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Updated: 28 जून, 2021 03:08 PM
अभय श्रीवास्तव
अभय श्रीवास्तव
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क्रिप्टो करंसी यानी वर्चुअल मनी पर नीति क्या हो, उसे मान्यता दी भी जाए या नहीं, जब दुनिया भर की सरकारों के लिए ये लाख टके का सवाल बना हुआ है, तब दक्षिण अमेरिका के छोटे से देश एल साल्वाडोर ने डिजिटल करंसी बिट कॉइन को कानूनी मान्यता देकर पहला कदम बढ़ा दिया है. एल साल्वाडोर जिसकी अपनी कोई करंसी नहीं है, जहां अमेरिकी डॉलर का चलन है, वहां का ये फैसला सीधे तौर पर भारत जैसे देशों को प्रभावित भले ना करे, लेकिन इतना तय है कि इससे कोई देश अछूता नहीं रह सकता. क्रिप्टो करंसी आधुनिक वित्तीय लेन-देन की सबसे क्रांतिकारी तकनीक है. जब मैं क्रांतिकारी कह रहा हूं तो मेरा मतलब बिल्कुल ये नहीं कि इसके सकारात्मक होने की मैं गारंटी ले रहा हूं. क्रांतिकारी कहने से मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि ये एक ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जिससे दुनिया भर की सरकारें चाह कर भी अनजान नहीं रह सकती हैं.

Bitcoins, India, America, Cripto Currency, Economy, Technology, Rupee, Rupee And Dollarक्रिप्टो करंसी के मद्देनजर दक्षिण अमेरिका के छोटे से देश एल साल्वाडोर ने एक बड़ी पहल को अंजाम दिया है

क्रिप्टो करंसी नेटवर्क कंप्यूटर्स की ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करता है. आम पाठकों को यहां ब्लॉकचेन तकनीक समझने की जरूरत नहीं है. सिर्फ इतना समझ लीजिए कि जो रीयल मनी या करंसी होती है, दुनिया भर की सरकारें अपने-अपने देशों में उस वित्तीय व्यवस्था की साझेदार होती हैं और उन देशों का सेंट्रल बैंक उनकी गारंटी लेता है और उसे नियमित करता है.

इसमें वित्तीय लेन-देन का बहीखाता उन बैंकों की जागीर होती है जहां पर किसी व्यक्ति का बैंक खाता खुला होता है. जबकि इसके उलट वर्चुअल करंसी का लेजर पब्लिक होता है. कोई केंद्रीय व्यवस्था इसको नियंत्रित नहीं करती. इसका यही चरित्र इसके क्रांतिकारी होने की वजह है, और यही इस के खिलाफ सबसे बड़ा आर्ग्यूमेंट भी है.

क्रिप्टो करंसी के आपराधिक इस्तेमाल की आशंका को लेकर सरकारें इसके प्रति आशंकित रही हैं, इसलिए इसे मान्यता देना तो दूर, इस पर लगाम लगाने के कदम तक उठाए गए. लेकिन कोई तकनीक अगर ईजाद हो गई है, तो उसे खत्म नहीं किया जा सकता. इसलिए क्रिप्टो करंसी का ना सिर्फ अपना वजूद बना रहा, बल्कि इसका विस्तार होता गया.

2009 में बिटकॉइन पहली क्रिप्टो करंसी थी लेकिन आज की तारीख में सैकड़ों क्रिप्टो करंसीज मौजूद हैं. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का अनुमान है कि 2025 तक वैश्विक GDP का 10% ब्लॉकचेन यानी वर्चुअल करंसी के तौर पर होगा. 2030 तक ब्लॉकचेन 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर बिजनेस वैल्यू रखेगा.

2018 में भारत में RBI के सर्कुलर से निजी क्रिप्टो करंसी पर चाबुक चला. लेकिन मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्कुलर की वैधता को अमान्य कर दिया. अब भारत में चीन के 'डिजिटल युआन' की तर्ज पर 'डिजिटल रुपया' के तौर पर वर्चुअल करंसी निकालने पर गंभीरता से विचार हो रहा है. जल्द ही संसद में 'क्रिप्टो करंसी एंड रेगुलेशन ऑफ ऑफिशियल डिजिटल करंसी बिल, 2021' पेश किया जा सकता है.

बिल के प्रावधानों का अभी अंदाजा नहीं लग सका है, लेकिन इसके जरिये जिस भारतीय डिजिटल करंसी को मान्यता देने पर विचार हो रहा है, वो भारत के 'रुपये' के समकक्ष होगी. डिजिटल करंसी को नियमों से सम्बद्ध करने की जरूरत पर विशेषज्ञ सहमत तो हैं, लेकिन 'डिजिटल रुपया' लाने जैसी व्यवस्था को विकेंद्रित वित्तीय तकनीक को केंद्रित करने की कोशिश करने का विरोधाभाषी कदम मानते हैं.

उनके मुताबिक इस तरह का प्रयास भारत को क्रिप्टो करंसी की अवश्यंभावी संभावना में पिछड़ने पर मजबूर करेगा. जाहिर तौर पर क्रिप्टो करंसी को लेकर आने वाले दिनों में बहस और तेज होगी. इसके स्वरूप पर दो ध्रुव अभी से खड़े दिख रहे हैं, जबकि बड़ी आबादी की कौन कहे, नियामक तक इसे पूरी तरह समझ नहीं सके हैं.

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लेखक

अभय श्रीवास्तव अभय श्रीवास्तव @abhai.srivastava.12

लेखक आजतक में पत्रकार हैं.

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