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Updated: 29 जनवरी, 2018 05:50 PM
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2017-18 इकोनॉमिक सर्वे जिस तरह से आया उसमें नोटबंदी के असर को लेकर भी कुछ बातें सामने आई हैं. अगर सर्वे की मानें तो नोटबंदी का खराब इफेक्ट खत्म हो गया है. यूनियन बजट के पहले ससंद में पेश किया गया इकोनॉमिक सर्वे बताता है कि कैश-टू-जीडीपी अनुपात अब सही हो गया है. जो अब संतुलन की ओर इशारा कर रहा है.

इकोनॉमिक सर्वे ये भी कहता है कि भारत की जीडीपी 7-7.5 प्रतिशत तक 2018-19 में बढ़ने की संभावनाएं हैं. ये बढ़त उससे ज्यादा है जो जीडीपी के लिए अनुमान लगाया गया था. पहले ये उम्मीद की जा रही थी कि 6.75 प्रतिशत ग्रोथ होगी, लेकिन अब ये आंकड़े बदल गए हैं. इकोनॉमिक सर्वे में कई रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए इस बात को कहा गया है कि अब नोटबंदी का खराब असर खत्म हो गया है.

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सर्वे के मुताबिक मैन्युफेक्चरिंग एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट दूसरी और तीसरी तिमाही में बदलना शुरू हो गए थे. एक्सपोर्ट ग्रोथ की ये तेजी इसे 13.6 प्रतिशत तक ले गई और इम्पोर्ट ग्रोथ में कमी इसे 13.1 प्रतिशत तक ले गई. इसे ग्लोबल ट्रेंड्स के साथ देखें तो ये अनुमान लगाना कठिन नहीं होगा कि जीएसटी और नोटबंदी का असर कम हो रहा है. सर्विस एक्सपोर्ट और भेजे हुए धन में भी उछाल आ रहा है.

इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार नोटबंदी के बाद 2.8 लाख करोड़ कम कैश और 3.8 लाख करोड़ कम बड़ी वैल्यू वाले नोट भारतीय अर्थव्यवस्था में आए. सबूत ये है कि जून 2017 के बाद करंसी का ट्रेंड नोटबंदी के पहले वाले समय की तरह ही हो गया है. ये संतुलन ये भी समझाता है कि नोटबंदी का असर लगभग: 2.8 लाख करोड़ कम कैश (जीडीपी का 2.5 प्रतिशत) और 3.8 करोड़ कम हाई वैल्यू वाले नोट (जीडीपी का 2.5 प्रतिशत) रहा.

इस सर्वे के हिसाब से तो करप्शन के खिलाफ जंग के लिए लगाए गए सभी पैंतरे जिनमें जीएसटी और नोटबंदी शामिल है वो सभी अर्थव्यवस्था के कैश आधारित सेक्टर्स पर असर कर गए. भ्रष्टाचार और कमजोर शासन पर हमला करने के महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक लाभ होते हैं. उन कमजोरियों से लड़ना एक कठिन चुनौती है. जीएसटी और नोटबंदी के मामले में अनौपचारिक नकदी वाले क्षेत्रों पर असर पड़ा है.

हालांकि, नोटबंदी का असर ज्यादादर 2017 के मध्य में ही हुआ है, लेकिन उस दौर में जीएसटी लागू करवाना एक बड़ी चुनौती था.

नोटबंदी ने तत्कालीन तौर पर मांग को कम कर दिया था और प्रोडक्शन पर असर डाला था. ये सब अधिकतर कैश पर आधारित था जो अनऔपचारिक सेक्टर पर असर डालता था. ये असर 2017 मध्य तक कम हो गया जब कैश और जीडीपी का अनुपात ठीक हुआ. लेकिन उस समय जीएसटी लगा दिया गया था और सप्लाई चेन पर फिर से असर पड़ा, ये असर खास तौर पर छोटे ट्रेडर्स को पड़ा और पेपरवर्क आदि के लिए उन्हें काफी दिक्कत हुई. ये असल में वो सप्लायर्स थे जो किसी बड़ी कंपनी के लिए काम करते थे.

सर्वे के मुताबिक मार्च-अप्रैल 2017 से लेकर सितंबर 2017 तक एक्सपोर्ट ग्रोथ में कमी आई थी और इम्पोर्ट ग्रोथ बढ़ी थी. ये पैटर्न बाकी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में नहीं देखने को मिला. ये बताता है कि हमारी अर्थव्यवस्था ने नोटबंदी और जीएसटी के समय कट्टर प्रतिस्पर्धा वाला दौर देखा.

सबसे जरूरी बात..

सबसे जरूरी बात ये है कि इकोनॉमिक सर्वे ने ये बताया कि इनकम टैक्स कलेक्शन नोटबंदी और जीएसटी के बाद से काफी बढ़ा और ये सरकार के लिए एक नई उपलब्धी है.

सरकार कालेधन पर लगाम लगाना चाहती है और टैक्स को और औपचारिक बनाना चाहती है. यही कारण है कि जीएसटी और नोटबंदी को लागू किया गया था. यही वजह है कि पर्सनल इनकम टैक्स कलेक्शन बढ़े. जीडीपी के 2% हिस्सा जो 2013-14 और 2015-16 में हुआ था, उसके मुकाबले अब 2017-18 में टैक्स कलेक्शन जीडीपी का 2.3 प्रतिशत हो गया. ये वाकई एक बेहतरीन बढ़त है.

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