• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

Laxmii और अक्षय कुमार के विरोध ने राजनीति के सभी धड़ों को एक कर दिया

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 13 नवम्बर, 2020 02:52 PM
  • 13 नवम्बर, 2020 02:52 PM
offline
लंबे इंतजार और तमाम तरह के विवादों के बाद अक्षय कुमार (Akshay Kumar) की फिल्म लक्ष्मी (Laxmii) फैंस के सामने हैं. फिल्म ने चूंकि सुर्खियां खूब बटोरीं थीं लेकिन अब जब फिल्म आई है तो लग रहा है कि इसके जरिये अक्षय कुमार ने सिर्फ और सिर्फ जनता का टाइम वेस्ट किया है.

इस बात में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि अक्षय कुमार (Akshay Kumar) एक बेहतरीन एक्टर हैं. लेकिन एक बेहतरीन एक्टर हर बार दर्शक की थाली में कुछ उम्दा ही परोसे ये बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं. गलतियां हो जाती हैं और गलती अगर 'लक्ष्मी' (Laxmii) हो तो तमाम तरह के संवादों या किसी भी प्रकार की वार्ता पर पूर्णतः विराम लग जाता है. अक्षय कुमार की बहुचर्चित फ़िल्म लक्ष्मी को देखते हुए ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि ये इस दौर की नहीं बल्कि इस पूरी सदी की सबसे घटिया फ़िल्म है. 2 घंटे 20 मिनट की इस बकवास को देखते हुए ऐसे तमाम मौके आएंगे जब दर्शक फ़िल्म में किसी भी तरह का लॉजिक तलाश करेगा लेकिन चूंकि फ़िल्म काल्पनिक है जिसका किसी भी जीवित मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है तो ये लॉजिक एक दर्शक के रूप में हम शायद ही कभी हासिल कर पाएं. अक्षय कुमार ने कुछ तो प्रोड्यूस किया है मगर क्या किया है यदि सवाल इसपर हो तो इसका जवाब शायद ही अक्षय के पास हो.

अक्षय ने अपनी फिल्म के जरिये दर्शकों को सिर्फ और सिर्फ मायूस किया है

ऐसा क्यों

एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते हमें सवाल पूछने का पूरा अधिकार है. साथ ही ये सवाल लाजमी भी है. कोई भी हमसे पूछ सकता है कि आखिर हम इस अंदाज में लक्ष्मी की बुराई क्यों कर रहे हैं? तो अगर इस सवाल का सीधा जवाब हमें देना हो तो हम केवल इतना कहेंगे कि फ़िल्म में हर वो चीज कॉपी की गई जो तमिल भाषा में बनी कंचना में थी.

हम आगे कुछ और बताएं उससे पहले हमारे लिए ये समझना बहुत ज़रूरी है कि अगर कोई चीज़ तमिल में अच्छी हो तो ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि जब उसका मेकओवर हो और वो हिंदी में बने तो वो अच्छी हो. अक्षय कुमार की फ़िल्म लक्ष्मी का मामला भी ऐसा ही है.

इस फ़िल्म में वो तमाम बातें हैं जिन्हें हिंदी ऑडिएंस शायद ही कभी...

इस बात में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि अक्षय कुमार (Akshay Kumar) एक बेहतरीन एक्टर हैं. लेकिन एक बेहतरीन एक्टर हर बार दर्शक की थाली में कुछ उम्दा ही परोसे ये बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं. गलतियां हो जाती हैं और गलती अगर 'लक्ष्मी' (Laxmii) हो तो तमाम तरह के संवादों या किसी भी प्रकार की वार्ता पर पूर्णतः विराम लग जाता है. अक्षय कुमार की बहुचर्चित फ़िल्म लक्ष्मी को देखते हुए ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि ये इस दौर की नहीं बल्कि इस पूरी सदी की सबसे घटिया फ़िल्म है. 2 घंटे 20 मिनट की इस बकवास को देखते हुए ऐसे तमाम मौके आएंगे जब दर्शक फ़िल्म में किसी भी तरह का लॉजिक तलाश करेगा लेकिन चूंकि फ़िल्म काल्पनिक है जिसका किसी भी जीवित मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है तो ये लॉजिक एक दर्शक के रूप में हम शायद ही कभी हासिल कर पाएं. अक्षय कुमार ने कुछ तो प्रोड्यूस किया है मगर क्या किया है यदि सवाल इसपर हो तो इसका जवाब शायद ही अक्षय के पास हो.

अक्षय ने अपनी फिल्म के जरिये दर्शकों को सिर्फ और सिर्फ मायूस किया है

ऐसा क्यों

एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते हमें सवाल पूछने का पूरा अधिकार है. साथ ही ये सवाल लाजमी भी है. कोई भी हमसे पूछ सकता है कि आखिर हम इस अंदाज में लक्ष्मी की बुराई क्यों कर रहे हैं? तो अगर इस सवाल का सीधा जवाब हमें देना हो तो हम केवल इतना कहेंगे कि फ़िल्म में हर वो चीज कॉपी की गई जो तमिल भाषा में बनी कंचना में थी.

हम आगे कुछ और बताएं उससे पहले हमारे लिए ये समझना बहुत ज़रूरी है कि अगर कोई चीज़ तमिल में अच्छी हो तो ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि जब उसका मेकओवर हो और वो हिंदी में बने तो वो अच्छी हो. अक्षय कुमार की फ़िल्म लक्ष्मी का मामला भी ऐसा ही है.

इस फ़िल्म में वो तमाम बातें हैं जिन्हें हिंदी ऑडिएंस शायद ही कभी पचा पाए. अच्छा अक्षय की मोस्ट अवेटेड फ़िल्म लक्ष्मी को लेकर जो सबसे मजेदार बात है. वो ये है कि जब आप ओरिजिनल मूवी यानी तमिल भाषा में बनी कंचना को देखेंगे तो भी आपको फ़िल्म महा की वाहियात और तबियत से टाइम वेस्ट लगेगी.

ये लेख फ़िल्म का रिव्यू तो नहीं है हां मगर हम ये ज़रूर कहेंगे कि फ़िल्म में सिवाए अक्षय के कुछ देखने वाला है भी नहीं. अक्षय को देखते हुए एक दर्शक के रूप में आपको बस यही महसूस होगा को अक्षय फ़िल्म में अपने बाजुओं के बल पर फ़िल्म को खींचने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं.चूंकि फ़िल्म कंचना के हिंदी रूपांतरण में कॉमेडी है तो अच्छी बात ये है कि जब फ़िल्म खत्म होगी और आपका टीवी बन्द होगा तो आप फ़िल्म को उतना नहीं गरियाएंगे जितने की हकदार ये फ़िल्म है.

कैसे 'लक्ष्मी' ने किया दक्षिणपंथियों को आहत

जैसे ही ये ख़बर आई कि अक्षय की फ़िल्म लक्ष्मी (पूर्व में लक्ष्मी बॉम्ब) बन कर तैयार है और जल्द ही रिलीज होगी फ़िल्म विवादों में आ गयी.दक्षिणपंथियों का आरोप था कि फ़िल्म ने उनकी धार्मिक भावना को आहत किया है. फ़िल्म का नाम चूंकी पहले लक्ष्मी बॉम्ब था तो ये भी साफ था कि निशाने पर हिंदू धर्म को लिया गया है. इसके अलावा बात अगर अन्य कारणों की हो तो फ़िल्म पर ये भी आरोप था कि इस फ़िल्म में हिंदुत्व का चोला ओढ़कर लव जिहाद को प्रमोट किया जा रहा है. इसके अलावा फ़िल्म के विरोध का एक अन्य कारण एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत का था. ध्यान रहे कि सुशांत की मौत पर नेपोटिस्म समेत तमाम बातें हुईं थी और बात बॉयकॉट बॉलीवुड तक आ गयी थी.

क्यों नाराज है लेफ्ट

ऐसा नहीं है कि अलग अलग चीजों को लेकर फ़िल्म लक्ष्मी नेसिर्फ राइट विंग को नाराज़ किया है. वामपंथी लॉबी या ये कहें कि लेफ्ट विंग भी फ़िल्म से राइट विंग की ही तरह नाराज है. इस फ़िल्म में अक्षय को एक सच्चे सेक्युलर की तरह पेश किया गया है. वहीं बात अक्षय की हो तो उन्हें सरकार और उनकी नीतियों का समर्थक समझा जाता है और ऐसी तमाम सरकारी योजनाएं हैं जिनको अक्षय कुमार प्रमोट करते हैं. फ़िल्म को लेकर लेफ्ट की दिक्कत भी यही है. लेफ्ट का कहना है कि अक्षय ने फ़िल्म में एक ऐसा चरित्र निभाया है जो कहीं से भी उनसे मैच नहीं करता और जो पूरी तरह से फेक है.

राइट- लेफ्ट से इतर हर किसी को अक्षय से नाराज होना चाहिए.

अक्षय की फ़िल्म में एक नहीं हजार बुराइयां हैं. सबसे बड़ी बात इस फ़िल्म ने 2.5 घंटे के रूप में हमारा जरूरी समय बर्बाद किया है. चूंकि ये फ़िल्म एक ट्रांसजेंडर की आत्मा के इर्द गिर्द घूमती है तो ऐसे में साफ है कि अक्षय ने एक्टर आशुतोष राणा के उस कैरेक्टर को कॉपी किया जो उन्होंने अपनी चर्चित फिल्म संघर्ष में किया था.

एक फैन के रूप में हमें अक्षय और उनकी फिल्म से तमाम उम्मीदें थीं मगर जो ढाई घंटे में हमने स्क्रीन पर देखा उसे देखकर बस यही समझ आया कि अक्षय कुमार ने लक्ष्मी के जरिये न केवल हमारी धार्मिक भावना के साथ खेला बल्कि खूब जमकर हमारा मेन्टल टॉर्चर भी किया. स्थिति जब इतनी विकट हो तो इसमें भी कोई शक नहीं है कि हमारी नाराजगी बनती है.

ये भी पढ़ें -

फैंस के लिए अक्षय की Laxmii खोदा पहाड़ निकली चुहिया से ज्यादा और कुछ नहीं है!

Scam 1992: शॉर्टकट मत लेना बस यही हर्षद मेहता पर बनी वेब सीरीज का सार है

Laxmmi Bomb में से 'बॉम्ब' हटाकर 'लक्ष्मी' करना...भावनाएं तो फिर भी भड़केंगी! 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲