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नीतीश तो बाल बाल बचे लेकिन मुख्यमंत्री पद के बाकी 5 उम्मीदवारों का क्या हुआ?

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 13 नवम्बर, 2020 10:23 AM
  • 13 नवम्बर, 2020 10:23 AM
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बिहार की एक मुख्यमंत्री की गद्दी पर काबिज होने के लिए 6-6 दावेदारों ने ताल ठोकी थी. यह मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में बिहार के चुनावी मैदान में थे. इनका क्या हाल हुआ इसपर विश्लेषण करते हैं और जानते हैं किसमें कितना था दम.

बिहार का चुनावी घमासान अब खत्म हो चुका है. नतीजा सभी को मालूम हो गया है. लेकिन ज़रा सा पीछे जाइये और देखिए कि बिहार के चुनावी मैदान में कितनी रस्साकसी थी. एक मुख्यमंत्री पद की सीट पर 6-6 दावेदारों की दावेदारी थी. अंतिम बाजी मारी है नीतीश कुमार ने, नीतीश कुमार की भी हालत खस्ताहाल थी लेकिन वो तो भला हो उनके साथी भारतीय जनता पार्टी का, जिसने उनकी डूबती नैया पार लगा दी. बिहार के विधानसभा चुनावों में हर राजनीतिक दल राज्य की सत्ता तक पहुंचना चाहती थी, चुनाव से बहुत पहले ही दलों का साथ छोड़ने और साथ जोड़ने की पुरजोर कोशिशें जारी थी. देखते ही देखते राज्य में 4 बड़े गठबंधन बन गए. हर गठबंधन का अपना अलग अलग मुख्यमंत्री पद का चेहरा था. चुनाव हुआ तो सारे ही मुख्यमंत्री पद के चेहरों ने अपनी अपनी जीत का दावा कर दिया लेकिन जब नतीजा आया तो इनके दमखम की पोल-पट्टी खुल गई. कुछ अपनी लाज बचाने में कामयाब हो गए तो कुछ हवा में रफूचक्कर हो गए. आइये बात करते हैं पूरे 6 मुख्यमंत्री पद के चेहरों की और उनका इस चुनाव में क्या हाल हुआ इसपर निगाहें डाल लेते हैं.

बिहार चुनाव इसलिए भी रोचक रहा क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री के लिए एक नहीं कई चेहरे थे

नीतीश कुमार

नीतीश कुमार बिहार में पिछले 15 सालों से मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं. वह इस चुनाव में एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा बने थे. हालांकि नीतीश कुमार खुद चुनावी मैदान में नहीं उतरे थे लेकिन उनकी पार्टी को इस चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. बिहार के मतदाताओं ने भाजपा के भरोसे नीतीश कुमार को छोड़ दिया है. नीतीश कुमार भाजपा के सहारे पर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं जबकि उनकी पार्टी को स्पष्ट तरीके से समर्थन नहीं मिला है यानी व्यक्तिगत तरीके से देखा जाए तो इस चुनाव में नीतीश कुमार को...

बिहार का चुनावी घमासान अब खत्म हो चुका है. नतीजा सभी को मालूम हो गया है. लेकिन ज़रा सा पीछे जाइये और देखिए कि बिहार के चुनावी मैदान में कितनी रस्साकसी थी. एक मुख्यमंत्री पद की सीट पर 6-6 दावेदारों की दावेदारी थी. अंतिम बाजी मारी है नीतीश कुमार ने, नीतीश कुमार की भी हालत खस्ताहाल थी लेकिन वो तो भला हो उनके साथी भारतीय जनता पार्टी का, जिसने उनकी डूबती नैया पार लगा दी. बिहार के विधानसभा चुनावों में हर राजनीतिक दल राज्य की सत्ता तक पहुंचना चाहती थी, चुनाव से बहुत पहले ही दलों का साथ छोड़ने और साथ जोड़ने की पुरजोर कोशिशें जारी थी. देखते ही देखते राज्य में 4 बड़े गठबंधन बन गए. हर गठबंधन का अपना अलग अलग मुख्यमंत्री पद का चेहरा था. चुनाव हुआ तो सारे ही मुख्यमंत्री पद के चेहरों ने अपनी अपनी जीत का दावा कर दिया लेकिन जब नतीजा आया तो इनके दमखम की पोल-पट्टी खुल गई. कुछ अपनी लाज बचाने में कामयाब हो गए तो कुछ हवा में रफूचक्कर हो गए. आइये बात करते हैं पूरे 6 मुख्यमंत्री पद के चेहरों की और उनका इस चुनाव में क्या हाल हुआ इसपर निगाहें डाल लेते हैं.

बिहार चुनाव इसलिए भी रोचक रहा क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री के लिए एक नहीं कई चेहरे थे

नीतीश कुमार

नीतीश कुमार बिहार में पिछले 15 सालों से मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं. वह इस चुनाव में एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा बने थे. हालांकि नीतीश कुमार खुद चुनावी मैदान में नहीं उतरे थे लेकिन उनकी पार्टी को इस चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. बिहार के मतदाताओं ने भाजपा के भरोसे नीतीश कुमार को छोड़ दिया है. नीतीश कुमार भाजपा के सहारे पर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं जबकि उनकी पार्टी को स्पष्ट तरीके से समर्थन नहीं मिला है यानी व्यक्तिगत तरीके से देखा जाए तो इस चुनाव में नीतीश कुमार को झटका लगा है ये कामयाबी उनकी कामयाबी नहीं है. इसलिए बिहार में सबसे मजबूत मुख्यमंत्री पद के चेहरे को जनता से समर्थन नहीं मिल पाया है. हालांकि भाजपा ने साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. यानी नीतीश कुमार कामयाब हो गए हैं.

तेजस्वी यादव

बिहार के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे और बिहार के नेता प्रतिपक्ष एंव पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव यूपीए की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किए गए थे. तेजस्वी यादव खुद भी चुनावी मैदान में थे, बिहार के हाजीपुर की राघोपुर सीट से तेजस्वी ने ताल ठोंकी थी जिसमें उनको 37 हज़ार वोटों से जीत मिली, साथ ही उनकी पार्टी राजद ने भी अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन को नहीं दोहरा पाए. साथ ही उनकी साथी पार्टियां भी उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं ला सकी जिसका असर ये हुआ कि वह बहुमत से 12 सीट पीछे रह गए. हालांकि कड़ी टक्कर देते हुए तेजस्वी यादव ने अपना पूरा दमखम ज़रूर दिखाया लेकिन अंतिम लम्हों में चूक गए.

उपेन्द्र कुशवाहा

महागठबंधन के साथी रहे उपेन्द्र कुशवाहा ने चुनाव से पहले इस गठबंधन से किनारा कर लिया और ओवैसी और मायावती संग नया गठबंधन बना लिया. इस नए गठबंधन का नाम रखा गया ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट और इसके मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रुप में थे खुद उपेन्द्र कुशवाहा. एक अच्छा खासा अनुभव रखने वाले उपेन्द्र कुशवाहा को महागठबंधन ने कमजोर आंका था लेकिन इसी एक नए गठबंधन ने महागठबंधन के सभी सियासी समीकरण खराब कर दिए और उसका नतीजा ये हुआ कि महागठबंधन सत्ता से दूर रह गई. उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी ने 1.77 प्रतिशत, ओवैसी की पार्टी ने 1.24 प्रतिशत और मायावती की पार्टी ने 1.49 प्रतिशत वोट हासिल किए. उपेन्द्र खुद तो मुख्यमंत्री पद और सत्ता से दूर रहे लेकिन उन्होंने महागठबंधन को बम्पर तरीके से नुकसान पहुंचा दिया.

चिराग पासवान

लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार अघोषित चेहरे के रूप में बताया जा रहा था. चिराग इस पूरे चुनाव में छाए रहे थे, वह एनडीए गठबंधन में भाजपा के तो साथ थे लेकिन जदयू के खिलाफ थे. उनका गुणा गणित क्या था इसपर सबके अपने अपने दावे हैं लेकिन चिराग ने इस चुनाव में 143 सीटों पर चुनाव लड़ा, जीते महज एक ही सीट लेकिन जदयू का खेल खराब करने में बड़ी भूमिका निभाई. अब जदयू इनका साथ लेती है या नहीं इसपर अभी संशय है लेकिन नीतीश कुमार के खेमे को सबसे बड़ी चोंट देने वाले चिराग से जितनी सीट जीतने की उम्मीद जताई जा रही थी वह उससे कोसों दूर रह गए. अब सरकार में उनकी क्या हिस्सेदारी रहती है यह देखना दिलचस्प होगा.

पप्पू यादव

जनअधिकार पार्टी के अध्यक्ष राजेश रंजन यानी की पप्पू यादव को प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था. वह चुनावी मैदान में भी थे. मधेपुरा की सीट पर चुनाव लड़ रहे पप्पू यादव को करारी हार मिली. वह तीसरे स्थान पर रहे महज 13 फीसदी वोट हासिल करके. इस सीट पर राजद के उम्मीदवार चंद्रशेखर ने बाजी मारी जबकी दूसरे स्थान पर जदयू के निखिल मंडर रहे. पप्पू यादव की पार्टी भी कुछ खास नहीं कर सकी न ही उनका गठबंधन.

पुष्पम प्रिया चौधरी

इस विधानसभा चुनाव में डिजिटल दुनिया में सबसे चर्चित नाम पुष्पम प्रिया चौधरी. नई पार्टी नया चेहरा. चुनाव से कुछ महीने पहले ही स्थानीय अखबारों में विज्ञापन के ज़रिये पधारने वाली और खुद को बिहार के अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी को ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा. उनकी पार्टी का कोई उम्मीदवार तो दूर वह खुद दो सीटों पर चुनाव बुरी तरीके से हार गई. पुष्पम प्रिया बिस्फी सीट पर महज 1521 वोट और बांकीपुर में 5189 वोट ही हासिल कर सकी थी. हालांकि उन्होंने हार का सारा ठीकरा ईवीएम पर फोड़ दिया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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