• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे!

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 24 दिसम्बर, 2018 10:49 AM
  • 24 दिसम्बर, 2017 05:41 PM
offline
रफ़ी साब के युग को कुछ शब्दों में समेट लेना न तो आसान है और न ही संभव. यह तो बस स्नेहसिक्त प्रयास भर है, उनकी आवाज़ को दिल से सुनने, सलाम करने का!

मोहम्मद रफ़ी का नाम जब-जब सामने आता है तब-तब स्मृतियों में उनका वह सादगी भरा मुस्कुराता चेहरा स्वत: ही घूमने लगता है. एकदम सहज, सरल, हंसमुख. शायद ही कोई भारतीय होगा जो उनके गीतों का दीवाना न रहा हो. आज जब गूगल ने अपना डूडल उन्हें समर्पित किया तो उनके सदाबहार गीत और सुमधुर आवाज की सुरमई रागिनी फ़िज़ाओं में झूमने लगी. उनका गाया कौन-सा गीत सबसे प्रिय है, यह तय करना उतना ही मुश्क़िल है जैसे कोई किसी मां से पूछे कि तुम्हें कौन-सा बच्चा अधिक प्यारा है.

रफ़ी गाते नहीं, शब्दों को जीते थे

रफ़ी साहब ने हर रंग, हर विधा, हर मूड के गीतों को अपने स्वरों की जो अनमोल सरगम दी है, वह संगीत प्रेमियों के लिए नायाब तोहफ़े की तरह है. अहा, क्या ख़ूब आवाज़ और कितनी सुन्दर अदायगी. उनके गायन का अंदाज़ ही कुछ ऐसा था कि श्रोता तुरंत समझ जाते थे कि यह गुरुदत्त पर फिल्माया गया है या देव आनंद पर. राजेंद्र कुमार, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, ऋषि कपूर, अमिताभ, शशि कपूर और न जाने कितने ही नायकों को शिखर पर पहुंचाने में इनकी आवाज का अतुलनीय योगदान रहा है. नौशाद, शंकर जयकिशन, मदन मोहन, रवि, ओ पी नैयर, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ उनकी जोड़ी ख़ूब जमी और रफ़ी जी ने श्रोताओं के अगाध स्नेह के साथ-साथ कई राष्ट्रीय एवं फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त किये.

मोहम्मद रफ़ी गाते नहीं, शब्दों को जीते थे. उनके गीत युवाओं की धड़कन, उनके अहसास की अभिव्यक्ति का माध्यम थे. ये उनका जादू ही है जो अब तक हम सबके सिर चढ़कर बोलता है. उनकी आवाज़ के बिना आज भी न तो कोई बारात दरवाजे पहुंचती है और न ही दूल्हा घोड़ी से उतरता है. जब तक बैंड वाले 'बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है' नहीं बजा लेते. विदाई के भावुक पलों में उनका ही गाया 'बाबुल की दुआएं लेती जा' या 'चलो रे डोली उठाओ कहार' वातावरण को भाव-विह्वल कर देता है....

मोहम्मद रफ़ी का नाम जब-जब सामने आता है तब-तब स्मृतियों में उनका वह सादगी भरा मुस्कुराता चेहरा स्वत: ही घूमने लगता है. एकदम सहज, सरल, हंसमुख. शायद ही कोई भारतीय होगा जो उनके गीतों का दीवाना न रहा हो. आज जब गूगल ने अपना डूडल उन्हें समर्पित किया तो उनके सदाबहार गीत और सुमधुर आवाज की सुरमई रागिनी फ़िज़ाओं में झूमने लगी. उनका गाया कौन-सा गीत सबसे प्रिय है, यह तय करना उतना ही मुश्क़िल है जैसे कोई किसी मां से पूछे कि तुम्हें कौन-सा बच्चा अधिक प्यारा है.

रफ़ी गाते नहीं, शब्दों को जीते थे

रफ़ी साहब ने हर रंग, हर विधा, हर मूड के गीतों को अपने स्वरों की जो अनमोल सरगम दी है, वह संगीत प्रेमियों के लिए नायाब तोहफ़े की तरह है. अहा, क्या ख़ूब आवाज़ और कितनी सुन्दर अदायगी. उनके गायन का अंदाज़ ही कुछ ऐसा था कि श्रोता तुरंत समझ जाते थे कि यह गुरुदत्त पर फिल्माया गया है या देव आनंद पर. राजेंद्र कुमार, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, ऋषि कपूर, अमिताभ, शशि कपूर और न जाने कितने ही नायकों को शिखर पर पहुंचाने में इनकी आवाज का अतुलनीय योगदान रहा है. नौशाद, शंकर जयकिशन, मदन मोहन, रवि, ओ पी नैयर, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ उनकी जोड़ी ख़ूब जमी और रफ़ी जी ने श्रोताओं के अगाध स्नेह के साथ-साथ कई राष्ट्रीय एवं फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त किये.

मोहम्मद रफ़ी गाते नहीं, शब्दों को जीते थे. उनके गीत युवाओं की धड़कन, उनके अहसास की अभिव्यक्ति का माध्यम थे. ये उनका जादू ही है जो अब तक हम सबके सिर चढ़कर बोलता है. उनकी आवाज़ के बिना आज भी न तो कोई बारात दरवाजे पहुंचती है और न ही दूल्हा घोड़ी से उतरता है. जब तक बैंड वाले 'बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है' नहीं बजा लेते. विदाई के भावुक पलों में उनका ही गाया 'बाबुल की दुआएं लेती जा' या 'चलो रे डोली उठाओ कहार' वातावरण को भाव-विह्वल कर देता है. समाज की भावनाओं का साक्षात प्रतिबिम्ब बन गई है उनकी आवाज़.

किसी भी प्रेमी की आशिक़ी उनके बिना अधूरी है और अपनी महबूबा के रूठने-मनाने से लेकर उसके हुस्न की तारीफ़ करने में वह इन्हीं का सहारा लेकर आगे बढ़ता है. याद कीजिये- तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को किसी की नज़र न लगे, ए-गुलबदन, चौदहवीं का चांद हो, हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं, तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है, तारीफ़ करूं क्या उसकी, यूं ही तुम मुझसे बात करती हो और ऐसे कितने ही सदाबहार गीतों के माध्यम से जवां दिलों की क़ामयाब मोहब्बत की नींव पड़ी है.

इनके आंदोलित करते गीतों ने भी प्रेमी-युगलों को समर्थन की ताजा सांसें उपहार में दी हैं. मुग़ल-ए-आज़म में जब ये अपनी बुलंद आवाज़ में 'ऐ मोहब्बत ज़िंदाबाद' गाते हैं तो उस दशक से लेकर अब तक के लाखों प्रेमी उनके साथ एक रूहानी सुकून महसूस कर कह उठते हैं, 'है अगर दुश्मन, दुश्मन.. जमाना ग़म नहीं, ग़म नहीं'हर जवां दिल ने 'एक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने' और 'अभी न जाओ छोड़कर...' से अपनी प्रेमिका की मनुहार की है. जहां 'एहसान तेरा होगा मुझ पर' से कठोर दिलों में नरमी भरी है वहीं 'झिलमिल सितारों का आंगन होगा' से आशाओं के सैकड़ों दीप भी प्रज्ज्वलित हुए हैं.

उदासी और विरह में रफ़ी जी के नग़मों के साथ बैचेनी भरे पल कटते हैं और प्रेमी-प्रेमिकाओं के आंसुओं की अविरल धार और प्रेम से उपजी पीड़ा की निश्छलता में भी इन्हीं के सुरों की प्रतिध्वनि गुंजायमान होती है. कौन भूल सकता है इन गीतों को, जिन्होंने विरह-काल में उसी महबूब की यादों की दुहाई दी है.... दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर, क्या हुआ तेरा वादा, मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की क़सम, तेरी गलियों में न रखेंगे क़दम आज के बाद.

मस्ती और शैतानी भरे गीतों से रफ़ी साब ने जो बिंदास और खिलंदड़पन भरे पल दिए हैं, उनका तो कहना ही क्या! तैयब अली प्यार का दुश्मन हाय हाय, नैन लड़ जईहैं तो मनवा मा कसक होइबे करी, बदन पे सितारे लपेटे हुए, हम आपकी आंखों में इस दिल को बसा दें तो, इशारों-इशारों में दिल लेने वाले... सूची ख़त्म नहीं होगी. इन जैसे समस्त गीतों की प्रशंसा के लिए एक ही शब्द है.. याहू!!!!

हम सच में आपको भूला नहीं पाएंगे'कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों' जैसे देशभक्ति गीतों को भी रफ़ी साब ने इतनी ही शिद्दत से गाया है कि आज भी उन्हें सुनकर शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाती है और मन भीतर तक भीग जाता है.

कहते हैं दुनिया में सबसे ख़ूबसूरत रिश्ता या तो ईश्वर से होता है या फिर दोस्त से. यह हम श्रोताओं का सौभाग्य है कि इन दोनों ही रिश्तों को अपने शब्दों की प्राणवायु से पल्लवित करने में इनका कोई जवाब नहीं! तभी तो 'मन तड़पत हरि दर्शन को आज', 'ओ दुनिया के रखवाले' ह्रदय को भीतर तक झकझोर कर रख देते हैं.

'दोस्ती' फ़िल्म का हर गीत इस सुन्दर रिश्ते की तरह हर राह साथ चलता है. कहते हैं कि यह फ़िल्म जिसने भी देखी थी, वह फूट-फूटकर रोया था. मैंने यह दस वर्ष की उम्र में देखी थी और तब से आज तक इस रिश्ते की शक्ति पर विश्वास क़ायम है. 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ-सवेरे', 'मेरा तो जो भी क़दम है', राही मनवा दुःख की चिंता क्यूं सताती है' जैसे गीतों की अमिट छाप आज तक ह्रदय पर अंकित है और उदासी के समय मन 'मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया' गुनगुनाने लगता है.

'आदमी मुसाफिर है' जैसे कितने ही दार्शनिक और हृदयस्पर्शी गीतों में इनकी ही स्वर-लहरियों का भावनात्मक संचार हुआ है. निराशा के भीषण पलों में 'ये दुनिया ये महफ़िल', गीत कितना सच्चा और अपना-सा लगता है. प्यासा और कागज़ के फूल फिल्मों का प्रत्येक गीत नए गायकों के लिए एक पाठ्यक्रम की तरह है. जिसने ये गायकी सीख ली वो तर गया.

दशकों बाद भी वर्तमान परिवेश में इस गीत की सार्थकता कम नहीं हुई है... ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया /ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया /ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया /ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है... वाह्ह, वाह्ह और फिर वाह्ह्ह!

चुरा लिया है तुमने जो दिल को, इतना तो याद है मुझे, चलो दिलदार चलो, तेरी बिंदिया रे, तुम जो मिल गए हो, आज मौसम बड़ा बेईमान है, दीवाना हुआ बादल.... जैसे हजारों गीतों की लम्बी श्रृंखला है जहां अपना सबसे प्रिय गीत चुन पाने से दुरूह कार्य और कुछ नहीं! छोड़ ही दीजिए.

सच तो यह है कि रफ़ी साब के युग को कुछ शब्दों में समेट लेना न तो आसान है और न ही संभव. यह तो बस स्नेहसिक्त प्रयास भर है, उनकी आवाज़ को दिल से सुनने, सलाम करने का!

ठीक ही कहा था आपने, 'तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे /हां तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे /जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे/ संग संग तुम भी गुनगुनाओगे'

गुनगुना रहे हैं, सर! हम सबका स्नेह और धन्यवाद क़बूल करें.

ये भी पढ़ें-

यदि इन सब सवालों का जवाब 'हां' है तो इस हां का नाम दिलीप कुमार है

दोहराया गुज़रा ज़माना, हीरो हीरोइन खुद गाये अपना गाना

ऋतिक-कंगना की दुश्मनी से याद आये बॉलीवुड के कुछ झगड़े


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲