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Updated: 10 नवम्बर, 2019 07:04 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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महाराष्ट्र चुनाव (Maharashtra Election) के नतीजों में शिवसेना-भाजपा (Shiv Sena-BJP Alliance) के गठबंधन को बहुमत मिला. कांग्रेस-एनसीपी (Congress-NCP Alliance) का गठबंधन ये चुनाव हार गया. तय था कि सरकार शिवसेना-भाजपा की ही बनेगी, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर ऐसी लड़ाई छिड़ी कि सरकार बनना तो दूर, भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूटने की नौबत आ गई है. महाराष्ट्र की सरकार का कार्यकाल 9 नवंबर को खत्म हो चुका है और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, वह कार्यकारी मुख्यमंत्री बने हुए हैं. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन बनेगा. एक ओर भाजपा थी और दूसरी ओर कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन. दोनों के बीच में रही शिवसेना (Shiv Sena). ये जिसके भी साथ गठबंधन करती, सरकार उसी की बनती, बशर्तें सब शिवसेना की शर्तों पर राजी हो जाते. इसी बीच भाजपा ने राज्यपाल से साफ कह दिया है कि महाराष्ट्र में भाजपा सरकार नहीं बनाएगी. यानी अब सरकार बनाने की जिम्मेदारी शिवसेना के कंधों पर हैं, लेकिन उसे भी ये समझ लेना चाहिए कि उसके सामने अब सिर्फ एक ही विकल्प बचा है.

Shivsena government in Maharashtraमहाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए उद्धव ठाकरे के सामने सिर्फ एक ही रास्ता बचा है.

क्या है शिवसेना के सामने विकल्प?

कल तक शिवसेना के सामने सरकार बनाने के लिए भाजपा तो विकल्प थी ही, साथ ही कांग्रेस-एनसीपी का भी विकल्प था. अब मान कर चलिए कि भाजपा सरकार बनाने के लिए शिवसेना के साथ शायद ही आए. वैसे भी, शिवसेना की मांग है मुख्यमंत्री पद की, जिसे भाजपा किसी हालत में नहीं देगी, भले ही सत्ता मिले या ना मिले. ऐसे में शिवसेना के सामने सिर्फ एक ही विकल्प है- कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन. अब इसी विकल्प पर अमल करने के लिए बैठकों का दौर भी चल पड़ा है. शिवसेना की ओर से शरद पवार से मुलाकात की जा रही है. कांग्रेस के विधायकों ने भी शिवसेना को समर्थन देने का मन बना लिया है, इसलिए मल्लिकार्जुन खड़गे विधायकों की बात सोनिया गांधी के सामने रख रहे हैं. उधर शिवसेना ने भी मुख्यमंत्री पद का चेहरा बदल दिया है, ताकि सरकार बनाने में थोड़ी आसानी हो सके. यहां आपको बता दें कि विकल्प भले ही एक ही है, लेकिन इस पर अमल करने के रास्ते में भी बहुत सारी बाधाएं हैं.

कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

कल तक शिवसेना की ओर से आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिशें हो रही थीं, लेकिन शायद शिवसेना अब ये समझ चुकी है कि आदित्य अभी इतने काबिल नहीं हुए हैं कि उनके कंधों पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी डाल दी जाए. इसी बीच मुंबई में कुछ जगहों पर उद्धव ठाकरे के पोस्टर लगे दिखाई दिए. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि अब शिवेसना की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार खुद उद्धव ठाकरे भी हो सकते हैं. अब कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन के बाद ये फैसला किया जाएगा कि पूरे समय वही मुख्यमंत्री रहेंगे या फिर 50-50 फॉर्मूला अपनाते हुए आधे समय कांग्रेस-एनसीपी को मौका देंगे. सवाल ये भी उठता है कि अगर आधे समय कांग्रेस-एनसीपी का मुख्यमंत्री होगा तो वो कौन होगा? क्या दोनों पार्टियों से आधे-आधे समय एक-एक नेता मुख्यमंत्री बनेगा या फिर दोनों की सहमति से बाकी के ढाई साल कोई एक ही मुख्यमंत्री रहेगा? चुनाव नतीजे आने के बाद महाराष्ट्र में सरकार बनना जितना आसान लग रहा था, असल में ये उतना ही अधिक उलझ गया है.

विचारधारा का क्या?

शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा है कि शिवसेना की कांग्रेस के साथ कोई दुश्मनी नहीं है. उन्होंने कहा है कि अगर कोई सरकार बनाने की तैयारी में है तो शिवसेना इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार है. यानी वह सीधे-सीधे यही कह रहे हैं कि कांग्रेस-एनसीपी अगर चाहे तो वह शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बना ले. हां ये बात अलग है कि उन्होंने अपनी शर्तें सामने नहीं रखी हैं. लेकिन यहां एक बड़ा सवाल ये उठता है कि अगर शिवसेना के साथ कांग्रेस सरकार में आती है तो शिवसेना के हिंदुत्व के एजेंडा का क्या होगा? कांग्रेस की सेकुलर विचारधारा का क्या होगा? किस मुंह से कांग्रेस हिंदुत्व छवि वाली भाजपा पर हमला बोलेगी? उद्धव ठाकरे कैसे हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे? यानी भले ही सरकार बन जाएगी, लेकिन विचारधारा का टकराव होना तय है. और जहां विचारधारा ही नहीं मिलेगी, वो सरकार कितने दिन चलेगी, ये देखना दिलचस्प रहेगा.

क्या भाजपा को हराने के लिए वाकई कांग्रेस ऐसा करेगी?

इसमें कोई दोराय नहीं है कि भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए कांग्रेस अक्सर ही किसी न किसी पार्टी के साथ गठबंधन करती है. कर्नाटक में भी उसने ऐसा ही किया और जेडीएस के साथ गठबंधन किया. हालांकि, पूरे समय दोनों में अनबन बनी रही. जेडीएस तो तब भी भाजपा के खिलाफ चुनाव मैदान में थी, ऐसे में उसके साथ गठबंधन तो समझ आता है, लेकिन शिवसेना तो भाजपा की सहयोगी है, उसके साथ कांग्रेस गठबंधन कैसे कर सकती है? खैर, भाजपा को हराने के लिए हो सकता है कि कांग्रेस ये भी कर जाए. ये देखने वाली बात होगी कि कितने दिन ये गठबंधन चलेगा.

कुछ भी तय नहीं है

शिवसेना ने ये साफ कर रखा है कि उसे मुख्यमंत्री बनना है. यानी सीएम की कुर्सी के लिए शिवसेना सबकुछ करने को तैयार है. लेकिन कांग्रेस और एनसीपी का क्या? बिना किसी स्वार्थ के वह अपनी विरोधी विचारधारा वाली पार्टी के साथ गठबंधन क्यों करेंगे? बेशक वह भी कुछ न कुछ तो चाहते ही होंगे. कौन मंत्री बनेगा, किसे कौन सा मंत्रालय मिलेगा... बहुत सारा झोल होने वाला है. ये भी देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस खुलकर शिवसेना का साथ देती है, या फिर बाहर से समर्थन करती है.

कितने दिन चलेगी ये सरकार?

एक सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर विरोधी विचारधारा की पार्टियों का गठबंधन कितना चलेगा, जबकि भाजपा-शिवसेना की विचारधारा एक ही है, बावजूद इसके शिवसेना और भाजपा में हमेशा ठनी रहती है. महाराष्ट्र में हमेशा भाजपा-शिवसेना का ही गठबंधन हुआ है, लेकिन हमेशा दोनों एक दूसरे से लड़ते ही रहे हैं. जैसे-तैसे दोनों ने मिलकर सरकार तो चला ली, लेकिन विरोधी विचारधाराओं की पार्टियों में सरकार कैसे चलेगी? मान लिया कि कांग्रेस-एनसीपी कुछ सोचकर शिवसेना के साथ गठबंधन के लिए तैयार भी हो जाएं तो सवाल ये है कि आखिर ये कब तक साथ रहेंगे और कैसे साथ रहेंगे? एक विचारधारा वाली भाजपा-शिवसेना का टकराव तो महाराष्ट्र ने खूब देखा है, इस बार विपरीत विचारधाराओं की पार्टियों का गठबंधन और फिर उनके बीच टकराव भी देखने तो मिल जाएगा.

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