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Updated: 03 नवम्बर, 2017 02:19 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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नोटबंदी की सालगिराह आने वाली है. 8 नवबंर यानि वो दिन जब हर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मास्टर स्ट्रोक से अंजान था और एकदम से रात 8 बजे सभी की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. 8 नवंबर 2016 रात 8 बजकर 22 मिनट पर जब मैंने फेसबुक खोला था तो मोदी के इस दांव की तारीफ हो रही थी. इसके ठीक 1 हफ्ते बाद लोग फेसबुक पर मोदी को गालियां दे रहे थे कि उन्हें लाइन में लगना पड़ रहा है. अब इस मास्टर स्ट्रोक को एक साल हो गया है और कांग्रेस नोटबंदी की जयंती को काले दिन यानि ब्लैकडे के रूप में मना रही है.

8 नवंबर के बाद भारतीय इकोनॉमी और भारत में लोगों की जिंदगी में काफी कुछ बदल गया.

1. किसी भी लाइन में लगने की क्षमता

हाल ही में स्टारबक्स ने अपनी एनिवर्सरी सेल में 100 रुपए की कॉफी दी. और उसके लिए इतने लोग लाइन में लगे थे जितने नोटबंदी के समय एटीएम की लाइन में दिखते थे. नोटबंदी के बाद से इतना तो तय हो गया है कि अब लोगों को लाइन में लगने की प्रैक्टिस हो गई है. वैसे तो भारतीय किसी भी फ्री या सस्ती चीज के लिए लाइन लगा लेते थे, लेकिन नोटबंदी के बाद से घंटों लाइन में इंतजार करने की हमारी क्षमता बढ़ गई है.

नोटबंदी, नरेंद्र मोदी, भाजपा, अर्थव्यवस्था

2. पेटीएम के ग्राहक

बिना किसी शक के ये एक स्थापित फैक्ट हो गया है कि जैसे ही नोटबंदी हुई वैसे ही देश के तमाम मोबाइल वॉलेट तेजी से तरक्की करने लगे. इसमें पेटीएम सबसे ऊपर था. नोटबंदी के बाद पेटीएम के 300 मिलियन यूजर्स हो गए. नोटबंदी के महज 12 दिन बाद ही पेटीएम के 70 लाख से ज्यादा ट्रांजैक्शन और 120 करोड़ से ज्यादा रुपए का लेनदेन प्रति दिन होने लगा.

पूरे साल का टार्गेट पेटीएम ने दो महीने के अंदर ही पूरा कर लिया था. नोटबंदी के बाद से डिजिटल ट्रांजैक्शन में बढ़त तो हुई ही.

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3. यूपी में सरकार

यूपी चुनाव के कुछ समय पहले की नोटबंदी ने यकीनन यूपी में मौजूद पार्टियों की कमर तोड़ दी. इसका कोई लिखित फैक्ट तो नहीं लेकिन मायावति और मुलायम यादव का नोटबंदी को लेकर विरोध और इसे लागू करने के लिए समय मांगना इस ओर इशारा कर रहा था. बौखलाहट साफ दिख रही थी. बीजेपी की जीत के पीछे दबे मुंह लोग ये भी कहते हैं कि इसका सीधा कारण नोटबंदी थी. खैर, जो भी कारण हो जीती तो भाजपा और नोटबंदी के बाद यूपी में सरकार भी बदल गई.

4. भारत की जीडीपी

जीडीपी ग्रोथ किस हद तक नोटबंदी के बाद बदली है वो देखने लायक है. वैसे तो हाल ही में लागू हुआ जीएसटी भी मौजूदा जीडीपी के लिए जिम्मेदार है, लेकिन अगर नोटबंदी के बाद वाले क्वार्टर की बात की जाए तो 2016-17 की आखिरी तिमाही में एक्सपर्ट्स ने 7.1% जीडीपी होने की बात कही थी, लेकिन असल में ये 6.1% पर सिमट कर रह गई. ये मिनिमम एक्सपेक्टेशन जो 6.5% थी उससे भी कम थी. शायद असलियत इससे भी बुरी हो, लेकिन ये आधिकारिक आंकड़े हैं. दिसंबर और जनवरी में पिछले साल कई सर्वे किए गए थे और उनके बाद ये सच्चाई सामने आई थी कि 2016-17 में नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था काफी चरमरा गई थी.

5. लोगों की भाजपा को लेकर सोच..

नोटबंदी के दौर में किसी ने भी भाजपा की नियत पर शक नहीं किया था और लोग इसी उम्मीद में लाइन में लग गए थे कि देश का कुछ भला होगा, लेकिन अगर देखा जाए तो एक साल बाद बिना किसी खास नतीजे के लोगों को भाजपा के फैसले पर शक होने लगा है. गुजरात चुनाव में भाजपा की बढ़ती मुसीबत देखकर भी यही लग रहा है कि अब लोगों की भाजपा को लेकर सोच में थोड़ा सा बदलाव होने लगा है. हाल ही में जाने माने इकोनॉमिस्ट, जर्नलिस्ट और नेता अरुण शौरी ने एनडीटीवी को दिए अपने इंटरव्यू में कहा कि भाजपा द्वारा ही देश की अब तक की सबसे बड़ी काले धन को निकालने की स्कीम निकाली है और उन्होंने ये भी कहा कि ये पूरी तरह से बेवकूफाना स्कीम थी जिसने लोगों को वो नहीं दिया जो उनसे वादा किया गया था.

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अरुण शौरी जो वाजपेई के दौर में कैबिनेट मिनिस्टर रह चुके हैं अगर ये कह रहे हैं कि भाजपा अब ढाई लोग ही चला रहे हैं तो यकीनन लोगों की सोच बदली है.

6. घरेलू सामान का ऑनलाइन बिकना...

घरेलू सामान का भी डिमॉनिटाइजेशन हो गया. ग्रोफर्स, बिग बास्केट जैसी कंपनियों के बिजनेस फलने फूलने लगे. पिछले साल नोटबंदी के बाद गुरुग्राम स्थित ऑनलाइन ग्रॉसरी डिलिवरी स्टार्टअप कंपनी ग्रोफर्स ने यस बैंक के साथ संधी की थी और उसके बाद लोगों को घर में POS मशीन के साथ डिलिवरी ब्वॉयज पैसे दे रहे थे. इस सर्विस का इस्तेमाल करने के लिए लोगों को 2000 रुपए का किराना खरीदने की जरूरत थी. यानि पत्ता गोभी के साथ घर बैठे कैश भी लाकर दे रहे थे डिलिवरी ब्वॉय. खुद ही सोच लीजिए नोटबंदी ने इस बिजनेस में कितना प्रॉफिट दिया था.

7. भारत के नोट..

नोटबंदी के बाद जो चीज सबसे पहले बदली थी वो थी नोट. इसे लिस्ट में नहीं जोड़ा जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता है. आखिर इसे बदलने के लिए ही तो नोटबंदी की गई थी न...

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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