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हॉरर मूवी देखना मानसिक विकृति है, इसमें आनंद कैसा?

    • पल्लवी विनोद
    • Updated: 11 मई, 2022 08:57 PM
  • 11 मई, 2022 08:53 PM
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हमारे आस पास ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या है जिनसे कोई भी हॉरर मूवी छूटती नहीं. भले ही इनको डर लगे. इनका गला सूखे ये कैंप उठें लेकिन इन्हें हॉरर देखना है तो बस देखना है. सवाल ये है कि इस तरह डरते डरते हॉरर देखना किस तरह की मानसिकता दर्शाता है?

मुझे अपनी सहेली का एक क़िस्सा याद आ रहा है. एक हॉरर फ़िल्म देखने के कुछ दिन बाद ही वो पहाड़ों पर छुट्टियां मनाने गई थी. वो जिस रिज़ॉर्ट में ठहरी थी, वो एक शांत पहाड़ पर बना हुआ था. लोग पहाड़ों पर इन्हीं शांति और सुकून के क्षण गुज़ारने जाते हैं लेकिन मेरी सहेली पर उस मूवी का इतना गहरा असर पड़ा था कि वो पांच दिन के प्रवास में सहज नहीं हो सकी. तेज हवा और किसी भी तरह की आवाज़ से उसे लगता था कि मानो 'कोई' है. ऊंचे पहाड़ और उनपर खड़े देवदार के पेड़ उसे भूतहा लग रहे थे. बहरहाल अब उसने हॉरर मूवी देखना एकदम बंद कर दिया है, लेकिन कुछ लोग इन परेशानियों के बाद भी इस तरह की फ़िल्मों को शौक़ से देख सकते हैं.

हॉरर फ़िल्में देखने वालों का एक बड़ा हिस्सा ये समझ ही नहीं पाता कि वो ऐसी फ़िल्मों को क्यों देखता है? ऐसी फ़िल्में जिसे देखने के बाद मन अशांत हो जाए. अंधेरे और अकेलेपन से डरने लगे. उस तरह की फ़िल्मों का हमारे ज़ेहन पर क्या असर पड़ता होगा? अक्सर हमने देखा है कि हॉरर देखने वालों का एक बड़ा वर्ग किशोर बच्चों का है. वो बच्चे जिन्हें दुनिया से सकारात्मकता सीखनी है वो भय के तिलिस्म में खो जाते हैं. घने जंगलों की ख़ूबसूरती को बदसूरती में बदलती ये फ़िल्में अपरोक्ष रूप से इंसान की सोच को प्रभावित करने लगती हैं. आखिर एक क्षत-विक्षत लाश को हिलते-डुलते देखना कौन सा सुख देता है? हॉरर के नाम पर भय पैदा करने के लिए जिस ढंग से किरदारों का मेकअप किया जाता है, उनकी स्‍मृति किसे आनंदित करती है?

ऐसे तमाम दर्शक हैं जो रोमांच का नाम देकर धड़ल्ले से हॉरर मूवी देखते हैं

ऐसे बच्चे अपनी पूरी ज़िंदगी एक डर के साथ गुज़ारने को मजबूर हो जाते हैं. बचपन में छोटी से छोटी बुरी घटना का असर हमारे पूरे जीवन पर पड़ता है तो एक डरा सहमा बच्चा आगे चलकर निर्भीक...

मुझे अपनी सहेली का एक क़िस्सा याद आ रहा है. एक हॉरर फ़िल्म देखने के कुछ दिन बाद ही वो पहाड़ों पर छुट्टियां मनाने गई थी. वो जिस रिज़ॉर्ट में ठहरी थी, वो एक शांत पहाड़ पर बना हुआ था. लोग पहाड़ों पर इन्हीं शांति और सुकून के क्षण गुज़ारने जाते हैं लेकिन मेरी सहेली पर उस मूवी का इतना गहरा असर पड़ा था कि वो पांच दिन के प्रवास में सहज नहीं हो सकी. तेज हवा और किसी भी तरह की आवाज़ से उसे लगता था कि मानो 'कोई' है. ऊंचे पहाड़ और उनपर खड़े देवदार के पेड़ उसे भूतहा लग रहे थे. बहरहाल अब उसने हॉरर मूवी देखना एकदम बंद कर दिया है, लेकिन कुछ लोग इन परेशानियों के बाद भी इस तरह की फ़िल्मों को शौक़ से देख सकते हैं.

हॉरर फ़िल्में देखने वालों का एक बड़ा हिस्सा ये समझ ही नहीं पाता कि वो ऐसी फ़िल्मों को क्यों देखता है? ऐसी फ़िल्में जिसे देखने के बाद मन अशांत हो जाए. अंधेरे और अकेलेपन से डरने लगे. उस तरह की फ़िल्मों का हमारे ज़ेहन पर क्या असर पड़ता होगा? अक्सर हमने देखा है कि हॉरर देखने वालों का एक बड़ा वर्ग किशोर बच्चों का है. वो बच्चे जिन्हें दुनिया से सकारात्मकता सीखनी है वो भय के तिलिस्म में खो जाते हैं. घने जंगलों की ख़ूबसूरती को बदसूरती में बदलती ये फ़िल्में अपरोक्ष रूप से इंसान की सोच को प्रभावित करने लगती हैं. आखिर एक क्षत-विक्षत लाश को हिलते-डुलते देखना कौन सा सुख देता है? हॉरर के नाम पर भय पैदा करने के लिए जिस ढंग से किरदारों का मेकअप किया जाता है, उनकी स्‍मृति किसे आनंदित करती है?

ऐसे तमाम दर्शक हैं जो रोमांच का नाम देकर धड़ल्ले से हॉरर मूवी देखते हैं

ऐसे बच्चे अपनी पूरी ज़िंदगी एक डर के साथ गुज़ारने को मजबूर हो जाते हैं. बचपन में छोटी से छोटी बुरी घटना का असर हमारे पूरे जीवन पर पड़ता है तो एक डरा सहमा बच्चा आगे चलकर निर्भीक इंसान में कैसे बदल पाएगा. हमारे आस-पास ऐसे बहुत से लोग हैं जिनका बचपन का डर अब तक उनपर हावी है.ऐसे मामलों की सूक्ष्मता से पड़ताल की जाए तो आधे से ज़्यादा मामले किसी डरावनी फ़िल्म को देखने के बाद ही शुरू होते हैं.

आप जितनी देर डरावनी मूवी देख रहे होते हैं आपकी धड़कन की लय घटती-बढ़ती रहती है. उसे देखने के बाद भी वो कहानी आपके दिमाग़ में लगातार चलती रहती है. आप सुनसान जगहों पर उस तरह की प्रक्रियाओं की अनुभूति करते हैं जिन्हें आपने मूवी में देखा था. एक डर के साथ जीना आपको मानसिक रूप से बहुत प्रभावित करता है. कुछ लोगों के अंदर इतना साहस होता है कि स्क्रीन पर देखे गए दृश्यों का असर उन पर नहीं होता है लेकिन कुछ लोग उसे देखते समय भी सहज नहीं रह पाते.

मूवी देखने के बाद अकेले सो नहीं पाते. बल्कि वो इस तरह के डर को देखते समय भी अपनी आँख बंद कर लेते हैं. ऐसे लोगों का हॉरर मूवी देखना एक विकृति के अलावा कुछ नहीं है. कोई भी ऐसी चीज़ जिसे करने में आप शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान हैं उसे नहीं करनी चाहिए. कुछ लोग जिस डर को आनंद का नाम देते हैं असल में वो उन्हें संत्रास के अलावा कुछ भी नहीं देता.

दुनिया में मानसिक बीमारियों को भूत-प्रेत और जिन्न का नाम देने वाले लोगों की कमी नहीं है और ये फ़िल्में इस तरह के अंधविश्वास को और बढ़ावा देती हैं. कुछ नया दिखाने के नाम पर इन फ़िल्मों में जिस तरह की हिंसा को परोसा जा रहा है उसे देखकर एक आम इंसान नकारात्मक और मानसिक रूप से बीमार भी हो सकता है. इसलिए मनोरंजन के इस रूप का आनंद बहुत सोच समझ कर ही लीजिएगा, कहीं ये आपके स्वास्थ्य पर भारी न पड़ जाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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