूर तक देखने को मिलेगा.

कहा जाता है कि राजनीति में संकेत बहुत मायने रखते हैं. राजनीति में कोई भी बात यूं ही नहीं बोली जाती है.

क्या सपा के पक्ष में लामबंद हो पाएंगे मुस्लिम?

कहा जाता है कि राजनीति में संकेत बहुत मायने रखते हैं. राजनीति में कोई भी बात यूं ही नहीं बोली जाती है. योगी आदित्यनाथ ने मुलायम सिंह यादव के लिए अब्बाजान शब्द का इस्तेमाल बहुत सोच-विचारकर किया है. उत्तर प्रदेश में फिलहाल जिस तरह की सियासी हवा चल रही है. उसे देखकर अखिलेश यादव का एमवाई समीकरण सबसे मजबूत नजर आता है. यूपी में नई मुस्लिम लीडरशिप खड़ी करने की बात करने वाले एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी से भी सपा के इस वोट बैंक पर असर पड़ता नहीं दिख रहा है. लेकिन, सीएम योगी ने अब्बाजान के सहारे सपा पर लगने वाले मुस्लिमपरस्त होने के आरोपों को और हवा दे दी है. अखिलेश यादव इस शब्द पर जितना रिएक्शन देंगे, भाजपा के लिए उन्हें घेरना उतना ही आसान होता जाएगा. भाजपा के नेता 'टीपू' को उकसाने की कोशिशों में भी लग गए हैं.

योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने अखिलेश पर तंज कसते हुए कहा कि अब्बाजान उर्दू का एक मीठा शब्द है. जैसे पिता को डैडी कहा जाता है, वैसे ही अब्बा है. मुलायम सिंह भी तो उन्हें टीपू बुलाते हैं. वैसे, 'अब्बाजान' से सपा के पक्ष में मुस्लिम वोट लामबंद हों या नहीं. लेकिन, भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर लोगों को अपने साथ लाने का एक और दांव चल दिया है. सीएम योगी आदित्यनाथ के चेहरे के साथ अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करने वाली भाजपा अपने एजेंडे को पहले ही स्पष्ट कर चुकी है. सीएम योगी गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मठ के अधिष्ठाता भी हैं. इस स्थिति में एक बात तो साफ है कि यूपी के संतों और महामंडलेश्वरों पर भाजपा की राजनीतिक पकड़ और मजबूत हुई है. योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व के फायरब्रांड नेता की छवि के सहारे भाजपा जितना राजनीतिक लाभ लेना चाहती है, फिलहाल वो उसे मिलता भी दिख रहा है.

भाजपा के एजेंडे में हमेशा से ही हिंदुत्व सबसे आगे रहा है.

सॉफ्ट हिंदुत्व राजनीतिक दलों की कमजोर नस

मुलायम सिंह यादव के लिए 'अब्बाजान' शब्द का इस्तेमाल करने के साथ योगी आदित्यनाथ ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. भाजपा के एजेंडे में हमेशा से ही हिंदुत्व सबसे आगे रहा है. इसी हिंदुत्व के जरिये लगातार दो बार केंद्र की सत्ता में वापसी करने वाली भाजपा के लिए ये उसका सबसे बड़ा सियासी हथियार है. माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को चुनौती देने वाला सबसे बड़ा सियासी दल सपा ही है. सीएम योगी ने मुलायम सिंह के लिए अब्बाजान का संबोधन देकर सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिशों पर सीधा हमला बोला है.

सपा पर मुस्लिमपरस्त होने का आरोप धोने की कवायद में अखिलेश यादव राम मंदिर निर्माण पूरा होने पर सपरिवार दर्शन की बात कर रहे हैं. बीते साल चित्रकूट में कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा के सहारे अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करने वाले सपा प्रमुख सॉफ्ट हिंदुत्व को अपनाने की ओर बढ़ चले हैं. अखिलेश यादव समझ चुके हैं कि यूपी में सत्ता केवल एमवाई समीकरण के सहारे हाथ में नहीं आनी है. यही कारण है कि सपा नेता आजम खान की गिरफ्तारी से लेकर अब तक अखिलेश यादव की ओर कोई खास प्रतिक्रिया या जमीनी लड़ाई नहीं दिखी है.

दरअसल, हिंदुत्व भाजपा के लिए वो सब्जेक्ट है, जिसमें बीते कुछ वर्षों में वो लगातार सर्वाधिक नंबर लाकर परीक्षा को पास करता चला आ रहा है. भाजपा पूरी कोशिश में है कि यूपी में अखिलेश यादव को भी राहुल गांधी की तरह उनके जनेऊ में बांध दिया जाए. सपा, कांग्रेस और बसपा जैसे राजनीतिक दलों ने इस बार मुस्लिम वोट बैंक से ज्यादा यूपी की बहुसंख्यक आबादी को साधने की कवायद की है. इसका बहुत सीधा सा कारण है कि जो विपक्षी दल बहुसंख्यक आबादी को अपने साथ लाने में कामयाब होगा, मुस्लिम वोट बैंक खुद-ब-खुद उसके पाले में चला जाएगा.

कहना गलत नहीं होगा कि ये भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति का ही असर है कि उत्तर प्रदेश के तमाम सियासी दल खामोशी के साथ मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, सीएम योगी ने अब्बाजान शब्द के सहारे सपा को बैकफुट पर ढकेलने की भरपूर कोशिश की है. खैर, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चलती रहेगी. लेकिन, इतना तय है कि यूपी की राजनीति में 'अब्बाजान' का असर दूर तक देखने को मिलेगा.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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