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अध्यक्ष बनने के बाद कर्नाटक का किला बचाना राहुल गांधी के लिए पहली अग्नि परीक्षा !

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 14 जनवरी, 2018 03:19 PM
  • 14 जनवरी, 2018 03:19 PM
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कर्नाटक चुनाव राहुल गांधी के लिए मौका है अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए. वहीं भाजपा को 'कांग्रेस मुक्त दक्षिण' के नारे को सार्थक करने के लिए जीत जरुरी है.

हालांकि अभी चुनाव आयोग ने कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनावों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन इसके लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने कमर कस ली है. एक तरफ जहां भाजपा, कर्नाटक में कांग्रेस से सत्ता छीनकर ‘कांग्रेस मुक्त दक्षिण’ का सपना पूरा करना चाह रही है, वहीं कांग्रेस किसी भी कीमत पर अपनी सरकार बचाए रखना चाहती है. गौरतलब है कि पंजाब और कर्नाटक ही दो ऐसे बड़े राज्य हैं जहां वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव मार्च-अप्रैल में हो सकते हैं.

कर्नाटक चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए अहम

कांग्रेस: यह चुनाव राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद बतौर पार्टी अध्यक्ष यह उनका पहला चुनाव है. गुजरात चुनाव में सत्ता से बाहर रह जाने और हिमाचल प्रदेश का राज छीन जाने के बाद कांग्रेस के लिए कर्नाटक की सत्ता बचाये रखना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है. अगर कांग्रेस कर्नाटक को बचाने में कामयाब होती है, तो राहुल गांधी को इसका फायदा साल के अंत में होने वाले भाजपा शाषित राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो फायदा मिलेगा ही, उसके अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेता के तौर पर मोदी को टक्कर दे सकते हैं. और इसका सीधा फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिल सकता है जहां लोकसभा की 26 सीटें हैं.

अध्यक्ष पद का सेहरा राहुल गांधी के लिए कांटो का ताज है

हालांकि कांग्रेस के लिए यह जीत इतनी आसान भी नहीं है. अगर बात पिछले विधानसभा चुनाव की हो तो कांग्रेस को फायदा भाजपा के कारण से ही हुआ था. तब भाजपा तीन हिस्सों में बंटी थी. एक भाजपा, दूसरी येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली कर्नाटक जनता पक्ष (KJP) और तीसरी बीएसआर कांग्रेस....

हालांकि अभी चुनाव आयोग ने कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनावों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन इसके लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने कमर कस ली है. एक तरफ जहां भाजपा, कर्नाटक में कांग्रेस से सत्ता छीनकर ‘कांग्रेस मुक्त दक्षिण’ का सपना पूरा करना चाह रही है, वहीं कांग्रेस किसी भी कीमत पर अपनी सरकार बचाए रखना चाहती है. गौरतलब है कि पंजाब और कर्नाटक ही दो ऐसे बड़े राज्य हैं जहां वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव मार्च-अप्रैल में हो सकते हैं.

कर्नाटक चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए अहम

कांग्रेस: यह चुनाव राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद बतौर पार्टी अध्यक्ष यह उनका पहला चुनाव है. गुजरात चुनाव में सत्ता से बाहर रह जाने और हिमाचल प्रदेश का राज छीन जाने के बाद कांग्रेस के लिए कर्नाटक की सत्ता बचाये रखना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है. अगर कांग्रेस कर्नाटक को बचाने में कामयाब होती है, तो राहुल गांधी को इसका फायदा साल के अंत में होने वाले भाजपा शाषित राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो फायदा मिलेगा ही, उसके अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेता के तौर पर मोदी को टक्कर दे सकते हैं. और इसका सीधा फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिल सकता है जहां लोकसभा की 26 सीटें हैं.

अध्यक्ष पद का सेहरा राहुल गांधी के लिए कांटो का ताज है

हालांकि कांग्रेस के लिए यह जीत इतनी आसान भी नहीं है. अगर बात पिछले विधानसभा चुनाव की हो तो कांग्रेस को फायदा भाजपा के कारण से ही हुआ था. तब भाजपा तीन हिस्सों में बंटी थी. एक भाजपा, दूसरी येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली कर्नाटक जनता पक्ष (KJP) और तीसरी बीएसआर कांग्रेस. भाजपा के हार की सबसे बड़ी वजह बीएस येदुरप्पा की बगावत भी थी, जो उस समय भाजपा के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे, लेकिन भ्रष्टचार के मुद्दे पर उन्हें हटा दिया गया था. लेकिन इस बार फिर से उन्हें सीएम पद का दावेदार घोषित किया गया है.

इस तरह इस बार कांग्रेस का मुकाबला न केवल एकजुट भाजपा से है, बल्कि पुराने मैसूर इलाके में जेडी(एस) भी उसके लिए चुनौती होगी. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से वहां भाजपा मजबूत होती गयी है. विधानसभा चुनाव के एक साल बाद ही हुए लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को 17 सीटें हासिल हुईं थीं, जबकि कांग्रेस को मात्र 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. 2 सीटें जेडी(एस) को मिले थे.

भाजपा: गुजरात में सरकार बचाने और कांग्रेस से हिमाचल प्रदेश छीनने के बाद, नरेंद्र मोदी कर्नाटक में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दक्षिण के बड़े राज्य में कमल खिलाने की कोशिश करेंगे. इसी क्रम में अगर भाजपा यह चुनाव जीत जाती है, तो कांग्रेस मुक्त भारत के अपने लक्ष्य में एक और कदम आगे बढ़ते हुए ‘कांग्रेस मुक्त दक्षिण भारत’ का नारा दे सकती है.

भाजपा के लिए कांग्रेस मुक्त दक्षिण के लिए पहला कदम होगा कर्नाटक जीतना

भाजपा के पक्ष में एक और कारक है और वो है कर्नाटक में सत्ता बदलने की परंपरा. 1994 में वहां जनता दल की सरकार थी और 1999 में अगले चुनाव राज्य की जनता ने जनता दल को नकारते हुए कांग्रेस को वापस सत्ता दिलायी थी. ठीक उसी तरह 2004 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भी सत्ता से बाहर हो गई और वहां जेडी (एस) के साथ भाजपा की मिली-जुली सरकार बनी थी. हालांकि यह सरकार अपना कार्यकाल पूरी नहीं कर पायी और 2008 के चुनाव में भाजपा ने बाज़ी मारते हुए सत्ता में आयी. इसी क्रम को जारी रखते हुए 2013 में भाजपा को वहां की जनता ने सबक सिखाया और मात्र 40 सीटों पर ला पटका और 122 सीटों के साथ कांग्रेस सत्ता पर विराजमान हुआ. अगर कर्नाटक की जनता यही क्रम को जारी रखती है तो अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. यानि भाजपा की सरकार बन सकती है.  

लेकिन इन सब के बीच देखना होगा कि राहुल गांधी अपने दक्षिण भारत की एकमात्र सबसे बड़े राज्य में अपने पार्टी की सत्ता बचाने में कामयाब हो पते हैं या नहीं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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