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Updated: 26 दिसम्बर, 2021 03:29 PM
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
  @siddhartarora2812
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मुसीबतें किसपर नहीं आतीं, ये तो सबकी दोस्त है. हां जब वित्तीय संकट हो तो वो ज़रा बड़ी लगती है. मुझे भी लग रही थी कि मैंने Roy Sullivan के बारे में जाना. ये इतने कमाल के पार्क रेंजर थे कि इसका नाम गिनिज़ बुक में दर्ज है. 1942 की बात है, रॉय तब तीस साल के कड़क नौजवान थे. अमेरिका में एक जगह है वर्जीनिया, वहीं ये पले, बढ़े, काम करते थे कि एक रोज़ बारिश में फंस गए. तूफान आने लगा तो एक नई बनी बिल्डिंग में जा छुपे, उस बिल्डिंग पर बिजली गिर गई, वहां लाइट्निंग रॉड तबतक नहीं लगी थी, अब बिजली गिरी तो बिल्डिंग ने आग पकड़ ली. आग के डर से रॉय साहब भागे-भागे-भागे और एक बिजली रॉय पर भी गिर गई. जिस बिजली ने अभी पूरी बिल्डिंग जलाई, उसने रॉय की टांग का मात्र आधा इंच हिस्सा झुलसा दिया और साथ ही रॉय के जूते में छेद कर दिया.

Electricity, America, Rainfall, Satire, Life, Suicide, Death, Friendमुसीबतों से कैसे लड़ा जाता है सीखना हो तो रॉय से सीखिये

धत्त, बिचारा जूता!

कोई बात नहीं, जान बची सो लाखों पाए. उसके साथियों ने बताया कि छोटे डर मत, एक आदमी पर बिजली गिरने के दस हज़ार में से एक रेशीयो के चांस होते हैं. उसमें तू ज़िंदा बच गया, सोच तू कितना लकी है क्योंकि जिनपर बिजली गिरी है, वो या तो शहीद हो गए हैं या किसी काबिल नहीं रहे हैं. सो यू आर ए लकी मैन, यू गेट ए सेकंड चांस!

सत्ताइस साल बीत गए. बिजली गिरना एक बुरा सपना भर रह गया, 1969 की एक शाम, रॉय ट्रक चल रहे थे, बारिश तेज़ हो रही थी, बिजली कड़क रही थी. तुरंत रॉय की नज़र पैर के निशान पर गई. हादसे की धुंधली याद तरोताज़ा हो गई. पर ट्रक की मेटल बॉडी बनी ही इस तरह से होती है कि अंदर बैठे आदमी पर बिजली-पानी-धूप न पड़े.

खुद को सेफ मान रॉय ‘मैं निकला, ओ गड्डी ले के’ गाते हुए मस्त जा रहे थे कि बिजली रोड डिवाइडर पर लगे पेड़ पर गिरी और मौसम के मज़े लेते, खिड़की खोले रॉय, बिजली के रिवर्स एक्शन की चपेट में आ गए. बिचारे की भवें और पलकों के बाल भयंकर रूप से जलने लगे. घबराहट में चिल्लाते-चिल्लाते उन्होंने ट्रक सड़क से उतार दिया. (इंडिया में होता तो एक्सीडेंट से मर जाता)

अब रॉय ने ज़्यादा समय घर पर बिताना शुरु कर दिया, लेकिन जॉब न छोड़ी (सरकारी जो थी) पर अगले ही साल घर के बाहर खड़े रॉय पर फिर बिजली गिर पड़ी. इस बार उसका कंधा जलने लगा, जैसे-तैसे बिचारे ने खुद को ज़िंदा बचा लिया. हालांकि उनके ‘सनी-बिक्की’ टाइप दोस्त उन्हें तीसरी बार भी ज़िंदा बचने की बधाइयां देते पार्टी मांगने पहुंच गए पर सच्ची-मुच्ची में हमारे इलेक्ट्रिक मैन की अब हालत ख़राब थी.

पर जल्द ही उन्हें ज्ञान हुआ कि यार, जब घर बैठे भी मुई बिजली गिर सकती है, तो काम करते रहने में क्या हर्ज़ है. अब उन्होंने यह धारणा बना ली कि ज़्यादा से ज़्यादा क्या हो जायेगा? बिजली ही तो गिर जायेगी, कम से कम अब प्रैक्टिस तो हो गई है कि गिरती है तो कैसा लगता है, सर्दी में भी गर्मी का एहसास होता है, सो जस्ट चिल ब्रो! पर ब्रो को तो अभी और ज़लील होना था.

1972 में बिजली पकड़ू भाई रेंजर स्टेशन के अंदर काम कर रहे थे - कोई साठ साल उम्र थी- आई रीपीट, अंदर काम करते वक़्त बिजली गिर गई. अनर्थ हो गया! रॉय के बालों में आग लग गई. ब्रो भागे बाथरूम में तो नल के नीचे सिर ही न आया, जल्दी से गीले तोलिए से गिने चुने बाल बचाए! अबकी जो हुआ, वो ऑडियंस के सामने हुआ, रॉय तो छोड़िए वो सनी-बिक्की टाइप दोस्तों की भी हालत पंचर हो गई.

ऐसा माहौल हो गया कि रॉय एक बार अपने चीफ के साथ चल रहा था कि दूर कहीं बिजली कड़की, चीफ बोला 'सुनों मैं तुमसे बाद में बात करता हूं, तबतक जैसे तुम्हें ठीक लगे वैसे कर लो' और भाग गया! ऐसे बिहेवीयर ने रॉय का मेंटल बैलन्स बिल्कुल हिला दिया. रॉय को लगा कि कोई शैतानी ताकत है जो उसे किश्तों में मारना चाहती है.

उसे लगने लगा कि अगर वो भीड़ में भी खड़ा होगा तो बिजली सिर्फ उसी पर गिरेगी, और वो मरेगा भी नहीं! अब भैया ने दो काम फौरन किए. एक – पानी की बोतल अपने साथ रखनी शुरु कर दी कि बचे बाल न जल जाएं, दूसरा – जिन्होंने दस हज़ार में एक बार वाली थ्योरी सुनाई थी उन्हें सुल्तान कुरेशी बन दौड़ा-दौड़ा के चप्पल से मारा.

1973 में, यानी अगले ही साल फिर ट्रक चलाते हुए रॉय को बारिश-तूफान सा आता दिखाई दिया, अबकी ब्रो अड़ गए कि मैं बाहर निकलूंगा ही नहीं. वह ट्रक की सीट के नीचे दुबक गए. ऐसा वो दो एक बार पहले भी करके बच चुके थे. कुछ देर बाद तूफान शांत हो गया, वो डरते-डरते बाहर निकले. मौसम खुलने लगा था, उन्होंने चारों तरफ देखा.बादल हट रहे थे.

उसकी निगाह ऊपर उठी, एक बादल ठीक उसके टकले के ऊपर था, जबतक वो समझता तबतक उसकी आंखों के सामने ये अद्भुत नज़ारा हुआ, बिजली गिरी और उसके लेफ्ट हाथ और पैर में झटका लग लग गया और सिर में फिर आग लग गई. भला हो बोतल का, तुरंत बचे बाल बचा लिए गए.

ज़िंदगी से हताश हो चुके रॉय पर फिर 1976 में एक बादल ने बाकायदा दौड़ाकर, भगा-भगाकर और थकाकर लपेटा, इस छठी बार ब्रो के सिर पर आग तो लगी ही, टखना संग बेकार हो गया. गिनती के बाल ले के, 25 जून 1977 को जनाब रॉय सुलीवन तालाब में मछली पकड़ रहे थे कि उनपर बिजली गिर पड़ी. बचे चार बालों में तो आग लगी ही, साथ ही छाती और पेट भी झुलस गए.

उसी हाल में वह नाव खेते हुए किनारे आए, गाड़ी की डिग्गी में बड़ी मशक्कत से मछलियां भरीं, लेकिन स्यापों की कॉकटैल देखिए, भालू आ गया और रॉय की मछलियां छीनने लगा, पर रॉय ने पेड़ की डाली से जो धोया भालू को, भालू भाग खड़ा हुआ. पक्का रॉय ने कभी मेनका रंभा को छेड़ा होगा जो इन्द्रदेव घड़ी-घड़ी उनसे मजे ले रहे थे, या कभी थॉर की जेन पर बुरी नज़र डाली होगी.

बहरहाल बिजली से सताये इस प्राणी को इन्द्रदेव ही नहीं, वर्जीनिया के लोगों ने भी बहुत तंग किया. इससे बात करनी बंद कर दी, इससे मिलना जुलना बंद कर दिया और सातवीं बिजली के बाद भालू के लोहा लेने वाला ये महामानव अपनी ही बंदूक की गोली से पांच साल बाद सितंबर 1983 में 28 तारीख को मर गए. ॐ शांति. 

मुझे लगा इससे ज्यादा मुश्किल ज़िन्दगी भला किसकी हो सकती है, लेकिन फिर एक दिन मुझे जाने क्या सूझी कि मैंने एक भली सी लड़की की मूंछों की तारीफ कर दी, इसके बाद जो मैंने सुनी, तो मुझे रॉय पर गिरी बिजलियां कॉमेडी लगने लगीं.

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लेखक

सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' @siddhartarora2812

लेखक पुस्तकों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं और इन्हें समसामयिक विषयों पर लिखना भी पसंद है.

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