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Updated: 14 अक्टूबर, 2022 03:53 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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'नालंदा हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा लगाई गई आग में गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था. फिर भी इसके विनाश का श्रेय बख्तियार खिलजी को दिया जाता है. हालांकि, खिलजी ने पास के एक विहार को हटाया था, लेकिन वह कभी नालंदा नहीं गए.' - ये कहना है इतिहासकार माने जाने वाले डीएन झा का. जिन्होंने प्राचीन भारत और मध्यकालीन इतिहास पर कई किताबें लिखी हैं. 'द कारवां' मैगजीन ने डीनएन झा द्वारा इतिहास की इस नई खोज को काफी अच्छे से जगह दी है. दरअसल, डीएन झा के पूरे लेख में यह साबित करने की कोशिश की गई है कि नालंदा विश्वविद्यालय कुछ और नहीं बौद्ध स्थल था. जिसका विध्वंस तुर्क मुस्लिम आक्रांता बख्तियार खिलजी ने नहीं हिंदुओं ने ही किया था. वैसे, आजादी के बाद से ही इस तरह का 'नया इतिहास' लिखने और भारतीयों के दिमाग में स्थापित कर देने की प्रकियाएं चलती रही हैं. और, डीएन झा के इस 'नए इतिहास' को उनकी ओर से हिंदुओं के खिलाफ छेड़ी गई युद्ध की आग में एक छोटी सी आहुति ही कहा जाएगा.

Nalanda University was set on fire by Hindu Fanatics not by Bakhtiyar Khilji new kind of History comes by Leftist Gangहिंदुओं के खिलाफ साजिशें सिर्फ इतिहास को बदलने तक ही सीमित नहीं रह गई हैं.

नया इतिहास ही सत्य, पुरानी किताबें तो सिर्फ धोखा हैं

ऐसा कहा जाता है कि जब नालंदा विध्वंस किया गया, तो वहां की किताबों और पांडुलिपियों में लगी आग तीन महीने तक जलती रही थी. और, डीएन झा, रोमिला थापर, इरफान हबीब जैसे इतिहासकारों पर इस बात का बोझ हमेशा से रहा है कि वे नालंदा विध्वंस के लिए हिंदुओं को दोषी ठहराएं. और, बख्तियार खिलजी को बाइज्जत बरी करें. फिर चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी अप्रमाणित तर्क ही क्यों न देना पड़े. क्योंकि, ये सब इतिहासकारों के तौर पर बड़े नाम हैं, तो इन्हें खारिज करना इतना आसान तो होने वाला नहीं है. मजबूरन इनका लिखा आपको मानना ही पड़ेगा. नहीं मानेंगे, तो किसी न किसी तरह मानने को मजबूर कर दिया जाएगा. खैर, इस पर आगे बात करेंगे. पहले नालंदा विश्वविद्यालय में हिंदू कट्टरपंथियों पर लगाई गई आग पर चर्चा कर लेते हैं.

'नालंदा को हिंदुओं ने जला डाला' वाला नया इतिहास इसे जलाए जाने के करीब 500 साल बाद लिखी गई एक तिब्बती किताब 'Pag-Sam Jon-Zang' में लिखी एक कहानी पर आधारित है. और, इतिहासकार डीएन झा ने इसे ही सबसे सटीक माना है. वैसे, इतिहासकार का काम पुराने से पुराने ऐतिहासिक स्त्रोतों को खंगालना है. लेकिन, अगर डीएन झा ऐसा करते. तो, शायद नालंदा को जलाने का श्रेय हिंदुओं पर नहीं डाल पाते. क्योंकि, 12वीं शताब्दी में नालंदा विध्वंस के दौरान इतिहास की तबकात-ए-नासिरी किताब लिखने वाले फारसी इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज या मिनहाज सिराज ने लिखा है कि 'बख्तियार खिलजी ने अपनी निडरता के दम पर खुद को उस जगह के प्रवेश द्वार के पीछे फेंक दिया. उन्होंने किले पर कब्जा कर लिया और बड़ी लूट हासिल हुई हजारों धार्मिक विद्वानों को जिंदा जला दिया गया और हजारों का सिर धड़ से अलग कर दिया गया.'

नालंदा से पहले तो पेट्रा जला था

पेट्रा कई शताब्दियों पहले एक संपन्न शहर के तौर पर देखा जाता था. वहां भी अरब से उठे तूफान ने कम कहर नहीं ढाया था. ये शहर अब जॉर्डन का हिस्सा है. पेट्रा के बर्बाद होने से पहले वहां भी नालंदा की तरह ही किताबों का जलाया गया था. दरअसल, इस्लाम की आवक के साथ ही उस क्षेत्र में तलवार के इस्तेमाल के साथ ही अन्य धर्मों की किताबों को जलाने का काम किया जाता था. क्योंकि, किसी धर्म को पूरी तरह से खत्म करने के लिए सबसे पहले उसकी किताबों को ही खत्म किया जाता है. तो, हिंदुओं के साथ फिलहाल यही किया जा रहा है. इतिहासकार साबित कर देते हैं कि प्राचीन काल में हिंदू गाय का मांस भी खाते थे. और, हिंदुओं ने ही बौद्ध स्थलों का विध्वंस किया. ब्राह्मण शासक पुष्यमित्र शुंग को यूं ही इतिहास का सबसे खतरनाक राजा नहीं बना दिया गया है.

वैसे, तत्कालीन पर्सिया से भागकर आए लोगों ने भारत में आकर शरण क्यो ली थी? इसका जवाब कोई जानना ही नहीं चाहता है. इस दुनिया में तकरीबन सभी धर्मों के पास अपना एक खुद का देश है. लेकिन, पारसियों के पास अब अपनी कोई जमीन नहीं बची है. और, अब वे खुद भी बहुत ज्यादा नहीं बचे हैं. खैर, इतिहास के प्रति इसी अरुचिता ने हमें कभी इस बारे में जानने के लिए उत्सुक ही नहीं किया कि सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, काशी से इतर उज्जैन के महाकाल मंदिर पर भी इस्लामिक आक्रांताओं का कहर बरसा था. 1990 में इतिहासकार सीतराम गोयल की एक किताब 'हिंदू टेंपल्स - व्हाट हैपन्ड टू देम' के अनुसार, पूरे भारत के 1800 से ज्यादा मंदिरों को नष्ट करने या उनकी जगह पर विवादित ढांचे खड़े करने के बारे में लिखा गया था. लेकिन, ये जानकारी शायद ही देश के सभी हिंदुओं तक पहुंची हो.

आखिर ऐसा क्यों किया जा रहा है?

हाल ही में दिल्ली सरकार के एक मंत्री राजेंद्र प्रसाद गौतम को धर्मांतरण करवाने के मामले में इस्तीफा देना पड़ा. दरअसल, राजेंद्र प्रसाद गौतम बड़ी संख्या में हिंदुओं का बौद्ध धर्म में धर्मांतरण कराया था. वैसे, हिंदुओं को पहले भी आर्यन थ्योरी जैसी कई चीजों के जरिये हाशिये पर डालने की कोशिश की गई है. लेकिन, 'नव बौद्धों' ने हिंदुओं के खिलाफ एक जंग छेड़ रखी है. जिसके तहत हिंदुओं के धर्मस्थलों को बौद्ध धर्मस्थल बताने की शुरुआत की गई है. इसी के साथ हिंदुओं को बौद्ध धर्म में शामिल होने के लिए प्रेरित करने की कोशिशें भी बीते कुछ सालों में तेजी से बढ़ी हैं. राम मंदिर के निर्माण से पहले वहां मिली मूर्तियों के अवशेषों को सम्राट अशोक के काल का बतानी की कोशिशें भी की गई हैं. और, इस आग को हवा देने में वामपंथी विचारधारा के बुद्धिजीवियों का पूरा वर्ग जुटा है. हिंदुओं में जाति, नस्ल आदि चीजों के जरिये विभेद को बढ़ावा दिया जा रहा है.

देखा जाए, तो अयोध्या, मथुरा, काशी से इतर हिंदुओं के हर मंदिर को बौद्ध धर्म का बताने का चलन कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है. डीएन झा जैसे कई इतिहासकार तो दक्षिण भारत के कई मंदिरों को लेकर भी दावा कर रहे हैं कि वे हिंदू मंदिर से पहले बौद्ध विहार या बौद्ध मंदिर हुआ करते थे. दरअसल, बौद्ध धर्म की किताबों को ही 'ऐतिहासिक सबूत' मानकर लिखे जा रहे इस इतिहास के जरिये हिंदुओं को भी पारसियों की तरह बनाने की कोशिश की जा रही है. वैसे, कुछ सालों पहले तक हम और आप तो यही पढ़ ही रहे थे कि नालंदा विश्वविद्यालय एक दुर्घटना की वजह से लगी आग से घिर कर जल गया था. और, अब इन लेफ्टिस्ट इतिहासकारों का नालंदा को हिंदुओं ने जलाया को भी हमें ही पढ़ना है. लेकिन, इस पर कुछ करना नहीं है. हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहिए. और, पारसी बनने का इंतजार कीजिए.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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