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Updated: 04 नवम्बर, 2017 10:49 AM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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राहुल गांधी जीएसटी और नोटबंदी के मामले में सरकार को घेरे हुए हैं. जब से गुजरात चुनाव में प्रचार बढ़ा है तब से ही जीएसटी और नोटबंदी की खामिया बहुत जोर शोर से आगे आने लगा है. साणंद के टाटा नैनो प्लांट से लेकर जीएसटी के टैक्स स्लैब तक राहुल गांधी रुकने का नाम ही नहीं ले रहे. अपने एक बयान में राहुल ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि एक देश, सात टैक्स को खत्म कर इसे आसान टैक्स बनाया जाए और ये वाकई गुड एंड सिंपल टैक्स बने.

गाहे बगाहे किसानों और व्यापारियों के बारे में बात करते करते राहुल कहते हैं कि जीएसटी से हमेशा समस्याएं ही हुई हैं. यहां तक कि राहुल ये भी वादा करते हैं कि एक टैक्स बना दिया जाएगा बस कांग्रेस आ जाए और फिर ये वाकई आसान टैक्स हो जाएगा.

भारत का जीएसटी टैक्स बाकी देशों से काफी अलग है. कहीं भी किसी भी मामले में ये नहीं कहा जा सकता कि जीएसटी आसान है. 7 या 8 अलग-अलग टैक्स स्लैब और अलग-अलग नियम हैं. व्यापारियों के लिए उतना ही मुश्किल है कि इसे अपनाया जा सके, लेकिन फिर भी क्या भारत जैसे देश में एक टैक्स लगाया जा सकता है? चलिए कुछ मामलों पर गौर करते हैं...

बाकी देशों में जीएसटी...

अभी तक का रिकॉर्ड रहा है कि जिस भी देश में जीएसटी लागू हुआ है उस देश में इसे लागू करने वाली सरकार वापस सत्ता में नहीं आई है.

जीएसटीजीएसटी टैक्स स्लैब

ऊपर दिया हुआ चार्ट दुनिया के कई देशों में जीएसटी के रेट दिखाता है. अधिकतर देशों में एक टैक्स स्लैब ही है. फ्रांस वो पहला देश था जहां जीएसटी लगाया गया और उसके बाद से लगभग 140 देश जीएसटी के दायरे में आ चुके हैं. कुछ देशों में डुअल जीएसटी है, जैसे- कनाडा और ब्रजील. भारत ने कनाडा का मॉडल चुना है डुअल जीएसटी का (CGST-SGST) जहां केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही टैक्स ले सकती हैं.

कनाडा, फ्रांस, यूके, न्यूजीलैंड, मलेशिया, सिंगापुर आदि कई देशों में जीएसटी लगा हुआ है, लेकिन ये सभी देश विकसित हैं और भारत जैसी जनसंख्या का भरण-पोषण नहीं करते हैं.

क्यों नहीं लगा सकते वन टैक्स...

जनसंख्या स्लैब के हिसाब से टैक्स स्लैब

जैसे टैक्स स्लैब हैं वैसे ही यहां जनसंख्या का भी स्लैब्स हैं इसलिए जीएसटी वन नेशन वन टैक्स नहीं बन सकता. यूरोपीय देशों में भारत की तरह गरीब लोग नहीं रहते और वहां एक टैक्स सभी दे सकते हैं, लेकिन अगर यही भारत में लगाया जाए यानि दूध से लेकर मर्सिडीज गाड़ी तक सभी एक ही टैक्स स्लैब में तो सोचिए महंगाई किस हद तक बढ़ जाएगी.

जीएसटी

दूध और रोजमर्रा की जरूरत का सामान 0% टैक्स स्लैब में है अगर यही बढ़ गया तो क्या होगा? जो लोग बहुत गरीब हैं क्या वो खाना भी खरीद पाएंगे? इससे होगा ये कि किराना सामान के रेट बढ़ेंगे और मर्सिडीज जैसी गाड़ियों के घटेंगे.

एकदम से कैसे करें वन नेशन वन टैक्स?

भारत के रेवेन्‍यू सेक्रेटरी हसमुख अडिया का कहना है कि हमारा अंतिम उद्देश्‍य यही होगा कि जीएसटी का स्‍लैब एक ही हो जाए. लेकिन एकदम से ये नहीं किया जा सकता है. ये भी बिलकुल सही है. खुद ही सोचिए ऐसे देश में जहां 70% कारोबार कच्चे बिल और बिना टैक्स - रसीद के होता है वहां आखिर कैसे एक बार में एक टैक्स लगाया जा सकता है?

अर्थव्यवस्था का क्या होगा?

अगर एकदम से एक टैक्स रेट कर दिया गया तो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था यानि भारत असल में चरमरा जाएगी. भले ही नोटबंदी और जीएसटी के बाद फास्टेस्ट ग्रोइंग इकोनॉमी का टाइटल भारत से छिन गया हो, लेकिन अभी भी महंगाई उस तरह से नहीं बढ़ी जिस तरह से जीएसटी लगने के बाद बाकी देशों में बढ़ी थी. अभी भी आम आदमी के लिए चीजें उतनी ही महंगी या सस्ती हैं जितनी पहले हुआ करती थीं. कुछ महंगा हुआ है तो कुछ सस्ता भी हुआ है.

रेवेन्यु का क्या होगा?

राहुल गांधी को एक बार ये भी सोचना चाहिए कि अगर वो एक नेशन एक टैक्स कर देंगे तो गाड़ियां और महंगे आइटम सस्ते हो जाएंगे और सरकार को रेवेन्यु जो मिलेगा वो मिलेगा गरीब लोगों से. यानि 21 रुपए का एक दूध का पैकेट काफी महंगा हो जाएगा और एक एसयूवी गाड़ी सस्ती. ऐसे में सरकारी रेवेन्यु पर भी तो असर पड़ेगा.

असल में परेशानी कहां...

देश को इससे नुकसान नहीं है कि अलग-अलग स्लैब है, लेकिन इसका ट्रांसफॉर्मेशन परेशान कर रहा है. यानि 70% कच्चा बिल और बिना पेपर वर्क के काम करने वाले व्यापारियों को ये समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वो करें क्या? व्यापार में नुकसान का कारण जीएसटी नहीं बल्कि जीएसटी को लगाने का तरीका बना है. ये बिलकुल सही है कि हड़बड़ाहट में लागू किया गया जीएसटी लोगों को तैयारी करने का मौका नहीं दिया गया, लेकिन शायद इसे कभी भी लागू किया जाता तो ऐसी ही हड़बड़ाहट होती क्योंकि तैयारी आखिरी समय पर करना ही भारतीयों की अहम खूबी है. 

इतनी बड़ी आबादी वाले देश में जहां अभी भी लोगों के पास बैंक खाते और कम्प्यूटर जैसी सुविधाएं नहीं हैं वहां कोई परफेक्ट टैक्स सिस्टम लगाना कितना मुश्किल है ये लोगों को समझना होगा. अगर ऐसा नहीं किया तो यकीनन बिना किसी अहम जानकारी के सरकार को दोष देना तो बहुत आसान है. सोशल मीडिया पर प्री जीएसटी और पोस्ट जीएसटी की तस्वीरें वायरल हो रही हैं. कोई एक प्रोडक्ट दिखा कर ये कहा जा रहा है कि बहुत महंगाई बढ़ गई, लेकिन कई चीजें ऐसी भी हैं जो सस्ती हुई हैं. बहरहाल, गूगल और इंटरनेट के इस जमाने में कोई भी चीज सोशल मीडिया पर वायरल करने से पहले एक बार उसके बारे में जान लेना सही होगा.

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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