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चोली का साइज बताने वाली कल्पना को भी, भोजपुरी में अश्लीलता अब अच्छी नहीं लगती!

    • मनीष जैसल
    • Updated: 30 दिसम्बर, 2017 11:29 AM
  • 30 दिसम्बर, 2017 11:29 AM
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भोजपुरी गानों में अश्लीलता कोई नई बात नहीं है मगर खुद अश्लील गानों में अपनी आवाज देकर लोकप्रिय हो रहीं कल्पना पटवारी का भोजपुरी में अश्लीलता का विरोध अपने आप में हैरत में डालने वाला है.

2015 में टीवी के युधिष्ठिर को जब एफ़टीआईआई का चेयर मैन बनाया गया तो विरोध से उनका ऐसा सामना हुआ कि पूरा देश उनकी सी ग्रेड फिल्मों का इतिहास जान गया. चेयरमैन बनाते समय सरकारों ने भी नहीं सोचा होगा उनका यह कदम कितना सही है या कितना गलत. विरोध की पहली आवाज उस संस्थान से जुड़े प्रगतिशील छात्रों ने ही उठाई थी. उनके विरोध का सामान्य सा तर्क यही था कि जिस संस्थान से देश के बड़े फिल्म निर्देशक, अभिनेता एडिटर, कहानीकार, पटकथा लेखक पढ़ कर निकले हो वहां गजेंद्र चौहान जैसे कम काबिल आदमी को यह कुर्सी मात्र राजनीतिक पहुंच के कारण कैसे दे दी गयी. गजेंद्र चौहान पूरे ढाई साल भारतीय सिनेमा के प्रचार-प्रसार व्यवसाय टेक्निक टूल्स आदि पर संस्थान प्रमुख बन कर नीतियां और उनका क्रियान्वयन करते रहे. पर ऐसा करते हुए वह अपना ही कैरियर भूल गए जिसमें उन्होंने सी ग्रेड फिल्मों की बाढ़ लाकर रख दी थी.

ताजा मामला भोजपुरी सिनेमा की क्वीन कहलाने वाली कल्पना पटवारी का है. कल्पना यूं तो असम से ताल्लुक रखती है लेकिन उनकी पहचान और लोकप्रियता आज भोजपुरी और हिन्दी सिनेमा तक में है. उन्हे संगीत विरासत में मिला. पिता विपिन पटवारी लोक गायक तथा मां भी संगीत में ख़ासी रुचि रखती थी. कल्पना अब तक 22 विभिन्न भाषाओं में 9000 से अधिक गीत गा चुकी हैं. असम के छोटे से गांव से आई कल्पना के लिए एक अलग भाषा संस्कृति में रच बस जाना किसी अचंभे से कम नहीं था. भोजपुरी गीतों में उन्होंने छपरिहा पूर्वी विधा पर ख़ास ध्यान दिया है.

कल्पना का भोजपुरी में अश्लीलता पर संस्कारों की दुहाई देना अपने आप में अजीब है

भोजपुरी का नाम आते ही सर्वप्रथम भिखारी ठाकुर का नाम जहन में आता है. भोजपुरी संस्कृति और कला - रूपों परबात करते हुए भिखारी ठाकुर को याद करना लाज़मी है. कल्पना ने भी भिखारी ठाकुर के गीतों को...

2015 में टीवी के युधिष्ठिर को जब एफ़टीआईआई का चेयर मैन बनाया गया तो विरोध से उनका ऐसा सामना हुआ कि पूरा देश उनकी सी ग्रेड फिल्मों का इतिहास जान गया. चेयरमैन बनाते समय सरकारों ने भी नहीं सोचा होगा उनका यह कदम कितना सही है या कितना गलत. विरोध की पहली आवाज उस संस्थान से जुड़े प्रगतिशील छात्रों ने ही उठाई थी. उनके विरोध का सामान्य सा तर्क यही था कि जिस संस्थान से देश के बड़े फिल्म निर्देशक, अभिनेता एडिटर, कहानीकार, पटकथा लेखक पढ़ कर निकले हो वहां गजेंद्र चौहान जैसे कम काबिल आदमी को यह कुर्सी मात्र राजनीतिक पहुंच के कारण कैसे दे दी गयी. गजेंद्र चौहान पूरे ढाई साल भारतीय सिनेमा के प्रचार-प्रसार व्यवसाय टेक्निक टूल्स आदि पर संस्थान प्रमुख बन कर नीतियां और उनका क्रियान्वयन करते रहे. पर ऐसा करते हुए वह अपना ही कैरियर भूल गए जिसमें उन्होंने सी ग्रेड फिल्मों की बाढ़ लाकर रख दी थी.

ताजा मामला भोजपुरी सिनेमा की क्वीन कहलाने वाली कल्पना पटवारी का है. कल्पना यूं तो असम से ताल्लुक रखती है लेकिन उनकी पहचान और लोकप्रियता आज भोजपुरी और हिन्दी सिनेमा तक में है. उन्हे संगीत विरासत में मिला. पिता विपिन पटवारी लोक गायक तथा मां भी संगीत में ख़ासी रुचि रखती थी. कल्पना अब तक 22 विभिन्न भाषाओं में 9000 से अधिक गीत गा चुकी हैं. असम के छोटे से गांव से आई कल्पना के लिए एक अलग भाषा संस्कृति में रच बस जाना किसी अचंभे से कम नहीं था. भोजपुरी गीतों में उन्होंने छपरिहा पूर्वी विधा पर ख़ास ध्यान दिया है.

कल्पना का भोजपुरी में अश्लीलता पर संस्कारों की दुहाई देना अपने आप में अजीब है

भोजपुरी का नाम आते ही सर्वप्रथम भिखारी ठाकुर का नाम जहन में आता है. भोजपुरी संस्कृति और कला - रूपों परबात करते हुए भिखारी ठाकुर को याद करना लाज़मी है. कल्पना ने भी भिखारी ठाकुर के गीतों को सहेजने का काम अपनी संगीत यात्रा के दौरान बखूबी किया है. हाल ही में भिखारी ठाकुर रंगमंच शताब्दी के उपलक्ष्य में छपरा में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने भिखारी ठाकुर को याद किया. उन्होने वहां भोजपुरी गीतों में बढ़ रही अश्लीलता पर चिंता भी व्यक्त की. बातों बातों में उन्होनें अश्लील गाने बनाने वालों को जेल भेजने की बात भी कह डाली. ऐसे में अब जरूरी हो जाता है कि कल्पना के भोजपुरी सिनेमा-संगीत को लेकर किए गए काम को एक बार नजदीक से परखा जाए.

कल्पना ने भोजपुरी गीतों में बढ़ रही अश्लीलता की चिंता व्यक्त की है तो जाहीर है कि उनका योगदान अपने गीतों में जरूर दिख जाएगा. ऐसे ही कुछ गाने हमने खोजे है जिनमें कल्पना की खनकती आवाज श्रोताओं को भोजपुरी के और करीब ले जाती है. कल्पना के इन गीतों में भोजपुरी और भिखारी ठाकुर का क्या मिश्रण है यह तो हमें नहीं दिखता. आपको दिखे तो बताइएगा.

कल्पना का मानना है कि लोग भोजपुरी में अश्लीलता परोसकर उसका स्वाद खराब कर रहे हैं बाबा के च्वाइस बा 17 से 22

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय वाले दीक्षित जी का किस्सा तो आपने सुन ही लिया होगा. बाबा वीरेंद्र के आश्रम में बीते 19 साल से सेक्स रैकेट चलने का खुलासा हुआ है. इसकी सूचना मीडिया में अभी आई. जबकि कल्पना का बाबा के च्वाइस वाला गाना तो 2011 से ही धमाल मचा रहा है. खबरों के मुताबिक दीक्षित को जिस आयु की लड़कियां पसंद थी उसी आयु वर्ग का खुलासा कल्पना अपने गीत में कर रही हैं. देखिये बाबा के कारनामों को कैसे ग्लोरीफ़ाई करके कल्पना ने इसे मशहूर बनाया और खुद लोक-गायिका बनी घूम रही है. न चाहीं 14 न चाहीं 15 न चाहीं 23 से अट्ठाईस बाबा के च्वाइस बा सत्तह से बाईस

कल्पना और आनंद के गाये इस गीत में सिर्फ उम्र का ही हवाला नहीं है. वह गीत में कहते है कि ना चाहीं करिया, न चाहीं सांवर, चाहीं ल निलकी गोराई. आइये बाबा के कारनामे सुनते हैं.

चोली के साइज 36

कल्पना पटवारी आज जिस भिखारी ठाकुर के मंच से भोजपुरी में अश्लीलता को खत्म करने की बात कर रही हैं उन्हें अपना एल्बम और उसके गीत को याद कर लेना चाहिए. एक महिला होने के नाते भी अगर वो अपने गाये गाने पर विमर्श करें भोजपुरी सिनेमा आज जिस निचले स्तर पर है वह कभी नहीं होता. कल्पना के इस गीत के बोल इस प्रकार है. छत्तीस के मंगनी,अड़तालीस ले अईला अल्हड़ गवार नियां काम तू कईला हुक नहीं लागे, समात नईखे देहियां चोली के साइज 36 कैसे भुल गैला तू सइयाँ अब इस गाने का भोजपुरी संस्कृति सभ्यता से किस प्रकार मेल होता दिखता है यह खुद कल्पना जी को ही पता होगा. आइये सुनते हैं.

चोलिया पे लेजर लाइट मरेला

भोजपुरी गीतों में चोली, कजरा, चुम्मा, हुक, लेजर वगैरह की जब भी चर्चा होगी तो असम में जन्मी इस लोक गायिका के योगदान को भुला पाना आसान नहीं है. कल्पना भोजपुरी फिल्म इलाहाबाद से इस्लामाबाद के लिए गाये इस गीत में कह रही हैं कि. भईली सयान जबसे कहे लोग जान, केहु मारे सीटी, केहु आँख मारता, चोलिया पे सारा लोगवा,लेजर लाइट मारता

कल्पना का शुमार उन कलाकारों में है जो युवाओं के बीच खासी लोकप्रिय हैं

पूरा गाना यहां सुनिए और सोचिए अश्लील गाने बनाने के लिए जेल पहले किसे जाना चाहिए.

चढ़ल जवानी रसगुल्ला

गाना काफी पुराना है लेकिन अश्लील गानों की सूची में इसे सर्वोच्च स्थान पर गिना जाता है. कल्पना स्टेज पर परफॉर्म कर रही हो श्रोता उनसे इस गाने की फरमाइश करने से पीछे नहीं हटते. ‘होठ प लाली, कान में बाली, गाल दुनु गुलगुल्ला देख चढ़ल जवानी रसगुल्ला.”

फिल्म बलमा बड़ा नादान की कहानी से ज्यादा लोकप्रिय फिल्म का यह गाना हुआ था. जिसे कल्पना की चटक आवाज ने एक अलग पहचान दी थी. गाना देखिये और अश्लीलता दिखे तो कल्पना तक सूचित करें. फिल्म के गीत का सामाजिक यथार्थ का तो पता नहीं पर इस गीत से पड़े समाज पर असर को आसानी से देखा समझा जा सकता है. गाने के सहारे शोहदे फब्तियाँ कसने में कई बार इन गानों का प्रयोग करते आपको दिख जाएंगे.

गाल के गुलाब जामुन

फौजी की अटैची में क्या है यह इस गाने में दर्शाने की कोशिश की गयी है. हद तो तब हो जाती है जब बात-बात पर लोग मानहानि का दावा करने लगते हैं  पर इस गाने को सुन कर ऐसा कुछ नहीं हुआ. क्या इस गीत से किसी फौजी की अस्मिता को कोई चोट नहीं पहुंची ? गाने के बोल ‘गाल के गुलाब जामुन, चुम्मा के चाकलेट, हम अटैची में रख देले बानी, फौजी बलमा खइहाँ’.कल्पना जी की कल्पना से निकले ‘महुआ टपके चुनरिया’ एल्बम के इस गीत को शब्द्श: सुनते जाइए और अश्लीलता है या नहीं इस पर विचार करते जाइए. और हां भिखारी ठाकुर के भोजपुरी को दिये योगदान को भूलिएगा मत क्योकि उनकी ही आड़ में कल्पना जैसे अन्य भोजपुरी संगीतकार व्यवसायियों ने अपनी दुकाने स्थापित कर रखी है. सुनिए पूरा गाना,

कल्पना पटवारी के गाये ये सभी गीत तो मात्र एक फौरी नज़र पर देखे गए गीतों का कलेक्शन है. एक तथ्यपूर्ण और ऐतिहासिक शोध किया जाए तो उनका वजूद ही भोजपुरी के लोक से खत्म हो जाएगा. बीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध लोक कलाकार भिखारी ठाकुर सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ मशाल उठाने और अपने पारंपरिक मूल्यों के लिए जाने जाते हैं. भिखारी अपना पूरा जीवन एक लोक कलाकार के रूप में सामाजिक कुरीतियों और सामंती समाज के नकली चेहरे को उजागर करने में बिता गए.  श्रमिक और महिला विमर्श उनके लिखे नाटकों के अनिवार्य तत्व होते थे.

आज भिखारी हमारे आपके बीच नहीं है पर उनका काम उनका योगदान भोजपुरी समाज के लिए चेतना जगाने का काम करता है. लेकिन कल्पना जैसी मशहूर हस्तियाँ जब भिखारी जैसे व्यक्तित्व का इस्तेमाल स्वयं सिद्धि के लिए करने लगे तो हमें सवाल खड़े करने की जरूरत महसूस होने लगती है. कल्पना ने जिस तरह भिखारी ठाकुर समारोह के मंच से भोजपुरी सिनेमा और गीतों में अश्लीलता की बात करके भिखारी पक्ष में खड़ी दिखती है वहां उनके गाये अश्लील गीत उनकी वास्तविक पहचान उजागर करने के लिए काफी है.

हम यह नहीं कहते कि कल्पना का भोजपुरी और अन्य भाषाओं के सिने संगीत में योगदान नहीं है. लेकिन यह योगदान कम, उनका व्यवसाय ज्यादा हमें दिखता है. 2001 में जब कल्पना मुंबई पहुंचती है तो उन्हे पहला काम हिन्दी रीमिक्स गाने का ही मिलता है. इसके बाद भोजपुरी की जो धार हमें दिखती है वह एगो चुम्मा ले ल राजा जी, नाप लेवे दर्जी, सैयां छोड़ द कलाई, मजा भोजपुरिया मरद में, भोर हो गइल ब बलम, चोली से भाफ फेंका के, जीजा से सेवा कराके,जादो जी से जोरन डलवा के,नींबू निचोड़ के, तम्बू में बम्बू लगा के, जैसे गाने के सहारे और मजबूर हुई है.

मौजूदा समय में जिस प्रकार भोजपुरी सिनेमा में परिवर्तन की लहर पर काम शुरू हुआ है ऐसे में अश्लील गाने वालों के लिए भविष्य में अपनी जमीन तलाशना मुश्किल हो जाएया. समय रहते कल्पना ने भी अश्लीलता के खिलाफ बोल कर कहीं अपनी जमीन खोजने का काम ही तो नहीं शुरू किया? गौरतलब है कि कल्पना आर राजकुमार, बेगमजान, बिल्लू, पार्च्ड, आक्रोश जैसी फिल्मों में अपनी आवाज दे चुकी हैं. लेकिन उनकी असल पहचान अभी भी गाल बने गुलगुल्ला टाइप गानों से ही होती है. एक कार्यक्रम में जब कल्पना श्रोताओं को भिखारी ठाकुर के लिखे गीत सुना रही थी तो श्रोताओं ने उनसे अपने अंदाज में लिए पहचानी जाने वाले गीतों को गाने की फरमाइश की थी.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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