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Updated: 07 अक्टूबर, 2020 08:57 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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ड्रामेबाजी वाली राजनीति का दौर पहले ही शुरू हो चुका था. ये आम धारणा हो गई कि अच्छे अभिनेता की खूबियों वाले बड़े राजनेता बनने का हुनर रखते हैं. इसलिए तमाम बड़े कलाकारों को राजनीति में स्कोप दिखने लगा. पर अब जोकरी का पारम्परिक पेशा कमजोर पड़ने के बाद कुछ जोकर नये तेवर और कलेवर में जोकरी ले कर आये हैं. ऐसे जोकरों (कॉमेडियंस) का नया सैट 'न्यूज रूम' (News Room) है, और लक्ष्य हैं न्यूज़ चैनल्स (News Channels) के दर्शक. इस तरह कोरोना काल में नये किस्म की कॉमेडी (Comedy) देखकर टीवी दर्शक न्यूज के बजाय नये किस्म के कामेडी युक्त न्यूज चैनल्स खूब देखने लगे. कोरोना के तमाम कुप्रभावों में कुछ दिन का ये भी कुप्रभाव रहा कि नंबर वन पर वही क़ायम हुआ जो झूठ, फरेब, मैलोड्रामा, ओवर एक्टिंग के साथ हंसाने का हुनर जानता था.

Media, News, TV, Coronavirus, Satire, Indians, Bollywoodये अपने में दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब मीडिया व्यर्थ की ख़बरों के लिए जाना जा रहा है

इन बातों की एक दलील है!

दूरदर्शन के बाद बढ़ते टीवी चैनल्स की आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़ी. न्यूज चेनल्स की टीआरपी रिपोर्ट सबकी पोजीशन और रीच तय करने का मानक बनी. दशकों से चल रही इस सिस्टम में पहली बार चौकाने वाले तत्थ सामने आये. पिछले हफ्तों की टीआरपी रिपोर्ट्स के अनुसार न्यूज चैनल्स की पोजीशन नंबर दो से शुरू होती है. क्योंकि नंबर वन पर नये किस्म की कॉमेडी करने वाले एक चैनल ने फिलहाल कब्ज़ा जमा लिया.

हांलाकि ये बात भी दिलचस्प और हास्यास्पद है कि ये चैनल अपने को न्यूज चैनल कहता है. लेकिन जिसे पिछले कुछ हफ्ते इसलिए पसंद किया गया था क्योंकि कोरोना और लॉकडाउन की बंदिशों से मानसिक निजात पा कर लोग नये किस्म की कॉमेडी देखना चाहते थे. और इस चैनल में कामेडी, हास्यास्पद डॉयलॉग्स, जबरदस्त संवाद सम्प्रेषण, डायलॉगबाज़ी, उछलना-कूदना, चीखना-चिल्लाना, गालियां, एक्शन, मैलोड्रामा, ओवर एक्टिंग और हास्य-परिहास के सारे रस थे.

मालूम हो कि आम जनता ड्रामेबाजी, नाटकबाज़ी, ओवर एक्टिंग, मैलोड्रामा और कॉमेडी पसंद करती है. इसलिए कई कलाकार मीडिया या फिर राजनेता का मुखौटा लगाकर राजनीति या मीडिया के क्षेत्र में उतर आये हैं.  इसकी एक वजह ये है कि कलाकारी, एक्टिंग और ड्रामे के पेशे पर खतरे मंडरा रहे हैं. इसलिए कलाकार/कॉमेडियन राजनीति या मीडिया में प्रवेश कर यहां अपना हुनर दिखा जा रहे हैं.

कलाकार क्यों मीडिया के बहुरूपिया बने

भारत की बेहतरीन कला रंगमंच की क़द्र नहीं हुई और ये विधा व्यवसायिकता के चौखट पर दम तोड़ने लगी. अब फिल्म इंडस्ट्री भी बुरे दौर से ग़ुज़र रही है. भारत में मनोरंजन का सबसे बड़ा प्लेटफार्म हिन्दी सिनेमा रहा है. दुर्भाग्य कि अब बॉलीवुड भी उलटी गिनती गिनने लगा है. आरोप लगते रहे कि ये इंडस्ट्री कठपुतली बन गयी है. दाऊद इब्राहिम.. अंडरवर्ल्ड.. आतंकियों और भारत विरोधी शक्तियां के हाथ में बॉलीवुड की डोरिया हैं. इनके इशारे पर ही स्क्रिप्ट और स्टार कास्ट तय होती है. ये आरोप बरसों से लगता रहा है. मुंबईया फिल्म इंडस्ट्री पर लगने वाला एक और पुराना आरोप इन दिनों ताजा हुआ. वो ये कि ड्रग्स में डूबा है बॉलीवुड.

इस तरह बॉलीवुड अलोकप्रिय होता जा रहा है और भारतीय सिनेमा कमज़ोर. इसके अतिरिक्त पहले वीसीआर और सीडी ने और फिर डिजिटल युग में सिनेमाहाल से दर्शकों का रिश्ता कमज़ोर होता गया. तमाम वजहों से कलाकार कथित पत्रकार बन कर कथित न्यूज चैनलों पर कॉमेडी और ड्रामेबाजी करने लगा. जिससे उसे कुछ समय के लिए लाभ भी हुआ. कोरोना काल के कुछ हफ्तों में ऐसा एक कामेडी चैनल वास्तविक न्यूज चैनलों की कुछ टीआरपी पर कब्जा जमाने में कामयाब भी हुआ.

पर ये बदलाव छोटे से वक्त के लिए आया है. क्योंकि लोग कोरोना की बंदिशों से ऊब कर न्यूज चैनल पर भी फुल टाइम कॉमेडी/ड्रामेबाजी देख कर अधिक से अधिक मनोरंजन करना चाहते थे.लेकिन कोरोना के भयावह दौर के साथ ये छोटा सा अव्यवहारिक दौर भी खत्म होने लगा है.

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लेखक

नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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