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अलविदा दीदी: 80 साल की सुर साधना ने बनाया हर उम्र वालों को दीवाना, 1000 फिल्में, 50,000 गाने

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 06 फरवरी, 2022 12:42 PM
  • 06 फरवरी, 2022 12:42 PM
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Lata Mangeshkar Death: भारत रत्न, स्वर कोकिला, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गईं. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 92 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली है. बीते 8 जनवरी को उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी.

''नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा; मेरी आवाज़ ही, पहचान है; गर याद रहे''...फिल्म 'किनारा' के इस गाने को अपनी आवाज देने वाली सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गई हैं. लेकिन उन्होंने सिर्फ अपनी देह छोड़ी है. उनकी आवाज हमेशा के लिए अमर हो गई है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हर किसी के कानों में ऐसी ही गूंजती रहेगी. उसके मन को सुकून देती रहेगी. देखा जाए तो एक इंसानी शरीर को जितनी सांसें मिलती हैं, उतनी ही लता दीदी को मिली थीं. लेकिन अपनी सांस का हर कतरा-कतरा कैसे सुर, संगीत, संसार, समाज और परिवार के लिए उपयोग किया जा सकता है, ये लता मंगेशकर से सीखा जाना चाहिए. महज 13 साल की उम्र में सिर से पिता का साया हटने के बाद उन्होंने जिस तरह से खुद को दरकिनार करके परिवार को पाला, 80 साल तक जिस तरह से सुर साधना की और जिस ईमानदारी के साथ अपने पेशे में बनी रहीं, इसकी बानगी समाज में विरले ही देखने को मिलती है.

पिछले दो साल के दौरान कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में जमकर तांडव मचाया है. दूसरी लहर के दौरान तो हमारे आसपास इतने लोगों की जानें गईं कि इंसानियत भी सहम कर रहने लगी. क्या आम क्या खास, बड़ी से बड़ी हस्तियां इसकी चपेट में आई, लेकिन किसे पता था कि तीसरी लहर हमसे हमारा अमूल्य रत्न छीन ले जाएगी. बताया जा रहा है कि लता जी की कोरोना रिपोर्ट 8 जनवरी को पॉजिटिव आई थी. इसके बाद उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया. उन्हें कोरोना के साथ निमोनिया भी हो गया था. वो 29 दिनों तक जिंदगी की जंग लड़ती रहीं. पूरे देश में दुआओं का दौर जारी रहा, लेकिन जिस दिन सुर की देवी सरस्वती की आराधना में हम लगे हुए थे, उसी दिन काल हमें धोखा देकर हमसे हमेशा के लिए हमारी स्वर कोकिला को छीन ले गया. 92 साल की आयु में अपना देह त्यागने वाली लताजी त्याग, तपस्या, संघर्ष और साधना की एक बड़ी मिसाल थीं.

''नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा; मेरी आवाज़ ही, पहचान है; गर याद रहे''...फिल्म 'किनारा' के इस गाने को अपनी आवाज देने वाली सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गई हैं. लेकिन उन्होंने सिर्फ अपनी देह छोड़ी है. उनकी आवाज हमेशा के लिए अमर हो गई है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हर किसी के कानों में ऐसी ही गूंजती रहेगी. उसके मन को सुकून देती रहेगी. देखा जाए तो एक इंसानी शरीर को जितनी सांसें मिलती हैं, उतनी ही लता दीदी को मिली थीं. लेकिन अपनी सांस का हर कतरा-कतरा कैसे सुर, संगीत, संसार, समाज और परिवार के लिए उपयोग किया जा सकता है, ये लता मंगेशकर से सीखा जाना चाहिए. महज 13 साल की उम्र में सिर से पिता का साया हटने के बाद उन्होंने जिस तरह से खुद को दरकिनार करके परिवार को पाला, 80 साल तक जिस तरह से सुर साधना की और जिस ईमानदारी के साथ अपने पेशे में बनी रहीं, इसकी बानगी समाज में विरले ही देखने को मिलती है.

पिछले दो साल के दौरान कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में जमकर तांडव मचाया है. दूसरी लहर के दौरान तो हमारे आसपास इतने लोगों की जानें गईं कि इंसानियत भी सहम कर रहने लगी. क्या आम क्या खास, बड़ी से बड़ी हस्तियां इसकी चपेट में आई, लेकिन किसे पता था कि तीसरी लहर हमसे हमारा अमूल्य रत्न छीन ले जाएगी. बताया जा रहा है कि लता जी की कोरोना रिपोर्ट 8 जनवरी को पॉजिटिव आई थी. इसके बाद उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया. उन्हें कोरोना के साथ निमोनिया भी हो गया था. वो 29 दिनों तक जिंदगी की जंग लड़ती रहीं. पूरे देश में दुआओं का दौर जारी रहा, लेकिन जिस दिन सुर की देवी सरस्वती की आराधना में हम लगे हुए थे, उसी दिन काल हमें धोखा देकर हमसे हमेशा के लिए हमारी स्वर कोकिला को छीन ले गया. 92 साल की आयु में अपना देह त्यागने वाली लताजी त्याग, तपस्या, संघर्ष और साधना की एक बड़ी मिसाल थीं.

खेलने की उम्र में परिवार की जिम्मेदारी उठाई

मध्य प्रदेश के इंदौर में 28 सितंबर 1929 को पैदा हुई लता मंगेशकर के पिता पं. दीनानाथ मंगेशकर संगीत की दुनिया के जाने पहचाने नाम थे. वो मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे. लताजी ने अपने पिता से ही संगीत की शिक्षा ली थी. लेकिन 13 साल की उम्र में ही उनके सिर से पिता का साया हट गया. पं. दीनानाथ मंगेशर का निधन हो गया. परिवार में मां के अलावा चार भाई-बहनों आशा भोसले, उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर, हृदयनाथ मंगेशकर की जिम्मेदारी उम्र में सबसे बड़ी लताजी पर आ गई. जिस उम्र में बच्चे खेलते हैं, उसमें उन्होंने परिवार के जीवकोपार्जन के लिए काम करना शुरू कर दिया. चूंकि संगीत और रंगमंच विरासत में मिला था, इसलिए उसमें काम करना उनके लिए सहज था. इसलिए उन्होंने अभिनय और गायन शुरू कर दिया. साल 1942 में रिलीज हुई मराठी फिल्म 'पहली मंगला गौड़' के लिए उन्होंने अपना पहला गाना गाया था. इसी फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया था. हालांकि, अभिनय में उनका मन नहीं रमा तो गायन पर फोकस कर लिया.

शादी नहीं की, क्योंकि भाई-बहनों की चिंता थी

सभी जानते हैं कि लता मंगेशकर ने कभी शादी नहीं की थी. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह उनका परिवार था. अपने परिवार के पालन-पोषण में वो इतनी व्यस्त रहीं कि उनको शादी का कभी ख्याल ही नहीं आया. कई बार रिश्ते आए, लेकिन जिम्मेदारियों ने उनसे जुड़ने नहीं दिया. एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद कहा था, ''पिता जी के जाने के बाद घर के सभी सदस्यों की ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गई थी. इस वजह से कई बार शादी का ख़्याल आता भी तो उस पर अमल नहीं कर सकती थी. बेहद कम उम्र में ही मैं काम करने लगी थी. बहुत ज़्यादा काम मेरे पास रहता था. यदि मैं शादी कर लेती तो मुझे अपनी जिम्मेदारियों को छोड़कर दूसरे के घर जाना पड़ता. इसलिए जब भी शादी का रिश्ता आया, मैंने मना कर दिया.'' लताजी की ही देन है कि उनकी बहन आशा भोसले फिल्म इंडस्ट्री में इतनी कामयाब गायिका बन पाई हैं. उनकी बहन उषा मंगेशकर ने भी मराठी और हिंदी फिल्मों के लिए गाने गाए हैं. उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर जाने-माने म्युजिक डायरेक्टर हैं.

80 साल की सुर साधना, शायद ही टूटे रिकॉर्ड

92 साल की उम्र में आखिरी सांस लेने वाली लता मंगेशकर ने 8 दशक तक सुर साधना की है. इन 80 वर्षों के दौरान उन्होंने करीब 20 भारतीय भाषाओं में 50 हजार से अधिक गाने गाए हैं. यह किसी भी गायक के लिए एक रिकॉर्ड है. इसके लिए साल 1974 में उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ था, तब उन्होंने 25 हजार से ज्यादा गाने रिकॉर्ड कर लिए थे. इतना ही नहीं लता जी ने करीब 1000 से ज्यादा फिल्मों में अपनी आवाज दी है. भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की इतिहास में एक दौर ऐसा भी था, जब लता मंगेशकर के गानों के बिना फिल्में बनती ही नहीं थी. उनकी आवाज फिल्म की सफलता की गारंटी हुआ करती थी. जैसे आज के दौर में कंटेंट किंग है, उसी तरह उस दौर में लताजी क्वीन हुआ करती थीं. हालांकि, बाद में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से गाना कम कर दिया था. साल 2001 में उनकी संगीत साधना को देखते हुए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा गया. वो पद्म विभूषण, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के सम्मान से भी सम्मानित हो चुकी थीं. उनके नाम कई नेशनल फिल्म अवॉर्ड और फिल्म फेयर अवॉर्ड भी दर्ज हैं. अब लता दीदी नहीं रहीं, लेकिन उनकी आवाज में ये शब्द हमेशा गूंजते रहेंगे...

तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे

हां तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे

जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे

संग संग तुम भी गुनगुनाओगे

हां तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे

हो तुम मुझे यूं...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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