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क्या सिनेमा हॉल में दिखाई जाने वाली हॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल होना चाहिए?

    • आलोक रंजन
    • Updated: 14 जुलाई, 2018 06:01 PM
  • 14 जुलाई, 2018 06:01 PM
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बड़ी फिल्मों में बोरियत कम हो इस कारण से इंटरवल हैं तो माना भी जा सकता है पर छोटी फिल्मों में कतई नहीं. और अधिकतर हॉलीवुड फिल्में दो घंटे से कम समय की होती हैं लिहाजा इन फिल्मों में इंटरवल होना तो ज्यादती है.

भारतीय सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में हाल के वर्षो में हॉलीवुड फिल्मों का चलन काफी बढ़ गया है. अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी डब हॉलीवुड फिल्मों के दर्शकों में काफी वृद्धि हुई है. इन दर्शकों को अफसोस सिर्फ इस बात का है कि दो घंटों से भी कम समय की हॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल का क्या काम है. आखिर क्यों भारत में ही फिल्मों के दौरान इंटरवल का चलन है? दर्शकों और कई फिल्म समीक्षकों का तो यह मानना है कि बॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल की बात तब समझ आती है जब उन फिल्मों की लम्बाई तीन घंटों के आसपास या उससे अधिक रहती है. गानों की वजह से बॉलीवुड फिल्में काफी लम्बी होती हैं और इस कारण से बॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल का होना जरुरी हो जाता है. लम्बी फिल्म की वजह से होने वाली बोरियत से बचने के लिए भी इंटरवल जरुरी हो जाता है.

अंग्रेजी फिल्में छोटी होती हैं लिहाजा उनमें इंटरवेल का होना समझ से परे है

यही मानदंड हॉलीवुड फिल्मों को ध्यान में रखते हुए लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि अधिकतर हॉलीवुड फिल्में दो घंटे से कम समय की होती हैं. विदेशों में इन फिल्मों में तो इंटरवल का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है.

कई लोग मानते हैं कि फूड बिज़नेस में मुनाफे के कारण मल्टीप्लेक्स मालिक इंटरवल की प्रथा के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं. एक अनुमान के अनुसार सिनेमा हॉल/मल्टीप्लेक्स मालिक को एक टिकट से 25-30 रुपये की कमाई होती है. टिकट से होने वाली आय का अधिकतर हिस्सा फिल्म वितरक और सरकार को चला जाता है. इसी कारण से मल्टीप्लेक्स खाद्य और पेय पदार्थ व्यापार में अपना फायदा देखते हैं. उनकी कमाई का 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा खाने और पीने की चीजों से आता है. एक अनुमान के अनुसार एक फिल्म शो के दौरान मल्टीप्लेक्स वाले 15000 से 20000 रुपये खाने-पीने की चीजों की बिक्री से कमाते हैं. जाहिर सी बात...

भारतीय सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में हाल के वर्षो में हॉलीवुड फिल्मों का चलन काफी बढ़ गया है. अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी डब हॉलीवुड फिल्मों के दर्शकों में काफी वृद्धि हुई है. इन दर्शकों को अफसोस सिर्फ इस बात का है कि दो घंटों से भी कम समय की हॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल का क्या काम है. आखिर क्यों भारत में ही फिल्मों के दौरान इंटरवल का चलन है? दर्शकों और कई फिल्म समीक्षकों का तो यह मानना है कि बॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल की बात तब समझ आती है जब उन फिल्मों की लम्बाई तीन घंटों के आसपास या उससे अधिक रहती है. गानों की वजह से बॉलीवुड फिल्में काफी लम्बी होती हैं और इस कारण से बॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल का होना जरुरी हो जाता है. लम्बी फिल्म की वजह से होने वाली बोरियत से बचने के लिए भी इंटरवल जरुरी हो जाता है.

अंग्रेजी फिल्में छोटी होती हैं लिहाजा उनमें इंटरवेल का होना समझ से परे है

यही मानदंड हॉलीवुड फिल्मों को ध्यान में रखते हुए लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि अधिकतर हॉलीवुड फिल्में दो घंटे से कम समय की होती हैं. विदेशों में इन फिल्मों में तो इंटरवल का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है.

कई लोग मानते हैं कि फूड बिज़नेस में मुनाफे के कारण मल्टीप्लेक्स मालिक इंटरवल की प्रथा के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं. एक अनुमान के अनुसार सिनेमा हॉल/मल्टीप्लेक्स मालिक को एक टिकट से 25-30 रुपये की कमाई होती है. टिकट से होने वाली आय का अधिकतर हिस्सा फिल्म वितरक और सरकार को चला जाता है. इसी कारण से मल्टीप्लेक्स खाद्य और पेय पदार्थ व्यापार में अपना फायदा देखते हैं. उनकी कमाई का 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा खाने और पीने की चीजों से आता है. एक अनुमान के अनुसार एक फिल्म शो के दौरान मल्टीप्लेक्स वाले 15000 से 20000 रुपये खाने-पीने की चीजों की बिक्री से कमाते हैं. जाहिर सी बात है, वे कभी भी नहीं चाहेंगे कि उनकी कमाई में कमी हो.

खाने-पीने की चीजों से काफी कमाते हैं मल्टीप्लेक्स

लेकिन यहां ये सवाल भी उठता है कि आजकल अधिकतर लोग ऑनलाइन टिकट बुकिंग के साथ ही खाने-पीने का सामान भी बुक कर देते हैं. कुछ लोग तो सिनेमा शुरू होने से पहले खरीदकर बैठ जाते हैं. कई जगह तो सीट में डिलीवरी भी की जाती है. अमेरिका जहां फिल्म में इंटरवल नहीं होता वहां भी सिनेमा हॉल मालिक खाने-पीने का सामान बेचकर काफी कमाते हैं. यानी इंटरवल के पक्ष में ये तर्क भी वजन नहीं रखता है.

हॉलीवुड की तुलना में बॉलीवुड फिल्में काफी लम्बी होती हैं. कई फिल्में तो 4 घंटे या फिर उससे ज्यादा की भी रही हैं. 'संगम' और 'मेरा नाम जोकर' में तो दो-दो इंटरवल थे. 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' तो 5 घंटे से भी अधिक लम्बी फिल्म थी. इतनी लंबी फिल्म चलाने के लिए कोई भी मल्टीप्लेक्स तैयार नहीं हुआ और इसी कारण से इस फिल्म को दो भागों, 'गैंग्स ऑफ वासेपुर-1' और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर-2' में रिलीज़ किया गया था. यहां पर आपको बताना जरुरी है कि 2011 में रिलीज़ हुई बॉलीवुड फिल्म 'धोबी घाट' 2 घंटे से भी कम की फिल्म थी और इसमें कोई इंटरवल नहीं था. बड़ी फिल्मों में बोरियत कम हो इस कारण से इंटरवल हैं तो माना भी जा सकता है पर छोटी फिल्मों में कतई नहीं.

आज इंडियन बॉक्स ऑफिस पर हॉलीवुड का हिस्सा, कुल कमाई का 20 से 22 प्रतिशत तक पहुंच गया है. लोग इन फिल्मों को देखने में ज्यादा से ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं. ऐसे में दर्शकों की राय को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है. हाल ही में एक न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार फिल्म वितरक अब इसे गंभीरता से ले रहे हैं. इंटरवल हटाने की बढ़ती हुई शिकायतों के कारण इसका कुछ समाधान निकाला जाना जरुरी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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