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सिद्धारमैया का ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता बचा पाएगी?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 28 जनवरी, 2018 03:59 PM
  • 28 जनवरी, 2018 03:58 PM
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क्या कांग्रेस को इन मुकदमों को वापस लेने से विधानसभा चुनाव में कोई फायदा मिल पायेगा? क्या 'मुस्लिम तुष्टिकरण' की नीति से कांग्रेस अपनी सत्ता बचाए रखने में सफल हो पाएगी?

कर्नाटक में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में सियासी जमीन भी तैयार हो रही है और शुरूआत से ही चुनावी शंखनाद में हिंदुत्व का मुद्दा छाया हुआ है. एक तरफ जहां राज्य में पांच साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस फिर से सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा वहां अपनी सरकार बनाकर देश के दक्षिणी राज्य में भी भगवा फहराने की कोशिश में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

इसी क्रम में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार राज्य के 189 मुस्लिम युवाओं पर लगे मुकदमे वापस लेने पर विचार कर रही है. इसके लिए कर्नाटक के डीजीपी ने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ 5 सालों से लंबित सांप्रदायिक हिंसा के केस को वापस लेने का सर्कुलर जारी किया. भाजपा ने इसे ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ करार दिया है. हालांकि ये पहला मौका नहीं होगा अगर मुकदमे वापस लिए जाते हैं. इसके पहले 2015 में कांग्रेस की इसी सरकार ने 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया' के 175 सदस्यों के मुकदमे वापस लिए थे.

लेकिन क्या कांग्रेस को इन मुकदमों को वापस लेने से विधानसभा चुनाव में कोई फायदा मिल पायेगा? क्या 'मुस्लिम तुष्टिकरण' की नीति से कांग्रेस अपनी सत्ता बचाए रखने में सफल हो पाएगी? कर्नाटक का राजनीतिक इतिहास रहा है कि साल 1994 के बाद से कोई भी पार्टी लगातार सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है.

कर्नाटक में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में सियासी जमीन भी तैयार हो रही है और शुरूआत से ही चुनावी शंखनाद में हिंदुत्व का मुद्दा छाया हुआ है. एक तरफ जहां राज्य में पांच साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस फिर से सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा वहां अपनी सरकार बनाकर देश के दक्षिणी राज्य में भी भगवा फहराने की कोशिश में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

इसी क्रम में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार राज्य के 189 मुस्लिम युवाओं पर लगे मुकदमे वापस लेने पर विचार कर रही है. इसके लिए कर्नाटक के डीजीपी ने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ 5 सालों से लंबित सांप्रदायिक हिंसा के केस को वापस लेने का सर्कुलर जारी किया. भाजपा ने इसे ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ करार दिया है. हालांकि ये पहला मौका नहीं होगा अगर मुकदमे वापस लिए जाते हैं. इसके पहले 2015 में कांग्रेस की इसी सरकार ने 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया' के 175 सदस्यों के मुकदमे वापस लिए थे.

लेकिन क्या कांग्रेस को इन मुकदमों को वापस लेने से विधानसभा चुनाव में कोई फायदा मिल पायेगा? क्या 'मुस्लिम तुष्टिकरण' की नीति से कांग्रेस अपनी सत्ता बचाए रखने में सफल हो पाएगी? कर्नाटक का राजनीतिक इतिहास रहा है कि साल 1994 के बाद से कोई भी पार्टी लगातार सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है.

मुस्लिम मतदाता अहम:

कांग्रेस को मुस्लिम मतदाताओं की अहमियत पता है. दक्षिण भारत में केरल के बाद मुस्लिमों की जनसंख्या में कर्नाटक का ही नंबर आता है. यहां इनकी आबादी 70 लाख है और करीब 12 प्रतिशत मतदाता हैं. विधानसभा की कुल 224 सीटों में से करीब 100 सीटों पर इनका प्रभाव माना जाता है. और विधानसभा की 12 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 40 प्रतिशत के करीब है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम ज्यादा संख्या में हैं. ये भाजपा के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है. 2013 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समुदाय के 11 प्रतिनिधि चुने गए थे.

कर्नाटक चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिेए नाक का सवाल है

2015 में भी मुकदमे वापस लिए गए थे:

कुछ दिन पहले ही कर्नाटक सरकार ने एक आंकड़ा जारी कर बताया था कि 2015 के दौरान सांप्रदायिक झगड़े के आरोप में 250 से ज्यादा मुस्लिमों की गिरफ्तारियां हुईं थी. करीब 300 हिंदू आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया था. उसके बाद 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया' के 175 सदस्यों के मुकदमे वापस लिए गए थे.

उत्तर प्रदेश सरकार ने भी ऐसा ही कदम उठाया:

हालांकि भाजपा इसे 'मुस्लिम तुष्टिकरण' करार दे रही है. लेकिन ऐसा ही कदम उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी उठाया है. इसने मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी भाजपा नेताओं से जुड़े केस की जानकारी संबंधित विभागों के अधिकारियों से मांगी है.

आदित्यनाथ और सिद्धारमैया के ट्वीटर वार:

अभी कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कर्नाटक के मुख्यमंत्री के बीच हिंदुत्व को लेकर वाक-युद्ध भी देखने को मिला था. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने खुद को 100 फीसदी हिंदू करार दिया था. इसके बाद दोनों मुख्यमंत्रियों में ट्वीटर वार देखने को मिला.

सिद्धारमैया ने कहा "क्या सरकार 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया' को बैन कर रही है? अगर ऐसा है तो आरएसएस और बजरंग दल भी आतंकवादी हैं. कोई भी कानून से ऊपर नहीं है." उन्होंने कहा कि "जो भी कानून का उल्लंघन करेगा उसे बख्शा नहीं जाएगा. चाहे वो आरएसएस हो, वीएचपी हो या फिर बजरंग दल". इस पर भाजपा ने पलटवार करते हुए ट्वीट किया था कि "सिद्धारमैया चुनाव का ध्रुवीकरण कर रहे हैं. उन्हें समझना चाहिए कि ये 1975 नहीं है और आज प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नहीं हैं."

अब चूंकि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव सिर पर है ऐसे में तथाकथित 'मुस्लिम तुष्टिकरण' की नीति कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखने में कितनी सहायक होगी ये देखने के लिए विधानसभा के नतीजों तक इंतज़ार करना होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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