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Scam 1992: शॉर्टकट मत लेना बस यही हर्षद मेहता पर बनी वेब सीरीज का सार है

    • अंकिता जैन
    • Updated: 05 नवम्बर, 2020 10:33 PM
  • 05 नवम्बर, 2020 10:24 PM
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Scam 1992 अदाकारी, निर्देशन, पटकथा हर मामले में कसी हुई सीरीज़ (Web Series). तकनीकी और आंतरिक जानकारी के साथ बना बेहतरीन सिनेमा पीस, जो देखा-समझा जाना चाहिए. और यह गांठ बांध लेनी चाहिए कि बईमानों के साथ मिलकर बेईमानी के रास्ते से ऊंचे उठोगे तो बुरी तरह गिरने की चांसेस भी उसी शॉर्टकट से होकर गुज़रेंगे जिनसे चढ़े थे.

Scam 1992 Review : बचपन से सिखाया गया, 'बड़े लोगन की जित्ती दुश्मनी बुरी, उत्ती ही दोस्ती बुरी'. मेरे ख़याल में यह मुहावरा मेरे जैसे मिडिल क्लास फ़ैमिली के हर उस बच्चे को सिखाया समझाया गया होगा जिनके पिता किसी सरकारी नौकरी में होंगे. ईमानदारी से जीवन जीने में विश्वास रखते होंगे. ख़ुद चवन्नी की रिश्वत ना लेते होंगे. जिनके घरों में माताएं रसोई के डब्बों में पैसों की छिपी बचत करती होंगी. अपनी साड़ियों और पति की शर्ट्स से बच्चों के लिए कपड़े सी देती होंगी. कुल मिलाकर जो आदमी सिस्टम में रहकर सिस्टम की असलियत जानता हो लेकिन अपनी ईमानदारी की वजह से कभी प्रत्यक्ष रूप से उसका हिस्सा ना बना हो, ऐसा व्यक्ति बदलते दौर में पैदा हुए अपने बच्चों को यही सिखाता है कि बेटा अमीर बनने के लिए कभी बड़े लोगों का सहारा मत लेना.

वेब सीरीज स्कैम 1992 एक परफेक्ट एंटरटेनमेंट देने वाली वेब सीरीज है

शॉर्टकट मत लेना, यहां बड़े लोग मतलब नेता, या वर्षों से मार्किट में लगे ऐसे लोग जो सरकारी ना होते हुए भी अब सरकार का अभिन्न अंग बन चुके हैं. Scam1992 एक बेहतरीन सीरीज़ है यही समझने के लिए यदि आप मार्केट के लूपहोल्स, सरकारी व्यवस्था के लूपहोल्स का इस्तेमाल करके, जिनका इस्तेमाल असल में पहले से कई लोग कर रहे हैं, लेकिन वे अब उस बाज़ार के मालिक बन चुके हैं, वहां यदि आप भी इन्हीं लूपहोल्स का इस्तेमाल करके तेज़ी से ऊंचे उठने के सपने देख रहे हैं तो आप बिना 'बड़े लोगों' के सहारे के नहीं उठ सकते.

और यदि आप उनका सहारा ले रहे हैं तो चोरी पकड़े जाने पर आपको ही बली का बकरा बनाया जाएगा. इसमें ना विदेशी संस्थाएं फसेंगी ना देसी ठेकेदार, फंसेगा वो जिसके कंधे पर चढ़कर बहुत लोग ऊपर उठे. हर्षद मेहता की तरह. हर्षद मेहता के पास दिमाग था, लेकिन वो कहते हैं...

Scam 1992 Review : बचपन से सिखाया गया, 'बड़े लोगन की जित्ती दुश्मनी बुरी, उत्ती ही दोस्ती बुरी'. मेरे ख़याल में यह मुहावरा मेरे जैसे मिडिल क्लास फ़ैमिली के हर उस बच्चे को सिखाया समझाया गया होगा जिनके पिता किसी सरकारी नौकरी में होंगे. ईमानदारी से जीवन जीने में विश्वास रखते होंगे. ख़ुद चवन्नी की रिश्वत ना लेते होंगे. जिनके घरों में माताएं रसोई के डब्बों में पैसों की छिपी बचत करती होंगी. अपनी साड़ियों और पति की शर्ट्स से बच्चों के लिए कपड़े सी देती होंगी. कुल मिलाकर जो आदमी सिस्टम में रहकर सिस्टम की असलियत जानता हो लेकिन अपनी ईमानदारी की वजह से कभी प्रत्यक्ष रूप से उसका हिस्सा ना बना हो, ऐसा व्यक्ति बदलते दौर में पैदा हुए अपने बच्चों को यही सिखाता है कि बेटा अमीर बनने के लिए कभी बड़े लोगों का सहारा मत लेना.

वेब सीरीज स्कैम 1992 एक परफेक्ट एंटरटेनमेंट देने वाली वेब सीरीज है

शॉर्टकट मत लेना, यहां बड़े लोग मतलब नेता, या वर्षों से मार्किट में लगे ऐसे लोग जो सरकारी ना होते हुए भी अब सरकार का अभिन्न अंग बन चुके हैं. Scam1992 एक बेहतरीन सीरीज़ है यही समझने के लिए यदि आप मार्केट के लूपहोल्स, सरकारी व्यवस्था के लूपहोल्स का इस्तेमाल करके, जिनका इस्तेमाल असल में पहले से कई लोग कर रहे हैं, लेकिन वे अब उस बाज़ार के मालिक बन चुके हैं, वहां यदि आप भी इन्हीं लूपहोल्स का इस्तेमाल करके तेज़ी से ऊंचे उठने के सपने देख रहे हैं तो आप बिना 'बड़े लोगों' के सहारे के नहीं उठ सकते.

और यदि आप उनका सहारा ले रहे हैं तो चोरी पकड़े जाने पर आपको ही बली का बकरा बनाया जाएगा. इसमें ना विदेशी संस्थाएं फसेंगी ना देसी ठेकेदार, फंसेगा वो जिसके कंधे पर चढ़कर बहुत लोग ऊपर उठे. हर्षद मेहता की तरह. हर्षद मेहता के पास दिमाग था, लेकिन वो कहते हैं ना कि जिसकी बुद्धि तेज़ हो उसे सही इस्तेमाल करना सिखाया जाना बहुत ज़रूरी है वरना वो उल्टा लग गया तो सब बर्बाद कर देता है.

इनके साथ यही हुआ. ईमानदारी से और सही काम में यदि उनका दिमाग लगता तो उन्होंने देश का और अपना कुछ भला किया होता. ख़ैर भला तो अब भी किया कि सोती हुई RBI को जगाया लेकिन सभी गुनेहगार तब भी नहीं पकड़े गए क्योंकि CBI तब भी सरकारी तोता ही थी. सुचिता दलाल को जानना सुखद रहा. एक महिला पत्रकार जो अकेले सिस्टम से भिड़ने के बारे में न सिर्फ सोचती है बल्कि करती भी है.

अदाकारी, निर्देशन, पटकथा हर मामले में कसी हुई सीरीज़. तकनीकी और आंतरिक जानकारी के साथ बना बेहतरीन सिनेमा पीस, जो देखा-समझा जाना चाहिए. और यह गांठ बांध लेनी चाहिए कि बईमानों के साथ मिलकर बेईमानी के रास्ते से ऊंचे उठोगे तो बुरी तरह गिरने की चांसेस भी उसी शॉर्टकट से होकर गुज़रेंगे जिनसे चढ़े थे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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