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Updated: 27 मई, 2018 12:05 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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इंटरनेशनल सिक्योरिटी चेक हर देश के एयरपोर्ट के लिए मायने रखता है. हाल ही में विदेश यात्रा से लौटते वक्त मैंने केरला की नर्स लिनी पुथुसेरी के बारे में पढ़ा और उस तब ये अहसास हुआ कि भारत में एक खतरनाक वायरस फैल रहा है. इस वायरस को सबसे पहले मलेशिया में पाया गया था और वहां हर 3 में से 1 परिवार ने अपना कोई न कोई सदस्य खोया था.

कुछ समय के लिए तो डर मुझे भी लगा क्योंकि मलेशिया के कुआलालंपुर एयरपोर्ट पर कुछ घंटे मुझे भी बिताने थे. इंडोनेशिया जाते वक्त भी जितनी चेकिंग भारत में नहीं हुई थी उससे कहीं ज्यादा मलेशियन एयरपोर्ट पर हुई. जूते, चप्पल, चूड़ी, बेल्ट आदि उतरवाया जाता है ये मैंने सुना तो था, लेकिन देखा पहली बार था. खैर, जाते वक्त तो कोई डर नहीं था, लेकिन आते वक्त कुछ अलग ही दृश्य था.

फ्लाइट, प्लेन, यात्री, हवाई जहाज, टिकट, वायरस, बीमारीसांकेतिक तस्वीर

सबसे पहले तो इंडोनेशिया से मलेशिया एयरपोर्ट पर आते-आते फ्लाइट में हेल्थ स्प्रे छिड़का गया. दूसरा, फ्लाइट में एक अलग तरह का अनाउंसमेंट हुआ. ये बताया गया कि यहां पर हेल्थ और सिक्योरिटी चेक के नियम काफी कड़े हैं और लोगों को सिक्योरिटी चेक के दौरान सहयोग करना होगा.

यकीनन सिक्योरिटी चेक इतना भी आसान नहीं था. सही मायने में चेकिंग तो उसी एयरपोर्ट पर हुई. सिर्फ एक नहीं बल्कि दो अलग-अलग जगह स्कैनर से गुजरना पड़ा. एक ही एयरपोर्ट पर दो अलग तरह से चेकिंग की गई. एक तो आम थी जैसी की भारत में हुई थी वहां पानी की बोतल, परफ्यूम आदि आसानी से ले लिए गए, लेकिन दूसरी ऐसी कि नंगे पांव स्कैनर से गुजरना पड़ा.

पानी की बोतल से लेकर पैरों के जूते तक सब कुछ निकाल दिए गए और फिर एक और स्कैनर का इस्तेमाल किया गया. उस वक्त ऐसा लगा कि हां वाकई सिक्योरिटी चेक भी कोई चीज़ होती है. ये शायद मलेशिया का रूटीन सिक्योरिटी चेक था.

अब जानिए भारत का हाल...

अचंभा तो तब हुआ जब मलेशिया जैसे देश से मैं भारत वापस आई. फ्लाइट मलेशिया से ही आ रही थी. यकीनन निपाह का कोई केस अभी मलेशिया में नहीं हुआ, लेकिन ये खतरनाक बीमारी 1999 में वहीं जन्मी थी और वही देश है जहां हज़ारों सुअरों को मार दिया गया था. वो समय जब मलेशिया में कई जानें निपाह की वजह से गई थीं.

वापस आकर न ही मुझे किसी हेल्थ चेकअप से गुजरना पड़ा और न ही किसी तरह का कोई स्कैन किया गया. कस्टम डिपार्टमेंट का भी कोई रोल नहीं था. मैंने इंडोनेशिया ड्यूटी फ्री से जो सामान खरीदा था वो मलेशिया में तो चेक हुआ, लेकिन वो भी भारत में चेक नहीं हुआ. कुल मिलाकर मैं बहुत ही आसानी से भारत में दाखिल हो गई.

ये वो समय है जब ऐसी बीमारी जिसे अभी तक लाइलाज ही माना गया है वो भारत में फैली हुई है और तो और मैं उसी देश से भारत में आ रही हूं जहां सबसे पहले इस बीमारी ने लोगों को अपना शिकार बनाया था. भारत में दाखिल होते हुए फ्लाइट में वो हेल्थ स्प्रे भी नहीं किया गया जो बाकी देशों के लिए जरूरी था. 

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जहां तक सिक्योरिटी की बात है तो मुझे याद है कि ज़ीका वायरस के दौर में एयरपोर्ट पर Fever Screening (बीमारी की जांच) के आदेश दे दिए गए थे और कई ज़ीका पॉजिटिव लोगों को रोका भी गया था. ये सब सरकार द्वारा चेतावनी जारी होने के बाद हुआ था.

अब हम WHO की चेतावनी की बात करते हैं जिसके अनुसार भारत में निपाह फैला हुआ है और यकीनन अगर किसी भी देश से लोग आ रहे हैं तो एयरपोर्ट पर इस तरह की बायो स्क्रीनिंग की व्यवस्था की जा सकती है. वैसे ही भारत में 12 लोग इस बीमारी के कारण मारे जा चुके हैं तो क्या ये नहीं देखा जा सकता कि कोई वायरस इंटरनेशनल फ्लाइट से हमारे देश में आ सकता है. कितना आसान है भारत में किसी भी बीमारी का फैलना जहां लोगों की संख्या इतनी ज्यादा है और स्वास्थ्य सेवाएं उसके हिसाब से काफी कम. मैं पूरी तरह से गलत हो सकती हूं, लेकिन मेरे ख्याल से एयरपोर्ट पर न सिर्फ विदेशियों के लिए बल्कि भारतीयों के लिए भी एक हेल्थ चेकअप जरूरी होना चाहिए. हमारे देश में किसी भी विदेशी सैलानी का आना गर्व की बात है, लेकिन किसी भी सैलानी के साथ बीमारी का आना यकीनन चिंता का विषय है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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