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Updated: 13 अप्रिल, 2021 07:58 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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फरवरी के महीने में आने वाले प्यार के सप्ताह 'वेलेंटाइन वीक' में एक चॉकलेट डे होता है. इस दिन प्रेमी और प्रेमिका आपसे में चॉकलेट का आदान-प्रदान करते हैं. मतलब कहा यही जाता है, लेकिन चॉकलेट देने की सारी जिम्मेवारी जो है, वो लड़के की ही होती है. इससे हल्का सा भी दाएं-बाएं होनी की कोशिश करने पर 'स्लैप डे' भी मना लिया जाता है. खैर, प्यार-मोहब्बत में ये तो चलता ही रहता है. लेकिन, इस प्यार-मोहब्बत वाले वेलेंटाइन वीक ने लोगों में चॉकलेट का ऐसा खुमार चढ़ाया है कि अब लोग तीज-त्योहारों पर भी मिठाई की जगह चॉकलेट देने लगे हैं. त्योहार से याद आया कि यूपी में लोकतंत्र का एक छोटा वाला पर्व चल रहा है. गांव-देहात में इसे पंचायत चुनाव कहते हैं.

इस चुनाव में प्रत्याशी जलेबी, रसगुल्ला जैसी तमाम मिठाईयों के साथ समोसा बांटकर जैसे-तैसे अपने वोट पक्के कर रहे हैं. लेकिन, उत्तर प्रदेश पुलिस सारा मजा ही खराब करे दे रही है. बीते 15 दिनों में 200 किलो जलेबी, एक कुंटल रसगुल्ला और 1100 समोसे बरामद करने की कम से कम 20 खबरें आ चुकी हैं. यूपी पुलिस का कहना है कि आचार संहिता के हिसाब से ये सब गलत है. उल्टा प्रत्याशी पर ही मुकदमा ठोंके दे रही है. मतलब एक आदमी जैसे-तैसे कर्जा काढ़ के, जमीन-जेवर वगैरह गिरवी रख के प्रधानी चुनाव लड़ने जा रहा है और पुलिस कह रही है कि आचार संहिता की अवमानना है.

एक तरीके से ये हमारी मिठाई वाली संस्कृति पर हमला है.एक तरीके से ये हमारी मिठाई वाली संस्कृति पर हमला है.

इन सभी मामलों के पीछे साजिश होने का शक गहरा जाता है. हो सकता है कि ये सब चॉकलेट वाली कंपनियों का किया धरा हो. चॉकलेट कंपनियां चाहती हों कि प्रधानी चुनाव लड़ने वाले भी जलेबी, रसगुल्ला, समोसा छोड़ सबको चॉकलेट वाला डिब्बा बांटें. मतलब एक तरीके से ये हमारी मिठाई वाली संस्कृति पर हमला है. चॉकलेट वाली कंपनियों के पास वैराइटी नही है, तो वह लोगों के अंदर मिठाई को लेकर इतना डर पैदा कर दे रही है कि लोग मिठाई खाना ही छोड़ दें. भारत में मिठाई के जितने प्रकार हैं, उतने पूरी दुनिया में देश नहीं हैं. लेकिन, हम अपनी मिठाई संस्कृति पर ये हमला बर्दाश्त नहीं करेंगे. जरूरत पड़ी, तो मामला यूनाइटेड नेशंस तक लेकर जाएंगे. लोग-बाग बताते हैं कि मोदी जी ने कई देशों के साथ बढ़िया सेटिंग कर रखी है, तो अपना दावा मजबूत होने की संभावना ज्यादा है.

भारत में जितने भी कायदे प्लस कानून हैं, वो सब बेचारे गरीबों के लिए ही बने हैं. प्रधानी का चुनाव लड़ने वाला शख्स बहुत मेहनत (मेहनत के विषय में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) करता है. लेकिन, उसकी सारी मेहनत पुलिस उठा ले जाती है. अगर खाना ही है, तो साथ में बैठकर 200-250 ग्राम खा लेओ. इत्तेऊ में मन न भरै, तो किलो-दुई किलो पैक कराके घरै लई जाओ. कौन मना करी साहिब का. लेकिन न, यूपी पुलिस तो नरेंद्र मोदी से प्रेरणा लेकर चल रही है. न खईबे और न खान देबे. अब आपै बताओ, ये कौनो बात भई. विधायिकी और सांसदी के चुनाव में भी पैसा, मदिरा, कपड़ा, मिठाई सब कुछ बंटता है, तब यूपी पुलिस नहीं रोक पाती है. गरीब आदमी जैसे-तैसे प्रधानी का चुनाव लड़ रहा है और पुलिस उसमें भी अडंगा डाले दे रही है.

गरीब आदमी जैसे-तैसे प्रधानी का चुनाव लड़ रहा है और पुलिस उसमें भी अडंगा डाले दे रही है.गरीब आदमी जैसे-तैसे प्रधानी का चुनाव लड़ रहा है और पुलिस उसमें भी अडंगा डाले दे रही है.

वैसे, चुनाव आयोग ये आचार संहिता लागू ही क्यों करता है. सारा खेल तो आचार संहिता लागू होने से पहले ही हो जाता है. अब आखिरी के समय में प्रधान प्रत्याशी अपना चेहरा याद रखवाने के लिए जलेबी, रसगुल्ला, समोसा बांटता है, तो गरीब आदमी को मुफ्त में मुंह का स्वाद बदलने को मिल जाता है. तमिलनाडु में तो सरकारें टीवी-फ्रिज, गोल्ड तक बांटती हैं, वहां चुनाव आयोग कभी कुछ नहीं करता. चुनाव आयोग को ऐसे कुछ नियम बनाने चाहिए कि तमिलनाडु वाली स्कीमें पूरे देश में लागू हों. इसी बहाने हर व्यक्ति का जीवन स्तर ही सुधर जाएगा. खैर, पंचायत चुनाव में मतदान से एक दिन पहले मदिरा भी बांटी जाएगी, तो यूपी पुलिस अभी से कमर कस ले. जलेबी, समोसा और रसगुल्ला तो बस अंगड़ाई है, आगे बहुत लड़ाई है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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