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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 14 जुलाई, 2022 09:56 PM
निधिकान्त पाण्डेय
निधिकान्त पाण्डेय
  @1nidhikant
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नमस्कार !

बैठ जाइये.. बैठ जाइये.. आराम से बैठ जाइये! हमारी कार्यवाही प्यार से चलने दीजिये...अरे गजब ‘ड्रामा’ मचा रखा है कुछ लोगों ने.. ये ‘नौटंकी’ यहां नहीं चलने वाली... ‘शर्म’ आनी चाहिए ऐसा ‘दुर्व्यवहार’ करने वाले लोगों को! आपके आसपास भी ऐसी ‘चांडाल चौकड़ी’ होगी शायद... जिनमें से हो सकता है कोई ‘छोकरा’ ‘निकम्मा’ हो या ‘दोहरे चरित्र’ वाला... हो सकता है कोई ‘चिलम लेता’ हो या ‘चरस पीता’ हो.. या हो सकता है कोई ‘दलाल’ हो या ‘खालिस्तानी’.. ऐसे ‘तानाशाही’ या ‘अराजकतावादी’ लोगों का कोई सम्मान नहीं होना चाहिए.. ‘जयचंद’ जैसे ‘गद्दार’ को मिलता है तो सिर्फ ‘अपमान’...

Parliament, Narendra Modi, Language, Om Birla, BJP, Congress, Rahul Gandhi, MP, Aandolanjiviभाषा पर संसद के नए नियमों ने सांसदों में बेचैनी जरूर बढ़ा दी है

अब आप सोच रहे होंगे कि बात तो बड़े प्यार से हुई शुरू थी लेकिन फिर न जाने कैसे-कैसे शब्दों-मुहावरों का जिक्र करते हुए जयचंद की कहानी तक पहुंच गई... अब ये तो आपको पता ही होगा कि धोखेबाज, देशद्रोही या गद्दार व्यक्ति के लिए अक्सर लोग जयचंद का नाम ही मुहावरे की तरह प्रयोग में ले लेते हैं क्योंकि ऐसी कहावत भी है –

जयचंद तूने देश को बर्बाद कर दिया,

गैरों को लाकर हिंद में आबाद कर दिया...

सम्राट पृथ्वीराज की कहानी तो आपको पता होगी. अभी हाल ही में एक फिल्म भी आई थी. खैर...मैं आपको थोड़ी सी कहानी सुना देता हूं. सम्राट पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता में प्यार हो गया था और राजकुमारी के पिता की पृथ्वीराज से नहीं बनती थी तो पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी संयोगिता का हरण कर लिया और उनसे विवाह भी.

ये बात संयोगिता के पिता को नागवार गुजरी. राजकुमारी संयोगिता के पिता मतलब राजा जयचंद. वो अपनी सेना समेत पृथ्वीराज को नहीं हरा सकता था. इसलिए जयचंद को किसी का साथ चाहिए था और ऐसा आरोप है कि जयचंद ने सम्राट पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए मुहम्मद गौरी का साथ दिया था क्योंकि गौरी भी पृथ्वीराज से अपनी हार का बदला चाहता था.बस.

धोखेबाज जयचंद ने मुहम्मद गौरी का साथ दिया और 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई और भारत में इस्लामी राज्य स्थापित हो गया. गौरी ने अपने योग्य सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का गवर्नर बनाया और वापस चला गया. बाद में गौरी को कैसे मारा इसका वर्णन पृथ्वीराज के मित्र चंदबरदाई ने अपनी पुस्तक ‘पृथ्वीराज रासो’ में किया है.

लेकिन यहां हम बात कर रहे थे ‘असत्य’ बोलने वाले ‘अहंकारी’ और ‘दोहरे चरित्र’ वाले की. आप सोच रहे होंगे कि मैं कई सारे अमर्यादित या असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल क्यों कर रहा हूं?

आह ! और वाह! सही सोचा आपने... यही है हमारा आज का टॉपिक. आप कह सकते हैं कि टॉपिक पर...'हुजुर आते-आते बहुत देर कर दी...' तो मैं कहूंगा कि क्या करें. मेरे दोस्त जैसे कुछ ‘बाल बुद्धि’ भी होते हैं जिन्हें कहानियों की ‘लॉलीपॉप’ भी देनी होती है.

OOPS! What am I saying! my friend may say – ‘I will curse you’.. you have ‘betrayed’ me.. अपने ‘पाखंड’ और ‘ड्रामा’ के लिए मेरे साथ ‘विश्वासघात’ करते हो.. तो मैं अपने दोस्त को भी कह सकता हूं – देखो! ज्यादा ‘दादागिरी’ मत करो.. एंड ‘Don’t shed crocodile tears’ यानी ‘घडियाली आंसू मत बहाओ’... ‘अंट-शंट’ मत बोलो... फिर मेरा दोस्त मुझपर कहावत की मार कर सकता है कि ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे?’

...और ये बहस लम्बी चल सकती है लेकिन मुख्य मुद्दा ये है कि कई शब्द जो आप ग्राफिक्स के जरिये मेरे साथ-साथ उड़ते-फिरते देख रहे हैं. ये सारे और इनके अलावा बहुत सारे शब्द लोकसभा सचिवालय ने असंसदीय शब्दों की नई बुकलेट में जारी किए हैं. इसी टॉपिक और इसके कुछ इतिहास और नियम के बारे में बात होगी.

संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने को है और नेता लोग हो जाएं सावधान! नहीं...नहीं...बारिश और खराब ड्रेनेज सिस्टम या बरसात से लगने वाले जाम से नहीं. बल्कि संसद के दोनों सदनों में अभद्र भाषा के इस्तेमाल से सावधान हो जाएं. क्योंकि असंसदीय शब्दों की नई सूची तैयार की गई है.जिनके बोलने पर लोकसभा और राज्यसभा में मनाही होगी.

सबसे बड़ी परेशानी की बात ये है कि इस लिस्ट में ऐसे कॉमन शब्द शामिल किए गए हैं जिनका आम बोलचाल में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है...ऐसे में नेतोओं को और ज्यादा सावधानी बरतनी होगी. अब सोचिये कोई विपक्षी सांसद अगर कह दे कि सरकार 'तानाशाह' हो गई है... या सत्ता पक्ष का कोई सांसद कहे कि विपक्ष 'तानाशाही' कर रहा है.

तो संसद के नए नियमों के अनुसार इन दोनों ही शब्दों को यानी 'तानाशाह' और 'तानाशाही' को असंसदीय माना जाएगा और इस संबोधन को संसद की कार्यवाही से हटा दिया जाएगा. मैंने कुछ देर पहले आपको एक कहानी सुनाई थी तो अब किसी को ‘जयचंद’ कहना मतलब आफत मोल लेना हो जायेगा. कोई सांसद किसी को ‘विनाश पुरुष’ या ‘खालिस्तानी’ नहीं बोल पायेगा.

आपको याद होगा कुछ समय पहले कुछ शब्दों के बाद ‘जीवी’ शब्द लगाकर बोलने का बड़ा चलन हुआ था. लेकिन अब संसद में जीवी वाला एक शब्द तो बैन हो जायेगा और वो है – ‘जुमलाजीवी’ – ये शब्द असंसदीय माना जाएगा. भला हो मेरा और मेरे दोस्त का... हम दोनों अभी संसद में नहीं गए हैं.

हां हमने तो अपना नामांकन भी नहीं भरा. खैर ये तो मस्ती वाली बातें चलती रहेंगी. लेकिन मेरा दोस्त अगर संसद में होता तो उसे 'बाल बुद्धि' नहीं कहा जाता क्योंकि उस शब्द की भी मनाही है. अंग्रेजी के शब्द 'Hypocrisy' और 'Incompetent' भी नहीं बोले जा सकते. मतलब मेरा बाल-सखा अब खुश हो सकता है.

लोकसभा और राज्यसभा में 18 जुलाई से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में ये नियम लागू हो जाएगा.एक रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी एक नई बुकलेट में कहा गया है कि ‘शकुनि’, ‘खून से खेती’, ‘ढिंढोरा पीटना’ और ‘बहरी सरकार’ जैसे शब्दों को असंसदीय माना जाएगा. इनमें अंग्रेजी के शब्द 'Covid Spreader’, 'Snoopgate’, 'Ashamed', 'Abused, 'Betrayed', 'Corrupt', 'Drama', Anarchist और ‘Dictatorial’, भी शामिल हैं.

यानी कि संसद की कार्यवाही के दौरान लोकसभा और राज्यसभा में इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा. इसका अर्थ है कि संसद में डिबेट अथवा किसी अन्य मौके पर अगर इन शब्दों का प्रयोग किया जाएगा तो इसे सदन की कार्यवाही से हटा दिया जाएगा. देश में अलग अलग विधानसभाओं में अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर कुछ शब्दों और अभिव्यक्तियों को असंसदीय घोषित किया जाता है.

इन शब्दों की सूची को भी लोकसभा सचिवालय द्वारा संदर्भ के लिए संकलित किया गया है. राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष के पास इन शब्दों और भावों को सदन की कार्यवाही से हटाने का अंतिम अधिकार होगा. इस सूची में कहा गया है कि कुछ शब्द तब तक अंससदीय मालूम नहीं पड़ते जबतक कि संसदीय कार्यवाही के दौरान इन्हें अन्य संबोधन के साथ मिलाकर नहीं देखा जाता है.

बच्चों का खेल आपको याद दिलाता हूं. जब सबको चुप करवाना हो या नींद लेनी हो तो कहते हैं. अब जो बोला वो 'Donkey'. लेकिन नहीं. ये शब्द घर पे आप चाहे यूज़ करलें लेकिन संसद में —ना बाबा ना.. कुछ और शब्द जिन्हें असंसदीय घोषित किया गया है, उनमें हैं - 'bloodshed', 'bloody', 'cheated, 'childishness', 'corrupt', 'coward', 'criminal' 'disgrace', 'eyewash', 'mislead', 'lie' और 'untrue'.

True, 'untrue' पर मुझे एक और लेटेस्ट बात याद आ गई. टीएमसी की फायरब्रांड सांसद मोहुआ मोइत्रा ने इस ज्वलंत विषय में घी डालने का काम किया है उन्होंने कई ट्वीट किए. एक ट्वीट में पूछ लिया कि ‘Truth’ शब्द असंसदीय तो नहीं ? दूसरे ट्वीट में लिखा- ‘बैठ जाइये, बैठ जाइये. प्रेम से बोलें. लोकसभा और राज्यसभा की नई असंसदीय शब्दों की सूची में संघी शब्द शामिल नहीं है.

मूल रूप से सरकार ने विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए गए सभी शब्दों के इस्तेमाल को रोकने के लिए ये काम किया है, कैसे भाजपा भारत को नष्ट कर रही है और उन पर प्रतिबंध लगा रही है' मोहुआ मोइत्रा ने एक और ट्वीट किया जिसमें सवाल पूछा है – ‘You mean I can’t stand up in Lok Sabha & talk of how Indians have been betrayed by an incompetent government who should be ashamed of their hypocrisy?’

क्योंकि betrayed, incompetent, ashamed और hypocrisy सभी शब्द बैन हैं एक शब्द और असंसदीय घोषित किया गया है और वो है – Sexual Harrassement महुआ मोइत्रा ने इसके लिए भी ट्वीट किया और लिखा कि इस शब्द को वो Mr Gogoi नाम से रिप्लेस कर रही हैं.

उधर, शिवसेना की राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने पुराने मीम का जिक्र कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने ट्वीट किया 'ये पुराना मीम याद आ गया. अगर करें तो करें क्या, बोलें तो बोलें क्या? सिर्फ वाह मोदी जी वाह! ये मीम अब हकीकत सा लगता है!' उन्होंने एक छोटा सा मीम विडियो भी शेयर किया.

आपको बताता चलूं कि अध्यक्ष व सभापति पर आरोप को लेकर भी कई वाक्यों को असंसदीय श्रेणी में रखा गया है.. इसमें ‘आप मेरा समय खराब कर रहे हैं’, ‘आप हम लोगों का गला घोंट दीजिए’, ‘चेयर को कमजोर कर दिया है’ और ‘ये चेयर अपने सदस्यों का संरक्षण नहीं कर पा रही है’, आदि शामिल हैं. अगर कोई सदस्य पीठ पर आक्षेप करते हुए ये कहता है कि ‘जब आप इस तरह से चिल्ला कर वेल में जाते थे, उस वक्त को याद करूं’ या ‘आज जब आप इस आसन पर बैठे हैं तो इस वक्त को याद करूं’. तो ऐसी बातों को असंसदीय मानते हुए इन्हें रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं माना जाएगा.

ऐसे शब्दों या बातों का जिक्र करता रहूंगा तो न जाने कब तक यह बात चलती रहेगी. क्योंकि वो कहते हैं ना कि आप बोलते हैं न बोलते रहिए. बोलना जरूरी है और बोलना हमारी आजादी भी है. लेकिन बोलते वक्त शब्दों का चयन बहुत जरूरी होता है. हम इंसान हैं. कुछ न कुछ ऐसा बोल ही जाते हैं जो नहीं बोलना चाहिए

लेकिन हमारा बोलना और सांसदों का संसद में बोलना... दोनों में बड़ा अंतर है. संसद में बोली गई बातें हमेशा के लिए रिकॉर्ड हो जाती हैं. हमारी तरह हमारे सांसद भी इंसान ही हैं. वो भी यदा-कदा कुछ ऐसा बोल जाते हैं जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए. अब इसकी पहचान कैसे हो कि संसद में क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं... इसलिए एक लिस्ट बनाई गई ऐसे शब्दों की जिसे संसदीय भाषा में असंसदीय कहा जाता है.

भारत के संसद के इतिहास में कब आया असंसदीय शब्द?

क्या कहते हैं संसद के नियम और क्यों एक बार फिर असंसदीय शब्दों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बवाल मचा हुआ है? चलिए जानते हैं विस्तार से.

दरअसल सदन के सदस्य कई बार बोलते हुए ऐसे शब्द बोल जाते हैं, जिन्हें सदन में बोलने की इजाजत नहीं होती. बाद में स्पीकर के आदेश से इन शब्दों या वाक्यों को रिकॉर्ड से बाहर निकाल दिया जाता है. संसद की गरिमा को बनाए और बचाए रखने के लिए कुछ शब्दों का इस्तेमाल मना किया गया है. समय के अनुसार इसमें नए शब्द जुड़ते जाते हैं जैसे अभी मोदी सरकार ने जुमलाजीवी, तानाशाही, निक्कमा और बहरी सरकार जैसे शब्दों को असंसदीय माना है.

हालाकि ताज्जुब वाली बात है कि इनमें से कई शब्द बोलचाल की भाषा में खूब इस्तेमाल किए जाते हैं. संसद में सिर्फ शब्द ही नहीं, बल्कि कुछ हाव-भाव के प्रदर्शन के इस्तेमाल पर भी रोक है. राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषद की कार्यवाही भी इसी नियम के मुताबिक संचालित किए जाते हैं.

आपने कभी सोचा है कि पहला असंसदीय शब्द क्या हो सकता है. सोचिए जरा... अजी वो ऐसा शब्द है या यूं कह लीजिए किरदार है जो लगभग हर किसी की जिंदगी में आता ही है... चलिए छोड़िए... ये बताइये आपकी शादी हो गई? नहीं हुई तो भी कोई बात नहीं. आपके नाना की बातें तो आपको याद होंगीं. आप आपने नाना के बड़े लाडले रहे होंगे... अजी! नाना होंगे आपके लिए लेकिन वो रिश्ते में आपके पिताजी के क्या लगते हैं...ठीक कहा.. ‘ससुर’.

मध्यप्रदेश विधानसभा में अगस्त 2021 को एक किताब का विमोचन किया गया था. ये किताब असंसदीय शब्दों का एक संग्रह है. इस बुकलेट में 1161 असंसदीय शब्द रखे गए हैं. इसके अलावा उस शब्द के आगे वो तारीख भी लिखी गई है, जिस तारीख को असंसदीय शब्द मानकर उस शब्द को हटाया गया है. इसमें पहला शब्द 'ससुर' है जो 23 सितंबर 1954 को इस्तेमाल हुआ था.

‘गंदी सूरत' शब्द 2 अक्टूबर 1954 को इस्तेमाल किया गया था. इसमें आखिरी शब्द 'मिस्टर बंटाधार' है. ये 16 मार्च 2021 को इस्तेमाल हुआ था. अब आपको असंसदीय शब्दों के नियम और कानून बताएं उससे पहले मध्यप्रदेश विधानसभा की कुछ असंसदीय शब्दों की लिस्ट दिखाते हैं. इनमें कुछ शब्द सुनकर आपको हंसी आएगी और कुछ हैरान कर देंगे.

चोर मचाए शोर, मिर्ची लग गई, दादागिरी नहीं चलेगी, आप 302 हत्या के मुलजिम हो, मंत्री की बहू ने आत्महत्या कर ली, शर्म करो, यह झूठ का पुलिंदा है, बंधुआ मजदूर, चमचा, भेदभाव, वेंटीलेटर, चापलूस, नौटंकी, पप्पू, माई का लाल, मुक्का मारा, व्यभिचारी, शर्मनाक, पप्पू पास हो जाएगा, चड्डी वाला, गोलमाल, मुर्गा और दारू में पैसे खत्म कर देते हैं, सोच में शौच भरा है, फर्जी पत्रकार, आपने चड्डी पहनी है क्या?

इन असंसदीय शब्दों को सुनकर क्या आपको मिर्ची लगी या फिर आपको हंसी आई... हंसी ही आई होगी. चलिए अब बात करते हैं नियमों की.

क्या कहता है नियम ?

संविधान के आर्टिकल 105 (2) में साफ निर्देश है कि संसद सदस्यों को इस तरह की आजादी नहीं होती कि सदन की कार्यवाही के दौरान कोर्ट या कमिटी के सामने कुछ भी बोल दें.. सदन के अंदर अनुशासन कायम रखना होता है.

लोकसभा में प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के नियम 380 (एक्सप्रेशन) के मुताबिक, 'अगर अध्यक्ष को लगता है कि बहस में अपमानजनक, असंसदीय, अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वो सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने के लिए आदेश दे सकता है.

अगर आप सांसद हैं तो सदन में किसी पर झांसा देने का आरोप नहीं लगा सकते हैं. स्पीकर पर 'दोहरे दिमाग', 'डबल स्टैंडर्ड', 'आलसी', 'घटिया' या 'उपद्रवी' होने का आरोप नहीं लगा सकते हैं... कोई भी सांसद सदन में किसी दूसरे सांसद के खिलाफ ‘कट्टरपंथी’ या ‘एक्सट्रीमिस्ट' और ‘डाकू' जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकता है.

विपक्ष को सरकार को 'अंधी-गूंगी' कहने का अधिकार भी नहीं है...इसकी जगह सरकार के खिलाफ 'अली बाबा और 40 चोर' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है. किसी सांसद को 'अजायबघर’ भेजने की सलाह देना भी अससंदीय है. अनपढ़ सांसद के लिए ‘अंगूठा छाप' जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल करने की मनाही है.

जाति, संप्रदाय, लिंग, भाषा, शारीरिक कमजोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी पाबंदी के नियम में आते हैं. इसके अलावा जिन शब्दों को सदन के बाहर भी सार्वजनिक तौर पर बोलने की मनाही है उन शब्दों का भी सदन में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

कैसे हटते हैं सदन की कार्यवाही के रिकॉर्ड ?

हिंदी या अंग्रेजी समेत विभिन्न भारतीय भाषाओं में कई ऐसे शब्द हैं, जिन्हें असंसदीय माना गया है. लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के सभापति का काम सदन की कार्यवाही के रिकॉर्ड से इन शब्दों को दूर रखना होता है. इसके लिए नियम 381 के मुताबिक, सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे मार्क किया जाएगा और कार्यवाही में एक फुटनोट इस तरह से डाला जाएगा कि अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक उसे हटा दिया जाए.

इस पूरी प्रक्रिया में में मदद के लिए, लोकसभा सचिवालय ने 'असंसदीय अभिव्यक्ति' नाम से एक किताब भी निकाली हुई है. इस किताब को सबसे पहले साल 1999 में तैयार किया गया था. साल 2004 में इस किताब का नया एडिशन आया था इसमें 900 पन्ने थे. इस सूची में कई शब्द और एक्सप्रेशन्स शामिल हैं जिन्हें देश की ज्यादातर भाषाओं और संस्कृतियों में असभ्य या अपमानजनक माना जाता है.

हालांकि इसमें कुछ ऐसे भी शब्द शामिल हैं, जिनके बारे में बहस की जा सकती है कि ये ज्यादा नुकसानदायक नहीं हैं. इस किताब को तैयार करने के दौरान आजादी से पहले केंद्रीय विधानसभा, भारत की संविधान सभा, प्रोविजनल संसद, पहली से दसवीं लोकसभा और राज्यसभा, राज्यों की विधानसभा और कॉमनवेल्थ संसदों की बहसों से वो संदर्भ लिए गए थे, जिन्हें असंसदीय घोषित किया गया था.

एक खास बात ये है कि कुछ शब्द जैसे 'शिट', 'बदमाशी', 'स्कमबैग' और 'बैंडीकूट', शब्दों को अगर कोई सांसद किसी और के लिए इस्तेमाल करता है तो उसे असंसदीय माना जाएगा, लेकिन अगर वो अपने लिए करता है तो ये चल सकता है. वहीं अगर कार्यवाही को कोई महिला अधिकारी संचालित कर रही हैं, तो कोई भी सांसद उन्हें 'प्रिय अध्यक्ष' कहकर संबोधित नहीं कर सकता है. रिश्वत, रिश्वतखोरी, ब्लैकमेल, डकैत, चोर, डैम, डार्लिंग जैसे सभी शब्द असंसदीय माने जाते हैं.

भारतीय राजनीति में समय के साथ-साथ राजनीति का स्तर गिरता जा रहा है. सदन के अंदर एक दूसरे की आलोचना करने में कोई बुराई नहीं लेकिन इस आलोचना का एक दायरा होना चाहिए. कई बार तो नेताओं ने ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जिसे दोबारा न तो लिखना सही है और न ही उनका जिक्र करना. महुआ मोइत्रा समेत कई नेताओं ने सरकार के नए असंसदीय शब्दों पर सवाल खड़ा किया है. उनका इशारा साफ है कि सरकार अपनी आलोचना भी सुनना पसंद नहीं करती इसलिए तानाशाही और जुमलाजीवी जैसे शब्दों को भी असंसदीय मान रही है.

लेकिन सरकार तो सरकार है. वैसे भी मोदी सरकार तो बहुमत में है.वो अपने हर फैसले को डिफेंड करती है. सरकार के असंसदीय शब्दों की लिस्ट देखकर लगता है कि वो विपक्ष की बात सुनना तो चाहती है लेकिन अपने शब्दों में. जैसे सरकार, विपक्ष और विपक्षी नेताओं से कह रही हो कि..

बात तक करनी न आती थी तुम्हें,

ये हमारे सामने की बात है.

और विपक्ष इस उलझन में बैठी है कि.

समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई,

कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पण नहीं मिलता.

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लेखक

निधिकान्त पाण्डेय निधिकान्त पाण्डेय @1nidhikant

लेखक आजतक डिजिटल में पत्रकार हैं.

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