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Updated: 28 जनवरी, 2018 04:28 PM
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जीएसटी के बाद बजट 2018 बनाना जेटली के लिए लोहे के चने चबाने जैसा ही है. कारण ये है कि फिस्कल डेफिसिट से लेकर भारत की जीडीपी तक सब कुछ ट्रैक से उतर गया है. देश में रेवेन्यु लाने वाले कई सेक्टर घाटे का शिकार हुए हैं और अभी भी जीएसटी में लगातार बदलाव हो रहे हैं.

भले ही जीएसटी जिसे देश का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म कहा जा रहा है वो जुलाई 1 से लगाया गया हो, लेकिन 2017-18 में जो बजट पेश किया गया था वो पुराने टैक्स सिस्टम और इनडायरेक्ट टैक्स रेवेन्यु के आधार पर ही बनाया गया था. उसमें सभी चीजें जुड़ी हुई थीं चाहें वो वैट हो या फिर एक्साइज या फिर सरकार का सबसे पसंदीदा सर्विस टैक्स. ये सभी चीजें बजट का एक अहम हिस्सा थीं जो अब नहीं होगीं. पिछला बजट तो मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जा सकता था जिसमें पार्ट A फाइनेंशियल पॉलिसी के लिए और पार्ट B सरकार द्वारा टैक्स लेने और उनसे होने वाले रेवेन्यु के तौर पर था, लेकिन अबकी बार ये सब घटा कर एक टैक्स कर दिया गया है जो कम से कम आम लोगों के लिए तो पिछले इनडायरेक्ट टैक्स सिस्टम से ज्यादा पेचीदा है. यही मुश्किल जेटली जी को भी होने वाली है.

क्या हो सकते हैं बदलाव?

जहां जीएसटी ने लगभग एक दर्जन टैक्स को अपने अंदर ले लिया है वहां बजट का पार्ट B छोटा होगा और इसमें सिर्फ प्रपोजल तक ही सीमित रह जाएगा. इसमें मौजूदा टैक्स में बदलाव आदि शामिल होंगे. कुछ नई सरकारी स्कीम और प्रोग्राम भी शामिल हो सकते हैं.

अरुण जेटली, यूनियन बजट, नरेंद्र मोदी, रेलवे बजट

तो ये उम्मीद की जा सकती है कि जेटली की स्पीच छोटी नहीं होगी बल्कि कई सारी चौंकाने वाली घोषणाओं से भरी हुई होगी. आखिरकार, पूरा पार्ट B तो इनडायरेक्ट टैक्स से भरा होता था जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता था.

इसके बाद संड्री सेस (Sundry cess) भी होते हैं जो कई सालों से यूनियन बजट का हिस्सा रहे हैं, जैसे कृषी कल्याण सेस, एजुकेशन सेस, स्वच्छ भारत सेस, क्लीन एनर्जी सेस आदि. कुल मिलाकर 20 सेस थे जिन्हें जीएसटी में मिला दिया गया है. CAG (Comptroller and Auditor General) की रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 में सिर्फ 6 मुख्य सेस ही 4 लाख करोड़ का रेवेन्यु लेकर आए थे और इसमें से 45% हिस्सा इस्तेमाल ही नहीं किया गया. अब इस बात की तो चिंता दूर हो जाएगी कि सरकार 1 फरवरी को कोई नया सेस लेकर आएगी. कम से कम ये पक्की बात है कि कोई नया सेस जेब पर असर नहीं डालेगा (जब तक जीएसटी रेट न बढ़ जाए).

ये पहली बार नहीं होगा कि जेटली कोई चीज अलग कर रहे हों. पिछले साल से यूनियन बजट 1 फरवरी को पेश किया जाने लगा है और साथ ही साथ रेलवे और यूनियन बजट एक साथ आ रहा है. इसलिए कहा जा सकता है कि नई तरह का बजट जेटली के लिए चुनौती भरा तो रहेगा, लेकिन अचंभे भरा नहीं.

दूसरी बात ये भी है कि अगले साल 2019 में जनरल इलेक्शन होने हैं और उसके पहले सरकारी के पास आखिरी मौका है जनता को लुभाने का. भले ही नरेंद्र मोदी कह चुके हों कि ये बजट लोक लुभावन नहीं होगा, लेकिन फिर भी कम से कम लोगों का तो ये मानना है कि इस बजट में कुछ न कुछ तो ऐसा होगा जो लोगों का दिल जीत ले. इसमें सबसे पहला नंबर टैक्स स्लैब का है. अनुमान लगाया जा रहा है कि जेटली जी इस बार टैक्स Exemption लिमिट या टैक्स स्लैब में बदलाव कर लोगों को खुश कर सकते हैं.

अगर सिर्फ लेटेस्ट Exemption लिमिट को 205 लाख से बढ़ाकर 3 लाख ही कर देते हैं तो ही करीब 75 लाख लोगों को फायदा होगा. ये आंकड़े SBI Ecowrap की रिपोर्ट के अनुसार लिए गए हैं. जिनकी सैलरी 3.5 लाख के ऊपर है वो टैक्स में 2500 रुपए की बचत कर सकते हैं.

इतना ही नहीं अगर जेटली जी एक नया टैक्स स्लैब ही बना देते हैं जो 10-20 लाख रुपए सालाना कमाने वाले लोगों के लिए है तो सेविंग्स ज्यादा होंगी. या 5-10 लाख रुपए कमाने वालों की सैलरी में से 20% की जगह 10% ही टैक्स कटेगा तो यकीनन इससे लोगों के लिए काफी बेहतर सेविंग ऑप्शन आएंगे.

इस तरह से जिनकी सैलरी 10 लाख तक है वो अपनी टैक्स की लागत को आधा कर देंगे. साथ ही जिनकी सैलरी 20 लाख तक है वो लगभग 50 हज़ार से ज्यादा की बचत कर लेंगे.

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