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कर्नाटक: लिंगायत-वीरशैव समाज को हिंदू धर्म से अलग कर चुनाव जीतने का प्रयास

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 20 जनवरी, 2018 05:52 PM
  • 20 जनवरी, 2018 05:52 PM
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वीरशैव समाज से आने वाले राजनेता अलग धर्म की माँग का विरोध कर रहे है. उनका कहना है की वीरशैव और लिंगायत दोनों एक ही है और उन्हें अलग मानकर नहीं देखना चाहिए. वीरशैव समाज का मत है कि उनके समुदाय को लिंगायत-वीरशैव कहा जाना चाहिए.

आजकल लिंगायत-वीरशैव समाज को हिंदू धर्म से अलग एक विभिन्न धर्म का दर्ज़ा देने के विषय पर कर्नाटक की राजनीति में बड़ी बहस छिड़ी हुई है. लिंगायत समाज का एक वर्ग अपने आपको हिंदू धर्म से अलग, नए धर्म के रूप में प्रस्तुत करवाना चाहता है. राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस दशकों पुरानी माँग को अपना समर्थन देकर इस विषय के पक्ष और विपक्ष में लोगों को खड़ा करने में सफलता पा ली है. वीरशैव समाज से आने वाले राजनेता अलग धर्म की माँग का विरोध कर रहे है. उनका कहना है की वीरशैव और लिंगायत दोनों एक ही है और उन्हें अलग मानकर नहीं देखना चाहिए. वीरशैव समाज का मत है कि उनके समुदाय को लिंगायत-वीरशैव कहा जाना चाहिए. जबकि लिंगायत समाज के राजनेता अलग धर्म की माँग का समर्थन कर रहे है.

लिंगायत समुदाय कर्नाटक में अगड़ी जातियों में गिना जाता है, जिनकी राज्य में लगभग 18 प्रतिशत आबादी है. भाजपा के मुख्यमंत्री के दावेदार बी एस येदियुरप्पा स्वयम एक लिंगायत है. लिंगायत समुदाय के सहयोग से ही भाजपा ने कर्नाटक में अपनी जड़ें फैलाई थीं. सिद्धारमैया ने भाजपा को राजनीतिक नुकसान पहुँचाने के लिए इस विषय को जोरों-शोरों से उठाया है. लिंगायत समाज को अल्पसंख्यक धर्म का दर्ज़ा देने के निर्णय पर पहुँचने के लिए राज्य सरकार ने एक समिति भी गठित कर दी है. हालाँकि, आगामी विधान सभा चुनाव से पहले इस समिति के किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के आसार नज़र नहीं आते है.

भाजपा की राजनीति की बुनियाद ही हिंदूत्व पर आधारित है. भाजपा और उसके नेता स्वयम को हिंदू धर्म के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करने से नहीं झिझकते हैं. ऐसे में यदि भाजपा के मुख्यमंत्री पद का दावेदार ही हिंदू न रहे तो भाजपा का पूरा चुनावी प्रचार ही फीका पढ़ जाएगा. अलग धर्म की माँग कर रहे लोगो का भाजपा विरोध तो नहीं कर रही है, परंतु वह सिद्धारमैया पर हिंदू...

आजकल लिंगायत-वीरशैव समाज को हिंदू धर्म से अलग एक विभिन्न धर्म का दर्ज़ा देने के विषय पर कर्नाटक की राजनीति में बड़ी बहस छिड़ी हुई है. लिंगायत समाज का एक वर्ग अपने आपको हिंदू धर्म से अलग, नए धर्म के रूप में प्रस्तुत करवाना चाहता है. राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस दशकों पुरानी माँग को अपना समर्थन देकर इस विषय के पक्ष और विपक्ष में लोगों को खड़ा करने में सफलता पा ली है. वीरशैव समाज से आने वाले राजनेता अलग धर्म की माँग का विरोध कर रहे है. उनका कहना है की वीरशैव और लिंगायत दोनों एक ही है और उन्हें अलग मानकर नहीं देखना चाहिए. वीरशैव समाज का मत है कि उनके समुदाय को लिंगायत-वीरशैव कहा जाना चाहिए. जबकि लिंगायत समाज के राजनेता अलग धर्म की माँग का समर्थन कर रहे है.

लिंगायत समुदाय कर्नाटक में अगड़ी जातियों में गिना जाता है, जिनकी राज्य में लगभग 18 प्रतिशत आबादी है. भाजपा के मुख्यमंत्री के दावेदार बी एस येदियुरप्पा स्वयम एक लिंगायत है. लिंगायत समुदाय के सहयोग से ही भाजपा ने कर्नाटक में अपनी जड़ें फैलाई थीं. सिद्धारमैया ने भाजपा को राजनीतिक नुकसान पहुँचाने के लिए इस विषय को जोरों-शोरों से उठाया है. लिंगायत समाज को अल्पसंख्यक धर्म का दर्ज़ा देने के निर्णय पर पहुँचने के लिए राज्य सरकार ने एक समिति भी गठित कर दी है. हालाँकि, आगामी विधान सभा चुनाव से पहले इस समिति के किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के आसार नज़र नहीं आते है.

भाजपा की राजनीति की बुनियाद ही हिंदूत्व पर आधारित है. भाजपा और उसके नेता स्वयम को हिंदू धर्म के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करने से नहीं झिझकते हैं. ऐसे में यदि भाजपा के मुख्यमंत्री पद का दावेदार ही हिंदू न रहे तो भाजपा का पूरा चुनावी प्रचार ही फीका पढ़ जाएगा. अलग धर्म की माँग कर रहे लोगो का भाजपा विरोध तो नहीं कर रही है, परंतु वह सिद्धारमैया पर हिंदू धर्म को बाटने का आरोप लगा रही है.

2014 के लोकसभा चुनावों से भाजपा की रणनीति रही है की हिंदू धर्म की सभी जातियाँ, जाति के भेदभाव से उपर उठ कर हिंदूत्व के नाम पर मतदान करें. लिंगायत समुदाय का मुद्दा उठाकर कांग्रेस भाजपा के संगठित हिंदू की रणनीति को तोड़ना चाहती है. कांग्रेस को यह पता है की हिंदू समाज यदि भाजपा को जाति से उपर उठकर मत देगा तो भाजपा की जीत निश्चित है.

कर्नाटक में भाजपा को लिंगायत समुदाय से अच्छा समर्थन मिलता रहा है. वर्तमान स्थिति में भाजपा ने वोक्कालिगा और दलित समाज को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास शुरू कर दिया है. भाजपा नहीं चाहती की वह एक जाति पर अत्याधिक निर्भर रहे. ऐसी उम्मीद है कि कांग्रेस की लिंगायत रणनीति का तोड़, भाजपा कट्टर हिंदूत्व से करेगी. योगी आदित्यनाथ का कर्नाटक में प्रचार करना उसी रणनीति का हिस्सा है.

आने वाले दिनों में जब कांग्रेस और भाजपा के शीर्ष नेता चुनावी दंगल में उतरेंगे तो यह लड़ाई ओर भी कटु होना तय है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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