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Updated: 06 जून, 2018 06:50 PM
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सरकार का एयर इंडिया को बेचने का प्लान आखिरकार सफल नहीं हो पाया. अधिकतर लोगों को इसे जानकर कोई अचंभा नहीं हुआ कि आखिर एयर इंडिया का कोई खरीददार क्यों नहीं मिला.

एयर इंडिया के लिए कोई ग्राहक न मिलने की सबसे बड़ी वजह इस एयरलाइन के ऊपर का कर्ज हो सकती है. पर अगर वाकई इस मुद्दे पर गौर करें तो कुछ अहम वजहें सामने निकल कर आएंगी..

1. सरकार बेच रही है, लेकिन अपनी पकड़ बनाए रखना चाहती है...

सबसे पहली बात ये कि एयर इंडिया को बेचने वाली सरकार इसके 76 प्रतिशत शेयर बेच रही है जिसे एक साथ ही खरीदना होगा और इसके साथ ही सरकार की 5 सहायक कंपनियां भी आएंगी. साथ ही एयर इंडिया के 24 प्रतिशत शेयर की सरकार अपने पास ही रखना चाहती थी.

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सेंटर फॉर एशिया पैसेफिक एविएशन (CAPA) की रिपोर्ट के मुताबिक इसी कारण बोली लगाने वालों में थोड़ा असमंजस था क्योंकि अगर 1/4 हिस्सा सरकार के पास रहेगा तो एयरलाइन में किए जाने वाले बदलाव साथ ही दैनिक फैसलों में भी सरकारी दख्ल हो सकता है.

2. कर्ज और नुकसान..

एयर इंडिया के लिए कोई खरीददार न मिलने की दूसरी सबसे बड़ी वजह रही इसका कर्ज. लगातार कई सालों से घाटे में चल रही इस सरकारी एयरलाइन पर मार्च 2017 तक 33392 करोड़ का कर्ज था ये संख्या मार्च 2018 में 50000 करोड़ के पार हो गई थी.

2016-17 में एयर इंडिया का घाटा ही 5765.17 करोड़ था.

एक इन्वेस्टर ने सीधे सवाल किया कि बिजनेस का कर्ज उसकी कमाई से काफी ज्यादा है और सरकार और एयर इंडिया अगले दो सालों में इसकी भरपाई करने के लिए क्या करेगी?

भले ही कोई इन्वेस्टर कितना भी इन्वेस्ट करे. इस एयरलाइन को ठीक होने में कई साल लग सकते हैं. CAPA का अनुमान है कि अगले दो सालों में एयर इंडिया 1.5 से 2 बिलियन डॉलर के घाटे में जा सकते हैं. अगर इसमें निवेश नहीं किया गया तो ये हालात बन जाएंगे. यकीनन कोई भी बिजनेसमैन घाटे का सौदा नहीं करना चाहेगा.

3. बहुत ज्यादा स्टाफ..

एक और बात जिसने ग्राहकों को दूर कर दिया वो ये कि एयर इंडिया और सरकार की तरफ से कोई साफ पॉलिसी नहीं दी गई थी कि आखिर एयरलाइन के मौजूदा कर्मचारियों का क्या किया जाएगा. कई बिडिंग करने वालों ने सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि एयर इंडिया का स्टाफ काफी ज्यादा है और वो ऐसा स्टाफ नहीं चाहते जिसे हटाया न जा सके.

एयर इंडिया और उसकी सहायक पांच कंपनियों में कम से कम 20 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं और अगर कोई एयर इंडिया को खरीद लेता तो उसे कम से कम 1 साल तक कर्मचारियों को वैसे ही रखना होता.

4. मार्केट शेयर..

एयर इंडिया का मार्केट शेयर भी ऐसा नहीं है कि वो ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर सके. डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन के मुताबिक अप्रैल 2018 में इंडिगो का सबसे ज्यादा डोमेस्टिक मार्केट शेयर था. इसमें 39.7 प्रतिशत शेयर इंडिगो का था. जिसमें 1.34 करोड़ पैसेंजर्स ने यात्रा की. इसके बाद जेट एयरवेज जिसका मार्केट शेयर 14.7 प्रतिशत था. एयर इंडिया के पास सिर्फ 13.3 प्रतिशत मार्केट शेयर था ये सिर्फ 45.06 लाख पैसेंजर्स थे.

ट्रैफिक डेटा रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा शिकायतें एयर इंडिया के लिए आई हैं. 10 हज़ार पैसेंजर्स में से 263 ने एयरलाइन्स के खिलाफ शिकायत की. ईंधन के दामों में बढ़त ने इसे और बेकार बना दिया.

अब अगर सरकार इस एयरलाइन को बेचना चाहती है तो यकीनन उसे कुछ नई स्ट्रैटजी अपनानी पड़ेगी.

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