New

होम -> ह्यूमर

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 12 नवम्बर, 2019 05:54 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
  • Total Shares

राजनीति में कुछ भी पूर्व नियोजित और पूर्व निर्धारित नहीं है. सब मौके का खेल है. जो मौके पर चौका मार ले वही सिकंदर है. महाराष्ट्र (Maharashtra Government Formation) ने साबित कर दिया. Maharahstra CM post को लेकर शुरू हुआ महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा ख़त्म ही नहीं हो रहा. राज्‍यपाल भगत सिंह कोश्‍यारी (Governor Bhagat Singh Koshyari) की सिफारिश पर राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन (President rule) लगा दिया गया है. अब जैसे हालात हैं वाकई महाराष्ट्र की जनता (Maharashtra Voters) बधाई की हकदार है, जो उनके यहां 'कर्नाटक' हुआ है. नहीं सोचा था. किसी ने नहीं सोचा था कि महाराष्ट्र (Maharashtra Elections) में ऐसा भी कुछ देखने को मिलेगा. चुनाव के बाद जिस हिसाब से सीटें आईं साफ़ था कि महाराष्‍ट्र में सरकार भाजपा (BJP In Maharashtra) की बनेगी. ये बात शिवसेना (Shiv Sena) को रास नहीं आई और उसने विद्रोह कर दिया. कहा गया कि शिवसेना एनसीपी-कांग्रेस (Shiv Sena To Form Alliance With NCP Congress ) के साथ गठबंधन कर लेगी और आसानी से सरकार बन जाएगी. हुआ उल्टा. कह सकते हैं कि भाजपा के सत्ता की लाइन से हट जाने के बाद गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी से एक बड़ी चूक हुई है. उन्होंने सरकार बनाने के लिए न्योता शिवसेना (ShivSena) को भेजा है जबकि उससे पहले दावा एनसीपी कांग्रेस गठबंधन (NCP Congress Alliance) का है जिनके पास शिवसेना (ShivSena) की 56 सीटों के मुकाबले 98 सीटें हैं.

उद्धव ठाकरे, शिवसेना, महाराष्ट्र, शरद पवार, एनसीपी, Uddhav Thackerayजैसे जैसे समय बीत रहा है महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के बीच सियासी ड्रामा और ज्यादा गहरा होता जा रहा है

महाराष्ट्र में संपन्न हुए चुनाव (Maharashtra Elections) और उस चुनाव के नतीजे पर अगर गौर किया जाए तो मिलता है कि 289 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा (Maharashtra Assembly) में भाजपा (BJP) को 120 सीटें, शिवसेना (ShivSena) को 56 सीटें, एनसीपी (NCP) को 54 सीटें और कांग्रेस (Congress) को 44 सीटें मिली थीं. यानी भाजपा टॉप पर थी कांग्रेस चौथे पायदान पर थी. समय का चक्र घूमा और ऐसा घूमा है कि क्या कहने. निजाम ए कुदरत बदल गई. जमीन का पानी आसमान पर आ गया. आसमान के बादल जमीन की आगोश में आ गए भाजपा को मात देते हुए कांग्रेस ऊपर आ गई है और ऐसे ऊपर आई है जैसे पहले ही हफ्ते में साउथ में रजनीकांत की पिक्चरें सेट मैक्स पर अमिताभ की मूवी सूर्यवंशम.

एक ऐसी पार्टी, जिसका नंबर 4 रहने के कारण बीते दिनों तक महाराष्ट्र की राजनीति में कोई नाम लेने वाला नहीं था. आज किंगमेकर (NCP to be kingmaker in Maharashtra) की भूमिका में है. खुद सोचिये. सोच के देखिये. महाराष्ट्र में कवायद सरकार बनाने की है. ऐसे में पत्रकारों का कांग्रेस दफ्तर (Congress position in Maharashtra) के बाहर खड़े होना और ये जानने का प्रयास करना कि महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) क्या कर रही हैं? एक ऐसा मजाक है जिसे कर्नाटक के उन वोटर्स ने भी नहीं सहा, जिनके शुरूआती रुझान भाजपा के पक्ष में थे. मगर जब बात सरकार की आई तो एक लंबे समय तक जिन्हें कांग्रेस के मार्गदर्शन में निर्णय लेती जेडीएस से संतोष करना पड़ा था.

महाराष्ट्र की सियासत (Maharashtra Government Formation) में जैसा नाटक चल रहा है क्या ही कहा जाए. इतनी अनिश्चितता. सच में सियासत के इस नाटक से तो अगर एकता कपूर सबक लेना चाहें तो ले सकती हैं. कम से कम उनके सीरियल में मिहीर वीरानी बार बार मरने के बावजूद जिंदा तो होता था. यहां तो चुनाव बीतने के एक लंबे समय बाद यही डिसाइड नहीं हो पा रहा है कि राज्य और उसके लोगों को नियंत्रित करने की लगाम किसके हाथ में होगी. जनता की भावना के साथ जो मजाक महाराष्ट्र में हुआ है उसके बाद ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि यहां लड़ाई थी तो रोटी के टुकड़े की मगर इतनी अनिश्चितता की बात रोटी के पिज्जा बनने पर आ गई है और अब लड़ भिड़ कर ये तय किया जा रहा है कि रोटी से पिज्जा बनी उस चीज का सबसे बड़ा हिस्सा किसे मिलेगा?

शिवसेना से हुए मतभेद के बाद सबसे ज्यादा सीटें पाने वाली भाजपा CM पद की रेस से बहार है. राज्यपाल को न जाने क्या सुझा उन्होंने शिवसेना को बुला लिया. शिवसेना के पास कुल सीटें 56. 56 सीटों में कहां सरकार बनती शिवसेना ने एनसीपी से राबता कायम किया और एनसीपी ठहरी कांग्रेस की वफादार. जो मैडम चाह रही हैं वो रहा है. न भाजपा को रोटी का टुकड़ा ही मिला और न ही शिवसेना को पिज्जे का बड़ा पीस. पिज्जा, अगर आज खुद को मॉडर्न बोलने वाले युवाओं की पहली पसंद है. तो इस देश की एक बड़ी आबादी वो भी है जिसका कहना है कि व्यक्ति रोटी के महत्व को नहीं भुला सकता. रोटी है तभी पिज्जा है. गर जो रोटी न होती, तो इंसान भले ही आग की खोज कर लेता पिज्जे को नहीं खोज पाता.

खैर पिज्जा और रोटी मुद्दे से ध्यान भटकाने वाली बात है. मुद्दा महाराष्ट्र और महाराष्ट्र में भी मुख्यमंत्री की कुर्सी है जिसपर पड़ोसी राज्य कर्नाटक का नाटक कुछ इस हद तक हावी हुआ है की क्या ही कहा जाए. मतलब देश का कोई भी मानसिक रूप से स्वस्थ आदमी इस बात को शायद ही पचा पाए कि वहां जिसकी हालत पतली है वो शिवसैनिक हैं और इस वक़्त जिनकी पांचों उंगलियां घी और सिर कढ़ाई में है वो सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में कांग्रेस के लोग हैं. सुना था समय बलवान होता है मगर वो निर्मोही भी होता है ये हमें मराठा मानुषों के बीच मची सियासी घमासान ने बता दिया.

महाराष्ट्र में सरकार किसकी बनती है? मुख्यमंत्री कौन होगा? कितने दिन चलेगा? चलेगा या नहीं चलेगा? लाखों सवाल हैं जिनका जवाब वक़्त तब देगा, जब ये ड्रामा ख़त्म होगा. तब तक हमें महाराष्ट्र में हुए इस कर्नाटक के जन्म पर प्रभु से बस यही प्रार्थना करनी चाहिए कि ये स्वस्थ रहे और ईश्वर इसे लंबी उम्र से नवाजे.

ये भी पढ़ें -

Maharashtra govt का यही है कॉमन मिनिमम प्रोग्राम, मानो न मानो...

अब महाराष्ट्र में शिवसेना के सामने बस एक ही विकल्प बचा है

महाराष्ट्र में अयोध्या पर फैसले का फायदा किसे मिलेगा - BJP या शिवसेना को?

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय