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Lata Mangeshkar फिर स्मरण करवा गईं, 'मेरी आवाज़ ही पहचान है'

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 06 फरवरी, 2022 05:06 PM
  • 06 फरवरी, 2022 04:56 PM
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लता मंगेशकर के निधन की खबर से मन उदास है. चारों तरफ एक मौन पसरा है. याद आती है वो मासूमियत, वो हंसी और वो शहद सी मीठी आवाज. उनके नाम के आगे लगा भारतरत्न ही उनके व्यक्तित्व की ऊंचाई को बता पाने के लिए पर्याप्त है.

आज सुरों की देवी ने मां सरस्वती की गोद में अपना सिर रख दिया. लता जी नहीं रहीं. उनके साथ ही हमारी चार पीढ़ियों को साधता संगीत भी मौन हो गया. भारतीय सरगम की मिठास खो गई. भारतरत्न लता मंगेशकर जी के बारे में क्या कहूं! उनके नाम के आगे लगा भारतरत्न ही उनके व्यक्तित्व की ऊंचाई को बता पाने के लिए पर्याप्त है. जो परतंत्र भारत से स्वतंत्र भारत की आवाज़ बनीं, देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री तक जिस आवाज़ के मुरीद रहे, उस आवाज़ की तारीफ़ हेतु शब्दकोश भी आज जैसे रिक्त, अनाथ अनुभव कर रहा है. मैं तो इतना ही जानती और मानती हूं कि जैसे सूरज एक है, जो हमारा है. चंदा एक है, वो हमारा है. वैसे ही लता भी एक ही हैं, जो हमारी हैं. उनका भारत भूमि पर जन्म लेना ही इस देश का परम सौभाग्य है. भारत के स्वर्णिम युग की जब-जब चर्चा होगी, तब-तब उसमें देश की धड़कनों में बसती मधुर रागिनी के स्थान पर लता मंगेशकर लिखा जाएगा.

लता मंगेशकर की मौत के बाद कहा जा सकता है कि एक युग का अंत हो गया है

जबसे उनके देहावसान का समाचार मिला, एक मौन सा चारों तरफ़ पसर रहा है. एक आवाज़ अब भी कानों में घुल रही है, हौले से स्मरण करा रही हो जैसे, 'नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा... मेरी आवाज़ ही पहचान है'. हां, सच ही तो है. मैं लता जी से कभी मिली कहां! उनके बारे में सोचूं तो वही स्मित मुस्कान लिए एक चेहरा सामने आता है. उनकी आवाज़ ही मेरी साथी रही.

वे गीत-संगीत की दुनिया का ही नहीं, हमारे जीवन का सबसे जगमगाता और अनमोल सितारा हैं. हमेशा रहेंगी. उनकी आवाज़ में हमारी दुनिया है. लता के गीतों में हम स्त्रियों के मोहब्बत भरे नगमों की खुशनुमा अभिव्यक्ति हैं, दुख में-विरह में, पीड़ा में, हमारी ही व्यथा के व्याकुल स्वर हैं. उनकी आश्वस्ति में निराशा के काले बादलों को चीरती सूरज...

आज सुरों की देवी ने मां सरस्वती की गोद में अपना सिर रख दिया. लता जी नहीं रहीं. उनके साथ ही हमारी चार पीढ़ियों को साधता संगीत भी मौन हो गया. भारतीय सरगम की मिठास खो गई. भारतरत्न लता मंगेशकर जी के बारे में क्या कहूं! उनके नाम के आगे लगा भारतरत्न ही उनके व्यक्तित्व की ऊंचाई को बता पाने के लिए पर्याप्त है. जो परतंत्र भारत से स्वतंत्र भारत की आवाज़ बनीं, देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री तक जिस आवाज़ के मुरीद रहे, उस आवाज़ की तारीफ़ हेतु शब्दकोश भी आज जैसे रिक्त, अनाथ अनुभव कर रहा है. मैं तो इतना ही जानती और मानती हूं कि जैसे सूरज एक है, जो हमारा है. चंदा एक है, वो हमारा है. वैसे ही लता भी एक ही हैं, जो हमारी हैं. उनका भारत भूमि पर जन्म लेना ही इस देश का परम सौभाग्य है. भारत के स्वर्णिम युग की जब-जब चर्चा होगी, तब-तब उसमें देश की धड़कनों में बसती मधुर रागिनी के स्थान पर लता मंगेशकर लिखा जाएगा.

लता मंगेशकर की मौत के बाद कहा जा सकता है कि एक युग का अंत हो गया है

जबसे उनके देहावसान का समाचार मिला, एक मौन सा चारों तरफ़ पसर रहा है. एक आवाज़ अब भी कानों में घुल रही है, हौले से स्मरण करा रही हो जैसे, 'नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा... मेरी आवाज़ ही पहचान है'. हां, सच ही तो है. मैं लता जी से कभी मिली कहां! उनके बारे में सोचूं तो वही स्मित मुस्कान लिए एक चेहरा सामने आता है. उनकी आवाज़ ही मेरी साथी रही.

वे गीत-संगीत की दुनिया का ही नहीं, हमारे जीवन का सबसे जगमगाता और अनमोल सितारा हैं. हमेशा रहेंगी. उनकी आवाज़ में हमारी दुनिया है. लता के गीतों में हम स्त्रियों के मोहब्बत भरे नगमों की खुशनुमा अभिव्यक्ति हैं, दुख में-विरह में, पीड़ा में, हमारी ही व्यथा के व्याकुल स्वर हैं. उनकी आश्वस्ति में निराशा के काले बादलों को चीरती सूरज की हजार किरणें हैं. उनकी शोखी में इस जीवन की मस्ती, छेड़खानी की खनक है.

परिणय बंधन से लेकर विदाई की रस्मों तक के अहसास को हमने महसूस किया पर उसको अगर किसी ने सच्ची तस्वीर की तरह उकेरकर रख दिया, तो वे भी लता ही हैं. वे एक ओर मन की उदासी में हैं, सारे शिकवे-शिकायतों में हैं तो वहीं ईश्वर से की गई तमाम प्रार्थनाएं भी उनके बिना अधूरी हैं. तात्पर्य यह कि लता जी, हर भारतीय स्त्री और उसके धड़कते हृदय की समस्त अभिव्यक्तियों के स्वरों में है और एक नहीं, कई भाषाओं में.

ये आवाज़ 'बिंदिया चमकेगी, चूड़ी खनकेगी' गाकर हम स्त्रियों के चंचल मन को खूब समझती है और 'तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं' में अनायास ही आवश्यक गांभीर्य से भी भर जाती है. कभी इठलाती हुई हमें 'मेरे ख्वाबों में जो आए' से एक षोडशी के सपनों वाले राजकुमार से मिलवाती है और 'दीदी, तेरा देवर दीवाना' से शादी-ब्याह की सारी रस्मों और उनसे जुड़ी अठखेलियों की दुनिया में जमकर मस्ताने का अवसर भी देती है.

कभी विदाई के पलों में तो कभी उससे कुछ पहले 'माए नी माए मुंडेर पे तेरी', 'कि तेरा यहाँ कोई नहीं' गाकर आँखें भर देती है, बेटी के मायके से बिछोह के पलों में भीतर तक रुला आती है. यही वो आवाज़ भी है जो 'फूल तुम्हें भेजा है खत में' से मोहब्बत की नाज़ुक दुनिया में हौले से पांव रखती है, महबूब से मिलती है तो उसे अहसास है कि 'जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा'

लेकिन अपने इश्क़ का ऐलान पूरी धमक और विद्रोह के साथ करती है और खुलकर जमाने से कहती है, 'प्यार किया, कोई चोरी नहीं की, छुप छुप आहें भरना किया/ जब प्यार किया तो डरना क्या.' यही आवाज़ हमें भौतिक जीवन की सारी सुख-सुविधाओं से बाहर निकाल 'अल्लाह तेरो नाम', 'ओ पालनहारे, निर्गुण और न्यारे' से आध्यात्मिक दुनिया की सुदूर यात्रा को ले जाती है.

ये आवाज़ जो 'ऐ मेरे वतन के लोगों' से अमर शहीदों की स्मृति की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति बनी, जिसने देशभक्ति के अद्भुत भाव से हमको भीतर तक रंग दिया. आज उसी आवाज़ ने 'अब हम तो सफ़र करते हैं', कहकर भावुक विदाई ली है. यूं तो इस सांसारिक, नश्वर दुनिया से सबको जाना है. लेकिन कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं जिनको अलविदा नहीं कहा जाता! लता उन्हीं में शरीक होती हैं.

कैसे कहें उन्हें अलविदा, जिनकी आवाज़ की प्रशंसक मेरी नानी थीं, मेरी माँ है, मैं हूं और मेरी बेटी भी. जिनसे हमारा चार पीढ़ियों से मोहब्बत का रिश्ता रहा है. वे हमारे जीवन का हिस्सा हैं. हमारी सुबहो-शाम में हैं. उनकी आवाज़ की थाप पर हमारी दुनिया बसी है. इस धरती पर लता जी की स्वर लहरी सदैव बिखरती रहेगी.

उन्होंने भले ही विश्राम करने को आसमान की नीली चादर ओढ़ ली है लेकिन हमने उन्हें विदाई नहीं दी है. सप्तऋषि की चमक में उनकी छवि हम अब भी रोज़ देखेंगे. उन्होंने तो बहुत पहले ही बता दिया था, 'रहें ना रहें हम, महका करेंगे, बन के कली, बन के सबा, बाग़े वफ़ा में'. मुझे उनके इस कहे पर पूरा यक़ीन है इसीलिए लोग भले ही कहते रहें कि 'एक सितारा टूट गया' पर मैं जानती हूं कि हमारे जीवन का सबसे चमकदार राग, इस धरती से आसमान को गुड़ की डली खिलाने गया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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