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हमारे हर अहसास में लता मंगेशकर हमारे साथ हैं!

    • सर्वेश त्रिपाठी
    • Updated: 06 फरवरी, 2022 06:11 PM
  • 06 फरवरी, 2022 06:11 PM
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लता मंगेशकर की गायकी और तकनीकी पर बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है. ऐसा कुछ नया नहीं जो मेरी कलम उनके विषय में लिख सके. सिवाय उन्हें प्रणाम करने के! अलविदा लता दीदी. दिल में तो आपको हम सब बसा ही चुके है.

न कोई बंधन जगत का

कोई पहरा ना दीवार...दिल में तुझे बिठा कर!

अभी जब मैं लता जी की स्मृति में कुछ पंक्तियां लिखने की सोच ही रहा था तभी ठीक उसी वक्त मेरे मोहल्ले के किसी कोने से कोई फेरी वाला अपने ठेले पर फिल्म 'फकीरा' का लता जी का गाया यह गाना बजाकर अपने किसी सामान का प्रमोशन कर रहा था. गाने के पंक्तियों से, मेरे मन में आ रहे भावों और फेरीवाले के काम में कोई साम्यता नहीं सिवाए इसके कि यह लता की आवाज़ थी और लता के स्वर से हम सब कनेक्ट हो रहे थे. हम सब को रुचि के स्तर पर जोड़ने वाली यह आवाज़ अब सदा के लिए शांत हो गई है. प्रख्यात गायिका और भारत रत्न स्वर कोकिला के विरुद् से प्रसिद्ध लता मंगेशकर किसी परिचय की मोहताज नहीं है और न मेरी कोई हैसियत ही है कि मैं उनकी गायिकी पर कुछ लिख सकूं.

लता मंगेशकर की आवाज सदा के लिए शांत हो गयी है ऐसे में फैंस भी नम आंखों से लता जी को याद कर रहे हैं

मात्र बारह वर्ष की उम्र से फिल्मों के लिए गाना शुरू किया था. आरंभ में उन्होंने बतौर बाल कलाकार कुछ फिल्मों में काम भी किए लेकिन अंततः उन्होंने पार्श्वगायन को ही अपने करियर के लिए चुना वो भी उस समय जब शमशाद बेगम और नूरजहां के गायन का मुरीद पूरा बॉलीवुड था. लगभग साठ वर्ष तक उन्होंने पार्श्वगायन के क्षेत्र में अपनी बहन आशा भोंसले के साथ एक छत्र राज्य किया.

हर मूड हर मौके के लिए उन्होंने गायन किया. एक कैशोर्य नायिका की प्रेमिल उच्छवास से लेकर निर्गुण और न्यारे की उपासना तक उनकी गायकी पसरी पड़ी है. लेकिन एक आम भारतीय जिसे संगीत की कोई परख न हो वह लता से कैसे जुड़ा था यह जानना बहुत रोचक है. लता मंगेशकर को हर उम्र हर पीढ़ी के श्रोताओं का प्यार मिला.

भारत के लोकजीवन में...

न कोई बंधन जगत का

कोई पहरा ना दीवार...दिल में तुझे बिठा कर!

अभी जब मैं लता जी की स्मृति में कुछ पंक्तियां लिखने की सोच ही रहा था तभी ठीक उसी वक्त मेरे मोहल्ले के किसी कोने से कोई फेरी वाला अपने ठेले पर फिल्म 'फकीरा' का लता जी का गाया यह गाना बजाकर अपने किसी सामान का प्रमोशन कर रहा था. गाने के पंक्तियों से, मेरे मन में आ रहे भावों और फेरीवाले के काम में कोई साम्यता नहीं सिवाए इसके कि यह लता की आवाज़ थी और लता के स्वर से हम सब कनेक्ट हो रहे थे. हम सब को रुचि के स्तर पर जोड़ने वाली यह आवाज़ अब सदा के लिए शांत हो गई है. प्रख्यात गायिका और भारत रत्न स्वर कोकिला के विरुद् से प्रसिद्ध लता मंगेशकर किसी परिचय की मोहताज नहीं है और न मेरी कोई हैसियत ही है कि मैं उनकी गायिकी पर कुछ लिख सकूं.

लता मंगेशकर की आवाज सदा के लिए शांत हो गयी है ऐसे में फैंस भी नम आंखों से लता जी को याद कर रहे हैं

मात्र बारह वर्ष की उम्र से फिल्मों के लिए गाना शुरू किया था. आरंभ में उन्होंने बतौर बाल कलाकार कुछ फिल्मों में काम भी किए लेकिन अंततः उन्होंने पार्श्वगायन को ही अपने करियर के लिए चुना वो भी उस समय जब शमशाद बेगम और नूरजहां के गायन का मुरीद पूरा बॉलीवुड था. लगभग साठ वर्ष तक उन्होंने पार्श्वगायन के क्षेत्र में अपनी बहन आशा भोंसले के साथ एक छत्र राज्य किया.

हर मूड हर मौके के लिए उन्होंने गायन किया. एक कैशोर्य नायिका की प्रेमिल उच्छवास से लेकर निर्गुण और न्यारे की उपासना तक उनकी गायकी पसरी पड़ी है. लेकिन एक आम भारतीय जिसे संगीत की कोई परख न हो वह लता से कैसे जुड़ा था यह जानना बहुत रोचक है. लता मंगेशकर को हर उम्र हर पीढ़ी के श्रोताओं का प्यार मिला.

भारत के लोकजीवन में फिल्म संगीत की क्या भूमिका ये हम सब जानते हैं. अपने जीवन काल में पार्श्वगायन के क्षेत्र में किंवदंती बन चुकी लता की लोकप्रियता हिंदी भाषी क्षेत्र से भी परे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में थी. शायद ही कोई पार्श्वगायिका हो जिसके गाने भारत के तमाम क्षेत्रों और अंचलों में एक साथ गाए जा रहे हो गुनगुनाए जा रहे हो.

शायद ही कोई ऐसा भाव या क्षण हो जिस पर गुनगुनाने के लिए लता की आवाज़ में गया कोई गाना न हो. न विश्वास हो तो कोई भी एक शब्द या भाव ज़ेहन में खोजिए और उस पर कोई बढ़िया गाना खोजिये. आप की खोज अंततः लता के गाए किसी पुराने गाने पर ही सन्तुष्ट होगी तभी रुकेगी.

लता मंगेशकर 92 साल की थी लेकिन वह सबके लिए लता ताई या लता दीदी थी. भारत का शायद ही कोई सम्मान या पुरुस्कार रहा हो जो उनसे सम्मानित न हुआ हो. लगभग 30 भाषाओं और रिकॉर्ड तीस हजार फिल्मी और गैर फिल्मी गानों को स्वर देने वाली असली भारत रत्न थी वह.

अस्सी के दशक में जन्मी हमारी पीढ़ी ने शहरों में फिल्म और उसके संगीत को दूरदर्शन पर प्रसारित फीचर फिल्मों और फिल्मी गाने पर आधारित कार्यक्रम चित्रहार व रंगोली से सुना देखा और समझा. इसी प्रकार सुदूर गांवों तक किसी नुक्कड़ पर चाय या नाई की दुकान में चमड़े के खोल में सजे रेडियों पर प्रसारित विविध भारती ने लता की आवाज़ को हर घर में गूंजा दिया था.

हर शादी ब्याह में डेक पर बजने वाले गाने या शादी के वीडियो रिकॉर्डिंग में मिक्स किए गाने लगभग हर गाने उन्हीं की आवाज़ में ही तो होते थे. बचपन की बात है. बहुत छोटा था शायद नौ या दस वर्षों का . एक बार स्कूल के एक साथी ने किसी परिचर्चा के दौरान बताया कि, जानते हो लता मंगेशकर का गला अमेरिका वाले मांग रहे हैं! वहां के वैज्ञानिक उनकी सुरीली आवाज़ के राज को जानने के लिए उस पर प्रयोग करेंगे. 

मेरे लिए यह नई ख़बर थी लेकिन लता को उनकी आवाज़ को और उससे बढ़कर उनकी लोकप्रियता और उनकी कीमत को समझने का एक अवसर था. इसी प्रकार 'ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी' वाले उनके गाए गाने पर नेहरू के रोने की कहानी भी लता के स्वर की कीमत को बखानती आज भी हर व्यक्ति के ज़ेहन के किसी कोने में पड़ी होगी.

ये सब किस्से ही होते हैं जो दंतकथाओं के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक किसी के व्यक्तित्व और कृतित्व को हस्तांतरित करता है और जिनसे लोकमानस किसी व्यक्ति को लोकप्रिय बनाता है उसे अपनी स्मृतियों में संजोता है और अपना बनाए रखता है. पिछले बीस वर्षों में लता जी ने फिल्मों में गाना लगभग छोड़ ही दिया था.

फिल्म दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे में काजोल के ऊपर फिल्माया गया गाना 'न जाने मेरे दिल को क्या हो गया' और फिल्म वीर जारा में प्रिटी जिंटा के लिए 'दो पल रुका ख्वाबों का कारवां" पार्श्वगायन की दुनिया में उनके द्वारा गाये हुए अंतिम गानों में शुमार हैं. यह व्यथित करने वाला है कि अब हम लता जी को सुन तो पाएंगे पर फिर कभी देख नहीं पाएंगे.

लता मंगेशकर की गायकी और तकनीकी पर बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है. ऐसा कुछ नया नहीं जो मेरी कलम उनके विषय में लिख सके. सिवाय उन्हें प्रणाम करने के! अलविदा लता दीदी. दिल में तो आपको हम सब बसा ही चुके हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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