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राहुल गांधी ढूंढ रहे हैं कर्नाटक के 'हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश'

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 15 जनवरी, 2018 12:41 PM
  • 15 जनवरी, 2018 12:41 PM
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कर्नाटक में चुनाव करीब हैं ऐसे में जो शख्स इस चुनाव से सबसे ज्यादा आस लगाए बैठे हैं वो राहुल गांधी हैं जिन्होंने गुजरात की तरह कर्नाटक में भी ऐसे युवाओं की तलाश शुरू कर दी है जो हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश की तरह तेज तर्रार हों.

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस. जनता के बीच अपना खोया हुआ जनाधार जुटाने में प्रयासरत है. कहा जा सकता है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के कुछ समय पहले से ही पार्टी ने अपनी कार्यप्रणाली पर भारी फेर बदल किये और उसमें नए- प्रयोगों को जगह दी. पार्टी उन चीजों से लगातार दूरी बना रही है जिसके बल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सम्पूर्ण भाजपा उसे काफी लम्बे समय से घेरती आई हैं. पार्टी किस तरह बदल रही है यदि हमें इस बात को समझना हो तो हमें ज्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है.पूर्व में गुजरे गुजरात चुनाव पर अगर निगाह डालें तो कई बातें स्पष्ट हो जाती हैं.

बताया जा रहा है कि कर्नाटक चुनाव को लेकर राहुल गांधी बहुत गंभीर है और इसकी प्लानिंग नए सिरे से कर रहे हैं

कहा जा सकता है कि 2014 के बाद, गुजरात चुनाव एक ऐसा चुनाव था जिसमें कांग्रेस ने अपनी कमियों को समझा, उसपर काम किया और अश्चार्यजनक रूप से भाजपा को कड़ी चुनौती दी. गुजरात में कई ऐसी सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को चारों खाने चित किया जो भाजपा की परंपरागत रूप से मजबूत सीटें बताई जाती थीं. गुजरात में कांग्रेस ने न तो मुस्लिम हितों की बात की न ही व्यर्थ में प्रधानमंत्री पर आरोप प्रत्यारोप लगाए. गुजरात चुनाव में कांग्रेस सौर राहुल गांधी दोनों ने युवाओं को ध्यान में रखा और युवा हितों की बात की. इस प्लानिंग का फायदा कांग्रेस को मिला और उसे हार्दिक पटेल, अल्‍पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी के रूप में युवा नेता मिले जिन्होंने मोदी लहर को रोकने में काफी हद तक कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का साथ दिया.

सबको अचरज में डालते हुए, गुजरात में कांग्रेस नंबर दो तक रही. कांग्रेस के इस प्रदर्शन पर चुनावी पंडितों ने तर्क दिया कि, अगर कांग्रेस और राहुल गांधी इसी तरह काम करती रहे तो वो दिन दूर नहीं जब वो...

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस. जनता के बीच अपना खोया हुआ जनाधार जुटाने में प्रयासरत है. कहा जा सकता है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के कुछ समय पहले से ही पार्टी ने अपनी कार्यप्रणाली पर भारी फेर बदल किये और उसमें नए- प्रयोगों को जगह दी. पार्टी उन चीजों से लगातार दूरी बना रही है जिसके बल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सम्पूर्ण भाजपा उसे काफी लम्बे समय से घेरती आई हैं. पार्टी किस तरह बदल रही है यदि हमें इस बात को समझना हो तो हमें ज्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है.पूर्व में गुजरे गुजरात चुनाव पर अगर निगाह डालें तो कई बातें स्पष्ट हो जाती हैं.

बताया जा रहा है कि कर्नाटक चुनाव को लेकर राहुल गांधी बहुत गंभीर है और इसकी प्लानिंग नए सिरे से कर रहे हैं

कहा जा सकता है कि 2014 के बाद, गुजरात चुनाव एक ऐसा चुनाव था जिसमें कांग्रेस ने अपनी कमियों को समझा, उसपर काम किया और अश्चार्यजनक रूप से भाजपा को कड़ी चुनौती दी. गुजरात में कई ऐसी सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को चारों खाने चित किया जो भाजपा की परंपरागत रूप से मजबूत सीटें बताई जाती थीं. गुजरात में कांग्रेस ने न तो मुस्लिम हितों की बात की न ही व्यर्थ में प्रधानमंत्री पर आरोप प्रत्यारोप लगाए. गुजरात चुनाव में कांग्रेस सौर राहुल गांधी दोनों ने युवाओं को ध्यान में रखा और युवा हितों की बात की. इस प्लानिंग का फायदा कांग्रेस को मिला और उसे हार्दिक पटेल, अल्‍पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी के रूप में युवा नेता मिले जिन्होंने मोदी लहर को रोकने में काफी हद तक कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का साथ दिया.

सबको अचरज में डालते हुए, गुजरात में कांग्रेस नंबर दो तक रही. कांग्रेस के इस प्रदर्शन पर चुनावी पंडितों ने तर्क दिया कि, अगर कांग्रेस और राहुल गांधी इसी तरह काम करती रहे तो वो दिन दूर नहीं जब वो भाजपा और प्रधानमंत्री को कड़ी टक्कर दे पाएंगे. कांग्रेस की इस बढ़त पर सियासी पंडितों के कुछ भी तर्क हो सकते हैं. मगर जब कांग्रेस की इस सफलता को गहनता से देखें तो मिलता है कि, शायद इस मुश्किल वक़्त में कांग्रेस इस बात से परिचित है कि अगर कोई उसकी डूबती हुई नैया को पार लगा सकता है तो वो केवल और केवल युवा ही हैं.

अब युवा ही कांग्रेस की शक्ति हैं और आने वाले वक़्त में कांग्रेस देश के इन्हीं युवाओं की बदौलत राजनीति करने वाली है. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. खबर है कि आगामी कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने लोगों से अपना संवाद स्थापित करने में पूरी ताकत लगा दी है. साथ ही ऐसे युवाओं की तलाश शुरू कर दी है जो जोशीले हों जिनमें मोर्चा लेने का जुनून हो.ऐसे युवा जो बहस में कड़ी टक्कर दे सकें. ध्यान रहे कि कांग्रेस कर्नाटक में भी वही कामयाबी दोहराना चाहती है जो उसे गुजरात में मिली है. साथ ही परिणाम अच्छे रहें इसके लिए वो अपनी कार्यप्रणाली में लगातार फेर बदल करती रहेगी.

शायद राहुल इस बात को समझ गए हैं कि युवाओं की बात किये बिना उनकी पार्टी आगे नहीं जा सकती

कर्नाटक में कांग्रेस कितनी गंभीर है इसका अंदाजा अप इसी बात से लगा सकते हैं कि न सिर्फ पार्टी ने कर्नाटक में पार्टी प्रवक्ताओं की लिस्ट तैयार की है बल्कि वो वर्कशॉप लगाकर इन नेताओं को खास ट्रेनिंग भी दी रही है कि उन्हें क्या बोलना है, कैसे बोलना है, कहां और किस मौके पर बोलना है. कर्नाटक चुनाव में पार्टी की रणनीति एक ऐसी संचार व्यवस्था को लागू करने की भी है जिससे पार्टी का पक्ष सही तरीके से और तेजी के साथ मीडिया को बताया जा सके. कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर इसके लिए स्वयं राहुल गांधी ने खाका तैयार किया है जिसमें शुरूआती दौर में सोशल मीडिया और ईमेल के जवाब के लिए पार्टी टेक सेवी लोगों को नियुक्त कर रही है. साथ ही पार्टी के प्रचार का जिम्मा यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के लोगों पर होगा.

बहरहाल, कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस गंभीर दिख रही है और उसे उम्मीद है कि यहां भी हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश के रूप में ऐसे युवा मिलें जिनके कन्धों को थामकर वो कुछ बड़ा कर ले जाए. अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि अगर भाजपा को कर्नाटक में कांग्रेस को कड़ी चुनौती देनी है तो उसे भी युवा हितों की बातें करनी होगी. साथ ही कुछ ऐसे प्लान भी बनाने होंगे जिससे राज्य के युवा कांग्रेस के खेमे में न जाएं और कांग्रेस से मिल रहे प्रलोभन को साफ शब्दों में ठुकरा दें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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