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Updated: 05 अक्टूबर, 2021 10:03 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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तारीख- 4 अक्टूबर 2021

समय - रात का कोई पौने दस.

देश स्तब्ध था. न. न तो कोई राजनेता परलोक सिधारा था न ही किसी फिल्म स्टार या क्रिकेटर की मौत हुई थी. 'फेसबुक अपने दो भाइयों इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप को साथ लेकर बिन बताए कहीं चला गया था.' इस बात को कितनी आसानी से पढ़ लिया आपने. लेकिन क्या ये बात उतनी ही आसान है? या फिर क्या ये ऐसी है जिसे हल्के में लिया जाए? नहीं. बिल्कुल नहीं. कत्तई नहीं. एक ऐसे वक्त में जब हम रियल से ज्यादा वर्चुअल वर्ल्ड की मोह माया में उलझे हों चाहे वो फेसबुक हो या फिर इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप कहना गलत नहीं है कि ये उतने ही जरूरी है जितना मानव शरीर के लिए मस्तिष्क, हृदय, यकृत और गुर्दे. अच्छा चूंकि ये सब अचानक ही हुआ था. तो बीते दिन जब फेसबुक नहीं चला, और फ्रस्ट्रेशन अपने शबाब पर था. तो सोचा लाओ व्हाट्सएप पर आए गुलाब, गेंदे, गुड़हल, फूल पत्ती, नदी नाले और झाड़ियों की सफाई की जाए. जैसे ही खोला तो वहां भी हाल फेसबुक सरीखा. दिमाग का पारा सातवें आसमान पर. मोबाइल में न तो फेसबुक ही खुला और न ही व्हाट्सएप ऐसे में ये सोचकर कि चलो इंस्टाग्राम तो ज़िंदा होगा ही वहीं कुछ फनी वीडियो देख लिए जाएं. ऐप खोली. धोखा हाथ लगा.

Facebook, Instagram, Whatspp, Whatspp Calling, Facebook Post, News Feed, Twitterबीते दिन फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप क्या गया लगा जैसे जिंदगी ही रुक गयी

फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम के न चलने से मूड की लंका लग चुकी थी. सोचा शायद फ़ोन में कोई दिक्कत हो इसलिए फ़ोन को भी बार बार रीस्टार्ट किया. नेट पैक भी चेक किया नतीजा निकला ओके. अच्छा क्योंकि पहले भी कई मौकों पर फेसबुक ये ड्रामा कर चुका है इसलिए दिमाग ने साथ दिया और माजरा जानने के लिए गूगल न्यूज़ का रुख किया वहां जो जानकारी हाथ लगी लगा शरीर से प्राण ही निकल गए हैं.

जो लेख गूगल पर मौजूद थे किसी में ये जिक्र था कि मामला DNS सर्वर से जुड़ा है तो कुछ ने बताया कि भारी टेक्निकल फॉल्ट हुआ है. मामले के मद्देनजर गूगल न्यूज़ पर जितने भी लेख पढ़ें सबके अंत में वही एक बात. धैर्य धरो बालक, निर्माण कार्य चालू आहे. रुकावट के लिए खेद है.

किसी और की क्या ही बात करूं. जिस शिद्दत से कल फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम का इंतेजार किया कसम से वैसा वेट तो हाई स्कूल और इंटर में कभी रिजल्ट का न किया. नहीं मजाक नहीं कर रहा जिस तरह कुछ घंटों के लिए सोशल मीडिया के प्रमुख अस्त्र शस्त्रों ने कुछ पलों के लिए साथ छोड़ा महसूस हुआ कि अगर कोई इस भरी पूरी दुनिया में अकेला और तन्हा है तो वो सिर्फ और सिर्फ मैं हूं.

भले ही कुछ पलों के लिए रहा हो मगर वक़्त बदला, जज्बात बदले, फीलिंग बदली. कुंवारों का तो मैं नहीं कह सकता लेकिन हां फेसबुक के डाउन होने से शादी शुदाओं का हाल बहुत बुरा था. भले ही टाइम पास रहा हो, लंबे समय के बाद लोग अपने साथी से बात कर रहे थे. मेरी तरह तमाम लोग रहे होंगे जिनके शब्दकोश में शब्दों की भारी कमी पड़ गई थी.

लोग ये समझने में असमर्थ थे कि अपने साथी से, अपने माता पिता से इतने लम्बे वक़्त के बाद बात करें तो क्या करें और बात शुरू कर भी दी तो उसकी शुरुआत कहां से करें? मैं पूरी गारंटी के साथ इस बात को कह सकता हूं कि हर वो शख्स जिसका फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर एकाउंट रहा होगा उसने अपने आपको तन्हा और वीरान पाया होगा.

वो तमाम लिखन्तु जिन्होंने लिख लिख के फेसबुक की दीवार को रफ कॉपी बना दिया था उनका हाल तो डेंगू के उस मरीज सरीखा था जिसके प्लेटलेट्स डाउन हो गए जो मौत की कगार पर खड़ा है और जिसे प्लेटलेट्स के लिए कोई डोनर नहीं मिल रहा. चाहे वो कवि रहे हों या कहानीकार, फोटोग्राफर, सोशल रिफॉर्मर और सोशलाइट फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप के डाउन होने से जिन चुनौतियों का सामना इन्होंने किया है, कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई.

चाहे वो दद्दा रहे हों या दीदी उन्हें आदत लग गयी है सहमत और वआआह बटोरने की खुद कल्पना कीजिये जब 6 या 7 घंटे कोई इनसे सहमत नहीं हुआ होगा इन्हें वाह नहीं कहा होगा तो क्या हाल इनका हुआ होगा?

स्मरण कीजिये उन सुंदरियों की तकलीफ का जिनकी छवि सौम्य है और डीपी नाइस है. कैसी अनुभूति हुई होगी उन्हें जब काफी लंबे समय तक उनका हाल चाल लेने कोई इनबॉक्स में नहीं आया होगा? या फिर वो स्क्रीनशॉट वीर जो हर बात का स्क्रीनशॉट लेकर उसे पोस्ट कर देते हैं यकीनन 6 या 7 घंटे के लिए बेमौत मर गए होंगे.

वहीं बात अगर बुद्धिजीवियों की हो तो न तो इनका फंडा पहले ही कभी समझ आया और न ही बीते दिन वाली फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप डाउन होने वाली घटना के बाद. इनका मानना था कि यदि मार्क भाई जुकेरबर्ग ने किया है तो कुछ सोच समझ कर किया होगा. शायद मार्क चाहते हों कि लोग कुछ इंचों की बाहर निकलें. एक दूसरे से मिलें उनका हाल चाल लें, बात चीत करें. वो तमाम लोग जो इस पॉइंट पर एकमत हैं उनको हम बस यही कहेंगे कि आप लोग सच में बड़े क्यूट हैं और अब वो वक़्त  आ गया है जब आपको  मानव से गुफा मानव बन महामानव बन जाना ही चाहिए.

देखिये साहब. बात बहुत सीधी और एकदम सिंपल है. वो तमाम लोग जो कह रहे हैं कि अरे कुछ घंटों की बात थी, ऐसा भी क्या पहाड़ टूट गया फेसबुक और इंस्टाग्राम के बंद होने से. दरअसल ये लोग ग़ालिब के ख्याल के फंडे पर हैं और अपने अपने दिलों को बहला रहे हैं. आदमी चाहे जितना भी हामी क्यों न भर ले लेकिन सच यही है कि फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम के जाने से लोगों को फर्क पड़ा है और ये बड़ा फर्क है. 

बीते दिन तकनीकि रूप से जो कुछ भी हुआ हो लेकिन सच यही है कि आज हमारा जीवन सोशल मीडिया का मोहताज है. हम कितना भी क्यों न कह लें लेकिन हम रह ही नहीं सकते हैं फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम के बिना. तकनीक के नाम पर खालीपन की मार सहते हम जैसे लोगों के साथ जो कुछ भी फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप ने किया है हम सवाल पूछना चाहेंगे कि ऐसे भी बेदरसी से कोई जाता है भला? फेसबुक और इसके सस्थापक मार्क जुकेरबर्ग को समझना होगा कि एक बार आदमी सिंगल किडनी और कोलेस्ट्रॉल भरे ह्रदय से काम चला सकता है मगर बिना सोशल मीडिया के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती.

कुल मिलाकर मॉरल ऑफ द स्टोरी बस इतना है कि 4 अक्टूबर 2021 का दिन और पौने दस बजे का समय दोनों ही याद रखा जाएगा. भारत समेत जहां जहां भी लोगों का फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप डाउन रहा लोगों की बद्दुआएं लगेंगी. ऐसी भी क्या ही तकनीक जब 2 जीबी डेटा और फुल बैटरी होने के बावजूद आदमी आदमी से वर्चुअली कनेक्ट न कर पाए. आइये मिलकर तकनीक के खिलाफ धरने पर बैठा जाए. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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