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बिहार की राजनीति में कुछ प्रिय चीज़े भी हैं! 'पुष्पम' को एक प्रशंसक का ख़त...

    • सर्वेश त्रिपाठी
    • Updated: 12 नवम्बर, 2020 11:10 AM
  • 12 नवम्बर, 2020 11:10 AM
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बिहार के विधानसभा चुनाव में इस बार एक नए राजनीतिक दल प्लुरल्स पार्टी (Plurals Party) का आगाज़ इस बार हुआ था. इसकी मुखिया पुष्पम प्रिया चौधरी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से लोक प्रशासन में मास्टर्स की डिग्री धारक है और खुद राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती है.

प्रिय पुष्पम प्रिया

सोशल मीडिया के इस युग में वर्चुअल दुनिया और असल दुनिया की हकीक़त में फर्क समझना भी जीवन के गूढ़ सत्य को समझने जैसा है. कल वाकई मैं आपके लिए बहुत दुखी था. फिल्मों में जैसा बिहार की पॉलिटिक्स में भदेसपना और गन्दगी दिखाया जाता है उसके उलट बिहार पॉलिटिक्स में आपका सॉफिस्टिकेटेड अवतरण न सिर्फ मुझे बल्कि कईयों को बहुत आकर्षित किया था. सच कहूं तो मैं किसी जगह आपके इंटरव्यू में फरफरूव्वा अंग्रेजी बोलने के अंदाज से ही आपका मुरीद हो गया था. बाकी आपकी 'प्लुरल्स पार्टी' (Plurals Party )के नाम में भी नवाचार और बहुलतावादी लोकतंत्र के नथुनों को फाड़ने वाले तेज इत्र की जगह फ्रेंच परफ्यूम की भीनी महक भी महसूस कर रहा था. उसके बाद फेसबुक से लेकर ट्विटर तक आपके दल उसके एजेंडे के बारे में जानकारी मिलती रही.

मुझे कल एक बात से और पीड़ा पहुंची की सोशल मीडिया पर कुछ लोग आप पर कटाक्ष कर रहे थे और आप पर हवा हवाई राजनीति करने का भी आरोप मढ़ रहे थे. पुष्पा जी 'कुछ तो लोग कहेंगे क्योंकि खलिहर लोगो का काम है कहना.' मेरे मरहूम वालिद साहब हमेशा कहते थे कि 'किसी अच्छी चीज़ के लिए प्रयास न करना सबसे बड़ा गुनाह है. एक और बड़ी बात अपने देश के वालिद साहब यानि कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कही थी कि लोग पहले आपका मजाक बनाएंगे.

फिर आप का रास्ता रोकेंगे और अंत में वे ही आपके फॉलोअर बन जाएंगे. याद रखना ये फॉलोअर ट्विटर या फेसबुकिया फॉलोअर न होके सच्ची मुच्ची वाले फॉलोअर होंगे.जो आपकी महंगी गाड़ी ,ग्लैमर या शक्ल पर लाइक कमेंट करने वाले न होकर राजनीति की शक्ल बदलने वाली उसे सही मायनों में घाघ और भ्रष्ट राजनीतिज्ञो के चंगुल से निकालकर बहुलतावादी समाज के दायरे तक पहुचानें की आपकी सोच के सच्चे फॉलोअर होंगे.

बिहार...

प्रिय पुष्पम प्रिया

सोशल मीडिया के इस युग में वर्चुअल दुनिया और असल दुनिया की हकीक़त में फर्क समझना भी जीवन के गूढ़ सत्य को समझने जैसा है. कल वाकई मैं आपके लिए बहुत दुखी था. फिल्मों में जैसा बिहार की पॉलिटिक्स में भदेसपना और गन्दगी दिखाया जाता है उसके उलट बिहार पॉलिटिक्स में आपका सॉफिस्टिकेटेड अवतरण न सिर्फ मुझे बल्कि कईयों को बहुत आकर्षित किया था. सच कहूं तो मैं किसी जगह आपके इंटरव्यू में फरफरूव्वा अंग्रेजी बोलने के अंदाज से ही आपका मुरीद हो गया था. बाकी आपकी 'प्लुरल्स पार्टी' (Plurals Party )के नाम में भी नवाचार और बहुलतावादी लोकतंत्र के नथुनों को फाड़ने वाले तेज इत्र की जगह फ्रेंच परफ्यूम की भीनी महक भी महसूस कर रहा था. उसके बाद फेसबुक से लेकर ट्विटर तक आपके दल उसके एजेंडे के बारे में जानकारी मिलती रही.

मुझे कल एक बात से और पीड़ा पहुंची की सोशल मीडिया पर कुछ लोग आप पर कटाक्ष कर रहे थे और आप पर हवा हवाई राजनीति करने का भी आरोप मढ़ रहे थे. पुष्पा जी 'कुछ तो लोग कहेंगे क्योंकि खलिहर लोगो का काम है कहना.' मेरे मरहूम वालिद साहब हमेशा कहते थे कि 'किसी अच्छी चीज़ के लिए प्रयास न करना सबसे बड़ा गुनाह है. एक और बड़ी बात अपने देश के वालिद साहब यानि कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कही थी कि लोग पहले आपका मजाक बनाएंगे.

फिर आप का रास्ता रोकेंगे और अंत में वे ही आपके फॉलोअर बन जाएंगे. याद रखना ये फॉलोअर ट्विटर या फेसबुकिया फॉलोअर न होके सच्ची मुच्ची वाले फॉलोअर होंगे.जो आपकी महंगी गाड़ी ,ग्लैमर या शक्ल पर लाइक कमेंट करने वाले न होकर राजनीति की शक्ल बदलने वाली उसे सही मायनों में घाघ और भ्रष्ट राजनीतिज्ञो के चंगुल से निकालकर बहुलतावादी समाज के दायरे तक पहुचानें की आपकी सोच के सच्चे फॉलोअर होंगे.

बिहार में जो धोखा पुष्पम प्रिया के साथ हुआ उसकी कल्पना शायद ही उन्होंने की हो

कल एक बात और बुरी लगी कई महिलाओं की टिप्पणी भी आपके शैली और वेशभूषा को लेकर रही. यह सही है कि आम तौर पर यही धारणा है कि जैसा देश वैसा भेष धारण करना चाहिए. लेकिन मेरे नज़रिए से यह कोई दमदार आलोचना नहीं थी. हो सकता है तुम्हारी डिफरेंट नेल पेंट देख कर उनमें ईर्ष्या जाग गई हो. इग्नोर इट पुष्पा! बाकी यह देश और समाज आपका ही है.

हर व्यक्ति की तरह आपको भी अपनी रुचि और सुविधा के लिहाज़ से अपनी ड्रेस चुनने का पूरा अधिकार है. सच कहूं तो मुझे आप काली ड्रेस में सफेद कपड़े वाले राजनीतिज्ञों से ज्यादा सच्ची दिख रही थी. बाकी तो यह राजनीति का मैदान है प्रत्यशियों के चयन में उनकी पढ़ाई लिखाई और योग्यता वैसे भी आज की राजनीति की बड़ी जरूरत है. आपने भी वही किया.

बाकी समय के साथ जैसे जैसे आपका जनता से सीधा संवाद होगा तुम्हे ख़ुद ब ख़ुद समझ आता जाएगा की लोकतंत्र और चुनावी राजनीति में कितने स्तर है. उम्मीद करता हूं कल जैसे जैसे बिहार की मतगणना आगे बढ़ रही थी वैसे वैसे आपकी राजनीति के प्रति समझ भी बढ़ी होगी. तुम्हारे ट्वीट और फेसबुक स्टेटस से तुम्हारे मनोव्यथा को समझ रहा था.

कई बूथों पर आप को एक भी वोट नहीं मिले जबकि आपका कहना है कि आपके सामने लोग मतदान कक्ष में आपसे वादा कर के गए थे. यही दुनिया का असल चेहरा है. मुझे उस समय बार बार 'मसरूर अनवर साहब' की एक ग़ज़ल की पंक्तियां याद आ रही थी आप भी सुनिए... ( जिसे गुलाम अली साहब ने अपनी आवाज़ से नवाज़ कर उसे अमर कर दिया है) कि...

नफरतों के तीर खा कर,

दोस्तों के शहर में,

हमने किस किस को पुकारा,

ये कहानी फिर सही

ख़ैर मुझे इस बात की खुशी है कि राजनीति के प्रति आपकी सोच सुलझी और समझ स्पष्ट है. आज के युवाओं में इसी सोच और चिंतन की सबसे बड़ी जरूरत है. युवाओं को यह समझना ही होगा कि कोई मसीहा कही भी बदलाव नहीं लाता है. खुद ही इस कीचड़ में उतरकर इस गन्दगी को साफ़ करना होगा. यह युवाओं को समझना होगा कि वे राजनीति को सेवा का माध्यम की तरह ले.

न कि कमाई और हैसियत बताने और बनाने के माध्यम की तरह ले. दुनियां को सही और सकारात्मक तरीके से युवा जोश और ऊर्जा ही बदल सकता है. पर यह जोश वैचारिकी की मजबूत जमीन पर स्थित होना चाहिए. वैसे भी हम जैसे इंसान जीवन के चार दशक बाद लोकतांत्रिक राजनीति के हर फंडे समझने के बाद इलेक्शन को भी आईपीएल की तरह ही लेते है.

यानि महीने भर धूम धड़ाका उसके बाद वही अपनी नोन,तेल लकड़ी वाली जिंदगी. लेकिन आपके राजनीति में आने के अंदाज और तरीके ने कोई संदेह नहीं युवाओं में राजनीति के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण तो पैदा ही किया है. इस चुनाव में यही आपकी विजय है. बाकी सीटों की संख्या मत प्रतिशत क्या है, सिर्फ आंकड़ा भर है.

जनता का आपमें विश्वास जमने भर की देर है यह भी आपके साथ हो जाएगा. बस ज़मीन पर उतारिए. इसी संकल्प को बनाए रखते हुए देश की माटी में अपना पसीना मिलने तो दीजिए. अभी आपके पास बहुत ऊर्जा और समय है. आपके और देश की राजनीति की उज्ज्वल कामना के साथ.

आपका एक शुभेच्छु

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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