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तिकड़ी, जिसने तेजस्वी के अरमानों पर पानी फेर दिया

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 12 नवम्बर, 2020 12:21 PM
  • 11 नवम्बर, 2020 10:50 PM
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बिहार के चुनाव (Bihar Assembly Elections) में वोटकटुआ पार्टी माने जाने वाली ये पार्टियां न होती तो नतीजा कुछ और होता. वह कौन से चेहरे थे जिन्होंने चुनाव को रोमांचक बना दिया और समीकरणों को बिगाड़ने का काम किया इस पर चर्चा अगले कुछ दिनों तक जारी रहने वाली है.

बिहार (Bihar Assembly Elections) का रोमांचक मुकाबला खत्म हो चुका है. राज्य में एक बार फिर एनडीए (NDA) सरकार बनाने जा रही है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की अगुआई में एनडीए (NDA)चुनावी मैदान में थी. दूसरी तरफ सबसे बड़ा गठबंधन था तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) की अगुआई में यूपीए (PA) का. कांटे की टक्कर थी, पूरे चुनाव के दरमियान तस्वीर साफ नहीं हो पा रही थी. आखिरी छड़ों तक मामला पेचीदा नज़र आ रहा था. इसकी बानगी दिखाई दी थी एजेंसियों के एक्ज़िट पोल (Exit Polls) में भी. हर एजेंसी का अलग दावा था अलग आंकड़ा था लेकिन एक बात हर सर्वे में सामान्य थी. हर सर्वे कह रहा था बिहार में सत्ता परिवर्तन हो रहा है. सर्वे सही साबित हुआ सत्ता परिवर्तन हुआ लेकिन राजद के खाते में फैसला नहीं गया बल्कि फायदा मिला भाजपा को.

बिहार में जैसे परिणाम आएं हैं ओवैसी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे लोग बड़े वोटकटवा साबित हुए हैं

भाजपा 20 सालों के बाद इतनी अधिक सीट प्राप्त करने में कामयाब हो गई. दूसरी ओर आखिरी दहलीज़ तक पहुंच कर भी राजद गठबंधन को हार का सामना करना पड़ गया. हालांकि राजद ने शानदार प्रदर्शन किया लेकिन उसकी साथी पार्टी कांग्रेस थोड़ा कमज़ोर साबित हो गई. चुनाव बहुत कड़ा रहा, आखिरी समय तक तस्वीर धुंधली ही रही.

अब हार पर विश्लषण हो रहा है तो लोग ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं ओवैसी को, लेकिन इसमें महज ओवैसी का ही योगदान नहीं है ओवैसी के अलावा भी लोग रहे हैं जिन्होंने इस पूरे चुनाव को दिलचस्प बना दिया है और उन्होंने ही एक तरीके से भाजपा गठबंधन की नैया भी पार लगा दी है. आइये जानते हैं वह कौन से प्रमुख चेहरे हैं जिन्होंने पूरे चुनाव को रंग दिया है.

ओवैसी-मायावती

मायावती की पार्टी बसपा ने ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. बसपा ने...

बिहार (Bihar Assembly Elections) का रोमांचक मुकाबला खत्म हो चुका है. राज्य में एक बार फिर एनडीए (NDA) सरकार बनाने जा रही है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की अगुआई में एनडीए (NDA)चुनावी मैदान में थी. दूसरी तरफ सबसे बड़ा गठबंधन था तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) की अगुआई में यूपीए (PA) का. कांटे की टक्कर थी, पूरे चुनाव के दरमियान तस्वीर साफ नहीं हो पा रही थी. आखिरी छड़ों तक मामला पेचीदा नज़र आ रहा था. इसकी बानगी दिखाई दी थी एजेंसियों के एक्ज़िट पोल (Exit Polls) में भी. हर एजेंसी का अलग दावा था अलग आंकड़ा था लेकिन एक बात हर सर्वे में सामान्य थी. हर सर्वे कह रहा था बिहार में सत्ता परिवर्तन हो रहा है. सर्वे सही साबित हुआ सत्ता परिवर्तन हुआ लेकिन राजद के खाते में फैसला नहीं गया बल्कि फायदा मिला भाजपा को.

बिहार में जैसे परिणाम आएं हैं ओवैसी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे लोग बड़े वोटकटवा साबित हुए हैं

भाजपा 20 सालों के बाद इतनी अधिक सीट प्राप्त करने में कामयाब हो गई. दूसरी ओर आखिरी दहलीज़ तक पहुंच कर भी राजद गठबंधन को हार का सामना करना पड़ गया. हालांकि राजद ने शानदार प्रदर्शन किया लेकिन उसकी साथी पार्टी कांग्रेस थोड़ा कमज़ोर साबित हो गई. चुनाव बहुत कड़ा रहा, आखिरी समय तक तस्वीर धुंधली ही रही.

अब हार पर विश्लषण हो रहा है तो लोग ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं ओवैसी को, लेकिन इसमें महज ओवैसी का ही योगदान नहीं है ओवैसी के अलावा भी लोग रहे हैं जिन्होंने इस पूरे चुनाव को दिलचस्प बना दिया है और उन्होंने ही एक तरीके से भाजपा गठबंधन की नैया भी पार लगा दी है. आइये जानते हैं वह कौन से प्रमुख चेहरे हैं जिन्होंने पूरे चुनाव को रंग दिया है.

ओवैसी-मायावती

मायावती की पार्टी बसपा ने ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. बसपा ने चुनाव में अपना पूरा दमखम दिखाया औऱ कई सीटों पर समीकरण ही बिगाड़ दिया. साथ ही ओवैसी की पार्टी ने कई सीटों पर खेल खेला और महागठबंधन को गहरी चोट दे दी. हालांकि बसपा के खाते में एक और ओवैसी के खाते में 5 सीट ज़रूर आई लेकिन इनकी मौजूदगी से दूसरी सीटों पर महागठबंधन को हार का सामना भी करना पड़ गया. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि मुस्लिम और यादव समीकरण को पूरी तरह से इस गठबंधन ने प्रभावित किया है अगर ये गठबंधन न होता तो चुनावी नतीजों की तस्वीर कुछ औऱ ही होती. 

उपेन्द्र कुशवाहा

उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी के खाते में भले ही कोई सीट न आई हो लेकिन उसके गठबंधन की भूमिका इस चुनाव में बेहद महत्वपूर्ण रही है और कई सीटों पर अच्छा खासा वोट हासिल कर महागठबंधन का गणित बिगाड़ा है. आरएलएसपी ने दिनारा, केसरिया सहित कई सीटों पर अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई. अगर कुशवाहा महागठबंधन में ही शामिल रहते तो नतीजा ज़रूर बदला हुआ दिखाई देता.

चिराग पासवान

एनडीए में भाजपा के साथी लेकिन जदयू के विरोधी चिराग पासवान ने सीट तो भले ही एक ही जीती लेकिन जदयू के सीटों में जितने भी नुकसान हुए हैं उसमें भरपूर योगदान रहा है चिराग पासवान का. चिराग ने जदयू को हर सीट पर चुनौती दी है जिससे जदयू की कमर पतली हो गई. अगर यही चिराग जदयू के साथ होते तो शायद नतीजा बिल्कुल एकतरफा हो जाने वाला था इस चुनाव को रोमांचक बनाने में चिराग का बड़ा योगदान है.   

अब जब पार्टियां अपने हार का आकलन करेंगी तो उसे कई जगहों की चूक नज़र आएगी लेकिन जो जनाधार है वह यही है कि फिलहाल नीतीश कुमार ही बिहार की सत्ता के मुखिया होंगें. हालांकि भाजपा के ज़्यादा सीट पाने से भाजपा से मुख्यमंत्री होने की दलीलें दी जा रही है लेकिन भाजपा कोई भी रिस्क लेने से बचना ही चाहती है इसलिए इसके आसार कम ही नज़र आ रहे हैं.

मुकाबला दिलचस्प हुआ नतीजा हैरान कर देने वाला आया, अब मशक्कत है सरकार बना लेने की, हालांकि एनडीए बहुमत के आंकड़े के बेहद करीब है इसलिए वह किसी भी विधायक को नाराज़ होने से हर कीमत पर बचाती हुयी नज़र आएगी. आगे क्या होगा? क्या नहीं होगा. इस पर नज़रें टिकी होगी. लेकिन ये चुनाव काफी समय तक याद रह जाने वाला चुनाव है.  

आखिरी समय तक लोगों की नज़रें चुनावी रूझानों और नतीजों पर टिकी रही, ऐसे में इन चार चेहरे जिनका ज़िक्र किया गया है उनकी भूमिका ने ही इस चुनाव को बेहतरीन रंग दिया है और बेहद रोमांचक चुनावी नतीजा देखने को मिला है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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